महिलाओं द्वारा, महिलाओं को और महिला सशक्तिकरण के लिए, 'टेंट ज्वेलरी'
"कुछ भी असंभव नही है|चाहे परिस्थितियां आप के साथ न हो, बस कूद जाओ और उसके लिए पूरी कोशिश करो और अपना सर्वश्रेष्ठ दो|"
शबनम तंत्री, टेंट जेवेलरी(tent Jewelry) की सह-संस्थापक कहती हैं, “अगर मुझे कोई संदेश भारत की औरतों को या पूरी दुनिया को देना हो तो वह होगा “कुछ भी असंभव नही है|चाहे परिस्थितियां आप के साथ न हो, बस कूद जाओ और उसके लिए पूरी कोशिश करो और अपना सर्वश्रेष्ठ दो| अगर आप में कुछ करने की चाहत है तो पूरा ब्रह्माण्ड आप की मदद करेगा|”
2013 में शबनम K.E.Co के संस्थापक से मिली और tent jewelry के लिए फंडिंग और अनुमति प्राप्त की और अपने कंटेम्पररी ज्वेलरी के डिजाइनिंग के जुनून पूरा कर रही है| वह जल्द ही बिज़नस स्थापित करने के लिए एक स्टोर और ऑनलाइन वेबसाइट बनाने की सोच रही है|
वर्ली फेस्टिवल (worli festival) मुंबई में शबनम के स्टाल को अच्छी प्रतिक्रिया मिली| वह दूसरो, जो उनके साथ राजस्थान और अमेरिका से काम करना चाहते है, प्रदर्शनियों और वर्कशॉप की मेजबानी कर रही है| वह कहती हैं, “ कोई भी महिला जो आर्ट ज्वेलरी में काम करना चाहती है,उसका स्वागत है और बिक्री पर कुल कीमत का 30 प्रतिशत कमा सकती हैं| ” प्रत्येक उत्पाद का 5 प्रतिशत सीधे NGOs और महिलाओं के स्व-सहायता समूहों,जो कश्मीर में महिलाओं और भारतीय ग्रामीण क्षेत्रों के सुधार को जाता है| tent jewelry से पहले शबनम कश्मीर और मुंबई में NGOs के लिए काम कर चुकी हैं| उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ मुंबई से सोशियोलॉजी में मास्टर डिग्री की है|
वह कहती हैं, “आप जो करते है उसमे आप का विश्वास होना चाहिए और अपने सिद्धान्तों पर बना रहना चाहिए| दरअसल, tent jewelry महिलाओं के द्वारा महिलाओं के लिए है और महिला सशक्तीकरण के लिए मेरा प्रयास है| मेरे लिए, यह महिलाओं तक पहुचने और उनसे जुड़ने का माध्यम है चाहे वह भारत के किसी भी कोने में रहते हो|” उसकी अपनी जिंदगी ने दो अलग वास्तविकताओं, भौगोलिक दृष्टि से मुबई और कश्मीर और व्यक्तिगत रूप से त्रासदी और जीत ने घेर लिया है|
शबनम कश्मीर में बड़ी हुई और उच्च शिक्षा के लिए 14 साल की उम्र में मुंबई आ गयी| 2006 में,मिलिटेंट के आक्रमण में उसने अपने पिताजी खो दिये जो उसे और उसके परिवार को स्तब्ध कर देने वाला था| “इस समय मुझे ऐसा लगा जैसे सब ख़त्म हो गया| वह हमारे लिए सब कुछ थे| ”-वह कहती हैं| उसके पिता पावर डिपार्टमेंट में इंजीनियर थे| वह मानवतावादी भी थे और श्रीनगर में स्कूल भी चलते थे और शादी से पहले क्रिस्चियनिटी अपना ली |
उन्हें हमेशा कश्मीर छोड़ने की धमकी मिलती लेकिन उन्होंने नही छोड़ा| वह कहती है, “मेरे पिता अच्छे आदमी थे| वे शिक्षा और शिक्षा के माध्यम से सशक्तिकरण में विश्वास रखते थे| मैं उनके जीवन से प्रभावित रही हूँ|” उनके अनुसार, उन्ही के कारण वह दूसरों की मदद करने की शक्ति में विश्वास करते हुए बड़ी हुई| वह उन्हें स्वार्थहीन व्यक्ति जो लोगों का जिसके लिए वह काम और जो उनके लिए काम करते थे, उनका ध्यान रखते थे| इसका उसके जीवन में प्रभाव पड़ा| “हम एसे माहौल में पले जहाँ पर अपने से पहले दूसरो के बारे में सोचा जाता था| और मैं आशा करती हूँ कि मेरा tent के साथ काम उनके और मेरे सिद्धातों को सम्मलित करेगा|” –वह कहती हैं| शबनम अपने अनुभवों पर एक किताब लिख रही हैं जो की जल्द ही प्रकाशित हो जाएगी|