एल एंड टी के मणिभाई का लोहा मान चुके हैं बिड़ला और अंबानी ग्रुप
गुजरात के एक गांव के स्कूल टीचर के पुत्र उद्योगपति अनिल मणिभाई नाइक देश उन अत्यंत सफल कारोबारियों में शुमार हैं, जिनका अंबानी और बिड़ला ग्रुप भी लोहा मान चुके हैं। अपने कर्मचारियों की एकजुटता से पद्म विभूषित मणिभाई एक वक्त में इन दोनो कारपोरेट घरानों को अपनी कंपनी से बाहर कर चुके हैं।
लार्सन एंड टुब्रो को नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले गुजरात के कामयाब उद्योगपति अनिल मणिभाई नाइक को पद्म विभूषण सम्मान मिलना कई मायनों में कुछ अलग सा है। उन्हे वर्ष 2009 में पद्म भूषण सम्मान भी मिल चुका है। मणिभाई ने 1980 के दशक में एलएंडटी को बचाने के लिए अकेले अंबानी परिवार और आदित्य बिड़ला ग्रुप से दो-दो हाथ किए थे। उस दौरान उन्होंने इन दोनों कॉरपोरेट ग्रुप के हाथों कंपनी को बिकने से बचाने में भी कामयाबी हासिल करने के साथ ही अपने कर्मचारियों को समझा दिया था कि हम सब इसके मालिक रहेंगे तो कोई भी बाहरी व्यक्ति दोबारा कंपनी को खरीदने की जुर्रत नहीं कर पाएगा। अपनी औद्योगिक हैसियत बनाने में मणिभाई की कामयाबियों की एक लंबी दास्तान है।
दक्षिण गुजरात के गांव के एक प्राइमरी स्कूल टीचर के बेटे एवं लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के नॉन एक्जीक्यूटिव चेयरमैन रहे मणिभाई 54 साल तक काम करने के बाद हाल ही में जब कंपनी से रिटायर हुए तो पहले कभी अवकाश पर न रहने के एवज में उन्हे रिटायरमेंट पर 137 करोड़ रुपए के अलावा एकमुश्त लीव एनकैशमेंट के भी 19.4 करोड़ रुपए मिले। रिटायरमेंट से पहले उनकी आखिरी महीने की बेसिक सैलरी 2.7 करोड़ रुपए रही थी। इसके अलावा ग्रेच्युटी और अन्य लाभ के करीब 100 करोड़ रुपए उन्हें और भुगतान किए गए।
अपनी लगातार मेहनत के कारण ही मणिभाई 1965 में एल एंड टी में जूनियर इंजीनियर के रूप में जुड़ने के बाद 1986 में इसी कंपनी के जनरल मैनेजर और सन् 2003 तक वह लार्सन एंड टुब्रो लिमिटेड के अध्यक्ष बन गए। अब तो यह कंपनी 1.82 लाख करोड़ रुपए की मार्केट वैल्यू के साथ भारत की बड़ी एमएनसी कंपनियों में से एक है। एलएंडटी को कंस्ट्रक्शन बिजनेस के साथ ही डिफेंस सेक्टर में बखूबी स्थापित करने में सबसे अहम रोल मणिभाई का ही रहा है। मणिभाई के जीवन में एक दौर ऐसा भी रहा, जब अंबानी, बिड़ला जैसे कारपोरेट महारथियों ने उनकी कंपनी को टेकओवर करने की जीतोड़ कोशिशें कीं लेकिन वह हार नहीं माने। अपने कर्मचारियों को एकजुट कर अकेले दोनों मोरचों पर जूझते रहे। उसके बाद एलएंडटी के कर्मचारियों के ट्रस्ट ने बिड़ला की पूरी हिस्सेदारी खरीदकर उसे दौड़ से बाहर कर दिया।
इससे पहले एक लड़ाई और लड़ी जा चुकी थी। अंबानी की नजर एलएंडटी पर टिकी हुई थी। वह ग्रुप अधिग्रहण के लिए कमर कस चुका था। यह वाकया धीरूभाई के जमाने का है। उनके दोनों बेटे मुकेश और अनिल एलएंडटी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में शामिल हो चुके थे। उस समय कंपनी में अंबानी परिवार की 19 फीसदी हिस्सेदारी हो चुकी थी, लेकिन मणिभाई की कोशिशें आखिरकार परवान चढ़ीं और अंबानी को भी एलएंडटी से निकाल बाहर कर दिए गए। वैसे धीरूभाई जाते-जाते अपनी हिस्सेदारी कुमार मंगलम बिड़ला को थमा गए। कमाल ये रहा कि अब न अंबानी, न बिड़ला, केवल मणिभाई के हाथों में पूरी तरह कंपनी की बागडोर थम गई। यद्यपि एक बार फिर बिड़ला ने सन् 2002 मेंभी एलएंडटी के टेकओवर की कोशिश की, तो मणिभाई पीएमओ पहुंच गए। प्रधानमंत्री से गुहार लगाई। साथ ही उन्होंने ऐसा दांव चला कि बिड़ला को फिर मात खानी पड़ी। इस समय कंपनी में कर्मचारियों की भी हिस्सेदारी है।
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