कॉलेज छोड़ खोला कॉफी स्टोर, 15 करोड़ का सालाना टर्नओवर
कॉफी बेचकर ये शख़्स बन गया 15 करोड़ का टर्नओवर देने वाली कंपनी का मालिक...
महेंद्र, कर्नाटक के हासन में कॉफी की खेती से जुड़े परिवार से ताल्लुक रखते हैं। ग्रैजुएशन के दूसरे साल में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और कॉफी की ट्रेडिंग शुरू कर दी। एक दिन ऐसा भी आया था इनकी ज़िंदगी में कि इन्हें टाटा कॉफी के मार्केटिंग मैनेजर ने अॉफिस से धक्के मारकर निकाल दिया था, लेकिन कहा जाता है न कि बड़े कि शुरुआत इसी तरह के छोटे-मोटे धक्कों से होती है और महेंद्र ने इस कहे को सच साबित किया है...
दुर्भाग्यवश उनका बिजनस ठंडा पड़ने लगा। इसके पीछे की वजह थी, फसल कटने के कुछ महीनों पहले कॉफी की कीमत निर्धारित करना। महेंद्र के हालात खराब थे, लेकिन हौसला बेशुमार था।
हाल में इन्फोसिस, विप्रो, टीसीएस, सिस्को और माइक्रोसॉफ्ट जैसे बड़े कॉर्पोरेट ऑफिसों को मिलाकर हट्टी कप्पी के 46 स्टोर खुल चुके हैं। स्टोर में सिर्फ कॉफी ही नहीं साउथ इंडियन स्नैक्स की भी अच्छी वैरायटी मिलती है।
स्टार्टअप के इस दौर में हम आपके सामने एक ऐसा उदाहरण पेश करने जा रहे हैं, जिससे आज के युवा ऑन्त्रेप्रेन्योर बहुत कुछ सीख सकते हैं। यह कहानी है, ‘हट्टी कप्पी’ कॉफी चेन के फाउंडर 44 वर्षीय यूएस महेंद्र की। हट्टी कप्पी, तेजी से लोकप्रियता हासिल कर रही बेंगलुरु आधारित फिल्टर कॉफी चेन है। हट्टी का मतलब है ‘ग्रामीण’ और कप्पी का अर्थ है ‘कॉफी’।
हट्टी कप्पी ने 2009 में 30 स्क्वायर फीट के स्टोर से 100 कप प्रतिदिन से शुरूआत की थी और वर्तमान में इस चेन का टर्नओवर 15 करोड़ रुपए का है। हाल में यह चेन प्रतिदिन 40 हजार से ज्यादा कप का बिजनस करती है। बेंगलुरु और हैदराबाद मिलाकर इस चेन के 46 स्टोर खुल चुके हैं, जिनमें दोनों शहरों के एयरपोर्ट्स पर खुले स्टोर्स भी शामिल हैं।
कम उम्र में नहीं संभाल पाए लोकप्रियता और पैसा
महेंद्र, कर्नाटक के हासन में कॉफी की खेती से जुड़े परिवार से ताल्लुक रखते हैं। ग्रैजुएशन के दूसरे साल में उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया और कॉफी की ट्रेडिंग शुरू कर दी। 25 साल की उम्र तक महेंद्र के पास पर्याप्त पैसा हो गया था। इस बारे में महेंद्र कहते हैं कि कम उम्र में उनके पास पैसा, सफलता और लोकप्रियता, सब कुछ एक साथ आ गया था और वह इसके लिए तैयार नहीं थे। दुर्भाग्यवश उनका बिजनस ठंडा पड़ने लगा। इसके पीछे की वजह थी, फसल कटने के कुछ महीनों पहले कॉफी की कीमत निर्धारित करना। महेंद्र के हालात खराब थे, लेकिन हौसला बेशुमार था। इसके बाद महेंद्र 2001 में अपने बिजनस पार्टनर महालिंग गौड़ा के साथ हासन से बेंगलुरु आ गए।
किस्मत का मिला साथ
बेंगलुरु शहर में आकर भाग्य ने फिर इस जोड़ी का साथ देना शुरू किया। इन्हें एक नया मकान मात्र 4 हजार रुपए मासिक किराए पर मिल गया, क्योंकि घर के मालिक को परिवार सहित अचानक मुंबई शिफ्ट होना पड़ रहा था। महेंद्र कहते हैं कि वह एक कमरे की तलाश में थे और उन्हें एक बंगला मिल गया। कुछ वक्त महेंद्र की मां भी उनके साथ आकर रहने लगीं।
कैसे मिली टाटा कॉफी की यूनिट?
महेंद्र और उनके पार्टनर काम की तलाश में थे। इस दौरान कॉफी ट्रेडिंग के बिजनेस के दिनों के उनके दोस्त और स्वर्णा फूड्स के मालिक श्रीकांत ने उनके अपने घाटे में जा रहे बिजनस को टेकओवर करने के लिए कहा। महेंद्र बताते हैं कि यह एक इत्तेफाक था कि वह मैसूर जा रहा था और उसने मुझसे बेंगलुरु में 2,000 स्कवेयर फीट में चल रही टाटा कॉफी की यूनिट को संभालने का ऑफर दिया। महेंद्र के दोस्त ने उन्हें टाटा कॉफी के अधिकारियों से भी मिलाया।
मां की बचत पर चला घर का खर्च
इस यूनिट पर 3 लाख रुपए का कर्ज और मकान का किराया, दोनों ही का भार महेंद्र के सिर पर था, लेकिन महेंद्र महेंद्र ने इन विपरीत परिस्थितियों को बखूबी संभाल लिया। महेंद्र बताते हैं कि उनके संघर्ष के बारे में जानकर उनके मकान मालिक ने उन्हें किराया चुकाने के लिए तीन महीनों की मोहलत दी। अब महेंद्र के सामने चुनौती थी, टाटा कॉफी से नए ऑर्डर्स लेने की। महेंद्र बताते हैं कि उन्होंने कुमार पार्क वेस्ट के उनके ऑफिस के कई चक्कर लगाए, लेकिन संघर्ष अगले 2 सालों तक जारी रहा।
कर्ज में डूबी टाटा कॉफी की यूनिट पर महेंद्र ने अपने पिता को रिटायरमेंट में मिला सारा पैसा खर्च कर दिया। पिता की पेंशन भी इस यूनिट पर ही खर्च हो गई। इसके बाद महेंद्र के परिवार को उनकी मां के बचत के पैसों पर घर चलाना पड़ा। इस मुश्किल घड़ी में महेंद्र के मामा ने उनके परिवार की मदद की।
जब टाटा कॉफी के दफ्तर से धक्के मारकर निकाले गए महेंद्र
महेंद्र अपने बुरे वक्त को याद करते हुए बताते हैं कि टाटा कॉफी के मार्केटिंग मैनेजर ने उन्हें धक्के मारकर ऑफिस से बाहर निकलवा दिया था क्योंकि महेंद्र लगभग रोज उनसे मिलने की कोशिश करते थे। लेकिन महेंद्र हार मानने वालों में से कहां थे। अगले दिन वह सुबह 7.45 पर ही ऑफिस पहुंच गए और गेट के बाहर इंतजार करने लगे। महेंद्र की इस जिद को देखकर मार्केटिंग मैनेजर ने उन्हें कुछ मिनटों का वक्त दिया और उन्हें बादाम मिक्स सैंपल की सप्लाई का ऑर्डर मिल गया।
महेंद्र बताते हैं कि करीब 30 लोगों ने उनका सैंपल चेक किया था। वह कहते हैं कि कड़ी मेहनत का फल उन्हें मिला और सभी सैंपल्स में से उनकी यूनिट का सैंपल सबसे उम्दा पाया गया और उन्हें 35 किलो (कीमत- 3,500 रुपए) का ऑर्डर मिला। महेंद्र ने बताया कि उन्हें तीन दिनों में ऑर्डर तैयार करना था, इसलिए उन्होंने एक ब्लेंडर से यह ऑर्डर डेडलाइन की भीतर पूरा करवाया। महेंद्र बताते हैं कि टाटा कॉफी को ऑर्डर के लिए तैयार करवाने की 18 महीनों की जद्दोजहद के बाद, अब उनकी यूनिट को कॉफी और चाय दोनों ही के ऑर्डर्स मिलने लगे थे।
एक ‘न’ से तैयार हुई हट्टी कप्पी की भूमिका
2008 में महेंद्र ने फिल्टर कॉफी पाउडर बनाना शुरू किया। उन्होंने एक महीने के ट्रायल बेसिस पर बेंगलुरु की एक प्रतिष्ठित होटल चेन में सप्लाई से शुरूआत की। महेंद्र बताते हैं कि हालांकि ग्राहकों से उन्हें अच्छा फीडबैक मिल रहा था, लेकिन होटल चेन के मुताबिक ग्राहक उनके उत्पाद से खुश नहीं थे।
महेंद्र उस होटल चेन का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं कि अगर होटल ने उन्हें ‘न’ नहीं कहा होता तो शायद आज उनकी अपनी चेन (हट्टी कप्पी) न बन पाती। महेंद्र ने 1.8 लाख रुपए के निवेश से बसवानगुड़ी में एक बिल्डिंग के नीचे महज 30 स्कवेयर फीट की जगह में हट्टी कप्पी का पहला आउटलेट खोला था। किराया था, 5000 रुपए महीना या फिर हर कप की सेल पर 1 रुपए का शेयर, जो स्वाभाविक तौर पर किराए से ज्यादा था।
27 नवंबर, 2009 को स्टोर का उद्घाटन हुआ। महेंद्र को आज भी याद है कि पहली कॉफी सुबह 4.45 बजे 5 रुपए में बेची गई थी। महेंद्र चाहते थे कि रोजना कम से कम 300 कप कॉफी की बिक्री हो। पहले दिन 100 कप कॉफी बिकी और तीसरे-चौथे दिन से ही यह आंकड़ा 300 से 400 कप तक पहुंच गया। महेंद्र ने बताया कि मॉर्निंग वॉक पर निकलने वाले, खासतौर पर बुजुर्ग उनके सबसे प्रमुख ग्राहक बनें और उन्होंने अपने सुझाव भी दिए।
महेंद्र बताते हैं कि उस वक्त दुकान पर एक कॉफी मेकर, एक कैशियर और एक हाउस-कीपिंग कर्मचारी थी। महेंद्र और अन्य साथी मार्केटिंग का काम देखते थे और उनके पार्टनर गौड़ा सप्लाई चेन का काम संभालते थे। 27वां दिन आते-आते सेल 2,800 कप प्रतिदिन तक पहुंच गई। महेंद्र ने इसकी वजह साझा करते हुए बताया कि दुकान के बाहर लगने वाली लाइन की पब्लिकसिटी ने बड़ी मात्रा में ग्राहकों को आकर्षित किया।
इतनी तेजी से सफलता की वजह से कुछ लोगों के अंदर ईर्ष्या पनपने लगी और महेंद्र ने इस बात को भांप लिया। उन्होंने जल्द ही पास ही के इलाके में एक नई दुकान खोल ली और एक थिएटर और एक मॉल में भी स्टोर ले लिए। इसके बाद उद्घाटन के 2 महीनों के भीतर ही उन्होंने अपना स्टोर बंद कर दिया।
हाल में इन्फोसिस, विप्रो, टीसीएस, सिस्को और माइक्रोसॉफ्ट जैसे बड़े कॉर्पोरेट ऑफिसों को मिलाकर हट्टी कप्पी के 46 स्टोर खुल चुके हैं। स्टोर में सिर्फ कॉफी ही नहीं साउथ इंडियन स्नैक्स की भी अच्छी वैरायटी मिलती है। फिलहाल हट्टी कप्पी में फिल्टर कॉफी की कीमत 9 रुपए से 30 रुपए तक है। यह कीमत स्टोर की लोकेशन पर निर्भर करती है। हर स्टोर में चार दिव्यांगों और दो वरिष्ठ नागरिकों को काम दिया जाता है। कुल मिलाकर उनके पास 30-30 दिव्यांग और वरिष्ठ नागरिक काम कर रहे हैं। कपंनी में महेंद्र और गौड़ा का शेयर बराबर है। कंपनी अभी तक अपने स्टोर्स बढ़ाने के लिए बैंक से 6 करोड़ रुपए तक का लोन ले चुकी है। महेंद्र की यह कॉफी चेन, बेंगलुरु में बुजुर्गों से लेकर युवाओं सभी के स्वाद और मनोरंजन का ख्याल रखती है।
यह भी पढ़ें: भिखारी की शक्ल में घूम रहा वृद्ध निकला करोड़पति, आधार कार्ड की मदद से वापस पहुंचा अपने घर