कर्नल बनी पूर्व सीएम की बेटी अब करेगी देश की सेवा
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, सेना प्रमुख बिपिन रावत, रॉ प्रमुख अनिल धस्माना, डीजीएमओ राजेंद्र सिंह, कोस्ट गार्ड प्रमुख अनिल भट्ट उत्तराखंड के ही हैं। यहां के एक पूर्व मुख्यमंत्री भी थल सेनाध्यक्ष रह चुके हैं। अब दूसरे पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी श्रेयसी एमबीबीएस करने के बावजूद कर्नल बन गई हैं।
पिछले दिनों लखनऊ में आयोजित सेना की पासिंग आउट परेड में श्रेयसी के समक्ष स्वयं डॉ. निशंक भी मौजूद रहे। दून के स्कॉलर्स होम सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं के बाद श्रेयशी निशंक ने हिमालयन मेडिकल कॉलेज जौलीग्रांट से एमबीबीएस की पढ़ाई की है।
देश में उत्तराखंड अकेला ऐसा राज्य है, जहां के लोग बड़ी संख्या में सेना में हैं। और तो और यहां के एक प्रमुख इलाके गढ़वाल के नाम पर एक सैन्य दल 'गढ़वाल रेजीमेंट' भी है। इस समय देश की रक्षा एजेंसियों में कई टॉप पदों पर उत्तराखंड के लोग नियुक्त हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल, सेना प्रमुख बिपिन रावत, रॉ प्रमुख अनिल धस्माना, डीजीएमओ राजेंद्र सिंह, कोस्ट गार्ड प्रमुख अनिल भट्ट आदि उत्तराखंड के ही रहने वाले हैं। डोभाल पौड़ी गढ़वाल से हैं तो राजेंद्र सिंह चकराता के और अनिल भट्ट टिहरी गढ़वाल के। इस प्रदेश के एक अन्य पूर्व मुख्यमंत्री बी.सी. खंडूरी सर्वोच्च सैन्य पद पर रह चुके हैं। अब इस गौरवशाली कड़ी में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में हरिद्वार के भाजपा सांसद रमेश पोखरियाल की बेटी श्रेयसी निशंक का भी नाम जुड़ गया है।
देश की सुरक्षा से जुड़े विभागों में एक-साथ इतने टॉप पदों पर उत्तराखंड के लोगों की नियुक्ति प्रदेश के लिए गर्व की बात है। दरअसल, उत्तराखंड में सेना और रक्षा विभाग से जुड़ने की गौरवशाली परंपरा रही है। यहां लोगों में सेना और रक्षा एजेंसियों में शामिल होने की ईमानदार लगन है, ताकि वे देश की सेवा कर सकें। उनके स्वभाव और शारीरिक मजबूती भी उन्हें महत्वपूर्ण बनाती है। सेना प्रमुख नियुक्त किए गए बिपिन रावत बेहद अनुशासित और मेहनती छात्र रहे हैं।
वैसे तो अक्सर देखा जाता है कि नेताओं के परिजन, खासतौर से बेटे और बेटियां राजनीति में अपना भविष्य तलाशते हैं। शायद ही कोई दल हो, जहां किसी के परिजन, बेटा या बेटी राजनीति में न हों लेकिन उत्तराखंड में भारतीय जनता पार्टी के नेता और राज्य के पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक की बेटी श्रेयसी ने कुछ अलग कर दिखाया है। उनकी तैनाती रुड़की के आर्मी हॉस्पिटल में की गई है, जहां वो घायल सैनिकों का इलाज करेंगी।
अपने ट्विटर अकाउंट पर पोखरियाल लिखते हैं- 'उत्तराखण्ड वीर भूमि रही है, जहां हर परिवार से औसतन एक व्यक्ति सेना में भर्ती होकर देश की रक्षा करता है। आज का दिन मेरे लिए अत्यंत गौरवशाली है क्योंकि मेरी बेटी श्रेयशी निशंक ने विधिवत सेना में आर्मी मेडिकल सर्विसेज के एमओबीसी-224 कोर्स को सफलता पूर्वक पूरा कर लिया है। वह कर्नल बन गई हैं। खुशी है कि मेरी बेटी ने उत्तराखण्ड की उच्च परंपरा को जीवित रखने में योगदान दिया है। मैं प्रदेश और देश की सभी बेटियों को आह्वान करना चाहता हूं कि उन्हें सेना को बतौर कैरियर चुनकर उत्तराखण्ड और देश को गौरवान्वित करना चाहिए।'
पिछले दिनों लखनऊ में आयोजित सेना की पासिंग आउट परेड में श्रेयसी के समक्ष स्वयं डॉ. निशंक भी मौजूद रहे। दून के स्कॉलर्स होम सीनियर सेकेंडरी स्कूल से 12वीं के बाद श्रेयशी निशंक ने हिमालयन मेडिकल कॉलेज जौलीग्रांट से एमबीबीएस की पढ़ाई की है। श्रेयशी का पहले से ही सेना में जाकर देश सेवा करने का सपना था। इसलिए सेना के मेडिकल कोर को ज्वॉइन किया। श्रेयशी की बड़ी बहन एवं विश्व विख्यात नृत्यांगना अरुषि निशंक कहती हैं कि उत्तराखंड में पहले से ही युवाओं में सेना के प्रति उत्साह रहा है। यहां ‘हर घर फौजी’ की कहावत को उनकी छोटी बहन श्रेयशी ने भी चरितार्थ किया है। पूरे परिवार को श्रेयशी पर गर्व है।
इसी तरह अभी इसी माह उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले के सौरभ ने सेना में लेफ्टिनेंट बनकर अपने राज्य का नाम रोशन किया है। सेनाध्यक्ष बिपिन रावत कहते हैं कि भारतीय सेना में उत्तराखंड के सैनिकों का अत्यधिक योगदान है क्योंकि उत्तराखंड के लोगों में देशप्रेम का जबरदस्त जज्बा है, जिसके चलते यहां के युवा सबसे ज्यादा भारतीय सेना की ओर रुख करते हैं। गौरतलब है कि सीमा पर होने वाली सैनिकों की शहादत में भी उत्तराखंड सबसे आगे है। कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के सर्वाधिक रणबांकुरों ने दुश्मन को देश की सरहद से बाहर खदेड़ते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर किया। राज्य के 75 रणबांकुरें कारगिल युद्ध में शहीद हुए।
दिल मांगे मोर का नारा देने वाले परम वीर चक्र से सम्मानित कैप्टन विक्रम बत्तरा, कारगिल में परमवीर चक्र से सम्मानित रेजीमेंट के दूसरे सैनिक संजय कुमार उत्तराखंड के ही गौरव हैं। उल्लेखनीय है कि वीरों की भूमि उत्तराखंड बिपिन रावत से पहले भी देश को कई थल सेनाध्यक्ष दे चुकी है। 1954 से 1995 तक भारतीय सेना के जनरल उत्तराखंड के ही रहे हैं। मूल रूप से अल्मोड़ा निवासी एडमिरल डीके जोशी ने 21वें नौ सेना प्रमुख के रूप में अगस्त 2012 को कमान संभाली थी। करीब दो साल तक देश को सेवा देने के बाद उन्होंने इस पद से स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया था।
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