जाते-जाते करारी चोट कर गए पहलाज निहलानी
अक्सर समाचारों की सुर्खियां बन जाना जैसे सेंसर बोर्ड की नीयत-सी बन चुकी है। कभी उसके चेयरमैन की कुर्सी को लेकर टंगड़ीबाजी, नए-पुराने अध्यक्षों के आने-जाने के किस्से-कहानी तो कभी फिल्में सेंसर करने की तरह-तरह की गाथाएं।
सेंसर बोर्ड को हाल के बीते वर्षों में जितनी सुर्खियां मिली हैं, मुख्यतः उसका क्रेडिट बोर्ड के निवर्तमान अध्यक्ष पहलाज निहलानी को जाता है।
निहलानी सेंसर बोर्ड के चेयरमैन की कुर्सी संभालने के बाद से ही लगातार कई एक फिल्म निर्देशकों और सियासत के निशाने पर रहे हैं। उनके कार्यकाल से पूर्व भी फ़िल्म सेंसर बोर्ड में राजनीतिक दख़लअंदाज़ी के आरोप लगते रहे हैं।
जिस पहलाज निहलानी ने कभी नरेंद्र मोदी के समर्थन में 'हर हर मोदी घर घर मोदी' नाम का एक यू-ट्यूब वीडियो बनाया था, वह अपने ताजा बयान से गर्मागर्म चर्चाओं में आ गए हैं। वैसे भी अक्सर समाचारों की सुर्खियां बन जाना जैसे सेंसर बोर्ड की नीयत सी बन चुकी है। कभी उसके चेयरमैन की कुर्सी को लेकर टंगड़ीबाजी, नए-पुराने अध्यक्षों के आने-जाने के किस्से-कहानी तो कभी फिल्में सेंसर करने की तरह-तरह की गाथाएं। इस बोर्ड के साथ एक और तिलिस्म समय-समय पर उछलता रहा है 'धांसू' सियासत का। केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड या भारतीय सेंसर बोर्ड भारत में फिल्मों, टीवी धारावाहिकों, टीवी विज्ञापनों और विभिन्न दृश्य सामग्री की समीक्षा करने संबंधी विनियामक निकाय है। यह भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधीन है। फिल्म बनने के बाद फिल्म निर्माता को सेंसर सर्टिफिकेट लेने के लिए सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन के नजदीकी ऑफिस में संपर्क करना होता है। इस सर्टिफिकेट के बिना फिल्म को दिखाया नहीं जा सकता। सर्टिफिकेट लेने से पहले निर्माता को बताना होता है कि वह यह फिल्म किन लोगों के लिए बना रहा है।
बोर्ड के दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलूरू, तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद, कटक और गुवाहाटी में कुल नौ ऑफिस हैं। इन ऑफिस को ऐसी अलग-अलग जगहों पर खोला गया है, जहां अलग-अलग भाषाओं में फिल्में बनाने वाले लोग आराम से इन तक पहुंच सकें। सेंसर बोर्ड में 22-25 सदस्य होते हैं। इसमें बुद्धिजीवियों को लेने का दावा किया जाता है, जो सिनेमा को अच्छा बनाने और उसके विकास के लिए काम कर सकते हैं। इस काम के लिए इन लोगों की साल में मीटिंग भी होती हैं। सेंसर बोर्ड को हाल के बीते वर्षों में जितनी सुर्खियां मिली हैं, मुख्यतः उसका क्रेडिट बोर्ड के निवर्तमान अध्यक्ष पहलाज निहलानी को जाता है।
उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने सेंसर बोर्ड के चेयरमैन पद से निहलानी को हटा कर उनकी जगह कवि प्रसून जोशी को नया चेयरमैन बना दिया है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि उनके कुर्सीबदर होने में एकता कपूर का कथित रूप से हाथ रहा है। जोशी के बारे में निहलानी कहते हैं कि वह एक उच्छे इंसान हैं। निहलानी सेंसर बोर्ड के चेयरमैन की कुर्सी संभालने के बाद से ही लगातार कई एक फिल्म निर्देशकों और सियासत के निशाने पर रहे हैं। उनके कार्यकाल से पूर्व भी फ़िल्म सेंसर बोर्ड में राजनीतिक दख़लअंदाज़ी के आरोप लगते रहे हैं। एक वक्त में बोर्ड प्रमुख लीला सैमसन को भी इस्तीफ़ा देना पड़ा था। धर्म गुरु गुरमीत राम रहीम की फ़िल्म 'मैसेंजर ऑफ गॉड' को लेकर विवाद भड़का था। ऐसे में सवाल उठते रहते हैं कि क्या वाक़ई फ़िल्मों को पास करने में राजनीतिक दख़ल दिया जाता है? आख़िर सेंसर बोर्ड की ज़रूरत है भी या नहीं?
बोर्ड की सुर्खियां भी क्या खूब होती हैं। कभी 'इंटरकोर्स' शब्द पर भड़कते हुए 'संस्सरी' निहलानी से लोहा लेकर सिनेमाघरों तक पहुंची तो कभी नवाजुद्दीन सिद्दीकी की आने वाली फिल्मह 'बाबुमोशाय बंदूकबाज' पर बोर्ड ने लगा दिए 48 कट। इससे निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा की भी तल्ख टिप्पणियां मीडिया की सुर्खियां बनीं। इसी तरह उन्होंने फिल्म 'जब हैरी मेट सेजल' के प्रोमो में 'इंटरकोर्स' शब्द इस्तेामाल करने पर आपत्ति जताई थी। डायरेक्टफर अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्मो 'लिपस्टिक अंडर माई बुर्का' विवादों के बाद पहले बैन हुई, फिर कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद रिलीज हो सकी।
'लिपस्टिक अंडर माय बुर्का' को जब बोर्ड ने यह कहकर रोकने की कोशिश की कि इसका विषय बहुत ज्यादा महिला संबंधी और फैंटेसी बेस्ड है तो फिल्म डायरेक्टर्स की टीम ने फिल्म प्रमाणन अपीलीय ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। नतीजा ये हुआ की फिल्म 'ए' सर्टिफिकेट के साथ रिलीज हो गई। फिल्म भी रिलीज हुई लेकिन उससे पहले उसका ट्रेलर आया। इस ट्रेलर ने सेंसर बोर्ड के हर सवाल का जवाब दिया। मीडिया की हर उस हेडलाइन को दिखाया जिसमें बोर्ड ने फिल्म में अड़ंगा लगाने की कोशिश की। ऑफबीट फिल्मों के लिहाज से देखें तो इस फिल्म ने बॉक्स आफिस पर धमाल मचा दिया। इस फिल्म ने अपनी लड़ाई न केवल जीती बल्कि सेंसर बोर्ड को चुनौती भी दी।
सेंसरशिप को लेकर नाराजगी जताते हुए अभिनेता कबीर बेदी तो यहां तक कहते हैं कि बोर्ड भारत की छवि खराब कर रहा है। बोर्ड से जुड़ी ताजा खबर ने तो जैसे सियासत और फिल्म जगत में भूकंप ही ला दिया है। पहलाज निहलानी ने अध्यक्ष पद से हटाए जाने बाद चौंकाने वाला खुलासा किया है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने उनसे कहा था, फिल्म 'उड़ता पंजाब' को पास मत करो। इस फिल्म की रिलीज को रोकने के लिए कई जगह से प्रेशर आए, लेकिन उन्होंने गाइडलाइन्स के हिसाब से ही फिल्म पास की। गौरतलब है कि 'उड़ता पंजाब' को उस समय रोकने की जगह पास तो कर दिया गया, लेकिन इस फिल्म को 89 कट के साथ रिलीज करने की अनुमति दी गई।
उस समय देश में इस फिल्म को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक बड़ी बहस छिड़ गई थी, जिससे पहलाज काफी विवादों में घिर गए थे। कोर्ट में 'उड़ता पंजाब' की जीत हुई थी। कोर्ट ने फिल्म को सिर्फ एक कट के साथ रिलीज करने का आदेश दिया था। आयुष्मान खुराना और भूमि पेडनेकर की फिल्म 'दम लगा के हईशा' में 'लेस्बियन' शब्द के इस्तेमाल पर भी सेंसर बोर्ड ने अपनी आपत्ति जताकर इसे म्यूट कर दिया। समलैंगिकता के मुद्दे पर बनी फिल्म 'अलीगढ़' को सेंसर बोर्ड द्वारा 'ए' सर्टिफिकेट दिया गया इस पर डायरेक्टर हंसल मेहता का बयान आया कि सेंसर बोर्ड को समलैंगिकता से नफरत है।
हाल ही में डॉक्यूमेंटरी 'एन आर्गुमेंटेटिव इंडियन' (एक तार्किक भारतीय) को लेकर सेंसर बोर्ड चर्चा का विषय बना। इस फिल्म में इस्तेमाल हुए 'गाय', 'गुजरात', 'हिंदू भारत' और 'हिंदुत्व' बोर्ड ने आपत्तिजनक बताकर फिल्म की रिलीज रोक दी। यह एक लोकतांत्रिक देश की खतरनाक प्रवृत्ति को दर्शाता है कि प्रख्यात अर्थशास्त्री एवं नोबेल पुरस्कार से सम्मानित डॉ अमर्त्य सेन की जीवन पर बने इस वृतचित्र को केवल राजनीतिक वजहों से बोर्ड ने कैंची चलाने का फैसला लिया।
अपने ताजा खुलासे में निहलानी ये भी बताते हैं कि फिल्म 'बजरंगी भाईजान' को ईद के मौके पर रिलीज न किए जाने का निर्देश गृह मंत्रालय ने दिया था। मंत्रालय को फिल्म के टाइटल से आपत्ति थी, जिससे ईद के मौके पर लॉ-एंड-ऑर्डर बिगड़ सकता था। बजरंगी भाईजान के टाइटल की वजह देश में फैली कई तरह की गलतफहमियों से मंत्रालय को शक था कि इसमें लव जेहाद जैसा कुछ हो सकता है, लेकिन मैं फिल्म की कहानी जानता था। लेखक ने उन्हें कहानी सुनाई थी। यही वजह रही कि किसी बात की परवाह किए बिना फिल्म को बोर्ड की ओर रिलीज करने की इजाजत दे गई। एक सच यह भी है कि निहलानी से पहले शायद ही किसी अध्यक्ष ने फिल्मों पर इतनी कैंची चलाई हो। बॉलीवुड की कई हस्तियों ने बोर्ड के इस रवैए पर सवाल भी खड़े किए लेकिन वह अपने निर्णय पर हमेशा अडिग रहे।
सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष पद पर पहलाज को जनवरी 2015 में नियुक्त किया गया था। अपनी नियुक्ति के बाद से उन्होंने फिल्मों को कड़ाई के साथ सेंसर करना शुरू कर दिया। निहलानी 'एसोसिएशन ऑफ पिक्चर्स एंड टीवी प्रोग्राम प्रोड्यूसर्स' के भी 29 साल तक अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने वर्ष 2009 में यह पद छोड़ दिया था। बॉलीवुड में उनकी पहचान मुख्यतः फिल्म निर्माता के रूप में रही है। वर्ष 1982 में रिलीज हुई उनकी पहली फिल्म 'हथकड़ी' थी। इसके अलावा 'शोला और शबनम', 'आंखें', 'दिल तेरा दीवाना' आदि और भी कई फिल्मों के वह निर्माता रहे।
सेंसर बोर्ड के चेयरपर्सन के पद से हटाए जाने का ठीकरा केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर भी फोड़ा है। उन्होंने आरोप लगाया है कि अपदस्थ करने के पीछे स्मृति ईरानी हैं। इसी क्रम में वह बताते हैं कि सरकार ने मुझ पर दबाव बनाया कि मैं मधुर भंडारकर की फिल्म 'इंदु सरकार' को बिना किसी कट के पास कर दूं। मैंने ऐसा करने से मना किया, इसलिए पद से हटाया दिया गया। अनुराग कश्यप के बारे में वह कहते हैं कि अक्सर वह तो जानबूझकर अपनी फिल्मों पर स्वयं ही विवाद खड़ा करते हैं ताकि इससे उनको सस्ता प्रचार मिल जाए।
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