Book Review: मर्दों को खाना कैसे बनाना चाहिए? नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी की तरह
अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अभिजीत बनर्जी ने कुकिंग और रेसिपीज पर ये किताब लिखी है, जिसका नाम है- “कुकिंग टू सेव योर लाइफ.”
एक बार अमेरिका में किसी पत्रकार ने अल्बर्ट आइंस्टीन से पूछा कि अगर आप वैज्ञानिक न होते तो क्या होते? इस पर आइंस्टीन का जवाब था कि मैं म्यूजीशियन होता. वैसे 13 साल की उम्र से वॉयलिन बजाने वाले आइंस्टीन का विज्ञान के बाद दूसरा प्रेम संगीत ही था.
जैकसन पोलक, जिसे दुनिया एक महान चित्रकार के रूप में जानती है, वह दरअसल एक कमाल के खानसामा भी थे. इसका पता उनकी पत्नी ली क्रैसनर की लिखी किताब से चलता है, जिसमें पोलक की ढेरों रेसिपीज का का जिक्र है. कहते हैं मार्लेन ब्रैंडो खाना पकाने और खिलाने के बड़े शौकीन थे.
इतिहास में ऐसे बहुत से कमाल के लोग हुए हैं, जिन्होंने दुनिया में किसी और वजह से नाम कमाया, लेकिन उनका पहला प्यार रसोई और रेसिपी ही थी. कुछ ऐसे ही छुपे रुस्तम हैं हमारे अभिजीत बनर्जी साहब. वही अभिजीत बनर्जी, जिन्हें पिछले साले अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
इस किताब का नाम है “कुकिंग टू सेव योर लाइफ.” ये किताब है उनकी पसंदीदा रेसिपीज की, उनकी मां की रेसिपीज की और उस खाने की जो उनकी स्मृतियों में है.
अभिजीत बनर्जी किसी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नहीं हैं, इसलिए रसोई में खाना बनाते हुए उनकी फोटो हमें नहीं दिखती. बहुत सारे लोगों के लिए यह आश्चर्यजनक खुलासा ही था, जब नोबेल पुरस्कार जीतने के बाद उनकी अगली किताब जो छपी, वो अर्थशास्त्र की बजाय कुकिंग और रेसिपीज के बारे में थी.
सिर्फ करीबी मित्र और परिवार के लोग जानते हैं कि अभिजीत को दो जगहों पर वक्त बिताना पसंद है. एक तो अपने दफ्तर में, जहां वो काम कर रहे होते हैं और दूसरा रसोई में, जहां वो अपनी मां की बताई और अपनी पसंदीदा रेसिपीज बना रहे होते हैं. अभिजीत के बच्चे और उनकी पत्नी एस्थर डेफ्लो भी उनके हाथ के बने खाने के बेहद शौकीन हैं.
अभिजीत के लिए खाना बनाना स्ट्रेस दूर करने, रिलैक्स करने और खुशी महसूस करने का सबसे बड़ा जरिया है.
इस किताब में सिर्फ बोरिंग रेसिपीज और उसे बनाने के नुस्खे भर नहीं है. जैसाकि अभिजीत कहते हैं कि फूड का अपना एक सोशल साइंस होता है. संदर्भ, कारण, इतिहास और गति होती है. इस किताब के हर पन्ने पर आपको फूड और रेसिपी के उस सोशल साइंस के नजरिए से देखने का मौका मिलेगा.
इस किताब में आपको अर्थशास्त्र जैसे गंभीर विषयों पर काम करने वाले व्यक्ति के कमाल सेंस ऑफ ह्यूमर को भी देखने का मौका मिलेगा. अगर आपने अपने बॉस को खाने पर इनवाइट किया है तो क्या बनाएं. अगर बिना पूर्वसूचना के अचानक कोई दरवाजे पर आ धमका है और अब उसे लजीज व्यंजन से उसका स्वागत करना जरूरी है तो क्या बनाएं.
बिना योजना, बिना प्लानिंग के सिर्फ घर में पड़ी और बची हुई चीजों से कैसे एक नई रोचक रेसिपी तैयार की जा सकती है, ये सारे नुस्खे और तरकीबें आपको इस किताब में मिल जाएंगी.
अभिजीत बिना एग्जॉटिक, महंगे और खास तरह के इंग्रेडिएंट्स के बगैर रसोई में मौजूद सामान्य चीजों से बेहतरीन स्वादिष्ट खाना बनाने के गुर वैसे ही सिखाते हैं, जैसे इकोनॉमी को सुधारने का.
अभिजीत बनर्जी और एस्थर डेफ्लो का पूरा काम, जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, इस पर आधारित है कि कम संसाधनों के सही और संतुलित इस्तेमाल के जरिए कैसे लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को बेहतर किया जा सकता है. और लोगों की बेहतरी दरअसल अंत में अर्थव्यवस्था, जीडीपी और पूरे देश की इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए जिम्मेदार होती है.
अभिजीत बनर्जी ने सिर्फ कुक बुक लिखी ही नहीं है. वो इस तरह की किताबें पढ़ने के शौकीन भी हैं. वैसे भी, एक नोबेले लॉरेट का कुकिंग पर किताब लिखना रोज-रोज होने वाली घटना नहीं है. पढ़ेंगे तो खाना बनाने का गुर भी आएगा और मजा भी.
Edited by Manisha Pandey