71 वर्षीय सुरेश ने बनाया एक असाधारण आशियाना
एक ऐसा मकान जो हवा, पानी, भोजन और गैस तक की सारी ज़रूरतें पूरी करता है।
"सरकार से हर समस्या का समाधान पाने की अपेक्षा करने से बेहतर है, कि समाधान खोजकर सरकार और देश दोनों की मदद की जाये: सोलर सुरेश"
"डी सुरेश चेन्नई के किलपॉक में न्यू 17 वासू स्ट्रीट में अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्रवधु के साथ रहते हैं, जो उनके प्रयासों में उनकी सहायता तो करते ही हैं साथ ही उन्हें प्रोत्साहित करने का भी काम करते हैं।"
सुरेश 45 साल तक नौकरी करने के बाद 2015 में सेवानिवृत्त हो गए। सुरेश आईआईटी मद्रास और आईआईएम से स्नातक हैं। इन्होंने एमडी और सीईओ सहित अनेक पदों पर टेक्सटाइल मार्केटिंग में काम भी किया है। साथ ही SAKS Ancillaries Ltd की स्थापना में अपने उद्यम संबंधी ज्ञान का उपयोग किया और एक अन्य उद्यम की अगुआई की। अब इनके जान-पहचान वाले इन्हें सोलर सुरेश के नाम से जानते हैं।
सुरेश कहते हैं, "यह सही-सही याद कर पाना मुश्किल है, कि कब मेरे मन में “self-sufficient home” (स्व निर्भर घर) बनाने का विचार आया, लेकिन जहां तक मुझे याद है कि इस सोच को पंख 20 साल पहले मेरी जर्मनी यात्रा के दौरान लग गये थे। जब मैंने जर्मनी में छतों पर लगे सौर ऊर्जा संयंत्र देखे, तो मैंने सोचा कि जब जर्मनी जैसा कम धूप वाला देश इन्हें लगा सकता है, तो भारत क्यों नहीं, जहां सौर ऊर्जा प्रचुरता में है।" और सुरेश के इस आइडिया ने उन्हें आगे बढ़ने और बिजली बनाने के लिए छत पर एक सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए विक्रेता खोजने को प्रेरित किया।
सुरेश के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी छत पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने वाले उचित विक्रेता की खोज और सौर ऊर्जा इनवर्टर लगाने की। वे कहते हैं, कि टाटा बीपी सोलर, सू कैम और कई बड़े नामों ने उनके काम में कोई दिलचस्पी और प्रोत्साहन नहीं दिखाया। फिर अपने घर के लिए सौर ऊर्जा संयंत्र डिज़ाइन करने और बनाने के लिए उन्होंने एक साल तक कड़ी मेहनत की। जनवरी 2012 तक सुरेश ने अपना 1 किलोवॉट का संयंत्र लगा लिया था और छत पर सौर विद्युत उत्पन्न करना आधिकारिक तौर पर शुरू कर दिया। संयंत्र लगाने के लिए मात्र एक छायामुक्त जगह चाहिए थी, यानी कि प्रति किलोवॉट के लिए 80 वर्गफुट, जिसके लिए छत बेहतर विकल्प थी और उन्होंन छत पर ही अपने सपनों को आकार देना शुरू कर दिया। कई विशेषज्ञ और तमिलनाडु ऊर्जा विकास प्राधिकरण के चेयरमेन जैसे वरिष्ठ सरकारी अधिकारी सुरेश के संयंत्र को काम करता देखने के लिए आये।
"अप्रैल 2015 तक सुरेश ने अपनी solar electricity को 3 किलोवॉट तक बढ़ा दिया और अब यह 11 पंखे, 25 लाइटें, एक फ्रिज, दो कम्प्यूटर, एक वॉटर पंप, दो टीवी, एक मिक्सर-ग्राइंडर, एक वॉशिंग मशीन और एक इंवर्टर एसी को ऊर्जा देता है।"
सुरेश की मेहनत और लगन ने कमाल कर दिया, जिस काम को करने में काफी लंबा समय बीता उसी काम को करने में अब सिर्फ एक दिन का समय लगता है। सुरेश के अनुसार मेंटीनेंस पैनल्स की हर तीन महीने में सफाई ज़रूरी है। इस संयंत्र की सबसे खास बात ये है, कि ये हल्की बारिश के दौरान भी बिजली पैदा करता है, क्योंकि यह पैनलों पर पड़ने वाली यूवी किरणों पर आधारित है न कि गर्मी या प्रकाश की तेजी पर। तेज़ बारिश के समय (जोकि चेन्नई में कम ही होती है) लोड बैटरी द्वारा उठाया जाता है, जिसे चार्ज करने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है न कि ग्रिड का।
"एक ऐसे शहर में रहने के बावजूद जो, कि बिजली की समस्या के लिए बदनाम है उस शहर में मैंने पिछले चार वर्ष से एक मिनिट भी बिजली गुल नहीं देखी है। मैं हर दिन 12 से 16 यूनिट उत्पादन कर बिजली का खर्च बचाता हूं। यह एक टिकाऊ, वहनीय, व्यवहार्य परियोजना है, जो कि वर्तमान में बैटरी के बदलने सहित छह प्रतिशत कर-मुक्त मुनाफ़ा दे रही है: सोलर सुरेश"
"बायोगैस एक सुरक्षित गैस है, जिससे विस्फोट या गैस के रिसाव जैसा कोई ख़तरा नहीं होता है। यहां तक कि गैस का नॉब खुला रह जाने पर भी। साथ ही यह प्रदूषणकारी भी नहीं है और खनिज ईंधन पर निर्भरता को कम करके यह देश के लिए विदेशी मुद्रा भी बचाती है।"
सुरेश ने प्रतिदिन लगभग 10 कि ग्रा जैविक कचरे का इस्तेमाल करके और 20 कि ग्रा गैस हर महीने उत्पादित करने के लिए एक घरेलू बायोगैस संयंत्र लगाकर अपनी बाहरी गैस की आवश्यकताओं का समाधान करने का निर्णय किया है। उन्होंने यह सिद्ध करके इस मिथक को भी तोड़ा है, कि कोई बदबू उत्पन्न होती है। संयंत्र में पका और बिन पका भोजन, खराब भोजन, सब्जियां और फलों के छिलके आदि डाले जाते हैं। इन सबके बीच सिर्फ एक ही बात याद रखने की है, कि इसमें साइट्रस फल जैसे नीबू, संतरा, और प्याज, अंडे के छिलके, हड्डियां या साधारण पत्तियां इसमें नहीं डालनी चाहिए।
इस संयंत्र से दो उपयोगी संसाधन उत्पन्न होते हैं, कुकिंग गैस और जैविक खाद। सुरेश ने अपने आसपास में कुछ ऐसे सब्जी विक्रेताओं को खोज निकाला है, जिन्हें अपने कचरे के निस्तारण के लिए धन खर्च करना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता क्योंकि अब वे अपना कचरा सुरेश के बायोगैस संयंत्र पर छोड़ देते हैं। इन सबके बीच सबसे अच्छी बात ये है, कि बायोगैस एक सुरक्षित गैस है, जिससे विस्फोट या गैस के रिसाव जैसा कोई ख़तरा नहीं होता है। यहां तक कि गैस का नॉब खुला रह जाने पर भी। साथ ही यह प्रदूषणकारी भी नहीं है और खनिज ईंधन पर निर्भरता को कम करके यह देश के लिए विदेशी मुद्रा भी बचाती है।
साथ ही सुरेश ने अपना रेनवॉटर हार्वेस्टिंग संयंत्र 20 वर्ष पहले लगाया था। इसके बारे में चर्चा करते हुए वे कहते हैं, कि "इसमें भी दैनिक मेंटीनेंस की ज़रूरत नहीं है, सिर्फ छत की आवश्यकता होती है। संयंत्र को सिर्फ मानसून से पहले साफ करना होता है।"
इन्हीं सबके साथ सुरेश ने मोटे बांस के पेड़ों की बाड़ और लताओं से अपने घर को घेरकर एक जंगल जैसा रूप प्रदान किया है। उनकी छत ऐसी है, जिसे देखकर यह एहसास होता है, कि हम किसी जंगल में खड़े हैं, जोकि भीड़ भरे शहर की आपाधापी का हिस्सा नहीं है। छत पर आने के बाद आसपास की गगनचुंबी इमारतें और ट्रैफिक दिखाई ही नहीं गेता है, यदि कुछ होता है तो सिर्फ हरियाली और कुछ नहीं। सुरेश का घरेलू जंगल बेहद प्रशंसनीय और अद्भुत है। इस गार्डन की शुरूआत हुई तो भिण्डी और टमाटर की खेती के साथ थी, लेकिन आज की तारीख में यह बाग हो गया है। अब सुरेश इनमें जैविक ढंग से 15 से 20 प्रकार की सब्जियां उगाते हैं। घर में होने वाली अधिकांश कुकिंग की आवश्यकताएं उनके किचन गार्डन से ही पूरी हो जाती हैं।
"छत पर लगी solar electricity की मदद सेे सुरेश अच्छा-खासा धन बचा रहे हैं। इससे पहले उनके घर में बिजली की खपत 8,100 यूनिट थी, लेकिन 1 किलोवॉट का संयंत्र लगाने पर खपत 2016 तक घटकर 5,550 यूनिट ही रह गई है और 3 किलोवॉट का संयंत्र लगाने पर यह खपत 3,450 यूनिट हो गई।"
सुरेश अपने इस सफल और क्रांतिकारी प्रयास को अवेतनिक आधार पर शिक्षा और प्रोत्साहन के जरिए अधिक से अधिक लोगों, स्थानों और संस्थाओं तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हुए हैं। अब तक सुरेश ने बंगलूरू, हैदराबाद और चेन्नई में तीन ऑफिसों, चार स्कूलों और सात घरों में solar electricity लगाये हैं, साथ ही हैदराबाद के छ: संस्थानों में बायोगैस संयंत्र और चेन्नई में छ: स्थानों पर किचन गार्डन लगाये हैं और लोगों ने आगे बढ़ कर इनके प्रयासों का स्वागत किया है।
सुरेश को अब उनकी पहलकदमियों के लाभों पर प्रकाश डालने के लिए चेन्नई में कई संस्थानों द्वारा आमंत्रित किया जाता है। न्यू 17 वासु स्ट्रीट अब स्कूल के छात्रों के लिए स्टडी टूर के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है और उनके संयंत्र को काम करते देखने के लिए 500 से अधिक लोग उनके घर जा चुके हैं। भविष्य में, सुरेश दो परियोजनाओं से जुड़ेंगे– सौर ऊर्जा का प्रयोग कर वातावरण की हवा से पेयजल प्राप्त करना और दुपहिया वाहनों के लिए एक डिजिटल कुंजी विकसित करना, जिसमें वाहन को केवल चार अंकों का एक विशिष्ट पासवर्ड डालकर ही स्टार्ट किया जा सकेगा।
लेखिका: बिंजल शाह
अनुवाद: आलोक कौशिक