दृष्टिहीन रतन और राजस्थान शिक्षक दंपति बांट रहे रोशनी
मजबूत इच्छा शक्ति हो तो दृष्टिबाधित दिव्यांग भी समाज के लिए मिसाल बन सकता है। राजस्थान के दृष्टिहीन शिक्षक दंपति और मुंबई के रतन कांबले के कामयाब जीवन से तो यही प्रेरणा मिलती है।
फ्रांस में जन्मे लुई ब्रेल नेत्रहीनों के लिए भाषा विकसित कर अमर हो गए। हर व्यक्ति में असीमित क्षमताएं होती हैं। जब कोई इंद्रिय विफल हो जाती है, तब चमत्कारिक शक्ति आ जाती है। लुई ब्रेल ऐसी ही प्रतिभा के धनी थे। लुई ब्रेल की नेत्र ज्योति तीन साल की आयु में चली गई थी। लेकिन उनमें आत्म विश्वास की कमी नहीं थी। आठ साल की उम्र में उन्हें पता लगा कि फ्रांस की सेना के कमांडर वेलेंटाइन द्वारा सेना को संदेश देने के लिए एक सांकेतिक भाषा का प्रयोग किया जा रहा है। यह जानकार लुई ब्रेल की कमांडर से मिलने की इच्छा हुई। उनके शिक्षक ने कमांडर से मुलाकात कराई। लुई ब्रेल ने वेलेंटाइन से सांकेतिक भाषा को जाना और उसे नेत्रहीनों के लिए विकसित किया। उनका यह प्रयास पूरी दुनिया के नेत्रहीनों के लिए वरदान साबित हुआ। यद्यपि ऐसी विराट प्रतिभाएं तो युगों में कभी कभी जन्म लेती हैं लेकिन उसी तरह मुंबई के नेत्रहीन रतन कांबले 1 लाख 22 हजार रुपये प्रतिमाह की नौकरी कर रहे हैं। वह भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम लिमिटेड (ईसीजीसी) में बतौर मैनेजर निर्यातकों को ऋण लेने की पॉलिसी समझाते हैं।
यहां प्रसंगवश कुछ और ऐसी बातें उल्लेखनीय हैं, जो दृष्टिबाधित लोगों के जीवन से जुड़ी हैं। अब तक नेत्रहीनों के लिए समय देखने के लिए या तो म्यूजिक आलर्म क्लॉक का इस्तेमाल करना पड़ता था या फिर किसी न किसी से समय पूछ कर काम चलाना पड़ता है, पर अब नेत्रहीनों के लिए साउथ कोरिया की एक डेवलपर कंपनी डॉट ने एक ऐसी घड़ी बनायी है, जिससे नेत्रहीनों को समय जानने के लिए किसी भी प्रकार का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। यह भी उल्लेखनीय है कि बहुत जल्द दृष्टिहीन लोग भी अपनी अंगुलियों पर स्मार्टफोन को नचाएंगे। यह स्मार्ट आइडिया है भारत के सुमित डागर का। यह ब्रेल भाषा में काम करने वाला दुनिया का पहला स्मार्टफोन होगा। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन से इंटरेक्शन डिजाइन में पढ़ाई कर रहे सुमित डागर को मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान ब्रेल में स्मार्टफोन बनाने का आइडिया आया और तभी से उन्होंने इस पर काम करना शुरू कर दिया।
उनकी इस पहल के लिए उन्हें और उनके साथियों को 2012 में रोलेक्स अवॉर्ड फॉर एंटरप्राइज से सम्मानित किया गया। अब तो हमारे देश में दृष्टिबाधित छात्र-छात्राओं के लिए ब्रेल एटलस तैयार किया गया है। इसी तरह की एक और मिसाल। गाजा के अल –मस्थल क्लब में 15 साल से दृष्टिहीन फिलिस्तीनी बच्चे कराटे सीख रहे हैं। सप्ताह में दो दिन यहा सात से 17 साल के बच्चों की चहल-पहल दिखाई देती है। ये दृष्टिहीन या आंशिक दृष्टिहीन बच्चे इस क्लब में कराटे की ट्रेनिंग लेने आते हैं। यहां के सैकेडों खिलाड़ी कई अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेटो में हिस्सा ले चुके हैं। इसी तरह 60 मैच 22 शतक, 18 अर्द्धशतक और 121 विकेट रिकार्ड से चौंकाने वाले भारतीय ब्लाइंड क्रिकेटर केतन पटेल इन दिनों बेतहरीन फॉर्म में चल रहे हैं। वह विराट कोहली को अपना आदर्श मानते हैं। वह सबसे ज्यादा चार बार ब्लाइंड वर्ल्ड कप खेल चुके हैं।
जिंदगी में इतने कामयाब दृष्टिबाधित रतन कुमार कांबले को मात्र पांच साल की उम्र में उनके पिता ने घर से बाहर लगभग फेंक दिया था क्योंकि रतन की आंखों की रोशनी चली गई थी। दो पत्नियों वाले उनके पिता को रतन बोझ लगने लगे थे। उस समय रतन की सगी मां ने भी तय किया था कि नेत्रहीन बेटे के साथ रहकर उसके नाम को सार्थक करेंगी। हिंगोली (महाराष्ट्र) के रतन ने अमरावती के ब्लाइंड स्कूल में दाखिला लिया। 11 साल उस स्कूल में बिताया। वे इतने मेधावी छात्र थे कि एक-दो बार जो बात सुन लेते, वह कंठस्थ हो जाता। उनको दसवीं कक्षा में 84 प्रतिशत अंक मिले। इसके बाद वह मुंबई पहुंचे। उन्हें एसआईएस कॉलेज में ही पढ़ाई करनी थी, लेकिन सीटें खत्म हो चुकी थीं। कॉलेज में अडमिशन के लिए अकेले नेत्रहीन रतन को शिक्षा अधिकारी तक से गुहार लगानी पड़ी। रतन के कॉन्फिडेंस के आगे सब कुछ फेल हो गया। उन्हें कॉलेज में अडमिशन मिल गया।
रतन को मामा सुरेश नायडू और मामी चंद्रकला नायडू ने सहारा दिया। 6 मई, 1992 के दिन पांच लोगों के पैनल में रतन कुमार कांबले का इंटरव्यू हुआ। उन्हें भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम लिमिटेड (ईसीजीसी) में सरकारी नौकरी मिल गई। रतन आज सामान्य लोगों की तरह कबड्डी, क्रिकेट खिलते हैं। वह धोनी, कोहली, धर्मेंद्र, श्रीदेवी और प्राण के फैन हैं, लेकिन उनकी जिद्द ने सामान्य लोगों को उनका फैन बना दिया है। पत्नी और तीन बेटियों के परिवार के साथ रतन सुखद जिंदगी गुजार रहे हैं। रतन ने जिंदगी का संघर्ष पांच हजार रुपये से शुरू किया था, आज उनकी तनख्वाह एक लाख बाईस हजार रुपये प्रतिमाह है। वह छह बार मैनेजर की पोस्ट के लिए परीक्षाएं दे चुके हैं। परीक्षा की तैयारी के लिए रतन पहले टेप रिकॉर्डर और अब मोबाइल रिकॉर्डर का यूज करते हैं, जो एक बार सुन लिया, उसे कभी भूलते नहीं। अब रतन ईसीजीसी में मैनेजर हैं और निर्यातकों को ऋण लेने की पॉलिसी समझाते हैं।
कठिनाइयां कितनी भी आए, लेकिन हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, मेहनत ही हर राह को रोशन कर सकती है। यह प्रेरणादायी संदेश सांचौर, जालौर (राजस्थान) के दृष्टिहीन शिक्षक दंपती ने उन युवाओं को दिया है, जो अक्सर असफल होने पर निराश हो जाते हैं। दृष्टिहीन इस दंपती ने बीते वर्ष 2018 में ही अपनी मेहनत के बूते सफलता पाई और दोनों शिक्षक बने। इस कारण दोनों ने युवाओं के लिए संदेश दिया कि मेहनत का कोई विकल्प नहीं होता है और असफलता हर बार नई सीख देती है, जिससे मुकाबला कर सफलता पाई जा सकती है। सांचौर क्षेत्र के भड़वल निवासी नवनीत कुमार पुत्र वोहताराम सुथार व उदयपुर शहर के हिरण मगरी निवासी दृष्टिहीन रेखा सुथार ने अप्रैल में शादी रचाई थी। रेखा हिंदी में व्याख्याता है, वहीं अब नवनीत भी द्वितीय श्रेणी शिक्षक बन गए हैं।
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