गांधी जी के साथ आजादी की लड़ाई लड़ने वाले बिरदीचंद गोठी की कहानी उनके पोते की जुबानी
हमने अभी भी अपने स्वतंत्रता सेनानियों की यादें संजो कर रखी हैं। बैतूल के गोठी परिवार (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरदीचंद गोठी) ने आज भी उस पलंग को सुरक्षित रखा है जिसमें महात्मा गांधी ने विश्राम किया था।
जिस बड़े बगीचे के महात्मा गांधी ठहरे थे वह आम की खास किस्मों के लिए मशहूर था। आज वह बगीचा तो नहीं बचा लेकिन जिस घर में गांधी जी ठहरे थे वह आज भी उसी हालत में खड़ा हुआ है।
गोठी जी के पोते 'गौरव भूषण गोठी' इस मौके पर हमारे और आपके लिए अपने दादाजी के साथ की उन सभी यादों को हमारे साथ शेयर करने जा रहे हैं जिनसे शायद हम रूबरू नहीं हैं। पेश हैं गौरव की यादों का एक हिस्सा...
इस साल हम भारत की आजादी की 70वीं वर्षगांठ मनाने जा रहे हैं। 70 सालों में हमारे देश में सबकुछ पूरी तरह से बदल चुका है, लेकिन शायद अभी हमारा अतीत बिलकुल भी नहीं बदला है। हमने अभी भी अपने स्वतंत्रता सेनानियों की यादें संजो कर रखी हैं। मध्य प्रदेश के बैतूल के गोठी परिवार (स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बिरदीचंद गोठी) ने आज भी उस पलंग को सुरक्षित रखा है जिसमें महात्मा गांधी ने विश्राम किया था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गोठी ने पिछले साल ही अपना शतायु वर्ष मनाया है। जिस बड़े बगीचे के महात्मा गांधी ठहरे थे वह आम की खास किस्मों के लिए मशहूर था। आज वह बगीचा तो नहीं बचा लेकिन जिस घर में गांधी जी ठहरे थे वह आज भी उसी हालत में खड़ा हुआ है।
गांधी जी के साथ कई बड़े कार्यकर्ता भी आए थे वे भी इस बगीचे में रूके थे। गोठी ने बताया कि गांधी जी 1933 में हरिजन उद्धार कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बैतूल आए थे। गोठी जी के पोते गौरव भूषण गोठी इस मौके पर हमारे और आपके लिए अपने दादाजी के साथ की उऩ सभी यादों को हमारे साथ शेयर करने जा रहे हैं जिनसे शायद हम रूबरू नहीं हैं। पेश हैं गौरव की यादों का एक हिस्सा...
आज के इस दौड़ते भागते युग में, जहां जिन्दगी के मायने हर रोज बदल रहें हो, वहां एक आदर्श जीवन जीने की बात करना बड़ा ही काल्पनिक सा लगता है। अगर मैं आपको कहूं कि मैं ऐसे एक शख्स को जानता हूं जिसका जीवन अपने आप में एक आदर्श है और वो शख्स हमारे बीच में मौजूद भी है, तो शायद आप विश्वास नहीं करेंगे, पर ये सच है। मेरे दादाजी श्री बिरदीचंद जी गोठी, एक मिसाल है, उस आदर्श जीवन की जिसे हम जीना चाहते है। मेरे दादाजी हमेशा से मेरे प्रेरणा स्त्रोत रहे है और इस लेख के माध्यम से मैं चाहता हूँ की वह आप सब के भी प्रेरणा स्त्रोत बनें।
आपने गांधीजी के बताये रास्ते पर चलकर सन 1930 में बैतूल जिले के आदिवासियों को एकजुट कर, जंगल सत्याग्रह की शुरुआत की। आपने सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया और इस दौरान आपको बैतूल और नागपुर जेल भी जाना पड़ा।
मेरे दादाजी 2 नवम्बर 2016 को सौ वर्ष के हो गए हैं। आज के युग में जिन्दगी का शतक लगाना अपने आप में एक प्रेरणा का विषय है। मेरे दादाजी बैतूल (मध्यप्रदेश) में रहते हैं और 200 सदस्यों से भी अधिक बड़े गोठी परिवार के मुखिया है। बैतूल में सभी उन्हें 'बाबाजी' कहना पसंद करते हैं। सादा जीवन उच्च विचार का वह एक जीता जागता उदहारण हैं। उनके जीवन के कुछ प्रसंग, जिनका विस्तृत विवरण मैं यहां पेश करना चाहता हूं, जो मुझे आज भी प्रेरणा देते है।
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में आपका योगदान हम सब के लिए आज भी प्रासंगिक है। आपने गांधीजी के बताये रास्ते पर चलकर सन १९३० में बैतूल जिले के आदिवासियों को एकजुट कर, जंगल सत्याग्रह की शुरुआत की। आपने सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी हिस्सा लिया और इस दौरान आपको बैतूल और नागपुर जेल भी जाना पड़ा। स्वंतंत्रता संग्राम में योगदान के फलस्वरूप, मध्य प्रदेश सरकार और भारत सरकार की ओर से आपको मिलने वाली सुविधाओं को आपने ना लेना ही उचित समझ और इस तरह देश सेवा का एक अतुलनीय उदाहरण आपने पेश किया है।
मैंने बचपन से आपकी दिनचर्या को देखा है। सुबह जल्दी उठना, संतुलित आहार, नियमित वर्जिश एवं पठन- पाठन, और प्रसन्नचित्त मन से अपने हर काम को अंजाम देना। नियम में न बंधने की आज़ादी में भी आपने स्वयं के लिए कड़े नियम बनाये हैं और उसका अनुशासन के साथ आज भी पालन कर रहे हैं और वो भी अपने कृषि कारोबार, परिवार, रिश्तेदारियों और आपातकालीन परिस्तिथियों को निभाते हुए।
प्रबंधन और नेटवर्किंग में आपने जो नियम बनाये है, वो पहले से ज्यादा आज प्रासंगिक है। बडो से, छोटों से, घर के नौकरों से, खेत के नौकरों से कैसे बात की जाए और अपने आप को उनकी जगह पर रख कर उनकी समस्या को कैसे समझा जाए? रिश्तों में ईमानदारी का क्या महत्व है फिर भले ही वो कोई भी रिश्ता हो? कृषि और व्यापार में वित्तीय प्रबंधन कैसे किया जाए? यह सब आप किसी भी MBA से ज्यादा बेहतर जानते है।
आखिरी और सबसे महत्वपूर्ण बात, हम जो भी पढ़ते है और जो भी सीखते है उसे आचरण में लाना जरूरी है और आपकी यही बात मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। मैं आपसे जब भी मिलता हूँ तो आपके पास मेरे लिए पहले से भी ज्यादा प्रश्न रहते है जबकि मेरे पास आपको बताने के लिए उतने उत्तर नहीं होते। नई सीख को अपने अनुशासन के साथ जिस तरह आपने अपने आचरण में लाया है उसे देखते हुए मैं तो यही कहूँगा की आप हम सब से ज्यादा युवा हैं।
कहने और लिखने को बहुत कुछ है पर मैं अब यहाँ रुकना चाहूंगा। छोटे मुँह बड़ी बात ज्यादा देर तक अच्छी नहीं लगती। अगर आप मेरे दादाजी के बारे में और जानना चाहते है तो आप बैतूल आयें, मेरे दादाजी से जरूर मिले, आप उनसे प्रभावित हुए बिना ना रह पाएंगे।
-गौरव भूषण गोठी
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