पीएचडी पूरी करने के लिए पति के साथ पराठे बनाती हैं स्नेहा
पराठे बनाने वाली स्नेहा केरल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं और प्रेमशंकर CAG डिपार्टमेंट में नौकरी छोड़कर स्नेहा का साथ देते हैं। ये दोनों ऑरकुट पर एक दूसरे से बातें किया करते थे और बातों-बातों में ही इन दोनों को प्यार हो गया।
पराठे बनाने वाली स्नेहा केरल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं और प्रेमशंकर CAG डिपार्टमेंट में नौकरी छोड़कर स्नेहा का साथ देते हैं।
स्नेहा 2014 में केरल एम.फिल. करने के लिए आई थीं और तबसे यहीं रहती हैं। अपनी पढ़ाई पूरी कर स्नेहा जर्मनी में बसने का सपना देखती हैं। वह जर्मनी से रिसर्च भी करना चाहती है। स्नेहा कॉलेज से लौटने के बाद सीधे दुकान पर पहुंचती हैं और थकान की परवाह किए बगैर पति का हाथ बंटाती हैं।
केरल के तिरुवनंतपुरम में टेक्नॉपार्क इलाके में पराठे की एक दुकान है जहां एक कपल आपको साथ मिलकर पराठे बनाते मिल जाएंगे। इन दंपती का नाम प्रेमशंकर मंडल और स्नेहा लिंबगाओंकर है, लेकिन इनकी कहानी हैरान कर देने वाली है। दरअसल पराठे बनाने वाली स्नेहा केरल यूनिवर्सिटी से पीएचडी कर रही हैं और प्रेमशंकर CAG डिपार्टमेंट में नौकरी छोड़कर स्नेहा का साथ देते हैं। ताकि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें। खास बात यह है कि इन दोनों की मुलाकात ऑरकुट पर हुई थी। ये दोनों ऑरकुट पर एक दूसरे से बातें किया करते थे और बातों-बातों में ही इन दोनों को प्यार हो गया।
प्रेमशंकर और स्नेहा ने शादी करके साथ जिंदगी बिताने के बारे में सोच लिया। लेकिन मुश्किल यह थी कि प्रेमशंकर झारखंड के रहने वाले हैं और स्नेहा महाराष्ट्र की। दोनों के घरवाले इस शादी के लिए राजी ही नहीं हो रहे थे। उन्होंने अपने घरवालों को मनाने की सारी कोशिश कर डाली लेकिन वे नहीं माने। आखिर में थक हारकर दोनों ने अपने घरवालों की मर्जी के बगैर शादी करने का फैसला कर लिया। स्नेहा के घरवाले उनसे सहमत नहीं थे, लेकिन स्नेहा ने किसी की नहीं सुनी। 2016 में उनकी शादी हो गई। प्रेमशंकर उन दिनों दिल्ली में नौकरी करते थे। स्नेहा का मन पढ़ाई में लगता था इसीलिए वह पीएचडी करने की तैयारी कर रही थी। प्रेमशंकर भी स्नेहा की इस ख्वाहिश को पूरा करना चाहते थे।
इसी बीच स्नेहा को रिसर्च करने के लिए केरल यूनिवर्सिटी से पोस्ट डॉक्टरल फेलोशिप मिल गई। प्रेमशंकर दिल्ली के CAG ऑफिस में नौकरी करते थे, लेकिन स्नेहा के साथ रहने की चाहत उन्हें केरल खींच लाई। स्नेहा की फेलोशिप के पैसे जब खत्म हो गए तो प्रेम ने पराठा की दुकान शुरू कर दी। ताकि स्नेहा की पीएचडी में कोई मुश्किल न आए। स्नेहा का कैंपस सिर्फ 10 मिनट की दूरी पर है इसलिए वह क्लास से छूटते ही प्रेम का हाथ बंटाने के लिए आ जाती है। प्रेमशंकर सोशल वर्क में ग्रेजुएट हैं। सड़क के किनारे तिरपाल लगाकर पराठा बेचने वाले ये दंपती सैकड़ों लोगों का पेट भरने के साथ ही अपने सपने भी पूरे कर रहे हैं।
स्नेहा अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताती हैं कि प्रेम उन्हें किसी भी अनजान नंबर से कॉल करता था तो वह उन्हें पहचान जाती थीं। वह कहती हैं कि मैं प्रेम की सांसों से वाकिफ हो गई थी। स्नेहा 2014 में केरल एम.फिल. करने के लिए आई थीं और तबसे यहीं रहती हैं। अपनी पढ़ाई पूरी कर स्नेहा जर्मनी में बसने का सपना देखती हैं। वह जर्मनी से रिसर्च भी करना चाहती है। स्नेहा कॉलेज से लौटने के बाद सीधे दुकान पर पहुंचती हैं और थकान की परवाह किए बगैर पति का हाथ बंटाती हैं।
स्नेहा की दुकान पर पराठों के साथ-साथ डोसा और ऑमलेट भी बनते हैं। प्रेम कहते हैं कि हम इससे अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने के साथ ही कुछ पैसा भविष्य के लिए भी बचा रहे हैं। प्रेम चाहते हैं कि उनकी स्नेहा पढ़-लिखकर वैज्ञानिक बन जायें। इसके बाद वे एक बड़ा सा रेस्त्रां खोलने की चाहत रखते हैं।