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दवाएं महंगी हैं तो न हों चिंतित, सस्ते विकल्प के लिए है न TrueMD...

उपभोक्ताओं को महंगी दवाओं के सस्ते विकल्प और जेनेरिक दवाओं से करवाती है रूबरूराजस्थान के डा. समित शर्मा के प्रयासों से प्रेरित होकर बिट्स पिलानी के छात्रों ने तैयार की वेबसाइटइस वेबसाइट केे खुले एपीआई की सहायता से एक मोबाइल एप्लीकेशन भी की जा चुकी है तैयारआने वाले दिनों में टेलीमेडिसन का एक मंच तैयार करने की दिशा में चल रहा है प्रयास

दवाएं महंगी हैं तो न हों चिंतित, सस्ते विकल्प के लिए है न TrueMD...

Tuesday October 18, 2016 , 5 min Read

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समूचे भारतवर्ष में दवाओं के निर्माण और बिक्री पर नजर रखने के जिम्मेदार खाद्य एवं औषधि विभाग (एफडीए) का मानना है कि, ‘‘अगर हम खुराक, सुरक्षा, शक्ति, गुणवत्ता, विशेषताओं और प्रयोग करने के उद्देश्य की कसौटी पर आंकलन करें तो तो जेनेरिक दवाएं किसी भी ब्रांड के नाम से बिकने वाली दवाओं के ही समान हैं या चिकित्सा शब्दावली में कहें तो बायोइक्वीवेलेंट हैं। वास्तव में बिना एफडीए से मंजूरी लिये बिना कोई भी दवा बिक्री के लिये बाजार में उतारी ही नहीं जा सकती है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि जेनेरिक दवाए भी बाजार में बिकने वाली अन्य ब्रांडेड दवाईयों जितनी ही ‘सुरक्षित’ या ’खतरनाक’ हैं और इनके इनके काम करने का तरीका भी बाकी दवाओं जैसा ही है।

वर्ष 2012 की गर्मियों के दिनों में टेलीविजन श्रृंखला ‘सत्यमेव जयते’ की एक कड़ी में इस शो के होस्ट और मशहूर अभिनेता आमिर खान ने अपने दर्शकों के सामने एक बड़े महत्वपूर्ण सवाल को उठाया था, ‘‘क्या (भारतीय) स्वास्थ्य सेवा को खुद उपचार की जरूरत है?’’ उनके द्वारा दुनिया के सामने लाये गए इस महत्वपूर्ण मुद्दे को साबित करती हैं देश में दवाओं की बढ़ती हुई कीमतें और इसके अलावा डा. समित शर्मा द्वारा इनकी कीमतों को कम करवाने के लिये किये जा रहे अथक प्रयास। डा. समित शर्मा पूर्व में राजस्थान चिकित्सा सेवा निगम (आरएमएससी) के अध्यक्ष पद पर काम कर चुके हैं। उन्होंने राजस्थान के पिछड़े हुए इलाकों में से एक चित्तौड़गढ़ में ‘जनऔषधि’ के नाम से औषधालयों का संचालन प्रारंभ करवाया और वे इन जेनेरिक दवाए के उपयोग से मरीजों का उपचार कर रहे हैं।

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उनकी इस पहल से प्रेरित होकर बिट्स पिलाने के छात्रों के एक समूह ने भारत में निर्मित होने वाली और यहां के बाजारों में बिकने वाली सभी दवाओं का एक विशाल डाटाबेस तैयार करने का फैसला किया और अपने इस काम में जुट गए। डा. शर्मा की थोड़ी सी मदद और नेश्नल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथाॅरिटी (एनपीपीए) और अन्य विभिन्न स्त्रोतों से विवरण इकट्ठा करने के बेहद कठिन काम को सफलतापूर्वक करते हुए इन लोगों ने 17 जून 2014 को TrueMD का शुभारंभ किया। इस वेबसाइट 1 लाख से भी अधिक दवाईयों के संपूर्ण विवरण का डाटाबेस मौजूद है। यह सर्च इंजन आपकी जरूरत की दवा के बदले में बाजार में मिलने वाली जेनेरिक दवाओं और उनके ऐसे सस्ते विकल्पों की जानकारी उपलब्ध करवाता है जो ब्रांडेड दवाओं के बिल्कुल समान ही होती हैं।

इस टीम के सदस्यों में आयुश अग्रवाल, आयुश जैन, अद्भुत गुप्ता, आदित्य जोशी और यशवर्धन श्रीवास्तव शामिल मुख्य रूप से शामिल हैं। गौरतलब यह है कि ये सभी बिट्स पिलानी से स्तानक की पढ़ाई के अंतिम वर्ष के छात्र हैं।

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यह सेवा बिल्कुल मुफ्त है और इन्होंने अपनी वेबसाइट के एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (एपीआई) को अन्य डेवलपर्स के प्रयोग के लिये भी खुला रखा है ताकि वे स्वास्थ्य से संबंधित एप्लीकेशंस का निर्माण करने में सफल रहें जिनका लाभ आम जनता को मिल सके। ट्रूएमडी द्वारा अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध करवाये गए एपीआई का इस्तेमाल करते हुए ऐसे ही एक डेवलपर ने एंड्रायड और आईओएस के लिये एक एप्लीकेशन तैयार करने में सफलता पाई है। ट्रूएमडी द्वारा शुरू किये गए इस अभिनव प्रयास को देशभर की कई नामचीन हस्तियों द्वारा सराहा गया है।

क्या कारण है कि जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं?

चूंकि जेनेरिक दवाईयों के निर्माता इनका निर्माण शून्य से नहीं करते हैं इसलिये इन दवाओं को बाजार तक पहुंचाने में आने वाली लागत काफी कम होती है और यही वजह है कि जेनेरिक दवाएं बाजार में बड़े नामों से बिकने वाली महंगी दवाओं के मुकाबले बहुत सस्ती होती हैं। कई बार तो ये अपने ब्रांडेड समकक्ष के मुकाबले 100 गुना तक कम कीमत में उपलब्ध होती है।

इसके अलावा इस क्षेत्र की एक कड़वी सच्चाई भी है। कई बार मरीजों के जेहन में एक सवाल रह-रहकर कौंधता है, ‘‘अगर इन दवाओं के दामों में इतना भारी अंतर है तो मेरा डाॅक्टर मुझे जेनेरिक दवाओं की जगह इन महंगी दवाओं को क्यों लेने के लिये लिखता है?’’

इसका जवाब इस अेहद कड़वा है। ऐसा इालिये होता है क्योंकि ब्रांडेड दवाओं को बेचने पर मिलने वाला मुनाफा जेनेरिक दवाओं के मुकाबले कही अधिक होता है। इसके अलावा अधिकतर लोग दवाओं के इस पहले को लेकर अनजान और अज्ञानता के साये में जी रहे होते हैं।

अमरीका में डाॅक्टर 80 प्रतिशत मामलों में मरीजों को नुस्खे में जेनेरिक दवाएं लेने की सलाह देते हैं जबकि भारत में यह संख्या नगण्य है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि भारत विश्व में जेनेरिक दवाओं के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है! विशेषज्ञों का अनुमान है कि किसी भी परिवार के स्वास्थ्य संबंधित खर्चों में से 50 प्रतिशत के करीब सिर्फ दवाओं पर ही खर्च होता है। जेनेरिक दवाएं का प्रयोग इस लागत को कम करने एक महत्वपूर्ण कारक साबित हा सकता है।

इसके अलावा यह टीम एक और परियोजना पर काम कर रही है और इन्हें विश्वास है कि इसके पूरा होने के बाद भारत के स्वास्थ्यसेवा उद्योग में क्रांतिकारी बदलाव देखने को मिलेगा। ये एक ऐसे टेलीमेडिसन मंच का निर्माण करने की दिशा में काम कर रहे हैं जिसमें मरीज को कहीं से भी कसी डाॅक्टर से परामर्श लेने की आजादी होगी। इसके अलावा यह मंच किसी भी उपयोगकर्ताके संपूर्ण स्वास्थ्य रिकाॅर्ड को भी संग्रहित करने की सुविधा प्रदान करेगा।

इन्हें उम्मीद है कि इनका यह विचार भारतीय स्वास्थ्य सेवाओं की दुनिया में एक आधुनिक युग की शुरुआत करने में कामयाब होगा!

आपके लिये एक चित्र के माध्यम से एफडीए द्वारा सामने लाए गए कुछ तथ्यों और आंकड़ों को प्रस्तुत कर रहे हैं।

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