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दंगे में घर छोड़ चुके मुस्लिमों को वापस बसाने का काम कर रहे हैं संजीव प्रधान

दंगे में घर छोड़ चुके मुस्लिमों को वापस बसाने का काम कर रहे हैं संजीव प्रधान

Thursday October 18, 2018 , 5 min Read

मुजफ्फरनगर जिले के दुल्हेड़ा गांव में रहने वाले 65 मुस्लिम परिवार दंगों की वजह से पलायन कर गए थे, संजीव उनमें से 30 परिवारों को वापस लाने और फिर से बसाने का काम किया। दंगों के वक्त भी संजीव इन मुस्लिमों के लिए मसीहा बनकर सामने आए थे। 

तस्वीर साभार- टाइम्स ऑफ इंडिया

तस्वीर साभार- टाइम्स ऑफ इंडिया


 संजीव की बदौलत तीन साल बाद अपने घर लौट कर आने वाली अफसाना बेगम कहती हैं, 'मुझे अच्छे से याद है दंगों के वक्त संजीव और उनके साथी न केवल हमारी रक्षा कर रहे थे बल्कि मस्जिद की भी रखवाली कर रहे थे।'

हमारे समाज में लगातार आपसी भाईचारा समाप्त हो रहा है और तुच्छ राजनीति के बहकावे में आकर लोग एक दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं। इसी का नतीजा है कि हमें आए दिन हिंदू-मुस्लिम दंगों की खबरें सुनने को मिलती हैं। तकरीबन पांच साल पहले उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में भी ऐसा दंगा हुआ था जिसमें कई जानें गईं और न जाने कितने परिवार बेघर हो गए। अब उन परिवारों को वापस लाने का काम कर रहे हैं संजीव प्रधान।

मुजफ्फरनगर जिले के दुल्हेड़ा गांव में रहने वाले 65 मुस्लिम परिवार दंगों की वजह से पलायन कर गए थे, संजीव उनमें से 30 परिवारों को वापस लाने और फिर से बसाने का काम किया। दंगों के वक्त भी संजीव इन मुस्लिमों के लिए मसीहा बनकर सामने आए थे। उन्होंने दंगों की आंच से न केवल उन्हें बचाया था बल्कि अपने घर में पनाह भी दी थी। संजीव की बदौलत तीन साल बाद अपने घर लौट कर आने वाली अफसाना बेगम कहती हैं, 'मुझे अच्छे से याद है दंगों के वक्त संजीव और उनके साथी न केवल हमारी रक्षा कर रहे थे बल्कि मस्जिद की भी रखवाली कर रहे थे।'

अफसाना आगे कहती हैं, 'उन्होंने हमारी जिंदगी बचाई थी अगर उन्होंने हमें वापस आने को कहा तो हमें बिना कुछ सोचे उन पर भरोसा कर लेना चाहिए।' वहीं संजीव कहते हैं कि इंसान को उसके चरित्र के आधार पर आंकना चाहिए न कि धर्म के आधार पर। उन्होंने कहा, 'हिंदू खराब हैं? मुसलमान खराब हैं? मैं बस इतना कहूंगा कि इंसान खराब हैं। हमें अच्छे समाज को बनाने के लिए आगे आना होगा और बदलाव के लिए लड़ाई लड़नी होगी। मैं बस इतना ही कर रहा हूं।'

हालांकि संजीव के लिए यह काम आसान नहीं था। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक वह गांव के पूर्व प्रधान भी रह चुके हैं और उनकी अपनी ही जाट बिरादरी के लोगों द्वारा तिरस्कार सहना पड़ा, लेकिन वह अपने निश्चय से हटे नहीं। उनके समर्थक नवाब सिंह कहते हैं, 'संजीव प्रधान 2015 का मुखिया का चुनाव हार गए, उसकी सबसे बड़ी वजह यही थी कि वह मुस्लिम समुदाय के लोगों को बचा रहे थे। इतना ही नहीं कई बार तो संजीव को चिढ़ाने के लिए उन्हें हिंदू लोग सलाम आलैकुम भी कहने लगे। लोग कहते थे कि संजीव अब हिंदू नहीं मुस्लिम बन गए।'

संजीव दंगे के दिनों को याद करते हुए कहते हैं, 'मुझे याद है वो 2013 में 8 सिंतबर की तारीऱ थी और हमें कुछ ही दूर पर गोलियों की आवाज सुनाई दी, हमें लग गया था कि दंगा शुरू हो गया। चूंकि अधिकतर मुस्लिम परिवार और मस्जिद मेरे घर के पास ही है इसलिए हमने मस्जिद और इन लोगों की रक्षा करनी शुरू कर दी।' इस दंगे में दुल्हेडा में 62 मुस्लिमों की मौत हो गई थी और 50,000 से अधिक लोगों को मुजफ्फरनगर से दूर जाना पड़ गया था। अपने घर को लौट कर आने वाली बाला बानो कहती हैं कि वे दिन भयावह थे और अगर प्रधान नहीं होते तो वे भी जिंदा नहीं बचते।

मुस्लिम परिवार आश्रयों में चले जाने के बाद, प्रधान ने यह सुनिश्चित किया कि उनके मवेशियों का ख्याल रखा गया और उनके घर सुरक्षित हैं। साजिद अहमद, जो कुछ समय के लिए राहत शिविर में रहने के बाद लौटे, उनमें से एक कहते हैं, "गांव के मुस्लिम परिवारों में बड़ी भूमि अधिग्रहण नहीं होती है और ज्यादातर मवेशी पालन पर निर्भर करती हैं। इसलिए, जब हम यह पता चला कि हमारे मवेशी सुरक्षित हैं तो यह एक बड़ी राहत थी। "

दंगे के बाद जब मुस्लिम परिवार राहत शिविरों में रहने चले गए तो प्रधान ने उनके जानवरों का ख्याल रखा। अफसाना कहती हैं कि प्रधान ने 300 से अधिक मुस्लिम परिवारों के रहने का इंतजाम किया, वे खुद भी इन राहत शिविरों में आना चाहते थे, लेकिन हमने उन्हें मना कर दिया क्योंकि इससे उनकी जान का भी खतरा हो जाता। साजिद अहमद बताते हैं कि मुस्लिमों के पास ज्यादा जमीन नहीं है, इसलिए वे पशुपालन पर ही निर्भर रहते हैं। दंगों के बाद जब वे लौटकर आए तो अपने जानवरों को सलामत देख उन्हें बड़ी खुशी मिली। यह सब संभव हो पाया संजीव प्रधान की वजह से।

प्रधान कहते हैं कि गांव समाज परस्पर विश्वास पर काम करता है और यह भरोसा तभी कायम हो सकता है जब लोग एक दूसरे के साथ मिलकर काम करें। उन्होंने कहा, 'गांव के मुस्लिम हम जैसे किसानों के लिए किसी सहारे से कम नहीं हैं। वे गन्ना की फसल के दौरान हमारी मदद करते हैं, हमारे घर बनाते हैं और कई चीजों में सहयोग करते हैं। दरअसल हम सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं और इसलिए हमें एक दूसरे का सम्मान करने की जरूरत है। मैं हमेशा इन्हें अपने साथ लेकर चलने की कोशिश करता रहूंगा और प्रयास रहेगा कि सभी मुस्लिम परिवार लौटकर अपने घर आ जाएं और यहीं रहने लगें।'

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