खाने की चीजों से लेकर पैसों के लिए 'डूडल डू', 'रचना'त्मकता का सुखद सफर
‘‘इतनी शिद्दत से मैंने तुझे पाने की कोशिश की है, कि हर जर्रे ने मुझे तुझसे मिलाने की साजिश की है।’’ एक फिल्म में मशहूर फिल्म अभिनेता शाहरुख खान द्वारा बोली गई ये पंक्तियां अक्सर यह समझाने के लिये प्रयोग में लाई जाती हैं कि अगर आपके भीतर किसी चीज के लिये जुनून है तो पूरी दुनिया उस वस्तु को आपके पास लाने के लिये सबकुछ करने को तैयार होती है।
वास्तविक जीवन में भी यही सिद्धांत लागू होता है और रचना प्रभु इसका जीवंत उदाहरण है।
एक उद्यमी और डूडल डू (Doodle Do) की संस्थापक रचना प्रभु उसी समय से ड्राॅइंग करती आ रही हैं जबसे वे पेंसिल पकड़ने लायक हुई हैं। ड्राॅइंग को लेकर अपने अबतक के सफर के बारे में वे कहती हैं, ‘‘मैंने कभी भी कला की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं हासिल की है। स्कूल के दिनों में मैं खाने की चीजों के बदले दोस्तों के लिये ड्राॅइंग करने के अलावा अपनी काॅपियों के पन्नों पर डूडल भी बनाती रहती थी। मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरा उत्साहवर्धन किया यहां तक कि काफी छोटी उम्र में भी। इतने वर्षों के दौरान मैंने विभिन्न शैलियों के साथ प्रयोग किये। यह तो उम्र के 20वें वर्ष में पहुंचने के बाद ही ऐसा हुआ है कि मैं एक ऐसा चित्रण का तरीका पाने में सफल रही जो मेरे लिये बिल्कुल नया था और उसके बाद से मैंने उसे हमेशा के लिये अपना लिया।’’
उनका अपना एक आॅनलाइन स्टोर है। इसके अलावा वे खुले बाजार में अपने उपभोक्ताओं से सीधा रूबरू होना भी काफी पसंद करती हैं। उनका कहना है कि इसके फलस्वरूप उन्हें बिक्री के मामले में बेहतरीन नतीजे देखने को मिले हैं।
उपभोक्ताओं के रूप में उनका मुख्य लक्ष्य महिलाएं हैं और उनकी युवा महिलाओं के लिये चपल इलस्ट्रेशंस वाले उत्पाद उनकी प्रमुख विशेषता हैं। वे चेहरे पर एक मुस्कान लाते हुए कहती हैं, ‘‘मजेदार बात यह है कि ‘एक राजकुमारी कभी भी खाना नहीं पकाती है’ दर्शाने वाला फ्रिज मैगनेट मेरा इकलौता सबसे लोकप्रिय उत्पाद है! लेकिन एक श्रेणी के रूप में देखें तो मेरे पाॅकेट मिरर उपभोक्ताओं के बीच सबसे अधिक लोकप्रिय हैं।’’
कुर्ग से ताल्लुक रखने वाली यह 29 वर्षीय महिला मैसूर के अपने घर के स्टूडियो से ही काम करती हैं। उनके माता-पिता केरल में रहते थे और उन्होंने अपने प्रारंभिक वर्ष ऊटी के एक बोर्डिंग स्कूल में बिताए। दो वर्ष बाद उनका विवाह हो गया और वे मैसूर आ गईं।
रचना ने बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातक की डिग्री हासिल करने के अलावा बैंगलोर के काॅमिट्स से जन संचार के क्षेत्र में परस्नातक की डिग्री हासिल की है। ‘‘पत्रकारिता की पढ़ाई के दौरान एक दिन मेरे एक प्रोफेसर ने मुझसे पूछा कि क्या मैं काॅलेज की मासिक पत्रिका के लिये कुछ कुछ कहानियां इलस्ट्रेट कर सकती हूं। बस उसके बाद से ही चीजें बिल्कुल बदल गईं और मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मैं अपनी इलस्ट्रेशंस के साथ और भी बहुत कुछ कर सकती हूं।’’
इसके बाद उन्होंने बैंगलोर की एक पीआर फर्म के साथ अपनी पहली नौकरी की और उसी दौरान वे चुपके से स्थानीय प्रकाशकों को इस उम्मीद में ईमेल भेजती रहीं कि उन्हें बच्चों की किताब के लिये एक इलस्ट्रेटर का काम मिल जाएगा। ‘‘मैं इस मामले में काफी खुशकिस्मत रही कि दिखावा करने के लिये कला का कोई पोर्टफोलियो न होने के बावजूद एक प्रकाशक ने मेरे काम और मुझमें दिलचस्पी दिखाई। इसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।’’
बहरहाल समय के साथ तकनीक ने काम और उसको करने के तरीके में बदलाव ला दिया और अब उन्हें अपने काम को डिजिटल रूप में प्रस्तुत करने के लिये कहा गया। कड़ी मेहनत से हासिल होने वाली सफलता से गौरान्वित रचना कहती हैं, ‘‘यह सच है कि उस समय मैं किसी भी साॅफ्टवेयर पर काम करना नहीं जानती थी और ऐसे में मैंने यूट्यूब की सहायता से फोटोशाॅप सीखना प्रारंभ किया और एक इलस्ट्रेटर के रूप में रात की पाली की नौकरी प्रारंभ करते हुए उसी वर्ष बच्चों की तीन किताबें इलस्ट्रेट कीं। इसके बाद से मुझे पीछे मुड़कर नहीं देखना पड़ा है। हालांकि इंटरनेट मेरे लिये सीखने का सबसे बड़ा स्रोत रहा है लेकिन जितना भी मैं जानती हूं वह मैंने काम करते हुए ही सीखा है और उपलब्धि की इससे बड़ी कोई भावना हो नही सकती।’’
हालांकि रचना अपनी नौकरियां बदलती रहीं और उन्होंने एक सिंडिकेशन फर्म के साथ काम करना प्रारंभ कर दिया और उसके बाद वे एक आईटी फर्म के साथ काॅर्पोरेट कम्युनिकेशन प्रोफेशनल के रूप में जुड़ गईं, उन्होंने ड्राॅइंग का साथ नहीं छोड़ा। इस पूरे दौरान अपनी 9 से 5 की नौकरी के अलावा वे ड्राॅइंग करने के साथ कुछ बेहतरीन कमीशन का काम करती रहीं। अबसे दो वर्ष पूर्व तक वे एक इलस्ट्रेटर के रूप में रात को और सप्ताहांतों के दौरान काम करती रहीं।
शादी और उनके पति ने उनकी इस यथास्थिति को बदल दिया। ‘‘मैं इसके लिये अपने बेहद मददगार पति को धन्यवाद देती हूं कि मैं एक पूर्णकालिक फ्रीलांसर इलस्ट्रेटर के रूप में खुद को ढालने के अलावा डूडल डू की स्थापना कर पाई। यह मेरे जीवन का अबतक का सबसे बेहतरीन निर्णय रहा।’’
वर्तमान में रचना अकेली ही डूडल डू का संचालन कर रही हैं। आर्टवर्क तैयार करने से लेकर ईमेल का जवाब देने, आॅनलाइन आॅर्डरों पर नजर रखने और उत्पादों की पैकेजिंग से लेकर उन्हें उपभोक्ताओं तक भिजवाने तक के सारे कामों पर रचना को ही नजर रखनी होती है। उन्हें किसी भी इलस्ट्रेशन को पूरा करने में एक घंटे से लेकर कुछ दिनों तक का समय लगता है जो उसमें शामिल काम पर निर्भर करता है।
रचना के लिये प्रारंभिक सफर इतना आसान नहीं था क्योंकि उन्हें एक व्यवसाय को किस तरह प्रारंभ करना है और उसे कैसे संचालित करना है इसके बारे में कुछ पता नहीं था। प्रारंभ में उनके लिये एक ऐसे व्यवसाय को स्थापित करना सबसे कठिन चुनौती था जो, ‘‘मेरा सही प्रतिनिधित्व करने के अलावा उसकी सेल्स वैल्यू भी थी। मैं अपने उत्पादो में प्रयुक्त होने वाले आर्टवर्क को लेकर काफी सशंकित थी क्योंकि मुझे इसका कोई अंदाजा नहीं था कि आम लोगों को वे कैसे लेगेंगे। लेकिन एक बाजार में मेरे द्वारा आयोजित की गई एक प्रदर्शनी ने मेरी सभी चिंताओं को विराम दे दिया। उपभोक्ताओं के खिले हुए चेहरे और उनके प्राप्त होती सकारात्मक प्रतिक्रियाओं से मुझे आभास हुआ कि मेरा पहला कदम बिल्कुल ठीक है। इंटरनेट मेरा सबसे अच्छा मित्र साबित हुआ है और सोशल मीडिया विशेषकर फेसबुक के चलते मेरा आॅनलाइन स्टोर अब अपने 12वें महीने में प्रवेश कर रहा है।’’
वे आगे कहती हैं, ‘‘मुझे उम्मीद है कि किसी भी उद्यमी या फ्रीलांस कलाकार के लिये प्रारंभिक महीने या वर्ष चुनौतियो से भरे होते हैं। और समय के साथ चीजें अपना स्थान पा लेती हैं और मेरे साथ तो कम से कम ऐसा ही हुआ है। और इसके बाद यह एक ऐसा काम हो जाता है जिससे आप प्यार करते हैं।’’
रचना खुश और संतुष्ट हैं और वे अपने काम का पूरा आनंद ले रही हैं। आने वाले निकट भविष्य के बारे में उनका कहना है, ‘‘मैं अपने आॅनलाइन स्टोर में कुछ नए उत्पाद जोड़ने की उम्मीद कर रही हूं। इसके अलावा मैं कुछ नए सहयोगियों और कुछ लाजवाब व्यक्तियों और काम की तलाश में हूं जो एक कलाकार के रूप में नए वर्ष में मेरे सामने एक नई चुनौती पेश कर सके।’’
उन्हें अबतक प्राप्त हुई सकारात्मक प्रतिक्रिया उन्हें प्रेरित करने का काम करती है। यह उन्हें आत्मविश्वास प्रदान करते हुए आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है। लेकिन अपने जैसे अन्य उद्यमियों को एक महत्वपूर्ण सलाह देते हुए वे कहती हैं, ‘‘मुझे इस बात का पूरा भरोसा है कि आपको वास्तव में कड़ी मेहनत करते हुए शांत होना चाहिये क्योंकि एक ऐसा उपभोक्ता आधार तैयार करने में समय लगता है जिन्हें आपके उत्पाद पसंद हों और जो आपके काम का समर्थन करते हों।’’
लेखिकाः तनवी दुबे
अनुवादकः निशांत गोयल