इकोनॉमिक क्राइसिस में केंद्र सरकारों के खेवनहार बिमल जालान
बिमल जालान भारत की एक मात्र ऐसी शख्सियत हैं, जो सबसे लंबे समय तक रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रहे हैं। पिछले साढ़े तीन दशक से सुर्खियों में बने हुए जालान ने हाल ही में अपने नाम पर गठित 'बिमल जालान समिति' की रिपोर्ट मौजूदा आरबीआई गवर्नर को सौंपते हुए मोदी सरकार को कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं।
भारत में सरकार मनमोहन सिंह की रही हो या नरेंद्र मोदी की, हमारे देश में जब भी इकोनॉमिक क्राइसिस का दौर आता है, पिछले साढ़े तीन दशक से बार-बार, अक्सर सुर्खियों में आ जाते हैं शीर्ष शख्सियत, अर्थवेत्ता एवं रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पूर्व गवर्नर बिमल जालान। इन दिनो वह एक बार फिर, अपने नाम पर ही गठित रिजर्व बैंक की 'बिमल जालान कमेटी' को लेकर चर्चाओं में हैं। बिमल जालान की अध्यक्षता में इस कमेटी का गठन सरकार को यह सुझाव देने के लिए किया गया था कि भारतीय रिजर्व बैंक के पास कितना पैसा रिजर्व होना चाहिए और उसे केंद्र सरकार को कितना लाभांश देना चाहिए।
अगस्त सप्ताहांत में, अभी पिछले दिनो ही कमेटी ने केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया है कि रिजर्व बैंक की संशोधित आर्थिक पूंजी नियम की हर पांच साल में समीक्षा होनी चाहिए। कमेटी की रिपोर्ट को ही आधार बनाते हुए आरबीआई ने हाल ही में 52,637 करोड़ रुपए का अधिशेष केंद्र सरकार को स्थानांतरित करने का फैसला किया। बिमल जालान ने अपने 78 साल के जीवन में वह सबकुछ देखा है, जिनका ताल्लुक देश की शीर्ष आर्थिक नीतियों से रहा है।
बिमल जालान का जन्म 17 अगस्त, 1941 को राजस्थान के सादुलपुर में हुआ था। उन्होंने कैंब्रिज और ऑक्सफर्ड विश्वविद्यालय, दोनों से पढ़ाई की है। कोलकाता में जन्मे जालान प्रेसिडेंसी कॉलेज के छात्र रहने के दिनों में वाम मोर्चे की भी पसंदीदा थे। वह 1980 के दशक में भारत सरकार के प्रमुख सलाहकार रहे। 1985 से 1989 तक उन्होंने बैंकिंग सचिव के रूप में कार्य किया। जनवरी, 1991 से सितम्बर 1992 के बीच वे वित्त सचिव रहे। वह 1991 से 1993 तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) में भारत के कार्यकारी निदेशक रहे। उसके बाद 22 नवम्बर 1997 से 06 सितंबर 2003 तक, दो बार वह सबसे लंबे समय तक रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर रहे।
नब्बे के दशक में जब वह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे, उस समय विश्व साउथ ईस्ट एशिया करन्सी क्राईसिस से जूझ रहा था। भारतीय अर्थव्यवस्था भी उससे अछूती नहीं थी। अपने सुयोग्य नेतृत्व से बिमल जालान ने भारत को उस संकट से बचा लिया। उनके ही कार्यकाल में एक हज़ार रुपए का नोट जारी किया गया था। वर्ष 2003 में अटल सरकार ने उन्हें राज्यसभा के लिए नामित किया तो उन्होंने आरबीआई गवर्नर के पद से इस्तीफा दे दिया। वह जब वित्त मंत्री थे तो उन्हें रिपोर्ट करने वाले निदेशकों में एक नृपेंद्र मिश्रा भी रहे हैं, जो इस समय प्रधानमंत्री कार्यालय में प्रधान सचिव हैं। बिमल जालान अफसरशाही, राजनेता स्पेक्ट्रम के बारे में अपने बेहतर अनुभवों, खूबियों के कारण प्रायः सभी प्रमुख पार्टियों के पसंदीदा वित्तवेत्ता रहे हैं।
वह भारत के एकमात्र ऐसे अफसरशाह हैं, जो लगातार आईएमएफ और फिर विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक रहे। सरकारों के आर्थिक क्षेत्र में वह बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए जाने जाते हैं। इसी क्रम में उन्होंने राज्यसभा का कार्यकाल पूरा करने के बाद अपने संसदीय अनुभवों पर केंद्रित एक किताब लिखी- 'इंडियन पॉलिटिक्स: ए व्यू फ्रॉम बैकबेंच'। उन्होंने अनुभवों में खुलासा किया है कि सदन में किस तरह उनकी आंखों के सामने शोर-शराबे के बीच सैकड़ों अहम दस्तावेज बिना चर्चा के पारित हो गए। हाल ही में बिमल जालान की एक नई किताब आई है - 'रिसर्जेंट इंडिया'।
काफी चर्चाओं में रही अपनी पुस्तक 'इंडियन पॉलिटिक्स: ए व्यू फ्रॉम बैकबेंच' में वह बताते हैं-
'उनके राज्यसभा कार्यकाल के दौरान संसद और राज्य विधानसभाओं में जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों के पास कोई पूर्व ज्ञान नहीं था लेकिन उन्हें विधिवत वोट मिला। देश के तीन सर्वोच्च, राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, पीएम पद ऐसे लोगों के पास रहे, जिनका सत्तारूढ़ गठबंधन के एक नेता ने अंतिम क्षणों में नामांकन किया।'
गौरतलब है कि बिमल जालान मनमोहन सिंह की अगुआई में भारत की उस आर्थिक संकट प्रबंधन टीम का हिस्सा थे, जिसने बेलआउट के लिए आईएमएफ में बातचीत की थी। इसके बाद उन्हें विश्व बैंक को मनाने की जिम्मेदारी दी गई ताकि वह भारत के लिए अपने सहायता कार्यक्रमों कड़ी शर्तें न थोपे। इन जिम्मेदारियों के बाद जब वह भारत लौटे तो 1997 में उन्हें आरबीआई का गवर्नर बना दिया गया। बिमल जालान का कहना है कि विदेशी बाजारों से दीर्घकालिक फंड ही उधार लेना चाहिए और किसी भी परिस्थिति में इसकी राशि जीडीपी के 1.5 फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए।
रिजर्व बैंक के मौजूदा गवर्नर शक्तिकांत दास को जालान कमेटी की अपनी रिपोर्ट में उन्होंने सिफारिश की है कि आरबीआई वित्तीय वर्ष 2020-21 से लेखा वर्ष (जुलाई-जून) को वित्तीय वर्ष (अप्रैल से मार्च) के साथ समायोजित कर सकता है। रिजर्व बैंक की आरक्षित निधि के अधिशेष का हस्तांतरण सरकार को पूर्वनिर्धारित फॉर्मूले के आधार पर तीन से पांच साल में चरणबद्ध तरीके से करना चाहिए। उसे बाद में आरबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाए।