भारत में जन्में व्यक्ति ने सोचा था एटीएम का आइडिया, 50 साल हुए पूरे
50 साल का हुआ दुनिया का पहला एटीएम
पैसों की ज़रूरत पड़ने पर जिस चीज़ की सबसे पहले ज़रूरत महसूस होती है वो है एटीएम, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एटीएम की शुरुआत कैसे हुई थी, इसका आइडिया कैसे आया था? 1967 में लंदन में जॉन शेफर्ड बैरन और जेम्स गुडफेलो ने शुरुआत की थी एटीएम की।
1969 में अमेरिका के केमिकल बैंक ने न्यूयॉर्क के रॉकविल सेंटर में पहला एटीएम लगाया था। एटीएम (ATM) का पूरा नाम होता है- ऑटोमेटेड टेलर मशीन। टेलर शब्द का इस्तेमाल कैशियर या क्लर्क के लिए होता था।
एटीएम के आ जाने से बैंकिंग क्षेत्र में क्रांति आ गई। हालांकि उस वक्त ये एटीएम ज्यादा सुलभ नहीं थे और इनसे पैसे निकालने में भी ज्यादा बड़ा प्रोसेस होता था। लेकिन 1980 आते-आते अमेरिका में एटीएम मशीनें काफी पॉप्युलर हो गईं और धीरे-धीरे ये पैसे निकालने के अलावा चेक डिपॉजिट और कई बैंकिंग काम के लिए उपयोग में लाई जाने लगीं।
आज किसी को भी कैश की जरूरत पड़ती है तो वह बैंक जाने की बजाय एटीएम का रुख करता है और कुछ ही पल में अपनी जरूरत के मुताबिक कैश निकाल लेता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एटीएम की शुरुआत कैसे हुई थी, इसका आइडिया कैसे आया था? 1967 में लंदन में जॉन शेफर्ड बैरन और जेम्स गुडफेलो ने एटीएम की शुरुआत की थी। वहीं 1969 में अमेरिका के केमिकल बैंक ने न्यूयॉर्क के रॉकविल सेंटर में पहला एटीएम लगाया था। एटीएम (ATM) का पूरा नाम होता है- ऑटोमेटेड टेलर मशीन। पहले टेलर शब्द का इस्तेमाल कैशियर या क्लर्क के लिए होता था। एटीएम के आ जाने से बैंकिंग क्षेत्र में क्रांति आ गई। हालांकि उस वक्त ये एटीएम ज्यादा सुलभ नहीं थे और इनसे पैसे निकालने में भी ज्यादा बड़ा प्रोसेस होता था। लेकिन 1980 आते-आते अमेरिका में एटीएम मशीनें काफी पॉप्युलर हो गईं और धीरे-धीरे ये पैसे निकालने के अलावा चेक डिपॉजिट और कई बैंकिंग काम के लिए उपयोग में लाई जाने लगीं।
एटीएम की खोज के लिए सारा श्रेय दो व्यक्तियों को दिया जाता है, पहले डॉन वेजल और दूसरे जॉन बैरन। 1950 और 60 के दशक में गैस स्टेशन, ऑटोमेटिक टिकटिंग और सुपरमार्केट में एटीएम जैसी मशीनों का प्रचलन शुरू हो रहा था। एटीएम का आइडिया वहीं से लिया गया। कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक जापान ने 1960 में ही एटीएम जैसी एक मशीन बना ली थी, लेकिन उसके ज्यादा प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। जापान द्वारा विकसित की गई मशीन आज के एटीएम के जैसे नहीं थी। बल्कि उसे एक कंप्यूटर लोन मशीन कहा जा सकता है, क्योंकि यह कार्ड के इस्तेमाल से लोन देती थी। हालांकि उस वक्त एटीम में कार्ड की जगह टोकन का इस्तेमाल होता था और ये टोकन बैंक के द्वारा दिए जाते थे। एटीम की मशीनें भी सिर्फ बैंक में होती थीं। बैंक उस खास टोकन को एक्टिवेट करते थे और टोकन में फाइल की गई राशि के बराबर ही पैसे निकाले जा सकते थे।
जॉन बैरन ब्रिटिशकालीन भारत के शिलॉन्ग में पैदा हुए थे। उनका जन्म 23 जून 1925 को हुआ था। उस वक्त भारत में अंग्रेजों का राज हुआ करता था और उनके पिता इंजीनियर थे। वर्तमान में एटीएम में 4 अंकों के जिस पिन का इस्तेमाल हम करते हैं उसके अविष्कार का श्रेय भी जॉन बैरन को ही जाता है।
बैरन ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि एक बार उन्हें पैसों की सख्त जरूरत हुई लेकिन बैंक में लंबी लाइन की वजह से वे पैसे नहीं निकाल पाए थे। उस वक्त चॉकलेट निकालने के लिए कुछ मशीनें होती थीं जिनमें पैसे डालकर चॉकलेट निकलती थीं। उसी को देखकर उन्हें एटीएम बनाने का विचार आया।
लंदन के जिस एन्फील्ड में बार्क्लेज बैंक में पहला एटीएम लगाया गया था उसे 50वें जन्मदिन के मौके पर सोने का एटीएम बना दिया गया है। उस दौर में इस मशीन में एक खास चेक का इस्तेमाल किया जाता था। शुरुआती समय से लेकर अब तक एटीएम मशीन में तरह तरह के बदलाव हो चुके है और समय के साथ साथ इसके सुरक्षा कारणों और उपायों पर भी काफी काम किया गया है इसलिए आज का एटीएम काफी बदल चुका है।
शुरुआत में जहां सिर्फ उसी बैंक के एटीएम के पैसे निकाले जा सकते थे जिसमें खाता होता था, लेकिन आज वीजा और मास्टरकार्ड जैसे सिस्टम आ जाने के बाद देश विदेश कहीं से भी पैसे निकाले जा सकते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार को एटीएम का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। अब इंटरनेट बैंकिंग और कैश वॉलिट की वजह से एटीम का भार कुछ कम जरूर हुआ है लेकिन उसकी उपयोगिता जस की तस बरकरार है।