'मैं अपने खून की अंतिम बूंद तक मानवता की सेवा करूंगा' - विक्रम विंसेंट
एक शिक्षा प्रौद्योगिकी संबंधी परामर्शदाता और एक्टिविस्ट कहानी, जो सूचना की आजादी और समान अधिकार की बात आने पर कोई प्रयास बाकी नहीं छोड़ते हैं
विक्रम विंसेंट एक शिक्षा प्रौद्योगिकी संबंधी सलाहकार और एक्टिविस्ट हैं जो सूचना की आजादी और समान अधिकार की बात आने पर कोई प्रयास बाकी नहीं छोड़ते हैं। वह फिटनेस प्रशिक्षक और शोतोकान कराटे के मार्शल आर्ट मास्टर भी हैं। टेकी ट्यूजडेज की यह किश्त अलग है क्योंकि विक्रम जी कोई कोडर नहीं हैं। लेकिन देश में फ्री सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम को मजबूत करने में उन्होंने जिस तरह से मदद की है, वह अद्भुत है। वह कर्नाटक के फ्री सॉफ्टवेयर आंदोलन के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं।
योरस्टोरी ने विक्रम जी से उनके जीवन, फ्री सॉफ्टवेयर के प्रति उनके समर्पण और समाज को प्रभावित करने वाले अन्य सामाजिक मुद्दों पर बातचीत की। उसका संपादित सारांश नीचे प्रस्तुत है।
योरस्टोरी : भारत और अन्य स्थानों पर इंटरनेट ऐक्टिविज्म का क्या भविष्य है?
विक्रम : इंटरनेट एक्टिविज्म महज एक्टिविज्म नहीं है। इसे सड़कों पर चलने वाले एक्टिविज्म का पूरक होना चाहिए। बहुत से लोग सोचते हैं कि इंटरनेट एक्टिविज्म के जरिए वे दुनिया को बदल सकते हैं। सफलता की कुछ कहानियां भी हो सकती हैं लेकिन वे एक परिप्रेक्ष्य तक सीमित हैं क्योंकि वे मूल कारणों में बदलाव नहीं लाती हैं जिनके चलते वे समस्याएं वास्तव में पैदा होती हैं।
अंब्रेला रिवोल्यूशन और नेट न्यूट्रलिटी जैसे आंदोलनों को सम्मानजनक सफलता मिली। लेकिन ये सफलताएं लक्षणों को बढ़ने से रोक भर सकीं न कि उनकी मूल समस्याओं का समाधान कर सकीं। नेट न्यूट्रलिटी जरूरी है लेकिन इसे क्रियान्वित नहीं किया गया क्योंकि सरकार को नीतिगत परिवर्तन करने हैं। अगर हाल के चुनावों और उनकी सांख्यिकी को देखें, तो भाजपा को 170 करोड़ रु. की फंडिंग हुई जिसमें 90 प्रतिशत हिस्सा कॉर्पोरेट क्षेत्र का था। इस परिस्थिति में सरकार निष्पक्ष कैसे रह सकती है?
हमें यह समझने की जरूरत है कि जब तक लोग सड़कों पर नहीं उतरते हैं और अपनी किसी चीज को कुर्बान करने की इच्छा नहीं रखते हों (जैसे कि समय), हमलोग कोई बड़ा परिवर्तन नहीं ला सकते। इंटरनेट एक्टिविज्म से आप कुछ हासिल करते हैं। हो सकता है कि यह आपको संवाद में मदद करे लेकिन इससे चीजें मौलिक रूप से नहीं बदल जाएंगी।
योर स्टोरी : सक्रियकर्मी अपने मकसद के क्रियान्वयन के नकारात्मक पक्ष के बारे में (जैसे भारत बंद और उसके आर्थिक परिणाम) किस हद तक सोचते हैं?
विक्रम : अंतर्विरोध किसी भी व्यवस्था में अतर्निहित होता है और ऐसा पूरे ऐतिहासिक दौर में होता आया है। अगर आप कोई अंतर लाने का प्रयास कर रहे हैं, तो आप सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों को अलग नहीं कर सकते। आप उसमें सिर्फ लगे रह सकते हैं।
फ्री सॉफ्टवेयर मूवमेंट भी पायरेसी को बढ़ावा नहीं देता है लेकिन उसका कहना है कि डिजिटल मीडिया की कीमतों को अत्यंत अधिक रखकर पायरेसी को बढ़ावा देने वाले नियमों को हम बदलना और एक वैकल्पिक बिजनस मॉडल बनाना चाहते हैं ताकि इस प्रक्रिया में सारे लोग लाभान्वित हों।
योर स्टोरी : जब फ्री सॉफ्टवेयर की बात आती है, तो इसकी क्या गारंटी है कि ओपन टूल का इस्तेमाल हमारे खिलाफ नहीं किया जाएगा?
विक्रम : मेरा विश्वास है कि ज्ञान तक लोगों की पहुंच होनी चाहिए। एक अंतर्निहित भय तो हमेशा ही रहता है कि इसका गलत इस्तेमाल किया जा सकता है। मनुष्य से गलतियां करने की आशंका तो रहती ही है इसलिए हमें सामाजिक संतुलन और नियंत्रण को दुरुस्त रखना होता है। सामाजिक नियंत्रणों से मेरा आशय समकक्ष लोगों की समीक्षा और उनके दबाव से है। साथ में पलने-बढ़ने वाली चीजों के बारे में समाज खुद सोचना शुरू करे।
जैसे कि टॉर (गुमनामी वाला एक सॉफ्टवेयर) और चाइल्ड पॉर्नोग्राफी की बात लें। टॉर को ब्लॉक करने से चाइल्ड पॉर्नोग्राफी की समस्या हल होने वाली नहीं है। टॉर तो महज एक माध्यम है। हमें समस्याओं की जड़़ तक जाना होगा। कोई चाइल्ड पॉर्नोग्राफी देखना क्यों चाहेगा? उसी तरह, मृत्युदंड से बलात्कार का समाधान नहीं होने वाला है। लोगों की शिक्षा और समर्थन की जरूरत वाले लोगों की पहचान ही इसका उपाय है। लोगों को हतोत्साहित करने के लिए शायद कोई असाधारण दंड वांछित हो।
समाज में रोज नए लोग जुड़ते हैं। शिक्षा का सही स्वरूप और उसकी पुनरावृत्ति दीर्घकालिक रूप से कारगर होगी न कि एक पीढ़ी में। इसके कारगर होने में कई पीढि़यां गुजर सकती हैं। इसलिए हमेशा समस्या की जड़ तक जाइए। ये सारे तो सतही मुद्दे हैं।
योर स्टोरी : सर्विलांस सिस्टम पर आपके क्या विचार हैं और कानूनी तथा गैर-कानूनी व्यवधानों के बीच कोई रेखा हम कैसे खींच सकते हैं?
विक्रम : अगर संदेह हो, तो उनलोगों की चुनिंदा मॉनीटरिंग वांछित होगी जिसके लिए आपको न्यायालय के जरिए पहुंचना होगा। किसी को गिरफ्तार करने या कहीं लिसनिंग डिवाइस लगाने के लिए आपको किसी न्यायाधीश की स्वीकृति और वारंट प्राप्त करना होगा। सरकार और गुप्तचर संगठन यह दर्शाते हुए इसको दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं कि डिजिटल जगत मूलतः भिन्न है। मैं सहमत हूं कि माध्यम बदलते हैं, लेकिन मानवाधिकार नहीं बदलता है। निगरानी का यह कार्यक्रम इस व्यापक मान्यता के तहत काम करता है कि निरपराध प्रमाणित नहीं होने तक हर आदमी दोषी है। यह आगे बढ़ने का सही रास्ता नहीं है। सरकार के साथ कोई बात बुनियादी रूप से गलत है जिसकी सोच है कि हर कोई अपराधी है।
योर स्टोरी : लेकिन कानूनी प्रक्रिया में समय लगता है जिससे अपराधियों के छूटने और भाग जाने की गुंजाइश बन जाती है।
विक्रम : मैं किसी निरपराध व्यक्ति को सताने के बजाय दोषी व्यक्ति का छूट जाना पसंद करूंगा। अगर आप टाडा (आतंकवादी एवं विध्वंसक गतिविधि निवारण अधिनियम) के मामले में देखें, तो इसके जरिए ढेर सारे निरपराध लोगों को टॉर्चर किया गया। गुआंतानामो बे के मामले में भी ऐसा ही है। निरपराध लोग वहां बिना मुक्ति वर्षों से सड़ रहे हैं, कानून का सर्वाधिक अमानवीय उल्लंघन हो रहा है और उनके निकलने का कोई रास्ता नहीं है।
अपील के माध्यम में मेरा बहुत विश्वास नहीं है क्योंकि प्रथमतः इसका यह कहना ही, कि आप सीधा जेल भेजे वाले हैं, मूलतः गलत है। ये अमानवीय प्रक्रियाएं हैं और इसलिए हमलोग ऐसी प्रक्रिया को बरकरार नहीं रख सकते हैं। इसकी जगह हमें अधिक मानवीय प्रक्रिया स्थापित करनी होगी।
योर स्टोरी : क्या आधार भारत को सर्विलांस स्टेट में बदलने की उर्वर जमीन बनाने में मददगार है?
विक्रम : अपने वर्तमान स्वरूप में आधार लोगों के लिए प्रत्यक्षतः उपयोगी नहीं है लेकिन यह सर्विलांस स्टेट बनने में मददगार होगा।
आधार कार्यक्रम का संचालन सरकार द्वारा प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा रहा है जिसका अर्थ हुआ कि यह खास निकाय मुनाफा करने वाला निकाय है। फलतः, ये आंकड़े ऐसा माध्यम हैं जिसके जरिए वे मुनाफा कमाते हैं। और आंकड़ों के द्वारा वे मुनाफा कैसे कमाने जा रहे हैं? सूचनाओं की बिक्री करके जो मेटाडेटा हो सकती है - या यह डेटा या मेटाडेटा में से कोई एक हो सकती है। एक बार अन्य लोगों के हाथों में पड़ जाने के बाद व्यक्ति की सुरक्षा कहां रहती है? निजता कहां बची रहती है?
योर स्टोरी : स्नोडन द्वारा सूचनाओं को प्रकट करने के बाद से दुनिया बहुत नहीं बदली है। क्या लोगों की यह उदासीनता चिंता की बात है?
विक्रम : एडवर्ड स्नोडन, जूलियन असांज और आरोन स्वार्ट्ज, यहां तक कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में भी हमारे पास कई विसलब्लोअर मौजूद हैं, जैसे कि स्वर्ण चतुर्भुज के घोटाले से पर्दा हटाने वाले सत्येंद्रनाथ दुबे। उन्हें आशा थी कि आंकड़ों को प्रकट कर देने के बाद दुनिया बदल जाएगी या कम से कम परिस्थिति तो बदल ही जाएगी। इसमें लंबा समय लगने वाला है लेकिन जब समस्याएं सामने आएंगी (और वे सामने आएंगी ही क्योंकि हम बुनियादी रूप से दोषयुक्त ढांचे में रह रहे हैं), तो यह ढांचा ढह जाएगा। उस समय हमलोगों को विकल्प उपलब्ध कराने की स्थिति में होना चाहिए। यह आज भी हो सकता है या इसमें कई सौ साल भी लग सकते हैं।
योर स्टोरी : इंडिया’ज डॉटर डॉक्यूमेंटरी पर प्रतिबंध लगाने के संबंध में आपके क्या विचार हैं?
विक्रम: सरकार में अनेक लोग उसी विचार के हो सकते हैं जैसा कि बलात्कारी ने प्रकट किए थे। डॉक्यूमेंटरी को रोकने का कोई औचित्य नहीं है। जिस घड़ी आप उसे रोक देते हैं, वह अधिक लोगों द्वारा शेयर किया जाने लगता है। इसे ढेर सारे लोगों ने डाउनलोड किया है। वे इसे पेन ड्राइव के जरिए बांट रहे हैं और अनेक लोग इसे बार-बार अपलोड कर रहे हैं। इसलिए अधिक लोग इसे देख सकते हैं और ब्लॉक करने से इस पर कोई वास्तविक फर्क नहीं पड़ने वाला है।
योर स्टोरी : लेकिन इस डॉक्यूमेंटरी से ढेर सारी गैर-कानूनी चीजें जुड़ी थीं?
विक्रम : आपको व्यवस्था के अंदर के मौलिक अंतर्विरोधों की बात ध्यान में रखनी होगी। वाटरगेट स्कैंडल का भंडाफोड़ पूंजीवादी मीडिया ने ही किया था - ऐसे निकाय ने जिसे पारंपरिक रूप से जनता के सर्वोत्तम हितों वाला नहीं माना जाता। लेकिन अधिक मुनाफा कमाने के लिए उसने निक्सन का भंडाफोड़ कर डाला। उनलोगों ने महसूस किया कि यह पर्याप्त रूप से उनके हित में नहीं है। और यहां भी, मीडिया की भूमिका ऐसी है जिसे लोकतंत्र (आजादी) का चौथा स्तंभ बनना है। उनलोगों ने क्या अनुमति मांगी, इसे सरकार को तय करना है। इसके लिए एक प्रक्रिया है। लेकिन डॉक्यूमेंटरी की मौजूदगी का अर्थ हुआ कि आप इस पर चर्चा कर सकते हैं और इसकी आलोचनात्मक छानबीन कर सकते हैं।
योर स्टोरी : तो आपका कहना है कि किसी चीज पर रोक नहीं लगाई जानी चाहिए?
विक्रम: महज रोक लगाने से बात बनने वाली नहीं है। आखिर ये चीजें होती ही क्यों हैं? यहां तक कि स्टराइल सिरींज उपलब्ध कराने वाले कियोस्क की तरह नशा करने वाले लोग भी अपने साथ ड्रग रखते हैं। और उसके बाद उनका काउंसलिंग सेंटर भी होता है। इसलिए कि अगर आप उन्हें कानूनी साधन नहीं उपलब्ध कराते हैं, तो वे सुइयां गैरकानूनी तरीके से खरीदेंगे। यहां तक कि खरीदेंगे भी नहीं, शेयर कर लेंगे। इस तरह से वे रोग फैलाने जा रहे हैं और उन्हें सहायता की कानूनी उपलब्धता भी नहीं होनी है।
आप समस्याओं को जटिल बना रहे हैं। रोग लगाना वस्तुतः कारगर नहीं होता है। उससे निपटने के खुले तरीके भी हैं। मेरी विचार प्रक्रिया हमेशा यह रही है कि शिक्षा सबसे अच्छा जरिया है। आप लोगों को शिक्षित कीजिए और उन्हें गंभीर चिंतन प्रक्रिया के साधन उपलब्ध कराइए जो उन्हें सशक्त निर्णय लेने में समर्थ बनाए।
योर स्टोरी : सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66A के मामले में कोई कैसे तय करेगा कि क्या चीज ऑफेंसिव है और क्या नहीं। इस पर आपकी क्या राय है?
विक्रम : धारा 66A महज इस बात की अभ्युक्ति है कि 'हमलोग लोगों से कहते हैं कि वे सार्वजनिक तौर पर अपमानजनक भाषण नहीं दें। आप अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन आपको उसके बचाव में सक्षम होना चाहिए'। पहला सवाल तो यही पूछने की जरूरत है कि डीजिटल माध्यम पर होने पर ये दंड अधिक क्यों हैं? और उन्हें इसकी जांच एक खास परिप्रेक्ष्य में करनी है। यह बिल्कुल नई चीज है और इसके दुरुपयोग की काफी गुंजाइश है। कोई कानूनी प्रक्रिया होनी चाहिए। आप ऐसा नहीं कर सकते कि सीज एंड डेसिस्ट की नोटिश भेज दें। लेकिन आजकल हो यही रहा है कि कोई आपको मेल भेजता है और आप भागने लगते हैं क्योंकि आप भयभीत हैं कि आगे न जाने क्या होगा।
योर स्टोरी : भविष्य के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
विक्रम: शिक्षा प्रौद्योगिकी का कंसल्टेट (ETC) होने के नाते मैं अपने कौशलों का उपयोग व्यवस्था के परिवर्तन के लिए करने की कोशिश कर रहा हूं।
FSMK के साथ मेरा काम स्वैच्छिक है। मुझे इसके लिए कोई भुगतान नहीं किया जाता है। जहां तक मुझसे अपनी ऊर्जा और समय के लिहाज संभव होगा, मैं यह करूंगा। जब मैं यह कर नहीं पाऊंगा तो पीछे हट जाऊंगा और किसी और को इसे अपने हाथ में ले लेने दूंगा। जब तक मैं समर्थ हूं, मैं इसे समय और ऊर्जा देता रहूंगा।
योर स्टोरी : किशोरावस्था में आप क्या करना चाहते थे?
विक्रम : बीटेक करने के लिए मैं आइआइटी में जाना चाहता था। संयोगवश मैंने वहां से पी.एचडी. किया है।
योर स्टोरी : जब आप अपनी बीती जिंदगी को देखते हैं, तो आप किस चीज के विरासत में होने की आशा करते हैं?
विक्रम : कि मैंने अपने शरीर की अंतिम बूंद शेष रहने तक मानवता की सेवा की। मैं सचमुच लोगों की सेवा करना चाहता हूं और मैं मानवता की सेवा करना चाहता हूं जो मेरी समझ में जरूरी है क्योंकि मुझे लगता है कि मेरी परवरिश इसी रूप में की गई थी।
मैं खुद को व्यक्ति के रूप में नहीं देखता हूं। मैं खुद को समुदाय के अंग, समूह के अंग के बतौर देखता हूं क्योंकि मुझे अच्छी तरह मालूम है कि वैयक्तिकता से कुछ नहीं हो सकता है। मेरा विश्वास है कि समूह ही हमेशा कुछ करता है और मैं व्यक्ति होने के नाते समूह के अंग के बतौर जो भी कर सकता हूं, करने की कोशिश करूंगा।
योर स्टोरी : लोगों की आपके बारे में क्या गलत धारणाएं हैं?
विक्रम : कि मैं अच्छा आदमी हूं।
योर स्टोरी : जो लोग सकारात्मक परिवर्तन लाना चाहते हैं, उनके लिए आपकी क्या सलाह है?
विक्रम : मानवता को सबसे ज्यादा तरजीह दें और आप जो कर सकते हैं वह अधिक से अधिक करें।