दो बार दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे झारखंड के ये फाउंडर्स, अब अपने डेयरी ब्रांड से कमाते हैं 120 करोड़
1998 में भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश बना था। इस उपलब्धि को हासिल करने के पीछे अमूल के फाउंडर वर्गीज कुरियन का एक शानदार आइडिया 'ऑपरेशन फ्लड' था, जिसने डेयरी इंडस्ट्री को देश की सबसे बड़ी आत्म-निर्भर इंडस्ट्री और ग्रामीण रोजगार मुहैया करानी वाली इंडस्ट्री में बदल दिया।
कुरियन को श्वेत क्रांति आंदोलन के जनक के रूप में जाना जाता है, जिसमें ऑपरेशन फ्लड और डेयरी इंडस्ट्री से जुड़ी दूसरी पहलें भी शामिल हैं। इस आंदोलन ने देश के प्रत्येक परिवार के लिए रोजाना दुग्ध का सेवन करना संभव बनाया। कुरियन का 2012 में निधन हो गया। हालांकि उनके विचार अभी भी कई डेयरी कंपनियों के सहारे जिंदा हैं, जो अमूल मॉडल से प्रभावित होकर इस बिजनेस में आए हैं।
झारखंड के रांची में स्थित ओसम डेयरी एक ऐसा ही बिजनेस है। इस कंपनी को चार दोस्तों ने मिलकर 2012 में शुरू किया था, जो कॉलेज के दिनों से ही एक दूसरे को जानते थे। ओसम डेयरी के सीईओ और प्रोक्योरमेंट डायरेक्टर अभिनव शाह (37) ने बताया,
'हम सभी संस्थापकों ने बिजनेस को शुरू करने के लिए 2 करोड़ रुपये की अपनी व्यक्तिगत पूंजी निवेश की। हम कुरियन की किसानों को ग्राहकों से जोड़ने के मॉडल से प्रभावित थे।'
ऐसे में ओसम का उद्देश्य झारखंड और बिहार के किसानों से सीधे दूध खरीदकर उसे चिल और प्रॉसेस करने के बाद रिटेलर्स को बेचना है। हालांकि बिजनेस शुरू होने के बाद दो दोस्त इसे छोड़कर चले गए और कंपनी लगभग दो बार दिवालिया हो चुकी है। इसके बावजूद कंपनी ने वापसी की और आज यह झारखंड के सबसे तेजी से उभरते प्राइवेट डेयरी कंपनियों में से एक है।
कंपनी ने बताया कि आज ओसम डेयरी रोजाना करीब 1 लाख लीटर दूध बेचती है और पिछले साल इसने 120 करोड़ रुपये की आमदनी दर्ज की थी।
ओसम डेयरी मॉडल
कलेक्शन प्वाइंट
अमूल (आनंद मिल्क यूनियन लिमिटेड) और कुरियन की रणनीति डेयरी सहकारी समितियों पर टिकी हैं, जो यह सुनिश्तित करती हैं कि किसानों के साथ उचित व्यवहार किया जाए और उन्हें दूध के बदले अच्छी कीमत दी जाए। इसके अलावा न ही अमूल और न ही किसी दूसरे बिचैलिये के पास गायों का मालिकाना हक होगा। ओसम एक डेयरी सहकारी समित नहीं है, लेकिन इसने किसानों को भुगतान देने के मामलें में मोटे तौर पर इसी मॉडल को अपनाया है।
ओसम ने दूध लेने के लिए अमूल की तर्ज पर ही गांवों में कलेक्शन प्वाइंट बनाए हैं। यहां किसान अपने गायों से निकाले हुए दूध को लेकर जाते हैं। इसके बदले में उन्हें तत्काल भुगतान दिया जाता है, जो आमतौर पर बाजार में स्थानीय व्यापारियों की ओर से ऑफर की जा रही कीमत से ज्यादा होता है। ओसम के कलेक्शन प्वाइंट से भी मिल रही बेहतर कीमत किसानों को मार्केट में जाने से रोकती है, जहां उन्हें व्यापारियों की ओर से कम कीमत और शोषण का भी सामना करना पड़ सकता है।
अगर एक ग्राहक गांव में जाकर सीधे किसानों से दूध खरीदता है तो आमतौर पर उसके पास यह जांचने का कोई तरीका नहीं होता है कि यह दूध बिल्कुल शुद्ध है या इसमें पानी मिलाया गया है। वहीं अगर एक कंज्यूमर दुग्ध व्यापारी या रिटेलर से खरीदता है तो भी वह यह पक्का नहीं कर सकता कि दूध में मिलावट है या नहीं। साथ ही उसे इसकी भी जानकारी नहीं होती है कि इस दूध के बदले में किसान को उचित भुगतान किया गया है या नहीं। ऐसे में ओसम को किसानों की ओर से दूध बेचना ग्राहकों के लिए फायदेमेंद है।
लाखों लोग आज भी सीधे किसानों या दुग्ध व्यापारियों से दूध खरीदते हैं। 2018 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में बेचे जाने वाले 68.7 पर्सेंट दूध और डेयरी प्रोडक्ट्स, फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) के निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है। अभिनव ने बताया, 'भुगतान के मामले में भी अमूल मॉडल से थोड़ा अलग हैं। हमने टेक्नोलॉजी में निवेश किया है। हम किसानों को बेंगलुरु की एक आईओटी कंपनी द्वारा बनाया गया कार्ड देते हैं।'
उन्होंने बताया,
'किसान जब भी कलेक्शन प्वाइंट पर दूध लाते हैं, वह अपने कार्ड को स्वाइप करते हैं। स्वाइप करते ही सभी जानकारी एक क्लाउड आधारित सिस्टम के पास जाती है, जहां डेटा को रिकॉर्ड किया जाता है। इस तरह से हम 100 से ज्यादा गांवों में किसानों को सीधे और डिजिटल भुगतान करते हैं।' ओसम का दावा है कि मिल्क कलेक्शन मॉडल के जरिए उसकी 500 से ज्यादा गांवों में उपस्थिति है।
अभिनव ने बताया,
'ग्रामीण स्तर पर हम प्रशिक्षण कार्यक्रम भी चलाते हैं, जहां किसानों को दूध की गुणवत्ता और मात्रा में सुधार करने के तरीकों के बारे में जानकारी दी जाती है। इसके अलावा ओसम पशु आहार, निर्जलीकरण, टीका और बीमा जैसी सेवाएं भी मुहैया कराती है।'
प्रॉसेसिंग और रिटेल
ओसम कलेक्शन प्वाइंट/सेंटर्स से दूध को चिलिंग प्लांटों को भेजती है। प्रत्येक प्लांट की क्षमता 25,000 लीटर से ज्यादा की है। चिलिंग के बाद इंस्युलेटेड टैंकर्स दूध को कंपनी के प्रॉसेसिंग प्लांट में लेकर जाते हैं, जो झारखंड के पत्रातु में स्थित है। प्रॉसेसिंग के जरिए एक छोटी समयाविधि तक दूध की ताजगी बरकरार रखी जाती है।
कंपनी का दावा है कि पत्रातु प्लांट पूरी तरह से ऑटोमेटिक है, जहां किसी भी स्तर पर मानवीय हस्तक्षेप की जरूरत नहीं होती है। कंपनी के पास झारखंड के सरायकेला में भी ऐसा ही एक प्लांट है।कंपनी ने बताया कि प्लांट में पाश्चराइजेशन, प्रॉसेसिंग और पैकेजिंग का काम सर्टिफाइट डेयरी टेक्निशियन की देखरेख में होता है और इनमें किसी तरह के प्रिजरवेटिव्स या केमिकल्स नहीं मिलाए जाते हैं। कंपनी के को-फाउंडर और सेल्स एंड मार्केटिंग डायरेक्टर हर्ष ठक्कर ( 42) ने बताया,
'पैकेजिंग का पूरा होने के बाद हम स्टैंडर्ड एफएमसीजी मॉडल को फॉलो करते हैं, जहां डिस्ट्रीब्यूटर्स के साथ मिलकर काम करते हैं। इस तरह हम झारखंड के 24 और बिहार के 6 जिलों के 14,000 से ज्यादा रिटेल आउटलेट्स में अपने प्रॉडक्ट को बेचते हैं।'
एक रिटेल स्टोर पर ओसम डेयरी के आधे लीटर दूध की कीमत 21 रुपये है। हर्ष ने बताया कि बिहार और झारखंड में दूध की आमतौर पर आने वाली लागत के आधार पर कीमतों को तय किया गया है। हर्ष ने बताया,
'फिलहाल हमारे पास झारखंड में 15 पर्सेंट मार्केट शेयर है, जबकि सुधा मिल्क पास करीब 80 पर्सेंट मार्केट शेयर है। हाल ही में अमूल ने भी झारखंड में अपने प्रॉडक्ट बेचना शुरू किया है। हालांकि हम मजबूती से डटे हुए हैं और हमने अमूल के हाथों मार्केट शेयर नहीं खोया है। इसकी जगह हमने सुधा के कुछ मार्केट शेयर को हासिल करने में सफलता पाई है। हाल ही में आईटीसी ने अपने आशीर्वाद मिल्क ब्रांड के जरिए बिहार में एंट्री की है।'
मार्केट में बने रहने के लिए ओसम परिवार के सभी सदस्यों पर निशाना साध रहा है। खासतौर से माताओं पर क्योंकि घरेलू या किचन से जुड़े सामानों पर आमतौर परिवार में इनकी राय ही अंतिम होती है। हर्ष ने बताया,
'माताओं को ध्यान में रखकर ओसम एक अभियान भी चला रहा है, जहां दूध की शुद्धता पर जोर दिया जा रहा है और इसे मां के प्यार से जोड़कर दिखाया जा रहा है। हम बेवसाइट्स, सोशल माीडिया और एसएमएस समेत सभी मार्केटिंग और डिजिटल चैनलों पर अपने ब्रांड को मजबूत कर रहे हैं।'
आगे की राह
दूध के जरिए इंडस्ट्री में पैर जमाने के बाद ओसम डेयरी ने अब दही, पनीर, लस्सी और पेड़ा जैसे वैल्यू-ऐडेड डेयरी प्रोडक्ट्स को बनाना शुरू किया है। अगले कुछ सालों में ओसम डेयरी प्लांट्स को लगाने या खरीदने की तैयारी में है, जिसकी फंडिंग के लिए इसने वेंचर कैपटलिस्ट्स से संपर्क करना शुरू कर दिया है। कंपनी ने हाल ही में फंडिंग के सीरिज सी राउंड को पूरा किया है। कंपनी इन पैसों से बिहार में आक्रामक रूप से अपनी उपस्थिति बढ़ाने और राज्य में एक प्रॉसेसिंग प्लांट लगाने की तैयारी कर रही है। कंपनी फ्लेवर्ड मिल्क प्रोडक्ट्स और भारतीय मिठाईयों को भी बनाने की तैयारी कर रही है।
हालांकि हर्ष और अभिनव दोनों तेजी से विस्तार करने के दुष्परिणा को लेकर अभी भी सावधान हैं। अभिनव ने बताया,
'जब हम बिजनेस में नए थे तब हमने काफी तेजी से विस्तार किया था और लगभग दो बार दिवालिया हो गए थे। हमारे वित्तीय आकलन गलत थे और हमने बिल्कुल सही समय पर पैसे जुटाकर कंपनी को बचाया था।'
कंपनी के सामने एक और चुनौती गायों की सेहत को बनाए रखने की है। अभिनव ने बताया कि एक बार कंपनी के एक फार्म में 40 गायों में से 26 की बीमारी से मौत हो गई थी। उन्होंने बताया,
'गायों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया गया था और वे वहां के मुताबिक अपने को ढाल नहीं पाई थीं। इसके चलते वह बीमार हो गईं और उनकी मौत हो गई। इससे उबरने के लिए हमने उस फार्म के आस-पास के गांवों से गाय को खरीदा था।'
इन चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए ओसम को अपनी आमदनी और मार्केट शेयर में बढ़ोतरी का पूरा भरोसा है। अभिनव ने बताया,
'अगले साल हमने 180 करोड़ का लक्ष्य रखा है। हमारा लक्ष्य 2024 तक बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से 500 करोड़ रुपये की आमदनी दर्ज करना है।'