आइकॉन फैमिली में जेठानी-देवरानी नेशनल चैंपियन तो बेटी इंटरनेशनल शूटर
वाह! क्या फैमिली है...
आज के जमाने में खिलाड़ी के परिवार में खिलाड़ी और अभिनेता के घर में एक्टर होना कोई अजूबा नहीं रहा लेकिन अगर किसी परिवार की कई एक औरतें गोलियां दागने के खेल में देश-दुनिया में मशहूर हो जाएं, तो सुनने वाले जरूर दांतों तले अंगुली दबा लेंगे। उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में ऐसा ही परिवार है देवरानी-जेठानी प्रकाशी और चंद्रो तोमर का, प्रकाशी की तो बिटिया भी इंटरनेशनल चैम्पियन है।
निशानेबाजी से उनकी उम्र का कोई ताल्लुक नहीं है। अगर आप में हिम्मत है तो आप किसी भी उम्र में कुछ भी कर सकते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी ये दोनों तोमर दादियां पूरे गांव के नौजवानों में राइफल शूटिंग की प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं।
भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से सम्मानित ‘आइकन लेडी’ प्रकाशी तोमर वर्ष 2016 में देश की सौ वुमन अचीवर्स में शुमार हो चुकी हैं। उन्हें राष्ट्रपति भवन में दोपहर भोज में शामिल होने का भी अवसर मिल चुका है। टीवी शो सत्यमेव जयते और इंडियाज गॉट टैलेंट में भी इनकी शिरकत रही है। गूगल इंडिया के वुमन विल प्रोग्राम में मुंबई इनका सम्मान किया गया था। प्रकाशी तोमर कभी अपनी पोती और बेटी को निशानेबाजी सिखाने के लिए शूटिंग रेंज ले जाया करती थीं, लेकिन एक दिन उन्होंने खुद बंदूक उठा ली। कोच राजपाल से उन्हें प्रोत्साहन मिला। प्रकाशी तोमर का जन्म मुज़फ्फरनगर (उ.प्र.) के गाँव जोहड़ी में हुआ था। उन्होंने जिंदगी के साठ साल गुजर जाने के बाद बंदूक उठाई।
जिन दिनों वह शूटिंग रेंज में जाया करती थीं, लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे। कहते थे, 'जा, फौज में भर्ती हो जा', 'कारगिल चली जा'। इस तरह की फिकरेबाजियों ने उन्हें कभी विचलित नहीं किया। लक्ष्य से अडिग न होकर एक दिन वह बड़ी शख्सियत के रूप में नई पीढ़ी के लिए मिसाल बन गईं। प्रकाशी बताती हैं, वर्ष 2001 में दिल्ली में एक शूटिंग कॉम्पिटीशन हुआ। इसमें उन्होंने दिल्ली के डीआईजी को धूल चटाकर गोल्ड मेडल जीता। डीआईजी गांव की इस महिला से हारने पर इतने शर्मिंदा हुए कि उन्होंने पुरस्कार वितरण समारोह का इंतजार भी नहीं किया और वहां से गायब हो लिए।
अब तो प्रकाशी की बेटी सीमा तोमर भी इंटरनेशनल फेम की शूटर बन चुकी हैं। प्रकाशी के जीवन में सन् 2000 का वह दिन तो एक इत्तेफाक था, जब उन्होंने पहली बार सटीक निशाना लगाया था। सीमा तोमर ने शूटिंग सीखने के लिए जोहरी राइफल क्लब में दाखिला लिया। हालांकि सीमा शूटिंग सीखना चाहती थी लेकिन अकेले शूटिंग रेंज जाने में घबराती थीं। तब प्रकाशी ने उनका हौसला आफजाई किया। उसके साथ एकेडमी जाने लगीं। एकेडमी में सीमा को दिखाने के लिए प्रकाशी ने खुद ही बंदूक उठाई और निशाना लगा दिया, जिसे देखकर वहां मौजूद कोच फारूख पठान भी चौंक गए। यही वह मौका था जब कोच ने प्रकाशी के हुनर को पहचाना और उन्हें एकेडमी में प्रवेश लेने का सुझाव दिया। यह प्रकाशी के लिए एक नये युग की शुरुआत थी। चूंकि वह एक साधारण घरेलू महिला थीं, रोजाना प्रशिक्षण के लिए एकेडमी जाना उनके लिए आसान नहीं था। कोच से उन्हें मोहलत मिली कि हफ्ते में सिर्फ एक दिन एकेडमी आया करें। बाकी दिनों में घर पर ही अभ्यास करती रहें। जो लोग कभी प्रकाशी का मजाक उड़ाया करते थे, अब अपनी बेटियों को उनके पास प्रशिक्षण लेने भेजते हैं। वह चेन्नई की वेटेरन शूटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक भी जीत चुकी हैं।
कवि ने कहा है न कि 'कौन कहता है, आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो', ये पंक्तियां चंद्रो तोमर पर एकदम सही बैठती हैं। जेठानी चंद्रो तोमर भी उनकी हमराही हैं। जेठानी और देवरानी कई प्रतियोगिताओ में साथ-साथ भी भाग लेती रही हैं। चंद्रो को कुल लगभग बीस मेडल भी मिल चुके हैं। आज चंद्रो तोमर भले ही उम्र के 80वें दशक में हों, इनके कारनामे किसी को भी हैरत में डाल देते हैं। चंद्रो ने भी अपने हुनर से साबित कर दिया है कि कुछ नया कर गुजरने के लिए उम्र की कोई सीमा नही होती है। शूटिंग में आज की हैसियत में वह ऐसे ही नहीं पहुंच गईं। जिस दिन वह अपनी पौत्री शेफाली को जोहरी राइफल क्लब में लेकर गईं थीं, शेफाली बहुत डरी हुई थीं। उनका मनोबल बढ़ाने के लिए चंद्रो ने खुद राइफल उठा ली और ऐसे शूटिंग करने लगीं। जब राइफल क्लब के कोच ने दादी को शूटिंग करते देखा तो दंग रह गए। इसके बाद उन्होंने शूटर बनने का उन्हें प्रशिक्षण दिया।
चंद्रो कहती हैं कि निशानेबाजी से उनकी उम्र का कोई ताल्लुक नहीं है। अगर आप में हिम्मत है तो आप किसी भी उम्र में कुछ भी कर सकते हैं। उम्र के इस पड़ाव पर भी ये दोनों तोमर दादियां पूरे गांव के नौजवानों में राइफल शूटिंग की प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं। इतना नहीं, चंद्रो ने अपनी लगन और मेहनत से वर्ल्ड की सबसे बुजुर्ग शार्प शूटर होने का रिकॉर्ड भी बना लिया है। प्रकाशी दादी भी प्रतियोगिताओं में दो सौ से अधिक मेडल जीत चुकी हैं। उनके चार बेटे और बेटियां हैं। चंद्रो अपने आसपास के युवाओं के अलावा दूसरे प्रदेशों में भी प्रशिक्षण देने जाती रहती हैं। पटना और अमेठी के युवाओं को उन्होंने ट्रेनिंग दी है। उनमें से कई आज नेशनल स्पर्धाओं में खेल रहे हैं। प्रकाशी दादी कोयंबटूर में सिल्वर मेडल और चेन्नई में सिल्वर मेडल जीत चुकी हैं। वर्ष 2009 में सोनीपत में हुए चौधरी चरण सिंह मेमोरियल प्रतिभा सम्मान समारोह में उन्हें सोनिया गांधी ने सम्मानित किया था। मेरठ में उन्हें स्त्री शक्ति सम्मान मिला था।
प्रकाशी की बेटी सीमा तोमर इंटरनेशल शूटर हैं। वह विश्वकप में रजत पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला रही हैं। यह कारनामा उन्होंने वर्ष 2010 में विश्वकप में दिखाया था। सीमा तोमर वर्तमान में भारतीय सेना में हैं और प्रकाशी की पौत्री रूबी पंजाब पुलिस में इंस्पेक्टर हैं। सीमा शूटिंग चैंपियनशिप में इंडियन आर्मी को रिप्रेजेंट करती हैं। उन्होंने ब्रिटेन के डोरसेट में आयोजित आईएसएसएफ विश्वकप में रजत पदक जीता था। वह अब तक नेशनल, इंटरनेशनल स्तर पर कर्इ चैंपियनशिप में भाग ले चुकी हैं। वह अब तक एक स्वर्ण, एक रजत और 18 इंटरनेशनल मेडल जीत चुकी हैं। वह हर दिन चार से पांच घंटे प्रैक्टिस करती हैं। इस दौरान वह कम से कम दो सौ बार फायरिंग करती हैं।
वह कहती हैं कि अभ्यास के दौरान गर्मी के मौसम में लगातार गोलियां चलाने से बैरल अधिक गर्म हो जाता है, इसलिए ऐसे मौसम में वह अपनी छह लाख की गन से डेढ़ सौ से ज्यादा फायरिंग नहीं कर पाती हैं। उनकी गन से निकलने वाली हर गोली पचास रुपए की होती है। वह प्रायः हर दिन तीन-चार घंटे लगातार अभ्यास करती हैं। इस दौरान वह कसरत भी करती हैं। चंद्रो और प्रकाशी ने भले ही अपनी निशानेबाजी से देश-दुनिया को हैरत में डाला हो, उनकी घरेलू संस्कृति, वेशभूषा, भाषा में किसी तरह का बदलाव नहीं। वे आज भी गांव की मिट्टी से जुड़ी हैं। आसाधारण प्रतिभा होने के बावजूद उनकी जीवनचर्या साधारण रहती है। दोनों गांव में बैलगाड़ी चलाने के साथ घर का काम-काज भी करती हैं। दोनों देवरानी-जेठानी के बीच काफी हेलमेल रहता है।
यह भी पढ़ें: आईएएस मुग्धा सिन्हा से थरथर कांपें गुंडा, माफिया