अच्छी राजनीति भी एक अच्छा व्यवसाय हैः आशुतोष
(यह लेख आशुतोष द्वारा लिखा गया है। आशुतोष दो दशकों से ज्यादा समय तक पत्रकारिता से जुड़े रहे और हिन्दी के तमाम बड़े न्यूज़ चैनल में बड़े पदों पर कार्यरत रहे हैं। अब आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता हैं। यह लेख मूलत: अग्रेजी में लिखा गया है।)
मेरा मानना है कि पत्रकारिता से अपने करियर की शुरुआत करने के बाद राजनीति में आने का फैसला मेरे पूरे व्यावसायिक जीवन का सबसे सहज और बेहतर निर्णय रहा है। जबकि पूरे पेशेवर जीवन में उठाया गया प्रत्येक कदम घबराहट और असुरक्षा के भाव से भरा हुआ था। इससे पहले हर बार नौकरी बदलते समय मैं अपने अंदर एक अजीब सी घबराहट महसूस करता था। आईबीएन7 में प्रबंध संपादक के रूप में पदभार ग्रहण करना मेरे लिये सबसे कठिन लम्हा और सबसे बड़ा फैसला था। आईबीएन7 का प्रस्ताव स्वीकार करने के बाद मैंने अपनी पत्नी से कहा, ‘‘मेरा अनिश्चितताओं से भरा सफर अब प्रारंभ हो चुका है और मैं नहीं जानता कि अब से एक वर्ष बाद मैं सड़क पर आ जाऊँगा या एक वातानुकूलित कमरे में बैठा हुआ मिलूंगा।’’ यह मेरे लिये एक बहुत बड़ा पल था। उससे पहले मैं बीते 11 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा था और ‘आजतक’ में अपने काम से बहुत सुखी था। अपने इस्तीफे की घोषणा से लेकर नई तैनाती तक मैंने खुद को शांत दिखाने का नाटक बखूबी किया लेकिन शायद ही मैं किसी रात को चैन की नींद ले पाया था। आखिरकार मैंने धारा के साथ बहने का फैसला किया और इस दौरान जीवन का एक सबसे बड़ा सबक सीखा। समय के साथ मुझे ज्ञान हुआ कि यह एक व्यवस्था है जो अपना काम करती है और एक अगुवा के रूप में मेरा कर्तव्य नेतृत्व करना और उचित समय पर उचित निर्णय लेना है। मैंने ठीक ऐसा ही किया और आज मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि मैंने अपने कर्तव्यों का निर्वहन बहुत बेहतरीन तरीके से किया।
एक पत्रकार के लिये खुद को राजनेता के रूप में ढ़ालना आसान नहीं है क्योंकि वे स्वाभाव से बहुत दूर की सोचने वाले होते हैं और उन्हें बाल की खाल निकालने की आदत होती है। इसके अलावा एक सच्चे पत्रकार को किसी भी चीज को जस का तस स्वीकार न करने के लिये भी प्रशिक्षित किया जाता है। ऐसे समय में जब आमजन सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों से खौफ़ज़दा रहते हैं तब पत्रकार उनसे कठिन से कठिन सवाल पूछते हैं। उनका मुख्य काम ऐसे लोगों से चुभते हुए सवालों का जवाब पाना ही है। इस दौरान मैंने जाना कि एक मीडिया हाउस का नेतृत्व करना सेना या पुलिस की तरह औपचारिक प्रबंधन करना भर नहीं है जहां सिर्फ आदेश लेना-देना और उसका अनुपालन करना ही आदर्श माना जाता है। मीडिया के क्षेत्र में युवाओं के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हुए उनके साथ सिगरेट के कश लगाना, उनके साथ थोड़ा हंसी-मजाक करना और उनका विश्वास जीतना सबसे बड़ी कसौटी है। विश्वास जीतने के साथ उन्हें सहज महसूस करवाना एक बौद्धिक व्यायाम से कहीं अधिक है। और एक बार आप अपने मकसद में कामयाब हो जाते हैं तो आपको रोकने वाला कोई नहीं होता है। आपको उन्हें नियंत्रित नहीं करना होता है बल्कि आपको उन्हें हल्के से धकेलते हुए सही रास्ता दिखाना होता है। सीखने और सिखाने की इस प्रक्रिया ने मेरी बहुत मदद की और मुझे सिखाया कि सवाल पूछने वाले लोग हमेशा आपके दुश्मन नहीं होते हैं। इसके अलावा मैं यह भी समझने में कामयाब रहा कि कई बार लोग अपने सवालों के द्वारा ऐसी बातों के जवाब तलाशने का प्रयास कर रहे होते हैं जिनके बारे में वे खुद ही अंधेरे में होते हैं। कई मायनों में राजनीति भी ऐसे सवालों के जवाब खोजने की कला है जिनसे हम जीवन में विभिन्न स्तरों पर जूझ रहे होते हैं।
मुझे एक बहुत लंबे समय तक राजनीतिक संरचना के प्रबंधन की बहुत ही सतही जानकारी और समझ थी। राजनीति ने मेरे जीवन में कई नई संभावनाओं को जन्म दिया है। सिक्के का दूसरा पहलू इतना भी बुरा नहीं है जितना मैं सोचता था। इस बात पर बहस हो सकती है कि मैंने एक ऐसी पार्टी में शामिल होने का फैसला किया जिसे पारंपरिक ज्ञान से परिभाषित नहीं किया जा सकता है और इसलिये मेरे अनुभव सच्चाई से परे होंगे। मैं इस तर्क से एक हम तक सहमत हूँ। आम आदमी पार्टी (आप) एक पारंपरिक राजनीतिक पार्टी नहीं है। यह पारंपरिक तर्क-वितर्क के आधार पर भी संचालित नहीं होती है और यह दूसरों से अलग है। यह एक आंदोलन के गर्भ से निकली पार्टी है और अभी राजनीति में बहुत नई है। इसे एक परिपक्व राजनीतिक पार्टी के रूप में विकसित होने में अभी और समय लगेगा। औरों से अलग होने के बावजूद एक राजनीतिक दल के रूप में ‘आप’ को अन्य दलों की तरह ही बड़े स्तर पर जनता को अपने साथ जोड़ना होगा और उनके साथ संवाद करना होगा। यहां हमें यह भी याद रखना होगा कि हमारे साथ सिर्फ चुनिंदा समूहों के लोग ही नहीं जुड़े हुए हैं बल्कि यह एक सामूहिक नेतृत्व है और हमारे साथ समाज के हर क्षेत्र और तबके के लोग जुड़े हुए हैं।
मैं बेहिचक यह भी स्वीकार करता हूँ कि एक पत्रकार के रूप में आमजन के साथ मेरा जुड़ाव बहुत ही सीमित और प्रतिबंधित था। लेकिन राजनीति में प्रवेश करने के साथ मैंने सबके और विभिन्न लोगों के साथ मिलने-जुलने का सबक सबसे पहले सीखा। मुझे अब हर किसी से मिलना होता है और यह मेरे लिये एक बिल्कुल अलग और नया अनुभव है। समय के साथ मेरी समझ में आया कि एक क्षण में तो मैं देश की राजधानी के सबसे अमीर से अमीर व्यक्तियों के साथ काम कर रहा हूँ और दूसरे ही पल गरीब से गरीब व्यक्ति अपने अस्तित्व की लड़ाई में मेरे साथ बहस कर रहा है। एक बिंदु पर तो मैं देश के उच्च सम्मानित बुद्धिजीवी के साथ गर्मागर्म बहस में उलझा होता हूँ और दूसरे ही पल मैं खुद को सबसे बेवकूफ व्यक्ति के पड़ोस में बैठा हुआ पाता हूँ। और मुझे दोनों को ही बराबर के भाव से संतुष्ट करना होता है। अन्य क्षेत्रों में तो आप अपने गुरुर और अभिमान में जीवन जी सकते हैं लेकिन राजनीति में इस तरह के व्यवहार का मतलब है वोटों का नुकसान। और अगर कहीं यह बात फैल गई तो आप अपने समर्थकों की एक पूरी फौज से ही हाथ भी धो सकते हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। भारतीय राजनीति के पुराने दिग्गज और देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने एक बार कहा था कि, ‘‘राजनीति असंभव की कला है।’’
बीतते समय के साथ मुझे भी अहसास हुआ है कि धैर्य एक महान सद्गुण है खुद को जीवित रखने और नेतृत्व करने के लिये मोटी चमड़ी वाला होना जरूरी है। राजनीति में आपको कई बार अनुचित मांगों और परिस्थितयों से गुजरना पड़ता है और अगर आप धैर्यवान नहीं हैं तो आपका कोई भविष्य नहीं है। आप कल्पना कर सकते हैं कि मेरे पास कई बार अलसुबह 3 बजे आम लोगों के फोन आते हैं और फोन करने वाले को मुझसे कोई जरूरी बात नहीं करनी होती है। क्योंकि उसे नींद नहीं आ रही होती है इसलिये वह मुझे फोन कर रहा होता है। राजनीति में कदम रखने से पहले अगर किसी ने मेरे साथ ऐसा कुछ किया होता तो मैं उस व्यक्ति पर फूट पड़ा होता लेकिन अब ऐसा नहीं है। सार्वजनिक जीवन में कदम रखने के बाद आपका समय आपका नहीं रहता है। इसके अलावा राजनीति में आने के बाद मैंने संपर्क करने की महत्वपूर्ण कला को सीखने में भी सफलता प्राप्त की।
राजनीति में सफलता की सभी महान कहानियां संपर्क की सफलता की कहानियां हैं। ध्यान रहे कि जब मैं संपर्क के बारे में कह रहा हूँ तो उसका मतलब सिर्फ बुद्धिमत्ता या महान अभिव्यक्ति या वाकपटुता नहीं है। इसका सीधा मतलब एक ऐसी भाषा का प्रयोग करना है जो एक बड़े जनमानस की समझ में आ सके और जनता, वक्ता के साथ आसानी से जुड़ सके। महात्मा गांधी भी कोई बहुत अच्छे वक्ता या महान बुद्धिजीवी नहीं थे, लेकिन उनकी जनता से जुड़ाने की कला अद्वितीय थी। अरविंद केजरीवाल भी कोई महान वक्ता नहीं हैं और पार्टी में सार्वजनिक सभाओं में उनसे बेहतर भाषण देने वाले कई वक्ता मौजूद हैं, लेकिन आम जनता के साथ उनका जुड़ाव भी अद्भुत है। यह लोगों के दिलों को छूने वाला मुद्दा उठाने और जनता को उसकी ही भाषा में उसके सामने पेश करने की कला है। महान जर्मन नेता बिस्मार्क ने 1884 में कहा था, ‘‘राजनीति एक सटीक विज्ञान नहीं ...... बल्कि एक कला है।’’
महान नेताओं ने आमजन के साथ संपर्क करने को एक कला का रूप देकर सफलता पाई है। यह सिर्फ सामने वाले के दिमाग पर हावी होना नहीं है बल्कि एक सामूहिक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है। यह लोगों के मस्तिष्क की कोशिकाओं को दरकिनारे कर उनके दिल में उतरने की यात्रा है। यह शब्दों के माध्यम से किया जाने वाला सम्मोहन है। जीवन में किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने के इच्छुक व्यक्ति को राजनीति के इन गुणों को अपने अंदर समाहित करने की आवश्यकता है। अगर आपके अंदर सागर जैसा धैर्य नहीं है तो आपका भविष्य अंधकारमय है। अगर आपने सही संचार की रणनीति तैयार नहीं की है तो आप अपने लक्षित उपभोक्ताओं तक अपने उत्पाद पहुंचाने में कामयाब नहीं हो सकते। सफलता पाने के लिये आपको सीमाओं और बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ना ही होगा। और एक सफल राजनीतिज्ञ दैनिक आधार पर यह काम करता है। ऐसा करने वाले असफल व्यक्ति का कोई भविष्य नहीं होता है। वह कुएं के मेंढ़क की तरह एक सीमित दायरे में बंधकर रह जाता है। किसी भी उत्पाद को बुलंदियों को छूने के लिये मानवीय भावनाओं, संस्कृति, परंपराओं की विविधताओं को पार करते हुए अपने लिये नए रास्ते खोलने होते हैं। कोक दुनिभर में इसलिये सफल है क्योंकि वह उपने उत्पाद को चीन के एक छोटे से शहर में और शिकागों में एक जैसे उत्साह के साथ बेचती है। एक राजनेता के रूप में महात्मा गांधी भारत और दक्षिण अफ्रीका में समान रूप से प्रतिष्ठित हैं और साथ ही वे अमरीका में मार्टिन लूथर किंग के प्रिय भी बने रहे।
अंत में मैं यह कह सकता हूँ कि अच्छी राजनीति भी एक अच्छा व्यवसाय है और अच्छा व्यवसाय एक अच्छी राजनीति, क्योंकि दोनों ही लोगों के साथ समान रूप से जुड़े हैं।