सरकारी नौकरी छोड़ खेती से भारी मुनाफा कमा रहे शनूज, युवाओं को भी दे रहे खेती की प्रेरणा
जैविक खेती के लिए शनूज ने काफी रिसर्च किया और वर्कशॉप में भी हिस्सा लिया। इससे उनकी जानकारी बढ़ती गई। उन्होंने खुद से अपने जिले में जैव विविधता के कार्यक्रम आयोजित किए। इससे उन्हें नए युग की खेती के बारे में जानकारी हुई।
हर साल शनूज अपने खेतों से एक टन चावल और बाग से 15 टन आम का उत्पादन करते हैं। उनके पिता भी एक किसान थे, लेकिन परंपरागत तौर-तरीकों से खेती करने की वजह से उन्हें इतना फायदा नहीं होता था।
केरल के पलक्कड़ जिले के रहने वाले शनूज शाहुल ऐसे किसान हैं जिन्होंने खेती से लगाव के चलते अपनी सरकारी नौकरी छोड़ दी। आज के दौर में युवाओं के बीच खेतों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता और हर कोई नौकरी ही करना चाहता है। लेकिन शनूज इस रवैये से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि खेती भी एक बेहतर करियर का विकल्प हो सकता है। वे खुद की जिंदगी को युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बना रहे हैं ताकि युवा खेती करने के लिए प्रेरित हो सकें। लेकिन एक वक्त शनूज को भी लगता था कि नौकरी ज्यादा बेहतर होती है, फिर उनकी सोच बदली और नौकरी छोड़ वे अपने पिता की विरासत खेती को संभालने लगे।
उनके दोस्त संतोष ने उन्हें खेती की प्रेरणा दी। बातचीत और थोड़ी सी रिसर्च के बाद शनूज ने पशुओं को पालने से शुरुआत की। उन्हें पर्यावरण और पशु संरक्षण से लगाव था। केरल के पलक्कड़ जिले में गाय की कई ऐसी प्रजाति हैं जो दुर्लभ मानी जाती हैं और कई नस्लें तो ऐसी हैं जो और कहीं नहीं मिलतीं। इसलिए उन्होंने इन दुर्लभ प्रजाति की गाय पालीं। उनके फार्म में आज विल्लुद्री, अनंगनमलाकल्लन, आंद कन्नी जैसी प्रजाति की गाए हैं। उनके पास कई तरह की मुर्गियां और बकरियां भी हैं। शनूज अपने खेतों से भी कुछ लाभ कमाना चाहते थे इसलिए उन्होंने जैविक खेती प्रारंभ की।
जैविक खेती के लिए शनूज ने काफी रिसर्च किया और वर्कशॉप में भी हिस्सा लिया। इससे उनकी जानकारी बढ़ती गई। उन्होंने खुद से अपने जिले में जैव विविधता के कार्यक्रम आयोजित किए। इससे उन्हें नए युग की खेती के बारे में जानकारी हुई। वे कभी भी फसलों पर कीटनाशक का छिड़काव नहीं करना चाहते थे। वे बताते हैं कि रीना ने उन्हें जैविक खेती से रूबरू करवाया था। उन्हें वह अपना गुरू मानते हैं। शनूज अपने खेतों में कई तरह के औषधीय पौधे और स्थानीय फलों की फसल करते हैं। वे युवाओं को भी खेती के लिए जागरूक करते हैं। उन्होंने इसके लिए 'बैक टू फार्म' नाम से एक प्रॉजेक्ट भी शुरू किया है।
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वे बताते हैं, 'यह एक ऐसा प्रॉजेक्ट है जिसमें खेती में दिलचस्पी लेने वाले लोगों को शामिल किया जाता है। मैंने पहले अपने जिले के किसानों से संपर्क करना शुरू किया और युवाओं को भी इसमें शामिल किया। तमिलनाडु के कई सारे शिक्षण संस्थानों से भी मुझे बुलावा आया और मैंने उन्हें खेती के बारे में जानकारी दी।' शनूज ने कहा, 'हम छात्रों को पहले कुछ बीज मुफ्त में देते हैं जब वे खेती करने लग जाते हैं तो फिर उन्हें पूरी सहायता दी जाती है।' पलक्कड़ जिले में एक ऐसी ऑर्गैनिक शॉप है जहां जैविक सब्जियां, बीज और पौधे बेचे जाते हैं। शनूज किसानों से खुद भी उनकी फसलें खरीदते हैं।
हर साल शनूज अपने खेतों से एक टन चावल और बाग से 15 टन आम का उत्पादन करते हैं। उनके पिता भी एक किसान थे, लेकिन परंपरागत तौर-तरीकों से खेती करने की वजह से उन्हें इतना फायदा नहीं होता था। लेकिन इतनी अच्छी फसल से भी शनूज खुश नहीं हैं। वे कहते हैं कि इतने फायदे के बावजूद युवा खेती की ओर आकर्षित नहीं हो रहे हैं। इसके लिए वह जिला कृषि विभाग से मिलकर युवाओं के लिए प्रोग्राम डिजाइन कर रहे हैं और उन्हें खेती के गगुर सिखा रहे हैं।
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