मोटापा 'खाते-पीते घर' के लोगों की शान नहीं, मौत को बुलावा है
एक नए अध्ययन के अनुसार, मोटापा जल्दी मौत का कारण भी बन सकता है। लगभग 60,000 अभिभावकों और उनके बच्चों में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई), स्वास्थ्य और मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
जो लोग ‘हेल्दी ओबेस’ यानी कि स्वस्थ मोटे होते हैं, ऐसे लोगों में कोरोनरी हर्ट डिसीज का खतरा 49 प्रतिशत और सेरेब्रोवैस्कुलर डिसीज का खतरा सात प्रतिशत तक उन लोगों के मुकाबले ज्यादा होता है, जो लोग मेटाबॉलिकली नॉर्मल वेट के होते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल में एमआरसी इंटीग्रेटिव एपिडेमियोलॉजी यूनिट (आईईयू) से अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. डेविड कारस्लेक ने कहा, "दुनिया भर में मोटापे के स्तर में एक बढ़ोतरी हुई है, जो 1975 के 105 करोड़ से बढ़कर 641 मिलियन हो गई है।
मोटापा, एक ऐसी समस्या जो हर एक घर में पैर फैला रही है। नौ नौ घंटों की एक ही जगह पर बैठकर वाली नौकरियों ने लोगों की तोंद बढ़ाकर रख दिया है, खाने के नाम पर जंक फूड की उपलब्धता, एक्सरसाइज के लिए आधा घंटा भी निकल पाने की विवशता मोटापे को नॉर्मलाइज करती ही जा रही है। तिस पर घर के बड़े बूढ़ों ने 'अरे खाते-पीते घर के हो तो ऐसे ही दिखोगे न, अब क्या एक हड्डी होना चाहते हो' बोल बोलकर माहौल और खराब कर रखा है। मोटापे पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। एक नए अध्ययन के अनुसार, मोटापा जल्दी मौत का कारण भी बन सकता है। लगभग 60,000 अभिभावकों और उनके बच्चों में बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई), स्वास्थ्य और मृत्यु के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। ये स्टडी ब्रिस्टल विश्वविद्यालय की यूनिवर्सिटी ऑफ एन्डीरैशनल जर्नल ऑफ़ एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित की गई है।
अब तक कई अध्ययनों में ये बताया गया कि सामान्यतः डॉक्टरों द्वारा अनुशंसित श्रेणी से अधिक प्रतीत होता है, जिससे यह दावा हो सकता है कि स्वास्थ्य के लिए हल्का अधिक वजन होना अच्छा है। अधिक वजन वाले हानिकारक प्रभावों को कम करके आंका गया। लेकिन ये परिणाम भ्रामक हैं। जो लोग ‘हेल्दी ओबेस’ यानी कि स्वस्थ मोटे होते हैं, ऐसे लोगों में कोरोनरी हर्ट डिसीज का खतरा 49 प्रतिशत और सेरेब्रोवैस्कुलर डिसीज का खतरा सात प्रतिशत तक उन लोगों के मुकाबले ज्यादा होता है, जो लोग मेटाबॉलिकली नॉर्मल वेट के होते हैं। स्वस्थ मोटापा जैसी कोई चीज नहीं होती, ये बात आप लोग गांठ बांध लीजिए। जो लोग मोटापे से ग्रस्त होने के बावजूद डायबिटीज, ब्लड प्रेशऱ और कोलेस्ट्रॉल की समस्या से ग्रस्त नहीं हैं, ऐसे लोगों में दिल का दौरा पड़ने का खतरा 96 प्रतिशत तक बढ़ जाता है।
नार्वेजियन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टैक्नोलॉजी से सहकर्मियों और ब्रिस्टल मेडिकल स्कूल टीम के साथ एक ग्रामीण काउंटी में 130,000 निवासियों के साथ ये पता लगाया कि माता-पिता की पीढ़ी में मृत्यु दर कितनी है और उनके वयस्क बच्चों के बीएमआई कितना है। क्योंकि माता-पिता और उनके वंश के बीएमआई से संबंधित है। आनुवांशिक कारकों के कारण संतान का बीएमआई माता-पिता के बीएमआई का सूचक होता है। लगभग 30,000 मां और बच्चों के स्वास्थ्य रिकॉर्ड और 30,000 पिता और बच्चों का आंकलन किया गया ताकि निष्कर्ष निकाला जा सका जाए कि बीएमआई किस स्थिति में मृत्यु दर को प्रभावित कर सकता है। महत्वपूर्ण रूप से, परिणाम बताते हैं कि पिछले अध्ययनों में अधिक वजन होने के हानिकारक प्रभावों को कम करके आंका गया है।
18.5 और 25 के बीच बीएमआई बनाए रखने के लिए डॉक्टरों की वर्तमान सलाह इस अध्ययन द्वारा समर्थित है और व्यापक रूप से सूचित सुझाव है कि अधिक वजन वाले स्वस्थ हो सकते हैं, यह शोध इसे गलत साबित करता है। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल में एमआरसी इंटीग्रेटिव एपिडेमियोलॉजी यूनिट (आईईयू) से अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ. डेविड कारस्लेक ने कहा, "दुनिया भर में मोटापे के स्तर में एक बढ़ोतरी हुई है, जो 1975 के 105 करोड़ से बढ़कर 641 मिलियन हो गई है। 2014 में, एक हालिया लैनसेट अध्ययन के अनुसार, सार्वजनिक स्वास्थ्य के निहितार्थों के बारे में चिंता पैदा करते हैं।
अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी की एक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध के लिए शोधकारों की टीम ने दिल संबंधी बिमारियों जैसे कोरोनरी हर्ट डिसीज, सेरेब्रोवैस्कुलर डिसीज, हर्ट फेल्योर और पेरीफेरल वैस्कुलर डिसीज जैसी बीमारियों के अध्ययन के लिए तकरीबन 3.5 मिलियन ब्रिटिश युवाओं के इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड्स की जांच की थी।
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