#AcidAttack: जख्म भर गए मगर दर्द बाकी है: शादी से इनकार करने पर मिला था एसिड अटैक
नूर पर ज्वालामुखी : दो
"एसिड अटैक से पीड़ित स्त्री का अंतहीन, भयानकतम दुख कितने तरह के सवालों से जूझने को मजबूर हो जाता है कि 'क्या अब अपना बनाओगे मुझे? एसिड से कब के गल चुके मेरे लबों, फ़फ़लों से लदे मेरे चेहरे को क्या स्पर्श करना चाहोगे? तेज़ाब की मार से अंदर धंस चुकी मेरी इन आँखों में अपनी आँखें डाल कर मुझे देखना चाहोगे।"
हमारे देश में जब किसी औरत पर एसिड अटैक किया जाता है तो एक सवाल मन में कौंध जाता है कि क्या भारत में देवियों की पूजा अपने फायदे के लिए की जाती है? और तब ऐसे सवालों के साथ मन में गूंजने लगते हैं मयंक बोकोलिया के ये शब्द, जिसमें तेज़ाबी हमले से पीड़ित एक लड़की कुछ इस तरह हमलावर से पूछती है - 'चलो, फ़ेंक दिया सो फ़ेंक दिया, अब क़ुसूर भी बता दो मेरा, तुम्हारा इज़हार था, मेरा इंकार था, बस इतनी सी बात पर, फूंक दिया चेहरा, गलती शायद मेरी थी, प्यार तुम्हारा देख न सकी, इतना पाक प्यार था, शायद समझ न सकी, अब अपनी गलती मानती हूँ, क्या अब तुम अपनाओगे मुझको? क्या अब अपना बनाओगे मुझको क्या लबों से चूमोगे मेरे होंठों को, जो अब दिखाई नहीं देते, क्या सहलाओगे अब मेरे चेहरे को? जिन पर अब फ़फ़ोले हैं, मेरी आँखों में देखोगे आँखें डाल कर, जो अब अंदर धंस चुकी हैं। जिनकी पलकें सारी जल चुकी हैं, चलाओगे अपनी उंगलिया मेरे गालों पर? जिन पर पड़े छालों से अब पानी निकलता है, हाँ शायद तुम कर लोगे….तुम्हारा प्यार तो सच्चा है...है न?, अच्छा एक बात तो बताओ, ये ख्याल “तेजाब” का कहाँ से आया? किसी ने बताया या ज़हन में तुम्हारे खुद ही आया। अब कैसा महसूस करते हो तुम मुझे जलाकर? गौरवान्वित या पहले से ज्यादा और मर्दाना? तुम्हें पता है, सिर्फ मेरा चेहरा जला है, जिस्म अभी पूरा बचा है, एक सलाह दूँ? एक तेजाब का तालाब बनवाओ, फिर उसमे मुझसे छलांग लगवाओ, जब पूरी तरह जल जाऊंगी मैं, फिर प्यार तुम्हारा गहरा होगा और सच्चा होगा। एक दुआ है…….अगले जनम मैं तुम्हारी बेटी बनूँ और तुम जैसा सच्चा आशिक़ ..फिर मिले!'
इन शब्दों में जैसे पूरी आधी आबादी का दर्द सुलग उठता है। साफ है कि तेज़ाब पीड़ित किसी स्त्री का दर्द वही जान सकती है, दूसरों के लिए तो वह एक हादसा भर है। ऐसी किसी एक वारदात से पूरी मानवता कराह उठती है।
महिलाओं को समाज में जिस बर्ताव और जिस हिंसा का सामना करना पड़ता है, एसिड अटैक तो उसका एक दृष्टांत भर है। एक तरफ देवियों की पूजा, दूसरी तरफ घरेलू हिंसा, एसिड अटैक!एसिड हमले से पीड़ित कुछ औरतों ने स्वाबलंबी और संघर्षशील बनने का जो विकल्प चुना है, वह पूरी दुनिया के लिए मिसाल हो सकती है। सोचिए कि गैर घर का कोई प्रेमी, यहां तक कि कई घटनाओं में पिता अथवा भाई ही अपनी बेटी-बहन पर तेज़ाब उड़ेल चुके हैं, इसके बावजूद आज कई लड़कियां इस जघन्यता पूर्ण हैवानियत के खिलाफ अपना ही भविष्य नहीं सुधार रही है, ऐसी घटनाओं की पीड़ित औरतों के लिए आंदोलन भी कर रही हैं।
ऐसी ही हैं मोहाली (हरियाणा) के गांव मरौली कलन की इंदरजीत कौर, जिन्होंने जीरकपुर के मंजीत सिंह का शादी का रिश्ता ठुकरा दिया तो उसने घर में घुसकर उन पर एसिड अटैक कर दिया। आंखों की रोशनी चली गई। गले, चेहरे और शरीर के कई हिस्सों में गंभीर जख्म हो गए। इंदरजीत बताती हैं कि 'उस घटना के बाद बस मां सहारा बनी, बाकी किसी ने उनका साथ नहीं दिया। यहां तक कि सगे भाई ने भी किनारा कर लिया। इस दौरान उनकी पढ़ाई छूट गई। वह लंबे समय तक हर वक्त बस रोती रहतीं। गांव-रिश्तेदार-समाज के लोग उसे परिवार पर बोझ मान बैठे। उनके तानों से तंग आकर उन्होंने कुछ करने का संकल्प लिया। देहरादून के नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर विजुअली हैंडीकैप्ड में ऑडियो माध्यम से पढ़ाई की। दो साल पहले ग्रैजुएट हो गईं। बैंकिंग सर्विस के लिए दो बार एग्जाम में असफल होने के बाद जून 2018 में तीसरे प्रयास में उन्हें सफलता मिली। अब उनकी दिल्ली में कैनरा बैंक में पोस्टिंग हो चुकी है।'
आज इंदरजीत की मां बेटी के हौसलों की कायल हो चुकी है। इंदरजीत ने हिम्मत नहीं हारी। एसिड अटैक से पहले इंदरजीत बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थीं, पर उस हादसे ने उनकी आमदनी का एकमात्र जरिया भी छीन लिया था। गरीब परिवार की होने की वजह से वह प्लास्टिक सर्जरी जैसे महंगे इलाज करवाने में असमर्थ रहीं। ऐसे में उन्होंने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से अपने इलाज और पुनर्वास के लिए आर्थिक मदद की गुहार लगाई। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि वह उनका मुफ्त तो इलाज करवाए ही, साथ ही आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराए। तीस साल बाद उनकी जिंदगी का आर्थिक पक्ष तो संभल गया है, मन पर बिछे जख्म आज भी उन्हें झकझोरते रहते हैं। यह किसी एक अकेले इंदरजीत की ही व्यथा-कथा नहीं।
बांग्लादेश की फरीदा के पति को ड्रग्स और जुए की इतनी बुरी लत थी कि उसके लिए अपना घर तक बेच दिया। तंग आकर जब फरीदा ने उसे छोड़ने की धमकी दी तो उसने सोती हुई फरीदा पर एसिड डाल कर उसे कमरे में बंद कर दिया। उसके दर्द से बिलबिला कर चीखने से पड़ोसियों ने दरवाजा तोड़कर फरीदा को बाहर निकाला। हमले के समय फरीदा की उम्र केवल 24 साल थी। तबसे, अब तक वह 17 बार सर्जरी करवा चुकी हैं। फरीदा की मां भी उनके जख्मों की नियमित देखभाल करती हैं। अब फरीदा अपनी बहन के साथ रहती हैं। उनका अपना कोई घर नहीं।
एक अन्य एसिड अटैक से पीड़ित फ्लाविया, जिन पर कुछ साल पहले उनके घर के ही ठीक सामने एक अजनबी ने एसिड फेंक दिया था, वह मुंह छिपाकर जिंदगी बसर करने की बजाय हर हफ्ते कम से कम एक बार डांस करने जरूर जाती हैं। वह लोकप्रिय डांसर बन चुकी हैं। इसी तरह पाकिस्तान की नुसरत पर दो बार एसिड हमला हो चुका है। पहले पति ने और फिर परिवार के एक और शख्स ने उन पर एसिड फेंक दिया। किस्मत से वह बच गईं। आज वह अपने जैसी दूसरी औरतों से मिल कर एक-दूसरे की तकलीफें साझा करती हैं। एसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन की बैठकों में नियमित रूप से जाती हैं।
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