मंत्री के बेटे को हराकर चपरासी का बेटा बना विधायक
जब लोकतंत्र न्याय करने पर उतर आता है, बड़े-बड़े दिग्गज औंधेमुंह गिर पड़ते हैं। चुनाव में मतदाता ही सबसे बड़ा न्यायाधीश होता है, जिसके आगे न सत्ताबल की चलती है, न धनबल-भुजबल की। एक केंद्रीय मंत्री के विधायक-पुत्र को इस चुनाव में पटखनी देकर चपरासी-पुत्र का हजारों मतों से जीत जाना तो यही साबित करता है।
भाजपा इसलिए भी भ्रम में जी रही थी कि प्रतिद्वंद्वी मनोज चावला की वैसे भी मामूली पारिवारिक हैसियत है। वह एक चपरासी के बेटे हैं। मतदाताओं पर तो भाजपा का ही दबदबा रहेगा। इस गलतफहमी को लोकतंत्र ने डंके की चोट पर ठिकाने लगा दिया।
लोकतंत्र की महिमा अपरंपार है। आपातकाल के बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुआ था, इंदिरा गांधी समेत कांग्रेस के तमाम बड़े दिग्गज धराशायी हो गए थे लेकि जब उसके बाद संसदीय चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी पहले से भी ज्यादा ताकतवर लहर पर सवार होकर दोबारा सत्तासीन हो गईं। लोकतंत्र में आस्था रखने वाले देश के करोड़ों मतदाताओं ने जेपी लहर से उपजे नए-नवेले जनता को ताश के पत्ते की तरह बिखेर दिया था। इसी तरह पिछले विधानसभा चुनावों में मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी रही हो या मायावती की बहुजन समाज पार्टी, सिर-माथे लेने के बाद करारी पटखनी देते भी देर नहीं लगी थी।
इसी विधानसभा चुनाव में मिजोरम और तेलंगाना के नतीजों ने अलग इतिहास लिखा है। वहां न कांग्रेस की दाल गली, न भाजपा की। चुनावों की ये नज़ीर साबित करती है कि हमारे देश का लोकतंत्र आज भी दुनिया के बाकी देशों से बहुत ज्यादा पारदर्शी, न्यायप्रिय और अपार शक्ति-संपन्न है। धनबल, सत्ताबल, भुजबल, जनबल से कोई एक बार भले सत्तासीन हो जाए, अगर वह गैरजिम्मेदार तरीके से हुकूमत का जनविरोधी इस्तेमाल करता है, वोटर आंखों की किरकिरी की तरह उसे फूंक उड़ाने में देर नहीं करते हैं। इस बार के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी कई ऐसे नतीजे हैं, जिनमें एक मध्य प्रदेश की आलोट विधानसभा सीट का चुनाव नतीजा है।
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों के दौरान आए नतीजे चाहे जिसकी ताजपोशी कराएं, रतलाम की आलोट विधानसभा सीट पर जीते मनोज चावला की कामयाबी की दास्तान ही कुछ अलग है। नवनिर्वाचित विधायक मनोज के पिता रतलाम कलेक्ट्रेट में चपरासी (चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी) की नौकरी करते हैं। पैंतीस वर्षीय मनोज ग्रेजुएट हैं। चुनाव मैदान में उनके सामने कोई मामूली प्रत्याशी नहीं, बल्कि केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत के विधायक बेटे जीतेंद्र गहलोत थे।
आलोट विधानसभा क्षेत्र में 197892 मतदाताओं ने अपने मतों का इस्तेमाल किया, जिनमें 1,01,886 पुरुष वोटरों और 95,999 महिला वोटरों ने अपने मतों का प्रयोग किया। कांग्रेस के पक्ष में गया यहां का चुनाव नतीजा इसलिए भी करिश्माई माना जा रहा है कि टिकट मिलने के बाद से ही पेशे से अधिवक्ता-व्यापारी मनोज चावला की सलामती के लिए कोई भी बड़ा नेता उनके इलाके में प्रचार करने नहीं पहुंचा, दूसरी तरफ जीतेंद्र गहलौत को जिताने के लिए उनके मंत्री पिता पूरे वक्त खुद तो निर्वाचन क्षेत्र में नतीजा आने तक चौबीसो घंटे डेरा डाले ही रही, उनके चुनाव प्रचार में केंद्रीय गृहमंत्री केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसी कद्दावर शख्सियतों की जनसभाएं हुईं, सत्ताबल उनको फतह दिलाने में पटखनी खा गया। जब मतगणना हुई तो कांग्रेस प्रत्याशी मनोज चावला ने भाजपा के विधायक प्रत्याशी जीतेंद्र गहलौत को पांच हजार मतों से पछाड़ दिया।
इससे पहले वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री के पुत्र इसी जीतेन्द्र गहलोत ने कांग्रेस के प्रेमचंद गुड्डू को 7,973 वोटों के अंतर से हरा दिया था। इस बार के विधानसभा चुनाव में वह दूसरी बार एक विधायक के रूप में अपना भविष्य आजमाने उतरे थे। इससे पहले प्रेमचंद गुड्डू और उनके बेटे अजीत बौरासी कांग्रेस का साथ छोड़कर भाजपा में चले गए। इसके चलते भाजपा इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो चुकी थी कि जीतेंद्र को निश्चित ही विधायक निर्वाचित कर लिया जाएगा लेकिन ऐसा सोचना मुंगेरील लाल का हसीन सपना भर साबित होकर रह गया।
भाजपा इसलिए भी भ्रम में जी रही थी कि प्रतिद्वंद्वी मनोज चावला की वैसे भी मामूली पारिवारिक हैसियत है। वह एक चपरासी के बेटे हैं। मतदाताओं पर तो भाजपा का ही दबदबा रहेगा। इस गलतफहमी को लोकतंत्र ने डंके की चोट पर ठिकाने लगा दिया। चुनाव नतीजा आने के बाद बड़े-बड़े चुनाव विशेषज्ञ भी वोटरों की ईमानदारी पर हक्के-बक्के रह गए, जबकि चावला की तरफदारी में कांग्रेस का कोई बड़ा नेता भी उन्हें ताकीद करने नहीं पहुंचा। दूसरी तरफ नए-नए मामूली हैसियत वाले प्रत्याशी को पछाड़ने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोक रखी थी। सब वृथा गया। मतदाताओं ने बेखौफ होकर दूध का दूध पानी का पानी कर दिया।
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