भारत में ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग को नई दिशा दे रहे ये ऑन्त्रेप्रेन्योर्स
भारत के लिए ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग कोई नहीं विधा नहीं है, लेकिन फिर भी पिछले कुछ वक़्त में इसमें असाधारण विकास देखने को मिला है। उपभोक्ता धीरे-धीरे अपने स्वास्थ्य को लेकर बेहद गंभीर होते जा रहे हैं और यह भी एक महत्वपूर्ण वजह है कि केमिकल प्रिज़र्वेटिव्स वाले फ़ूड आइटम्स की जगह लोग ऑर्गेनिक तरह से उगाए गए और फ़्रेश फ़ूड आइटम्स को ही प्राथमिकता दे रहे हैं।
ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग, खेती का वह तरीक़ा है, जिसमें सिन्थेटिक इनपुट्स (जैसे कि फ़र्टिलाइज़र्स, पेस्टिसाइड्स, हॉर्मोन्स और फ़ीड आदि) का इस्तेमाल नहीं होता और अच्छी उत्पादकता के लिए, क्रॉप रोटेशन, ऐनिमल मैन्योर्स (जानवरों की मदद से बनने वाली खाद आदि), मिनरल्स और प्लान्ट प्रोटेक्शन आदि कार्यप्रणालियों का इस्तेमाल किया जाता है।
खेती एक ऐसा व्यवसाय या कल्चर है, जो देश-विदेश में न जाने कितने समय से चला आ रहा है। पिछले कुछ दशकों में हमने देखा है कि देश-विदेश, सभी जगहों पर परंपरागत खेती के तरीक़ों की जगह ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग को अधिक तवज्जो दिया जा रहा है। भारत में भी अब खेती सिर्फ़ गांवों तक सीमित नहीं रह गई है, बल्कि पढ़े-लिखे लोगों का एक बड़ा वर्ग और ख़ासकर युवा, ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग से कमाई के ज़रिए खोज रहे हैं।
क्या है ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग?
यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट ऑफ़ ऐग्रीकल्चर (यूएसडीए) की स्टडी टीम के मुताबिक़, ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग, खेती का वह तरीक़ा है, जिसमें सिन्थेटिक इनपुट्स (जैसे कि फ़र्टिलाइज़र्स, पेस्टिसाइड्स, हॉर्मोन्स और फ़ीड आदि) का इस्तेमाल नहीं होता और अच्छी उत्पादकता के लिए, क्रॉप रोटेशन, ऐनिमल मैन्योर्स (जानवरों की मदद से बनने वाली खाद आदि), मिनरल्स और प्लान्ट प्रोटेक्शन आदि कार्यप्रणालियों का इस्तेमाल किया जाता है।
हालांकि, भारत के लिए ऑर्गेनिक फ़ॉर्मिंग कोई नहीं विधा नहीं है, लेकिन फिर भी पिछले कुछ वक़्त में इसमें असाधारण विकास देखने को मिला है। उपभोक्ता धीरे-धीरे अपने स्वास्थ्य को लेकर बेहद गंभीर होते जा रहे हैं और यह भी एक महत्वपूर्ण वजह है कि केमिकल प्रिज़र्वेटिव्स वाले फ़ूड आइटम्स की जगह लोग ऑर्गेनिक तरह से उगाए गए और फ़्रेश फ़ूड आइटम्स को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। हम आज भारत के कुछ ऐसे ही स्टार्टअप्स के बारे में चर्चा करेंगे, जो ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग के सेक्टर में कुछ बेहतर काम कर रहे हैंः
ग्रोइंग ग्रीन्स
हम्सा वी और नितिन सागी ने मिलकर ग्रोइंग ग्रीन्स नाम से एक हाइड्रोपोनिग फ़ार्म की शुरूआत की थी। हम्सा और नितिन का कहना है कि परंपरागत रूप से खेती कर रहे किसान, उत्पादकता के अभाव में किसानी छोड़ रहे हैं और खपत के नज़रिए से देश की आबादी लगातार बढ़ती ही जा रही है। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि व्यक्तिगत और सरकारी, दोनों ही स्तरों पर खेती के व्यवसाय में आईं अनियमितताओं को संतुलित किया जाए।
हम्सा कहती हैं कि ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग शहरी और ग्रामीण, दोनों ही आबादी के बीच लोकप्रिय हो रही है, लेकिन अभी भी कई मुद्दे ऐसे हैं, जिनपर काम होना ज़रूरी है। हम्सा कहती हैं कि ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग समुदायों को खेती के विभिन्न तरीक़ों, पेस्ट मैनेजमेंट और ऑर्गेनिक तरीक़ों के लंबे समय तक मिलने फ़ायदों के बारे में जानकारी देने के लिए वर्कशॉप्स आयोजित करानी चाहिए।
पर्याप्त और जल्दी उत्पादन के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादातर किसान केमिकल फ़र्टिलाइज़र्स, पेस्टिसाइड्स और हॉर्मोन्स आदि का इस्तेमाल करते हैं। इसके पीछे की एक महत्वपूर्ण वजह, ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग के बारे में जानकारी का अभाव भी है। धीरे-धीरे हालात में सुधार हो रहा है और किसान भी इस बेहतर तरीक़े से अवगत हो रहे हैं।
लक्ष्मीनारायण ऐंड टीम
आईटी इंडस्ट्री में 18 सालों तक काम करने के बाद, बेंगलुरु के लक्ष्मीनारायण ने खेती-किसानी पर फ़ोकस करने के लिए अपनी नौकरी से कुछ महीनों की छुट्टी ली। 2007 में उन्हें अपनी नौकरी के स्थायित्व पर ख़तरा नज़र आ रहा था और यही समय था, जब उन्होंने खेती की तरफ़ रुख़ करने का मन बनाया। वह कहते हैं कि आईटी कॉर्पोरेट में नौकरी करते-करते आप कुछ वक़्त बाद ऊब जाते हैं, जबकि खेती का काम बड़ा ही रोचक है और इसमें हर बार कुछ नया करने को मिलता है।
2008 में लक्ष्मीनारायण ने अपनी छत पर ही सब्ज़ियां उगाने से शुरूआत की। धीरे-धीरे उन्होंने अपने कुछ दोस्तों को भी इस काम में शामिल कर लिया। उन्होंने बताया कि उन्होंने अपने कुछ दोस्तों के साथ कम्युनिटी फ़ार्मिंग के कॉन्सेप्ट पर काम करना शुरू किया। 2012 में उन्होंने अपने 10 दोस्तों के साथ एक खेत में (बेंगलुरु से 70-80 किमी. दूर) काम करना शुरू किया। लक्ष्मीनारायण बताते हैं कि उनकी टीम में लगभग सभी लोग आईटी बैकग्राउंड से ही थे और सिर्फ़ एक सदस्य फ़ार्मिंग बैकग्राउंड से ताल्लुक रखता था। लक्ष्मीनारायण अपनी टीम के साथ अभी भी खेतों पर मनचाही सब्ज़ियां आदि उगा रहे हैं।
वृंदावन फ़ार्म
मुंबई की रहने वाली गायत्री भाटिया ने शहर के पास वडा नाम की जगह पर इस ऑर्गेनिक फ़ार्म की शुरूआत की। गायत्री, फ़ार्मिंग को एक लाइफ़स्टाइल के तौर पर देखती हैं। खेती से जुड़ने से पहले वह यूएस एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी (ईपीए) के साथ बतौर एनवायरमेंटल ऐनालिस्ट के तौर पर काम करती थीं।
गायत्री बताती हैं कि नौकरी के दौरान ही उन्होंने थोड़ी बहुत अंग्रेज़ी जानने वाले किसानों के मुंह से डीडीटी, यूरिया, राउंड-अप जैसे शब्द सुने। अपने फ़ार्म में गायत्री ने खेती के देसी ज्ञान और आधुनिक तकनीक के मेल के साथ काम करना शुरू किया। वह अपने फ़ार्म के ज़रिए, स्पेसीज़ बायोडायवर्सिटी, हेयरलूम सीड सेलेक्शन, होम-मेड मैन्योर्स और क्रॉप रोटेशन आदि तकनीकों को बढ़ावा दे रही हैं।
बैक टू बेसिक्स
एस. मधुसूदन द्वारा शुरू किया गया यह ऑर्गेनिक फ़ार्म, अच्छी गुणवत्ता वाले ऑर्गेनिक फल और सब्ज़ियां उगाता है। बेंगलुरु के पास स्थित यह फ़ार्म, लगभग 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। मधुसूदन, अपनी बेटी के साथ मिलकर इस फ़ार्म की देखरेख करते हैं। बैक टू बेसिक्स, कई बड़ी ग्रॉसरी चेन्स, रीटेलर्स, ऑर्गेनिक स्टोर्स और कई अन्य समुदायों को सप्लाई करता है। बैक टू बेसिक्स देश से बाहर भी सप्लाई करता है।
ऑर्गेनिक मंड्या
मधु चंदन ने अपने चार साथियों के मिलकर 2015 में इसकी शुरूआत की थी। ऑर्गेनक मंड्या का आइडिया, मूलरूप से मधु का ही था। वह चाहती थीं कि किसानों को खेती के नए-नए तरीक़ों के बारे में जानकारी दी जाए। मधु ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक सोसाइटी बनाई और इसके ज़रिए किसानों से उत्पाद ख़रीद के बाहर बेचना शुरू किया। यह बेंगलुरु-मैसूर हाईवे पर स्थित है। टीम और अन्य किसानों द्वारा किया जाने वाला उत्पादन, इस ब्रैंड के अंतर्गत ही बेचा जाता है।
अ ग्रीन वेंचर
अ ग्रीन वेंचर एक ईको-एंटरप्राइज़ है। इसकी फ़ाउंडर काव्या चंद्रा कहती हैं कि ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग के लिए अधिक जानकारी, पारदर्शिता और किसानों-ख़रीददारों के बीच बेहतर व्यावसायिक संबंधों की आवश्यकता होती है। इसके पीछे की वजह स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि आपको पता होना चाहिए कि उत्पादन कौन कर रहा है, उत्पाद कहां से आ रहा है और उसे किस तरह से उगाया जा रहा है।
टेकसाई (TechSci) की रिपोर्ट के मुताबिक़, ग्लोबल ऑर्गेनिक फ़ूड मार्केट के अगले तीन सालों में 16 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। अनुमान के मुताबिक, 2020 तक भारत का ऑर्गेनिक फ़ूड मार्केट में 25 प्रतिशत से भी ज़्यादा की विकास दर दर्ज की जाएगी। भारत सरकार ने हाल ही में नैशनल प्रोग्राम फ़ॉर ऑर्गेनिक प्रोडक्शन (एनपीओपी) की शुरूआत की, जिसके अंतर्गत ऑर्गेनिक प्रोडक्शन के मानक निर्धारित करना, देख-रेख करने वाली इकाईयों का सर्टिफ़िकेशन और ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग का प्रसार आदि शामिल हैं।
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