राइट टू प्रिवेसी: सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ऑनलाइन कंपनियों पर पड़ेगा असर
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आम लोगों को एक और मौलिक अधिकार मिल गया है। यह है निजता का अधिकार। हालांकि निजता के मौलिक अधिकार बनते ही कई सवाल उठ रहे हैं। इस फैसले से आम लोगों की जिंदगी के साथ ही ई-कॉमर्स कंपनियों और सोशल मीडिया पर भी असर पड़ सकता है।
अब निजता के अधिकार के तहत कंपनियों से सवाल किए जा सकते हैं। सरकार ने भी संकेत दिया है कि वह मौजूदा कानून में बदलाव कर सकती है।
सरकार ने भी फैसले के बाद संकेत दिए कि वह इस मामले में विस्तार से फैसला पढ़ने के बाद मौजूदा कानून में जरूरी बदलाव कर सकती है।
बीते गुरुवार को देश की सर्वोच्च अदालत के चीफ जस्टिस जे. एस. खेहर की अध्यक्षता वाली 9 जजों की संवैधानिक बेंच ने एक मामले में फैसला सुनाया कि निजता का अधिकार संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार का स्वभाविक और मूलभूत हिस्सा है। अब इससे सोशल मीडिया व ऑनलाइन ई कामर्स कंपनियों पर भी असर पड़ सकता है। क्योंकि अब निजता के अधिकार के तहत कंपनियों से सवाल किए जा सकते हैं। सरकार ने भी संकेत दिया है कि वह मौजूदा कानून में बदलाव कर सकती है।
आधार से जुड़े मामलों से लेकर प्राइवेट कंपनियों द्वारा लोगों की निजी सूचनाओं का इस्तेमाल करने के तरीकों पर इस फैसले का दूरगामी असर होगा। कोर्ट ने इस फैसले के साथ यह भी कहा कि कोई भी मौलिक अधिकार संपूर्ण नहीं होता, इसलिए निजता का अधिकार भी संपूर्ण नहीं होगा। इस पर तर्कपूर्ण रोक लगाई जा सकती है। आपको बता दें कि संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार और संविधान के पार्ट-3 में मिले मौलिक अधिकार का स्वभाविक और मूलभूत हिस्सा है।
अभी व्हाट्सएप और फेसबुक जैसी कंपनियां यूजर के डेटा को पब्लिक डोमेन में रखती हैं या किसी से साझा करती हैं, इस बारे में ठोस गाइडलाइंस नहीं हैं। व्हाट्सएप ने अमेरिका में फेसबुक के साथ डेटा शेयर किया था। इससे जुड़ा केस कोर्ट में चल रहा है। अब कोई भी व्यक्ति निजता के अधिकार के तहत सोशल मीडिया या ऑनलाइन कंपनियों के सामने कानूनी अधिकार से सवाल कर सकता है। सरकार ने भी फैसले के बाद संकेत दिए कि वह इस मामले में विस्तार से फैसला पढ़ने के बाद मौजूदा कानून में जरूरी बदलाव कर सकती है।
संवैधानिक बेंच ने एकमत से पहले के दोनों जजमेंट को पलट दिया जिनमें कहा गया था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता ने आधार कार्ड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा था कि यह निजता के अधिकार का हनन है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 9 जजों की संवैधानिक बेंच को सौंपते हुए कहा था कि पहले यह तय होगा कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं। अब आधार के मामले पर पांच जजों की बेंच अलग से फैसला करेगी।
सरकार के लिए इसे झटका माना जा रहा है, क्योंकि आधार को लेकर सरकार ने निजता के अधिकार की बात को खारिज किया था। सरकार को अब यह दिखाना होगा कि वह निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं कर रही है। इस फैसले से आधार से योजनाओं को जोड़ने की सरकारी कोशिश पर असर नहीं होगा क्योंकि कोर्ट ने कल्याणकारी योजनाओं में छूट दी है। आधार पर सुप्रीम कोर्ट की अलग बेंच विचार करेगी जो मोबाइल और पैन कार्ड आदि को आधार से जोड़ने पर फैसला लेगी।
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