हर बुजुर्ग की तकलीफ है इनकी अपनी तकलीफ
हम लोग ना जाने कितने सारे देवी देवाताओं की पूजा करते हैं लेकिन उस मां को भूल जाते हैं जो हमें जन्म देती है। हमारा पालन पोषण करती है। हमें सक्षम और सफल बनाने के लिए वो ना जाने कितनी कुर्बानियां देती है। बदले में बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो अपनी उसी मां को बुढ़ापे में या जब वो विधवा हो जाती है तो उसे यूं ही रास्ते में छोड़ देते हैं। तब वो ये नहीं सोचते कि जिस राह में हम आज चल रहे हैं, उसी राह में कल को हमारे बच्चे भी चल सकते हैं, बावजूद इसके आज भी हमारे समाज में इंसानियत जिंदा है तभी तो वृंदावान में रहने वाली एक डॉक्टर लक्ष्मी गौतम पिछले 21 सालों से निस्वार्थ ऐसी ही बूढ़ी और विधवा महिलाओं की सेवा कर रहीं हैं। जिनको अपनों ने यहां पर अकेला छोड़ दिया और अब उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।
वृंदावन में विधवाओं और लाचार बुजुर्ग महिलाओं के दर्द को अपना बना लेने वाली डॉ. लक्ष्मी गौतम वैसे तो वृंदावन के एक कॉलज में एसो. प्रोफेसर के पद पर काम कर रही हैं, लेकिन कॉलेज से समय मिलने के बाद वह वृंदावन में दर-दर भटकने वाली लाचार और असहाय महिलाओं की मदद करने निकल पड़ती हैं। डॉक्टर लक्ष्मी गौतम का जन्म वृंदावन के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता पुरोहित थे लिहाजा बचपन से ही डॉक्टर लक्ष्मी गौतम वृंदावन में ऐसी विधवा महिलाओं को देखती आ रही थीं जो मंदिर के बाहर, सड़क के किनारे बहुत बुरी हालत में रहतीं थी। ये देखकर उन्हें बहुत बुरा लगता था। नन्हीं लक्ष्मी तब अपने पिता से सवाल कर उनकी इस हालत के बारे में पूछतीं। तब उनके पिता बताते थे कि विधवा होने के कारण इनको इनका परिवार और समाज नहीं अपनाता है। बंगाल के कई इलाकों में तो इन विधवा महिलाओं के बाल तक काट लिये जाते हैं। वो बताती हैं कि वृंदावन में वैसे तो पूरे देश से विधवाएं आती हैं लेकिन सबसे ज्यादा करीब 70 प्रतिशत महिलाएं पश्चिम बंगाल से आती हैं। इस समय वृंदावन में हजारों विधवाएं रहती हैं। डॉक्टर लक्ष्मी ने साल 1995 में वृंदावन के नगर पालिका चुनाव को लड़ा था और उसमें जीत भी हासिल की थी। जिसके बाद वो नगर पालिका की वाइस चैयरपर्सन बनी। तब उन्होने ऐसी विधवा माताओं के लिए पेंशन, राशन और मेडिकल सुविधाओं की विशेष व्यवस्था की थी। इसके बाद साल 2008 से वो पूरी तरह से इन महिलाओं की सेवा में लगीं हैं।
साल 2011-12 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर वृंदावन में रहने वाली इन विधवाओं की सामाजिक स्थिति पर एक सर्वेक्षण कराया गया। डॉक्टर लक्ष्मी ने एक सोशल वर्कर होने के नाते इस रिर्पोट को तैयार कराने में मदद की। रिपोर्ट में बताया गया था कि किन मुश्किल हालात में ये विधवाएं यहां आने को मजबूर हैं। उसके बाद सरकार और अन्य स्वंय सेवी संस्थाओं के माध्यम से निरंतर इन विधवाओं के उत्थान का प्रयास किया जा रहा है। डॉक्टर लक्ष्मी बताती हैं कि “जब मैं रिर्पोट तैयार कर रही थी तब लोगों ने मुझसे कहा कि आप इतना अच्छा काम कर रहीं हैं लेकिन इन माताओं की सेवा करने और महिलाओं को अधिकार दिलाने के लिए अगर मुझे कानूनी सहायता की जरूरत पड़े तो बिना संस्था के इन कामों के करने में परेशानी होगी। तब मैंने ‘कनक धारा फाउंनडेशन’ के बारे में सोचा।” इस तरह डॉक्टर लक्ष्मी ने साल 2012 में ‘कनक धारा फाउंडेशन’ की स्थापना की। इसमें वो उन माताओं को अपने यहां आश्रय देती हैं जिनको वृंदावन के आश्रमों में जगह नहीं मिलती है और जो सड़कों और गलियों में मुश्किल हालत हैं। इन माताओं का पूरा खर्चा वो अपने निजी तौर पर करती हैं इसके लिए वो किसी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं लेती हैं। विधवाओं को अपने साथ रखने के अलावा वो इनके खाने पीने के इंतजाम के साथ इनके स्वास्थ्य पर भी ध्यान देती हैं। वो उन माताओं का अन्तिम संस्कार भी करतीं हैं जो कि उन्हें लावारिश हालत में मिलती हैं।
वो कहती हैं कि इन माताओं को अपने पास लाने से पहले वो आश्रय सदन लेकर जातीं हैं। जिन माताओं को ये सदन लेने से इन्कार कर देते हैं उन माताओं को वो अपने पास ले आती हैं ये अत्यंत वृद्ध माताएं होती हैं। इन माताओं में से किसी की मृत्यु होने पर पहले वो उनके घर वालों से फोन के जरिये स्वंय सूचित करती हैं लेकिन जब वो उनके घर वाले अंतिम संस्कार तक करने से इन्कार कर देते हैं। तब वो स्वंय ही इस काम को करती हैं। इन सब कामों के अलावा डॉक्टर लक्ष्मी गौतम स्कूलों में जाकर बेटी बचाओ अभियान के तहत सेमिनार करती हैं। इसके अलावा वो रेप पीड़ित और दहेज पीड़ितों की कानूनी सहायता करती हैं और उनके मुकदमें लड़ने में मदद करती हैं। डाक्टर लक्ष्मी गौतम को साल 2015 ‘नारी शक्ति सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। वो बताती हैं कि “पुरस्कार मिलने के बाद प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मुझसे पूछा कि मैं इतना नेक काम कर रही हूं इसके लिए मैं कोई सरकारी मदद क्यों नहीं लेती तो मैंने उनसे कहा कि ये मेरा शौक है, मेरा मन है उसके लिए मैं कोई फोटो खिचांकर या रिकॉर्ड रख कर सहायता नहीं लेना चाहती। इस काम के लिए मेरा मन हर समय तैयार रहता है। पेशे से मैं एक प्रोफेसर हूं जिसके लिए मुझे पैसा मिलता है।” लक्ष्मी ‘कनक धारा फाउंडेशन’ के माध्यम से किये जाने वाले कामों की फोटो और उससे सम्बन्धित हर जानकारी को सोशल मीडिया पर डालती हैं। जिसका आज की युवा पीढ़ी से उन्हें बहुत समर्थन मिलता है। अपने काम को लेकर होने वाली परेशानियों के बारे में उनका कहना है कि शुरूआत में लोग उनका विरोध करते थे। वो कहते थे कि “आप महिला होकर अंतिम संस्कार कर रहीं हैं। तब मैं उनसे कहती कि अगर आप लोग इस काम को कर दें तो मेरी जरूरत ही ना पड़े।” बावजूद इसके वो मानती हैं कि आज की युवा पीढ़ी उन्हें इस काम में बहुत सर्पोट कर रही है।