मुट्ठीभर महिलाओं ने खोज निकाली अपनी तरक्की की नई राह
बोधगया (बिहार) के एक छोटे से गांव अहमद नगर और छत्तीसगढ़ में सरगुजा की महिलाओं ने देखते ही देखते एक नया बाजार खड़ा दिया। उनको हर महीने घर बैठे पचीस-तीस हजार की कमाई होने लगी। खुद की ईजाद की हुई उनकी तरक्की की राह अब औरों के लिए एक नई मिसाल बन गई है।
एक छोटा सा प्रयास एक साथ किस तरह कई एक महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा कर देता है, इसकी नजीर हैं स्टार्ट अप 'विलेज' और ग्राम संगठन 'चांदनी'। इन दोनों की साझा कोशिश से बोधगया (बिहार) के एक छोटे से गांव अहमद नगर की महिलाओं ने वह कर दिखाया है, जो कत्तई आसान नहीं। वे अपनी मेहनत से एक नई मिसाल बन गई हैं। उनकी मेहनत ने पूरे इलाके की एक बड़ी मुश्किल आसान कर दी है। उन्होंने अपने काम की शुरुआत अहमद नगर में साप्ताहिक हाट लगाने से की तो उनको स्टार्ट अप विलेज इंटरप्रेन्योरशिप प्रोग्राम के तहत जीविका दीदीयो का भी सहयोग मिलने लगा।
'चांदनी' की महिलाएं अपने हाट में हर बुधवार को समोसा, जलेबी के साथ ही फास्ट फूड भी बेचती, कमाती हैं। मछली-मुर्गों की भी बिक्री करती हैं। हाट के समय समूह कुछ महिलाएं मुर्गा-मछली तलने लगती हैं और कुछ बिक्री में जुट जाती हैं। इस दौरान अलग स्टॉल पर वे ताज़ा सब्जियां बेचती हैं। अन्य स्टॉल पर वे मिर्च-मसालों की बिक्री करती हैं। इससे इलाके के किसानों को फायदा ये हुआ है कि हाट लगने के बाद से उनको अपने खेतों की सब्जियां बेचने के लिए अब दूर नहीं जाना पड़ता है। उनकी सारी सब्जियां हाट में ही बिक जा रही हैं। बड़ी संख्या में क्षेत्र के ग्रामीण खरीदारी के लिए पहुंचते हैं।
'चांदनी' की कोशिशें जिस तरह परवान चढ़ रही हैं, जिस तरह हर हफ्ते हाट में भीड़ उमड़ने लगी है, इलाके के लोग इस नज़ारे से हक्के-बक्के हैं। इस हाट का पूरा इंतजाम महिलाओं के हाथ में रहता है। साथ में मददगार के तौर पर 'विलेज' के लोग भी हाथ बंटाते हैं। हफ्ते में सिर्फ एक दिन समय देकर इससे 'चांदनी' की महिलाओं की भारी कमाई हो रही है। वे आर्थिक रूप से संपन्न हो रही हैं। यहां पेयजल की किल्लत है। गर्मी के मौसम में साग-सब्जी को ताजा रखने के लिए पानी की आवश्यकता होती है। इस मुश्किल पर पार पाने के लिए ये महिलाएं विधायक से पानी की व्यवस्था की मांग कर चुकी हैं।
विधायक ने हाट के लिए उनको हैंडपंप लगाने का आश्वासन दिया है। 'चांदनी' के साप्ताहिक हाट से इलाके के ग्रामीणों को अब दस किमी दूर चेरकी या फिर शेखवारा बाजार नहीं जाना पड़ता है। महिलाओं को इस सफल मोकाम तक पहुंचाने में 'विलेज' के मिथलेश कुमार की भूमिका भी सराहनीय रही है। उन्होंने हाट खोलने से पहले 'चांदनी' की महिलाओं को बाजार की दृष्टि से प्रशिक्षित कराया, साथ ही उनकी कोशिशों को प्रचारित-प्रसारित किया। इसके बाद सितंबर 2017 में हाट लगाने के लिए एक किसान से दो सौ रुपए महीने पर जमीन लेनी पड़ी।
कमोबेश इसी तरह सरगुजा (छत्तीसगढ़) की कुछ महिलाओं ने भी एकदम नए तरह का धंधा शुरू कर लोगों को चौंका दिया है। वे अंडे के छिलके से हर साल लाखों कमाई कर रही हैं। समूह में शामिल हर महिला की महीने में 30 हजार रुपए तक की कमाई हो जाती है। आमतौर से अंडे के छिलकों को फेंक दिया जाता है। समूह की महिलाओं ने सोचा कि क्यों ने बेकार फेक दिए गए अंडे के छिलके को रिसाइकल कर वे 'कैल्शियम पाउडर' या 'खाद' तैयार करें। इसके लिए उनको सबसे पहले पर्यावरणविद सी. श्रीनिवासन से प्रशिक्षण लेना पड़ा। श्रीनिवासन वर्षों से अपशिष्ट पदार्थों को रिसाइकल कर उपयोगी बनाते हैं।
समूह की महिलाओं द्वारा तैयार रिसाइकल छिलके का 'कैल्शियम पाउडर' मुर्गियों के आहार में मिश्रित कर दिया जाता है। इससे उनके आहार में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है। कम ही समय में मुर्गियां खूब तंदरुस्त हो जाती हैं। बाजार में इस समय मुर्गियों का आहार पांच-छह सौ रुपए प्रति किलो मिल रहा है। समूह की महिलाएं अंडे के छिलकों से खाद भी बना रही हैं। अंडे के छिलके 95 प्रतिशत कैल्शियम कार्बोनेट के बने होते हैं। ये महिलाएं रोजाना पचास किलो छिलका रिसाइकल कर देती हैं।
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