किसी का भी दिमाग खराब कर देने वाली एक हकीकत ऐसी भी
ये छोटी-छोटी बातें, कितनी भयानक है, दुखद हैं, देश के करोड़ो छात्र-बेरोजगार, उनके अभिभावक, शिक्षक सोच-सोचकर बेचैन, परेशान हैं सरकारों के बारे में, ब्यूरोक्रेसी की मगर मच्छी चुप्पी के बारे में, और इस सबसे बेखबर 'भाबीजी घर पर हैं' सीरियल पर खीसें निपोरते खाए-अघाए लोगों के बारे में। । उन्हे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा!
इसी साल अगस्त में खबर आई पश्चिम बंगाल से कि वहां के सरकारी स्कूल में 8वीं की परीक्षा में विवादित प्रश्न पूछे जाने पर बवाल हो गया। इसको लेकर फेसबुक और ट्विटर समेत विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइटों पर ममता सरकार निशाने पर रही।
पहले कुछ कतरनें अखबारों की, फिर बड़ी बात।
एक : 'सीबीएसई बोर्ड की दसवीं की परीक्षा में गणित का पेपर खत्म होने के बाद लाखों छात्र राहत की सांस ले रहे थे...लेकिन अचानक उनकी नींद उड़ गई। सीबीएसई ने कहा कि दसवीं के गणित और 12वीं के अर्थशास्त्र की दोबारा परीक्षा होगी।'
दो : 'सरकार युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रही है। कई विभागों में खाली पदों पर दो से तीन साल से नियुक्ति के लिए कोई विज्ञप्ति नहीं निकाल रही है। एक ही राज्य में पिछले एक साल में शिक्षित बेरोजगारों की संख्या लगभग चार लाख तक बढ़ गई है।' इसी तरह बस पढ़ते जाइए।
तीन, कल की एक ताजा कतरन : 'गुरु गोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनीवर्सिटी में क़ानून की परीक्षा दे रहे छात्रों से प्रश्नपत्र में पूछा गया, 'अहमद, एक मुसलमान बाज़ार में रोहित, तुषार, मानव और राहुल जो हिंदू हैं, के सामने एक गाय को मार देता है। क्या अहमद ने कोई अपराध किया है?' सोशल मीडिया पर प्रश्नपत्र की तस्वीरें वायरल हो गई लेकिन यूनिवर्सिटी ने प्रश्न पर अफ़सोस जताते हुए कहा है कि पेपर से इस प्रश्न को रद्द कर दिया गया है।'
ऐसी हजारों कतरनें हैं, देश के युवाओं, बेरोजगारों के बारे में, सरकारों के बारे में, ब्यूरोक्रेसी की मगरमच्छी चुप्पी के बारे में, और इस सबसे बेखबर 'भाबीजी घर पर हैं' सीरियल पर खीस निपोरते खाए-अघाए लोगों के बारे में। इस छोटी सी स्टोरी में क्या-क्या बताएं, नई पीढ़ी, जवान हो रही, जवान हो चुकी पीढ़ी के दुख समुद्र जितने और संभावनाएं शून्य, जैसे कत्तई निर्वीर्य और पशुता भरे समाज में दिन निरर्थक जीने के लिए अभिशप्त। न उनके अभिभावकों को कुछ समझ में आ रहा है, न शिक्षकों, न जीवन की राह दिखाने वाले किन्ही और को।
अपनी तरफ से बिना कुछ कहे, शायद कतरनें ही पूरी बात कह जाएं, तो आइए, पढ़ते-जानते हैं इसी साल फरवरी-2018 की एक और कतरन। 'यूपी बोर्ड परीक्षा में इंटर अंग्रेजी द्वितीय प्रश्नपत्र के एक सवाल पर प्राइमरी शिक्षक भड़क गए। 21 फरवरी की दूसरी पाली की परीक्षा में पेपर कोड 117/2 323 (सीए) में बोर्ड ने छात्र-छात्राओं से एक प्रश्न पूछा, जिसका हिंदी में मतलब है- प्राथमिक स्कूल के शिक्षक की अपने कर्तव्य के प्रति कामचोरी का शिकायती पत्र जिलाधिकारी के नाम लिखें। इस पेपर से लखनऊ समेत कई जिलों में परीक्षा कराई गई।
प्रश्नपत्र की फोटो व्हाट्सएप पर वायरल हो गई। प्राइमरी शिक्षक इससे बेहद खफा और आहत हैं। उनका कहना है कि यह हमारे सम्मान पर हमला है। इसके द्वारा बच्चों में यह धारणा बनाने की कोशिश हो रही है कि प्राइमरी के शिक्षक-शिक्षिकाएं कामचोर/निकम्मे हैं। कुछ शिक्षक इसे अवमानना के रूप में लेते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की तैयारी कर रहे हैं।
एक कतरन इसी सप्ताह, सात दिसंबर-2018 की। 'टीईटी परीक्षा में गलत प्रश्न पूछे जाने और आंसर से संतुष्ट न होने वाले चार दर्जन से अधिक अभ्यर्थियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें आठ प्रश्नों पर आपत्ति दर्ज करते हुए रिजल्ट संशोधित करने की मांग की गई है। अभ्यर्थियों ने प्रश्नों के सापेक्ष खुद को टीईटी परीक्षा में उत्तीर्ण बताया है और 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती में खुद को आवेदन करने के लिए मौका दिए जाने की मांग की है। चूंकि 69,000 सहायक अध्यापक भर्ती के लिए आवेदन की अंतिम तारीख 20 दिसंबर ही है।
ऐसे में हाईकोर्ट ने मामले को गंभीर विषय मानते हुए याचिका स्वीकार कर ली है। साथ ही, 12 दिसंबर को परीक्षा नियामक प्राधिकारी सचिव को व्यक्तिगत तौर पर सभी अभिलेखीय रिकॉर्ड के साथ हाजिर होने का निर्देश दिया है। जाहिर है कि हाईकोर्ट के निर्णय पर अब 69000 शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया भी प्रभावित होगी। अगर हाईकोर्ट में प्रश्नों को लेकर अभ्यर्थियों द्वारा दाखिल याचिका पर यात्रियों के हक में फैसला आएगा तो टीईटी का रिजल्ट फिर से बदल जाएगा।
यह कतरन, पिछले महीने नवंबर-2018 की। 'उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण परीक्षा कुछ वर्षों से विवादों के घेरे में है। पूर्व में उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग की लचर व्यवस्था का शिकार हुए अभ्यर्थियों के लिये न्याय नामक कोई संकल्पना शायद इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में बची हो, अब तक यह केवल दूर की कौड़ी साबित हुई है। यह सिलसिला 2012 से शुरू हुआ, उच्च न्यायालय प्रश्नों के उत्तर सही करने के आदेश जारी करता रहा लेकिन आयोग अपनी चाल चलता आ रहा है। इन तथाकथित विशेषज्ञों, आयोग की जिद और मनमानी के भँवर में तमाम अभ्यर्थी अपनी इच्छाओं, अपने सपनों, अपने अरमानों को फंसा पा रहे हैं। यह भँवर उनकी मेहनत और अरमानों की कब्रगाह बन चुका है।
बात ये है कि यूपीपीसीएस प्री एक्जाम 2017 के 5-6 प्रश्नों के गलत उत्तर ही मान्य रहे। कोर्ट के आदेश का भी कोई असर न रहा। कई अभ्यर्थियों ने आँखों में आँसू लाते हुए बताया कि इन प्रश्नों के गलत उत्तर के लिये हम क्यों जिम्मेदार हों? इसी साल अक्तूबर 2018 की कतरन- 'दिल्ली सबऑर्डिनेट सर्विसेज सिलेक्शन बोर्ड (डीएसएसएसबी) के एक एग्जाम पेपर में आपत्तिजनक जातिसूचक शब्द के इस्तेमाल होने से लोगों में नाराजगी है। एससी कैटिगरी की इस जाति में भी आक्रोश हैं, वहीं दिल्ली सरकार के एससी-एसटी मिनिस्टर राजेंद्र पाल गौतम ने भी इसे लेकर नाराजगी जताई है। वह चीफ सेक्रेटरी से इस मसले पर जांच की बात करेंगे। प्रश्न नंबर 71 में आपत्तिजनक जातिसूचक शब्द का इस्तेमाल किया गया। यह पूरा सवाल ही जातिसूचक है। इस एग्जाम के बाद सोशल मीडिया में भी लोगों के बीच चर्चा हो रही है और डीएसएसएसबी की जमकर आलोचना हो रही है।'
इसी साल अगस्त में खबर आई पश्चिम बंगाल से कि वहां के सरकारी स्कूल में 8वीं की परीक्षा में विवादित प्रश्न पूछे जाने पर बवाल हो गया। इसको लेकर फेसबुक और ट्विटर समेत विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइटों पर ममता सरकार निशाने पर रही।
इसी तरह का एक वाकया 2009 में झारखंड हुआ था। 'रांची यूनिवर्सिटी के पीजी पार्ट-2 हिस्ट्री के 11वें प्रश्नपत्र में पूछे गये आपत्तिजनक सवाल की जांच के लिए गठित उच्च स्तरीय कमेटी ने रिपोर्ट राज्यपाल सह कुलाधिपति सैयद सिब्ते राी को सौंप दी। जांच कमेटी के अध्यक्ष अमित खर ने राजभवन में 35 पेज की जांच रिपोर्ट सौंपी तो राज्यपाल ने कहा, वह जांच रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे। इसके बाद आवश्यक कार्रवाई होगी। जांच के क्रम में प्रश्नपत्र चयनकर्ता द्वारा दी गयी पांडुलिपि, परीक्षा विभाग की संचिकाओं एवं अभिलेखों आदि की जांच की गयी। साथ ही यूनिवर्सिटी द्वारा दिये गये 24 बिंदुओं पर रिपोर्ट की भी समीक्षा की गयी। जांच के दौरान रांची यूनिवर्सिटी के माध्यम से प्रश्न पत्र चयनकर्ता द्वारा दिये स्पष्टीकरण और इतिहास के विशेषज्ञों की राय पर भी विचार किया गया। इसके बाद परीक्षा प्रणाली में सुधार की बातें की जा रही हैं।'
और ये आखिरी कतरन दो साल पूर्व 2016, मध्य प्रदेश की, यह बताते हुए कि हालात कितने गंभीर हैं- 'मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग साल 2013 में हुई प्रारंभिक परीक्षा को रद्द नहीं करेगा, बल्कि 16 विवादित प्रश्नों को रद्द कर बाकी प्रश्नों के अंकों के आधार पर नतीजे घोषित करेगा। यह जानकारी जनसंपर्क विभाग ने एक प्रेस रिलीज में दी है। अभ्यर्थियों ने आयोग की राज्य सेवा प्रारंभिक परीक्षा-2013 में 16 प्रश्न में बोनस अंक देने पर विरोध जताया है। इस मसले पर हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि बोनस अंक देने की बजाय इन प्रश्नों को ही रद्द कर दिया जाए।' इतनी सारे प्रत्यक्ष प्रमाणों के बाद तो देश के छात्रों, नौजवानों के हालात के बारे में बाकी कुछ कहने, समझने के लिए नहीं रह जाता है।
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