एक पैर के सहारे अरुणिमा ने फतह की अंटार्कटिका की चोटी, बढ़ाया भारत का गौरव
माइनस 40 से 45 डिग्री सेल्शियस तापमान में तेज बर्फीले तूफानों से लड़ते हुए अरुणिमा ने सिर्फ ऑक्सिजन के सहारे यह कीर्तिमान स्थापित किया। अरुणिमा ने गुरुवार 12 बजकर 27 मिनट पर अंटार्कटिका के सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन को फतह किया और तिरंगा झंडा भी फहराया।
अगर हौसले बुलंद हों और दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो जिंदगी की बड़ी से बड़ी मुश्किलें आपके सामने घुटने टेक देंगी। इसकी मिसाल पेश करती है पर्वतारोही अरुणिमा सिन्हा की कहानी। एक ट्रेन हादसे में अपना एक पैर गंवा चुकीं अरुणिमा ने हाल ही में अंटार्कटिका की सबसे ऊंची चोटी फतह करने का कीर्तिमान अपने नाम कर लिया। उनकी इस उपलब्धि पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बधाई दी।
अंटार्कटिका की जिस चोटी तक अरुणिमा पहुंचीं हैं वहां जाना आसान नहीं है। माइनस 40 से 45 डिग्री सेल्शियस तापमान में तेज बर्फीले तूफानों से लड़ते हुए अरुणिमा ने सिर्फ ऑक्सिजन के सहारे यह कीर्तिमान स्थापित किया। अरुणिमा ने गुरुवार 12 बजकर 27 मिनट पर अंटार्कटिका के सबसे ऊंची चोटी माउंट विंसन को फतह किया और तिरंगा झंडा भी फहराया। सुनने में भी अविश्वसनीय लगने वाले इस कारनामे को अंजाम देने वाली वह दुनिया की पहली महिला दिव्यांग पर्वतारोही बन गई हैं।
अपने ट्विटर हैंडल पर अरुणिमा ने यह जानकारी दी। इस उपलब्धि पर पीएम मोदी ने अरुणिमा को बधाई देते हुए ट्वीट किया, 'अरुणिमा सिन्हा को सफलता का नया शिखर छूने के लिए बधाई। वह भारत की गौरव हैं, जिन्होंने अपने कठिन परिश्रम और दृढ़ता की बदौलत यह मुकाम हासिल किया है। भविष्य में उनके प्रयासों के लिए मैं बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
इसके बाद अरुणिमा ने पीएम मोदी का आभार व्यक्त करते हुए कहा, 'जब देश के प्रधान सेवक इतने समर्पित हैं तो बतौर नागरिक हमें भी अपने-अपने क्षेत्रों में देश का नाम नई ऊंचाई पर ले जाने का सपना देखना चाहिए। भारतीय खिलाड़ियों की ओर से हम उनके लिए बनाई जाने वाली नीतियों और सम्मान के लिए आभार जताते हैं। जय हिंद।'
उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले में जन्मीं अरुणिमा वॉलीबाल प्लेयर भी हैं। उन्हें सेना में जाने का ख्वाब देखा था, लेकिन 2011 में लखनऊ से दिल्ली जाते वक्त एक ट्रेन हादसे में उनका एक पैर कट गया। इसके बाद उनकी जिंदगी में मानों अंधेरा छा गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और लंबे इलाज के बाद एक बार फिर से वह उठ खड़ी हुईं। उन्होंने पर्वतारोहण का सपना देखा और माउंटेनियरिंग स्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह किलिमंजारो (अफ्रीका), एल्ब्रुस (रूस), कास्टेन पिरामिड (इंडोनेशिया), किजाश्को जैसी चोटियां फतह कर चुकी हैं।
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