पर्यावरण के लिए इन मानकों को लागू कर बचाई जा सकती हैं 1.4 लाख जानें
थर्मल पावर प्लांट के लिए उत्सर्जन मानकों का लागू होना बाकी
भारत में होने वाली हर 8 मौत में से एक मौत की वजह प्रदूषण होती है। दुख की बात यह है कि हम अब भी इस मुद्दे को लेकर संजीदा नहीं हैं। यही वजह है कि कोयले से बिजली बनाने वाले पावर प्लांट के लिए उत्सर्जन मानकों को नहीं लागू कर पाए हैं।
अगर इन मनकों के अनुपालन में पांच साल की देरी की जाती है तो उससे 3.8 लाख मौत हो सकती है जिससे बचा जा सकता है और सिर्फ नाइट्रोडन डॉयक्साइड के उत्सर्जन में कमी से 1.4 लाख मौतों से बचा जा सकता है।
देश में प्रदूषण की समस्या धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करते जा रही है। हाल ही में एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि भारत में होने वाली हर 8 मौत में से एक मौत की वजह प्रदूषण होती है। दुख की बात यह है कि हम अब भी इस मुद्दे को लेकर संजीदा नहीं हैं। यही वजह है कि कोयले से बिजली बनाने वाले पावर प्लांट के लिए उत्सर्जन मानकों को नहीं लागू कर पाए हैं।
इस मानक की तीसरी सालगिरह और समय सीमा समाप्त होने के एक साल बाद ग्रीनपीस इंडिया के विश्लेषण में सामने आया है कि अगर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा 2015 में थर्मल पावर प्लांट के लिए जारी उत्सर्जन मानकों की अधिसूचना को लागू किया जाता तो देश में 76 हज़ार मौतों से बचा जा सकता था।
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से मिली आरटीआई के जवाब के आधार पर ग्रीनपीस इंडिया ने थर्मल पावर प्लांट में उत्सर्जन मानक लागू करने के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव नाम से एक रिपोर्ट जारी की है। इस विश्लेषण में यह सामने आया कि अगर मानको को लागू किया जाता तो सल्फर डॉयक्साइड में 48%, नाइट्रोडन डॉयक्साइड में 48% और पीएम के उत्सर्जन में 40% तक कि कमी की जा सकती थी।
इन 76 हज़ार असमय मौतों में से 34000 मौत को सल्फर डॉयक्साइड उत्सर्जन कम करके बचाया जा सकता था, वहीं नाइट्रोजन डॉयक्साइड कम करके 28 हज़ार मौतों से बचा जा सकता था, जबकि पार्टिकूलेट मैटर (पीएम) को कम करके 34 हज़ार मौत से बचा जा सकता था।
इन मानकों को लागू करने की समय सीमा 7 दिसम्बर 2017 को रखा गया था। एक साल बीतने के बाद भी पावर प्लाट के उत्सर्जन में बेहद कम नियंत्रण पाया जा सका है। इसी साल सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि ऊर्जा मंत्रालय का कोयला आधारित पावर प्लांट्स से होने वाले वायु प्रदूषण को कम करने का कोई इरादा नहीं दिखता”, इतना ही नहीं कोर्ट ने 2022 तक इन मानको को लागू करने का आदेश भी दिया।
ग्रीनपीस के विश्लेषण के अनुसार, अगर इन मनकों के अनुपालन में पांच साल की देरी की जाती है तो उससे 3.8 लाख मौत हो सकती है जिससे बचा जा सकता है और सिर्फ नाइट्रोडन डॉयक्साइड के उत्सर्जन में कमी से 1.4 लाख मौतों से बचा जा सकता है। इस अनुमान में कोयला आधारित बिजली संयंत्रों के नए उपक्रम को शामिल नहीं किया गया है।
ग्रीनपीस इंडिया के कैंपेनर सुनील दहिया कहते हैं, थर्मल पावर प्लांट के लिये उत्सर्जन मानको को लागू करना पिछले कुछ दशक से लटका हुआ है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उर्जा मंत्रालय और कोयला पावर कंपनी इन मानको को लागू करने से बच रही है और गलत तकनीकी आधार का सहारा ले रही है। उन्हें समझना चाहिए कि भारत में वायु प्रदूषण की वजह से लोगों का स्वास्थ्य संकट में है और थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला उत्सर्जन इसकी बड़ी वजहों में से एक है। भारत को तत्काल उत्सर्जन मानको को पूरा करने और नये कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को रोक कर अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने की जरुरत है जो कि पर्यावरण के लिये सिर्फ अच्छा नहीं है बल्कि सतत विकास के लिये भी प्रदूषित कोयले से बेहतर है।
ग्रीनपीस इंडिया की मांग है कि पर्यावरण मंत्रालय जल्द से जल्द थर्मल पॉवर प्लांट को प्रदूषण के लिए उत्तरदायी बनाये। वहीं सारे थर्मल पावर प्लांट को तत्काल उत्सर्जन मनको को हासिल करना चाहिए और अक्षय ऊर्जा के लक्ष्य को हासिल करने के लिए नए थर्मल पावर प्लांट बनाने से रोकना चाहिए। इस पूरी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के लिये इससे जुड़े एक्शन को सार्वजनिक मंच पर लोगों के लिये उपलब्ध भी करवाना चाहिए।
यह भी पढ़ें: देशभर के शिक्षकों के लिए मिसाल है यह टीचर, वीडियो से समझाती हैं बच्चों को