भारतीय क्रिकेट के शानदार मुस्तकबिल की पहली इबारत लिखने वाले दिलीप सरदेसाई
आठ अगस्त 1940 को गोवा में जन्मने वाले सरदेसाई को वह सम्मान और जगह हासिल नहीं हुई जिसके वे हकदार थे। यह भी अजीब है कि उनके बारे में परस्पर विरोधी बातें सुनने में आती हैं। मसलन यह कहा जाता है कि वे तेज गेंदबाजी अच्छी तरह नहीं खेल पाते थे लेकिन सुनील गावस्कर का कहना है कि वेस्टइंडीज में सरदेसाई को खेलते हुए देखकर उन्होंने सीखा कि तेज गेंदबाजी का सामना कैसे किया जाता है।
भारतीय क्रिकेट के राजा राममोहन राय अर्थात पुनर्जागरण के प्रणेता दिलीप सरदेसाई।
भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अनेक गौरवशाली अध्याय जोड़ने वाले दिलीप सरदेसाई के हिस्से क्रिकेट के ग्लैमर की चमक-दमक बहुत समय तक नहीं रही, लेकिन उनके योगदान के फलस्वरूप भारत ने विदेशी सरजमीं पर फतह का झंडा गाड़ना अवश्य सीख लिया।
हिंद की सरजमीं पर मजहब सा रुतबा रखने वाले खेल क्रिकेट के इतिहास (अपने जन्म, संघर्ष और उत्कर्ष) की अनेक दास्तानें क्रिकेट के चाहने वाले हजारों-लाखों आशिकों की जुबानी, फिजाओं में तैर रही हैं। क्रिकेट खिलाड़ियों के स्टार से सुपरस्टार बनने तक अनगिनत कहानियां भारतीय उपमहाद्वीप के गोशे-गोशे में सुनी जा सकती हैं। लेकिन एक वह दौर वह भी था जब अंधेरों में गुम भारतीय क्रिकेट अपने लिये उजाले की तलाश कर रहा था। साल 1971 में भारतीय क्रिकेट ने सही मायनों में चलना सीखा और वेस्ट इंडीज और इंग्लैंड जैसी टीमों को उन्हीं की जमीन पर पराजित कर दुनिया को अपने होने का अहसास कराया और ये सब कुछ मुमकिन हो पाया था दिलीप सरदेसाई की शानदार बल्लेबाजी की बदौलत।
दीगर है 1971 को वेस्टइंडीज के किंग्सटन मैदान पर दौरे के पहले मैच की पहली पारी में सरदेसाई ने 212 रन जड़े थे। देश से बाहर पहली बार किसी भारतीय ने ये कारनामा किया था। हालांकि वो मैच ड्रॉ रहा था। दरअसल 19 फरवरी 1971, किंग्सटन जमैका का सबाइना पार्क, वेस्ट इंडीज के खिलाफ पहले खेलते हुए भारत ने मात्र 75 रनों पर पांच विकेट खो दिए थे। रेडियो पर कमेंट्री करने वाले कमेंटेटर के मुंह से निकला, 'ये टीम तो किसी क्लब टीम जैसी लगती है।' लेकिन सरदेसाई ने यहां अपने जीवन की सर्वश्रेष्ठ पारी खेली। 212 रनों की इस इनिंग्स को तेज गेंदबाजी के खिलाफ अब तक की बेहतरीन पारियों में गिना जाता है।
यह जानना दिलचस्प होगा कि उस समय वेस्टइंडीज टीम बेहद शानदार फॉर्म में थी और अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी तब टीम इंडिया से जीत की उम्मीद करना अंधेरे में तीर मारने जैसा थी। फिर 6 मार्च 1971 को भारत और वेस्टइंडीज के बीच पहला टेस्ट मैच हुआ। टॉस हारने के बाद टीम इंडिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 36 रन पर तीन विकेट गवां दिए थे। अब बल्लेबाजी करने दिलीप सरदेसाई मैदान पर उतरे। एक छोर को सरदेसाई संभाले हुए थे, लेकिन दूसरे छोर पर विकेट गिरते जा रहे थे। 75 रन पर टीम इंडिया के पांच विकेट गिर चुके थे, लेकिन सरदेसाई हार मानने वाले नहीं थे।
चारों तरफ शानदार शॉर्ट्स खेलते हुए सरदेसाई ने सबको हैरान कर दिया था। छठें विकेट के लिए सरदेसाई और एकनाथ सोलकर के बीच 137 रन की साझेदारी हुई। सिर्फ इतना ही नहीं नौवें विकेट के लिए सरदेसाई और इरापल्ली प्रसन्ना के बीच में 122 रन की साझेदारी हुई थी। इस मैच में सरदेसाई ने शानदार खेलते हुए पहली पारी में 212 रन बनाए। यह पहली बार था जब टीम इंडिया की तरफ से किसी खिलाड़ी ने वेस्टइंडीज के खिलाफ दोहरा शतक ठोंका था। इस टेस्ट मैच को टीम इंडिया ड्रॉ कराने में कामयाब हुई थी।
दौरे के दूसरे टेस्ट में सरेदसाई ने 112 रन की शतकीय पारी खेली जिसकी मदद से भारत पहली बार वेस्टइंडीज को टेस्ट मैच में हरा पाया। दौरे का पहला, तीसरा, चौथे और पांचवे मैच ड्रॉ रहे थे। भारत ने पांच मैचों की शृंखला 1-0 से जीत ली थी। वेस्टइंडीज के खिलाफ भारत ने पहली बार टेस्ट सीरीज जीती थी। दौरे के चौथे टेस्ट में सरदेसाई ने 150 रनों की पारी खेली। वेस्टइंडीज के 1970-1971 के दौरे में सरदेसाई ने कुल 642 रन बनाए थे। पांच दिनों तक किसी भी भारतीय द्वारा एक सीरीज में सर्वाधिक रन बनाने का सरदेसाई के नाम रहा लेकिन वेस्टइंडीज में ही सुनील गावस्कर ने इसे तोड़ दिया। गावस्कर ने कुल 774 रन बनाए थे। गावस्कर ने सीरीज में चार शतक और एक दोहरा शतक बनाये थे। वेस्टइंडीज दौरे में दोहरा शतक बनाने से पहले सरदेसाई न्यूजीलैंड के खिलाफ मुंबई में दोहरा शतक बना चुके थे। 12-15 मार्च 1965 को इस मैच में सरदेसाई ने नाबाद 200 रन बनाए थे।
हम देखते हैं कि आठ अगस्त 1940 को गोवा में जन्मने वाले सरदेसाई को वह सम्मान और जगह हासिल नहीं हुई जिसके वे हकदार थे। यह भी अजीब है कि उनके बारे में परस्पर विरोधी बातें सुनने में आती हैं। मसलन यह कहा जाता है कि वे तेज गेंदबाजी अच्छी तरह नहीं खेल पाते थे लेकिन सुनील गावस्कर का कहना है कि वेस्टइंडीज में सरदेसाई को खेलते हुए देखकर उन्होंने सीखा कि तेज गेंदबाजी का सामना कैसे किया जाता है। विजय मर्चेंट ने उन्हें 'द रेनासांस मैन ऑफ इंडिया' कहा था। प्रतिभा के जिस मुकाम पर वह खड़े थे, उस हिसाब से उन्हें भारत के लिये और अधिक टेस्ट मैच खेलने चाहिये, जबकि वह भारत के लिए कुल 30 टेस्ट ही खेले सके जिनमें उन्होंने दो दोहरे शतक समेत पांच शतक लगाए थे। आपको ये जानकार शायद हैरत होगी कि 55 पारियों में सरदेसाई ने केवल दो छक्के मारे थे।
भारतीय क्रिकेट में धनात्मक परिवर्तन की सबसे पहली इबारत लिखने का गौरव रखने वाले दिलीप सरदेसाई बहुत जिंदादिल और मजाकिया इंसान भी थे। उनकी वजह से ड्रेसिंग रूम में हमेशा रौनक रहती थी। साथी खिलाडिय़ों से प्रैक्टिकल जोक करना उनका शगल हुआ करता था। दिलीप सरदेसाई के क्रिकेट करियर का एक और यादगार क्षण तब आया जब 1971 में ही ओवल में भारत ने इंग्लैंड को पहली बार उनकी ही जमीन पर हराया। वैसे तो ये मैच चंद्रशेखर का रहा, लेकिन सरदेसाई ने भी 54 और 40 रनों की महत्वपूर्ण पारियां खेली थीं भारत के लिए।
दिलीप सरदेसाई का दिल जीतने वाला दोहरा शतक
यह 1965 की बात है, न्यूजीलैंड की टीम चार टेस्ट मैच खेलने के लिए भारत दौरा पर थी। दोनों टीमों के बीच यह तीसरा टेस्ट मैच था जो मुम्बई में खेला गया था। न्यूजीलैंड की पहली पारी के 297 रन के जवाब में भारत सिर्फ 88 रन पर ऑल आउट हो गया और फॉलोऑन खेला। न्यूजीलैंड की टीम भारतीय मैदान पर पहला टेस्ट मैच जीतने का गौरव हासिल करने के करीब थी, लेकिन सलामी बल्लेबाज दिलीप सरदेसाई ने उनके सपने पर पानी फेर दिया था। दूसरी पारी में सरदेसाई शानदार बल्लेबाजी करते हुए 200 रन पर नॉटआउट रहे थे। भारत ने अपनी दूसरी पारी पांच विकेट पर 463 पर घोषित की। न्यूजीलैंड ने हारते-हारते यह मैच बचा लिया। खेल खत्म होने तक न्यूजीलैंड ने दूसरी पारी में 43 ओवर खेलते हुए 80 रन पर आठ विकेट गवां दिए थे और मैच ड्रा रहा।
खैर भारतीय क्रिकेट के इतिहास में अनेक गौरवशाली अध्याय जोड़ने वाले दिलीप सरदेसाई के हिस्से क्रिकेट के ग्लैमर की चमक-दमक बहुत समय तक नहीं रही, लेकिन उनके योगदान के फलस्वरूप भारत ने विदेशी सरजमीं पर फतह का झंडा गाड़ना अवश्य सीख लिया। शायद इसी कारण दिलीप सरदेसाई को भारतीय क्रिकेट का राजा राममोहन राय अर्थात पुनर्जागरण का प्रणेता कहा जा सकता है।
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