इन महिलाओं ने बिजनेस शुरू कर पकड़ी तरक्की की राह
हम आपको ऐसी सशक्त महिला उद्यमियों से मिलवाने जा रहे हैं जो अपने काम से महिलाओं को रोजगार देने के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बेहतर बना रही हैं।
यूएन की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले दस सालों में 60 करोड़ बेटियां काम करने के लिए ऑफिसों, कारखानों, में दाखिल होंगी। नोबल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई एक ऐसी ही ग्लोबल आइकन हैं जो बच्चियों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं।
'लड़कियों तुम कुछ भी कर सकती हो!' यूनाइटेड नेशन्स ने बीते दिनों अंतरराष्ट्रीय बेटी दिवस के मौके पर ट्वीट कर लड़कियों को उनकी अहमियत से रूबरू कराया था। चाहे अपने बराबरी के अधिकारों के लिए लड़ने की बात हो या फिर बाल विवाह का बोझ, देखा जाए तो आज की बेटियां सारी मुश्किलों को मात देते हुए अपनी मंजिल तय कर रही हैं। यूएन की ही एक रिपोर्ट के मुताबिक आने वाले दस सालों में 60 करोड़ बेटियां काम करने के लिए ऑफिसों, कारखानों, में दाखिल होंगी। नोबल पुरस्कार विजेता मलाला यूसुफजई एक ऐसी ही ग्लोबल आइकन हैं जो बच्चियों की शिक्षा के लिए काम कर रही हैं। इसके साथ ही कई ऐसी महिलाएं हैं जो समाज में बराबरी स्थापित करने के लिए काम कर रही हैं। हम आपको ऐसी सशक्त महिला उद्यमियों से मिलवाने जा रहे हैं जो अपने काम से महिलाओं को रोजगार देने के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बेहतर बना रही हैं।
प्रेमा गोपालन
1993 में महाराष्ट्र के लातूर में भूकंप आए थे और उससे हुई तबाही ने इलाके को ध्वस्त कर दिया था। प्रेमा ने अपनी टीम की महिलाओं के साथ गांव के पुनर्वास का बीड़ा उठाया था। 1998 में महिलाओं ने फिर से घर बनाए और यह प्रॉजेक्ट समाप्त हो गया। प्रेमा इस प्रॉजेक्ट को खत्म करने के बाद जाने वाली थीं कि सभी ग्रामीण महिलाओं ने खुद को सशक्त करने और समाज को बदलने का जिम्मा उठा लिया। इसके बाद प्रेमा ने स्वयं शिक्षण प्रयोग की शुरुआत की। इस प्रोग्राम के तहत महिलाओं को कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाता है। महिलाएं अब अपनी जिंदगी बदल रही हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, खानपान और साफ-सफाई पर भी ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
कल्पना सरोज
कल्पना दलित समुदाय से ताल्लुक रखती हैं और उनका बाल विवाह हुआ था। लेकिन आज वह 10 करोड़ डॉलर की कंपनी की सीईओ हैं। कल्पना की कहानी कईयों को प्रेरित कर सकती है। उन्हें भारत का असली स्लमडॉग मिलनेयर कहा जाता है। 2013 में उन्हें पद्म श्री से नवाजा जा चुका है। महाराष्ट्र के एक गांव में पली बढ़ीं कल्पना की शादी सिर्फ 12 साल में कर दी गई थी। उनकी शादी एक ऐसे घर में हुई थी जहां उनका उत्पीड़न और अपमान किया जाता था। इतना ही नहीं उन्हें पास पड़ोसियों और गांव वालों की भी बातें सुननी सहनी पड़ती थीं।
कल्पना ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'पति के बड़े भाई और भाभी मुझसे बुरा सलूक करते थे। वे मेरे बालों को नोचते थे और कई बार तो हसबैंड छोटी छोटी बातों को लेकर पीटते थे। मैं शारीरिक और मानसिक शोषण से टूट गई थी'। हालांकि उनके पिता ने उन्हें वापस बुलाया था, लेकिन सामाजिक कलंक के दबाव में उन्होंने जहर खाकर अपनी जान देने की कोशिश की थी। लेकिन उन्हें जिंदगी ने जीने का एक और मौका दिया औऱ वह अपनी जिंदगी संवारने मुंबई आ गईं। यहां आकर उन्होंने फर्नीचर का बिजनेस शुरू किया।
इसी दौरान बिजनेसमैन नवीन भाई कमानी की कंपनी 'कमानी ट्यूब्स लिमिटेड' की हालत काफी खराब थी। उन्हें पता चला कि 17 साल से बंद पड़ी कमानी ट्यूब्स को सुप्रीम कोर्ट ने उसके कामगारों से शुरू करने को कहा है। कंपनी के कामगार कल्पना से मिले और कंपनी को फिर से शुरू करने में मदद की अपील की। 2006 में कल्पना ने कंपनी खरीद ली और उसके हर एक पहलू पर ध्यान देते हुए कंपनी की एक नए सिरे से शुरुआत की। आज कंपनी इतनी तरक्की कर चुकी है कि कई खाड़ी देशों में यहां से ट्यूब्स निर्यात किए जाते हैं। दो साल पहले की बात हैं कल्पना ने इस कंपनी के पुराने मालिक नवीन भाई कमानी को 51 लाख रुपए का चेक दिया था। कल्पना कहती हैं यह नवीनभाई की बची हुई तनख्वाह, भत्ते और दूसरे बकाया थे। आज कंपनी 750 करोड़ रुपए की हो चुकी है।
जीना जोसेफ
कला में रुचि रखने वाली जीना ने अपने मन मुताबिक काम करने के लिए कॉर्पोरेट नौकरी को अलविदा कह दिया था। उन्होंने जोला इंडिया नाम की एक कंपनी बनाई जो कि ग्रामीण भारत के सामान से ज्वैलरी डिजाइन करती है। ये ज्वैलरी गांव की महिलाओं द्वारा बनाई जाती है और बिना किसी मिडलमैन के उसे ऑनलाइन बेच दिया जाता है। ग्रामीण कलाकारों के साथ काम करते हुए जीना को लगा था कि कितना भी अच्छा उत्पाद हो अगर उसे सही बाजार नहीं मिलेगा तो कोई फायदा नहीं होगा। आज जोला इंडिया ओडिशा कके 10 पट्टचित्र कलाकारों और 20 महिलाओं के साथ काम कर रहा है। एक इंटरव्यू में जीना ने बताया कि वह सिर्फ 4 सालों में कई सारी महिलाओं को प्रोत्साहित कर चुकी हैं।
अनुराधा अग्रवाल
2015 में अनुराधा अग्रवाल अपने होमटाउन गईं और वहां उन्होंने पाया कि उनकी उम्र की औरतों के बीच एक तरह का असुरक्षा का भाव बढ़ रहा था, खासतौर पर गृहिणियों में। वे बताती हैं इसकी सबसे बड़ी वजह थी अंग्रेजी की जानकारी न होना। यहां तक कि रोजमर्रा के काम करते हुए भी वे आत्मविश्वास से भरा नहीं महसूस करती थीं। राजस्थान के पारंपरिक बनिया परिवार से ताल्लुक रखने की वजह से अनुराधा इस बात को अच्छे से समझ सकती थीं। अनुराधा ने सारे बंधनों को तोड़कर, रूढ़िवादिता को चुनौती देते हुए अपना स्टार्टअप शुरू किया।
अनुराधा ने अपने फेसबुक पेज पर अपने इंटरैक्टिव वीडियो पोस्ट करना शुरू कर दिया। इसे काफी लोगों ने पसंद किया। ऐसी प्रतिक्रिया देखने के बाद अनुराधा का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने एंड्ऱॉयड ऐप भी लॉन्च कर दिया। इस ऐप के जरिए हिंदी या बांग्ला भाषा के जरिए अंग्रेजी सीखी जा सकती थी। इस ऐप का नाम रखा गया, मल्टीभाषी। अब इस ऐप के जरिए 10 अलग-अलग भाषाओं के जरिए अंग्रेजी सीखी जा सकती है। इसे डाउनलोड करने वालों की संख्या दस लाख के करीब पहुंच रही है। इतने बड़े यूजरबेस के अलावा मल्टीभाषी ऐप ने कई महिलाओं को रोजगार भी दिया है।
एकता जाजू
एकता ने पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में किसानों को ऑर्गैनिक फार्मिंग के जरिए बेहतर आय अर्जित करने का जरिया उपलब्ध कराया। इससे उन्हें आर्थिक तौर पर समृद्धि मिली। एकता जाजू ने सतत, जैविक खेती के जरिए ग्रामीणों को तो समृद्ध किया ही साथ ही ऑनगैनिक फूड की स्थापना की। इस वक्त यह कंपनी 300 से अधिक किसानों के साथ काम कर रही है और 2025 तक 10,000 किसानों के साथ काम करने की योजना है।
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