कभी थे विश्व चैम्पियन, आज दवा इलाज को पैसे नहीं
338 मैचों में पाकिस्तान के लिए गोलकीपिंग करने वाले मंसूर अहमद आज लड़ रहे हैं ज़िंदगी की लड़ाई...
खेल-खेल में तमाम के सितारे बुलंद होते रहते हैं लेकिन इंतजामिया की मनमर्जी, सरकारी लहतलालियों के चलते पैसे-पैसे को मोहताज अपने वक्त के कई अव्वल खिलाड़ी उपेक्षा का दंश झेलते रहते हैं। हमारे देश में नहीं नहीं, पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है। उनकी कहीं कोई सुनवाई नहीं। यह तो वजह है कि पाकिस्तान के चैम्पियन खिलाड़ी मंसूर अहमद अपने इलाज के लिए आजकल भारत से गुहार लगा रहे हैं।
खेल और खिलाड़ियों को लेकर ऐसा नहीं कि ऐसी स्थितियां सिर्फ हमारे देश में हैं। अभी अभी एक दुखद दास्तान पाकिस्तान की सार्वजनिक हुई है। पाकिस्तान के पूर्व गोलकीपर भारत से मदद मांग रहे हैं। हॉकी के वर्ल्ड कप विजेता गोलकीपर 49 वर्षीय मंसूर अहमद को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत है।
खेल जगत की हकीकतों के दो मुख्य पहलू हैं। पहला कामयाबी, दूसरी खेल और खिलाड़ियों की उपेक्षा, दुर्दशा। एक हैं पहलवान नरसिंह यादव उन्हें बिना किसी गलती के तरह तरह के चैलेंजेज से गुजरना पड़ा है। खेलों से जुड़ी नियामक संस्थाओं तथा उसकी नौकरशाही का छल और छद्म उन्होंने बखूबी भोगा है। खेल संघों के कामकाज और खिलाड़ियों के चयन में भ्रष्टाचार, भेदभाव, साजिशें, भाई-भतीजावाद, शोषण आदि की बात पहली बार नहीं हो रही है।
पर्याप्त पोषण, प्रशिक्षण, उपकरण और फिर निरंतर कठिन होते मुकाबले में आगे रखने के लिए जरूरी कोचिंग के अभाव से जूझ कर कोई खिलाड़ी अपनी काबिलियत साबित कर ले जाते हैं, लेकिन ज्यादातर खिलाड़ी पिछड़ जाते हैं। उन्हें क्षेत्र, धर्म, जाति, लिंग के आधार पर होनेवाले छुपे-ढके भेदभावों से टकराना पड़ता है। खेल संघों के नेतृत्व पर नेताओं और सेवानिवृत नौकरशाहों का कब्जा है। उन्हीं की पसंद के प्रशिक्षक और प्रबंधक खेलों का भविष्य तय करते हैं।
समाजिक मुद्दों पर लोगों के सुझाव लेने वाली संस्था 'लोकल सर्किल' ने एक बार ओलंपिक में भारत के प्रदर्शन पर सर्वे करवाया। पूछा गया कि आखिर खेलों में भारत इतना पिछड़ा हुआ क्यों है। सर्वेक्षण में 86 फीसदी भागीदारों का कहना था कि खेल संस्थाओं को खिलाड़ियों को ही संभालना चाहिए। 92 फीसदी लोगों की राय थी कि खेल संस्थाओं में भ्रष्टाचार हावी है। 89 फीसदी लोगों का मनाना था कि खेल की बेहतरी के पर्याप्त प्रयास नहीं हुए हैं, जबकि सिर्फ 9 फीसदी लोगों का मानना रहा कि देश में खेल की बेहतरी के लिए पर्याप्त प्रयास हुए हैं।
खेल और खिलाड़ियों को लेकर ऐसा नहीं कि ऐसी स्थितियां सिर्फ हमारे देश में हैं। अभी अभी एक दुखद दास्तान पाकिस्तान की सार्वजनिक हुई है। पाकिस्तान के पूर्व गोलकीपर भारत से मदद मांग रहे हैं। हॉकी के वर्ल्ड कप विजेता गोलकीपर 49 वर्षीय मंसूर अहमद को हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत है। उनके दिल में पेसमेकर और स्टंट लगे हुए हैं, लेकिन कुछ समय से उन्हें काफी परेशानी हो रही है। डॉक्टरों ने उन्हें हृदय प्रत्यारोपण की सलाह दी है। इलाज के लिए वह भारत आना चाहते हैं। मंसूर मीडिया को बताते हैं कि सन् 1994 के इंदिरा गांधी कप और कुछ अन्य आयोजनों के दौरान खेलते हुए मैदान पर उन्होंने कई भारतीयों के दिल तोड़ दिए थे।
वह तो खेल की बात थी। तमाम मतभेदों के बावजूद हॉकी और क्रिकेट जैसे खेलों ने भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर किए हैं। अब वह भारत में हार्ट ट्रांसप्लांट कराना चाहते हैं और उसके लिए उन्हें भारत सरकार से मदद की दरकार है। मंसूर अहमद ने 338 मैचों में पाकिस्तान के लिए गोलकीपिंग की। इस दौरान उनकी टीम ने एक वर्ल्ड कप भी जीता। गोलपोस्ट पर खड़े मंसूर से पार पाना विपक्षी टीमों के लिए आसान नहीं होता था। आज वही मंसूर जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे हैं।
वैसे भारत में भी कई बड़े खिलाड़ी उपेक्षा की जिंदगी जीते हुए गुजर बसर कर रहे हैं। हमारे देश में 'आइस हॉकी' का हाल भी कुछ कम रोचक नहीं है। उपेक्षा का दंश वहां भी साल रहा है। गौरतलब है कि भारत की आइस हॉकी टीम का प्रदर्शन उत्साहजनक रहा है। इसके ज्यादातर खिलाड़ी व कोच लद्दाख से हैं। उनमें से ज्यादातर तो लद्दाख के दूर-दराज़ के उन गांवों में से हैं, जो बिलकुल वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास स्थित हैं। दुखद सच्चाई ये है कि आइस हॉकी टीम के पास खुद का प्रैक्टिस रिंक भी उपलब्ध नहीं है।
खिलाड़ी गुडगाँव के जिस रिंक में प्रैक्टिस करते हैं, उसका क्षेत्र असल रिंक से एक तिहाई है। इसके अलावा आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया का खुद का रिंक जो देहरादून में है, बंद पड़ा हुआ है। लद्दाख विंटर स्पोर्ट्स कल्ब के वाईस प्रेसिडेंट एन ग्यालपो के मुताबिक कुल 28 खिलाड़ियों को आइस हॉकी एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया द्वारा अनेक गांवों के स्पोर्ट क्लब्स से चुना गया था, जिनमें से केवल 18 ही एडवांस कोचिंग के लिए जुटे। अन्य खिलाड़ी जो नहीं पहुँच पाए, उनमें से आधा दर्जन के पास तो पासपोर्ट ही नहीं था। चार अन्य पैसों की कमी के कारण दिल्ली नहीं जा पाए। ये खिलाड़ी लद्दाख के दूर-दराज़ के गांवों में रहते हैं, जिनके लिए दस पंद्रह हजार जुटाना भी बहुत बड़ी बात है।
जब से क्रिकेट का सिक्का दुनिया में उछला है, हॉकी समेत अन्य तरह के खिलाड़ियों की उपेक्षा बढ़ती गई है। दवा-इलाज, सरकारी देनदारी, रोजी-रोटी उनके खेल की राह में आड़े आने लगे हैं। हॉकी हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है लेकिन टीम को मैच खेलने के लिए समय से पैसे नहीं मिल पाते हैं। एक बार तो ऐसी स्थितियों से नाराज़ खिलाड़ी वर्ल्ड कप के अभ्यास के लिए लगाए गए कैंप का बहिष्कार कर चुके हैं। खिलाड़ियों का कहना था कि हॉकी संघ जितना पैसा देने की बात करता है, वह मूंगफली के दाने भर होता है। हॉकी खिलाड़ियों के साथ इस तरह के व्यहार से अभिनेता शाहरुख़ खान भी नाराज़ी जता चुके हैं। वह सोशल मीडिया पर बता चुके हैं कि वह बहुत दुखी हैं।
खिलाड़ियों को उनके हिस्से के पैसे नहीं दिए जाना दुखद है। देश के लिए खेलना, राष्ट्रीय खेल का हिस्सा होना और अपने पैसों के लिए लड़ना, ये कितना दुखद है। फिर सब नाराज़ होते हैं कि भारत को स्वर्ण पदक नहीं मिलता। गौरतलब है कि शाहरुख़ ख़ुद भी हॉकी खिलाड़ी रह चुके हैं। हॉकी ही क्यों, क्रिकेट के भी कई बड़े खिलाड़ी बुरे दिनो से जूझ रहे हैं। सुनने में यह सवाल अटपटा जरूर लगेगा लेकिन क्या कभी ऐसा भी हो सकता है कि एक अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी जिसने सालों क्रिकेट खेला हो, वह आज पैसे पैसे का मोहताज हो। सोचने में भी अजीब लगता है और काफी नामुमकिन भी पर ऐसा हुआ है।
क्रिकेट के इस शोहरतयाफ्ता खेल को खेलने के बाद कुछ ऐसे खिलाड़ी हैं ऐशो आराम तो दूर की बात है, अपना परिवार का पेट पालने में भी नाकाम हो रहे हैं, कुछ ने तो गरीबी की मार झेलते हुए आत्महत्या करने जैसा बड़ा कदम भी उठा लिया था। सच तो ये है कि भारत और पाकिस्तान ही नहीं, दुनिया के कई देशों के तमाम कुशल खिलाड़ी किसी तरह घर-गृहस्थी घसीटने को विवश हैं। एडम होलिओक इंग्लैंड क्रिकेट टीम के एक बेहतरीन खिलाड़ी थे। उन्होंने इंग्लैंड के लिए 1999 में काफी क्रिकेट मैच खेला है। होलिओक ने साल 2007 तक क्लब क्रिकेट भी खेला था। क्रिकेट से दूर होने के बाद होलिओक अपने पारिवारिक व्यापार को संभालने के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए थे। उनके पास वहां एक बड़ी संपत्ति थी जिसे उन्होंने काफी आगे भी बढ़ाया।
उसके कुछ ही दिन बाद व्यापार में आई आर्थिक मंदी की वजह से उनका पूरा का पूरा कारोबार बर्बाद हो गया और उन्हें एक बड़ा आर्थिक झटका लगा। उनकी कम्पनी साल 2009 में पूरी तरह ख़त्म हो गई और वो दिवालिया हो गए। फिर उन्होंने मार्शल आर्ट्स में अपनी किस्मत भी आज़माई। उनके पास इतने भी पैसे नहीं रहे कि वो अपने बच्चों का पेट पाल सके। होलिओक ने अपने करियर में इंग्लैंड के लिए चार टेस्ट मैच और 35 वनडे मैच खेले हैं उनके नाम 34 विकट भी दर्ज है। दक्षिण अफ़्रीकी टीम के बाएँ हाथ के बल्लेबाज़ ग्रीम पॉलक ने अपनी टीम के लिए कई बेहतरीन पारियां खेली हैं।
दो साल पहले पॉलक को उनके व्यापार में 250,000 डॉलर का नुक्सान हो गया और उनका व्यापार पूरी तरह नष्ट हो गया। इसी के साथ साथ कैंसर जैसी बीमारी ने उनकी बची कुची दौलत भी ख़त्म कर दी। फिलहाल वह ग़रीबी से जूझ रहे हैं। भारत के एक 85 वर्षीय हॉकी खिलाड़ी हैं कोटा सत्यनारायण, आज उनके हालात इतने मजबूत नहीं कि वह अपना ठीक से इलाज भी करवा सकें। कोटा सत्यनारायण हैदराबाद में एक किराये के कमरे में अपने दो बेटों और 35 वर्षीय बेटी के साथ रहते हैं।
वह कहते हैं कि आज तक राज्य सरकार और केंद्र सरकार को इतने खत भेजने के बाद भी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आया। पाकिस्तान के लिए 276 अंतरराष्ट्रीय विकेट लेने वाला एकमात्र स्पिनर दानिश कनेरिया आज पैसे-पैसे को मोहताज है। एक ज़माना था, जब पाकिस्तानी टीम का एकमात्र हिंदू खिलाड़ी दानिश अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का सितारा हुआ करता था और दूसरे कामयाब क्रिकेटरों की तरह पैसे वाला था, लेकिन आज वह पाई-पाई के लिए परेशान है।
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