स्वीडन से भारत आकर पढ़ाई के दौरान प्रदूषण से रूबरू होने के बाद तैयार किया एयरीनम मास्क
टीम वाईएसहिंदी
लेखकः सिंधु कश्यप
अनुवादकः निशांत गोयल
हमारे सांस के माध्यम से शरीर के भीतर जाने वाली हवा ही धीरे-धीरे हमारा दम घोंट रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक बेहद चैंकाने वाले लेकिन गंभीर रहस्योद्घाटन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि पीएम 2.5 कणों के साथ दिल्ली की हवा की गुणवत्ता दुनिया के 1600 शहरों के बीच सबसे अधिक खराब है। इसके बाद इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं है कि पेरिस में हाल ही में आयोजित हुए जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में दुनियाभर में हवा की गुणवत्ता सबसे अधिक बहस वाले विषयों में से एक रही।
स्टाॅकहाॅम स्थित एयरीनम (Airinum) की स्थापना इस विश्वास के साथ हुई थी कि दुनियाभर में रहने वाले प्रत्येक नागरिक को स्वच्छ हवा में सांस लेने का एक मौलिक अधिकार है।
स्टाॅकहाॅम बिजनेस स्कूल में मिले चार दोस्तों एलेक्जेंडर, फ्रेडरिक केम्प, जोहान्निस हममैन और महंदी रेजराजी ने एक ऐसा आधुनिक सांस लेने वाला मास्क तैयार किया है जो आपको वायु प्रदूषण के साथ-साथ बैक्टीरिया और वायरस से बचाने के अलावा कई अन्य प्रकार के प्रदूषणों से भी सुरक्षित रखता है। बाजार में मिलने वाले अन्य मास्कों के विपरीत एयरीनम का दावा है कि उनका उत्पाद उच्च स्तर की सुरक्षा देने के अलावा आराम और डिजाइन का एक मेल है।
इसकी नींव पड़ी वर्ष 2014 में जब एलेक्जेंडर स्वीडन से भारत आए। यहां पर उन्हें अहमदाबाद में रहकर इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मैनेजमेंट (आईआईएम) से 6 महीने की पढ़ाई करनी थी। यहां पर उन्हें पहले ही महीने में यह महसम,ूस हुआ कि आबोहवा में फैले प्रदूषण के चलते उनके काफी समय पूर्व ठीक हो चुके अस्थमा के लक्षण दोबारा सामने आने लगे थे।
एलेक्जेंडर एक ऐसा सुरक्षात्मक मास्क तलाशने में विफल रहे जो इनके लिये मददगार होने के साथ वास्तव में पूरे दिन पहना जा सके।
‘‘मैंने यहां पर अधिकतर लोगों को एक साधारण से स्कार्फ की मदद से खुद को प्रदूषण से बचाने की जद्दोजहद करते हुए देखा। यह बड़े अफसोस की बात है कि कोई भी हवा में मौजूद प्रदूषण को रोकने की दिशा में गंभीर नहीं है। यह प्रदूषण हमारे फेफड़ों और रक्त प्रवाह में समाहित हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप हम बेहद गंभीर स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का सामना करते हैं। बस उसी समय मैंने इस दिशा में कुछ सकारात्मक करने का फैसला किया और स्वीडन वापस लौटने के बाद हमनें एयरीनम के निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी।’’
एलेक्जेंडर उन सभी लोगों तक पहुंचे जो उनके ख्याल से उनके कौशल में सहयोग करते और साथ ही उन्होंने अपने कुछ मित्रों को भी अपने साथ जोड़ा। उन्हें उनका यह विचार बेहद पसंद आया और वे भी इसका हिस्सा बन गए। एलेक्जेंडर कहते हैं कि उनके इस उद्यम का एक मजबूत उद्देश्य है और यह दुनिया में एक बड़ा परिवर्तन लाने में सहायक हो सकता है।
एयरीनम कर मुख्य लक्ष्य लोगों को रोजमर्रा के जीवन में सांस लेने के लिये सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा प्रदान करने के साथ-साथ वायु प्रदूषण को लेकर जागरुकता फैलाने का भी है ताकि लोग अपनी जान को खतरे में डाले बिना खुलकर स्वच्छ हवा में सांस ले सकें। इसके अलावा उन्होंने शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के स्टाइल के प्रति जागरुक रवैये को ध्यान में रखकर मास्क को तैयार किया।
एलेक्जेंडर कहते हैं, ‘‘इस प्रकार से हम शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को शर्मिदंगी का अहसास करने के बजाय उन्हें वह देना चाहते हैं जो वे वास्तव में पहनना चाहते हैं। हालांकि अगर लंबे समय की बात करें तो हमें इस बात की आशा है कि भविष्य में इस प्रकार के उत्पाद की कोई आवश्यकता ही नहीं होगी।’’
उनका कहना है कि उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती एक ऐसे उत्पाद को तैयार करने की थी जो वास्तव में विभिन्न लोगों को प्रदूषण से बचाने में कारगर हो क्योंकि चूंकि हर किसी का चेहरा दूसरे से अलग होता है और ऐसे में इन्हें अपने मास्क इस प्रकार से तैयार करने थे कि वे हवा के रिसाव को रोकते हुए अधिक बेहतर तरीके से फिट आ सकें। इन्होंने एक ख्ंिाचने वाले पदार्थ का उपयोग किया जो बड़ी आसानी से पहनने वाले के चेहरे की आकृति में ढल जाता है। इसके चलते मास्क उच्च स्तर की सुरक्षा प्रदान करने में सक्षम हो जाता है क्योंकि सिर्फ एक अच्छा फिल्टर ही काफी नहीं होता है।
एलेक्जेंडर कहते हैं, ‘‘प्रारंिभक दौर में हमें बहुत चलना पड़ा। इसके अलावा हमें मास्क को अधिक सुविधाजनक बनाने की चुनौती से भी पार पाना पड़ा। आज हम ऐसे पदार्थ का उपयोग करते हैं जिसकी मदद से मास्क सांस लेने में अधिक सुविधाजनक होता है और ऐसा बहुत अधिक जरूरी भी है क्योंकि कई उपयोगकर्ताओं का कहना था कि जब उन्हें लंबी अवधि के लिये मास्क पहनना पड़ता था तो उनका दम घुटने लगता था।’’
यह मास्क पाॅलिएस्टर जैसे एक विशेष फैब्रिक से बना है जो हल्का होने के अलावा सांस लेने के लिये भी काफी सुविधाजनक है। इनका फिल्टर बहुत ही उन्नत मल्टी-लेयर्ड तकनीक से तैयार किया गया है जो पहनने वाले को महक, धूल, बैक्टीरिया, वायरस, परागकणों, पीएम 2.5 सहित सांस के माध्यम से शरीर के भीतर जाने वाली 99.9 प्रतिशत चीजों से बचाता है।
इन्होंने अब एक स्थिर गति से आगे बढ़ने के क्रम में बिल्कुल सही सहयोगियों के साथ हाथ मिलाया है। इनकी मुख्य रणनीति आॅनलाइन बिक्री करने की है ताकि ये कई बाजारों में बहुत ही कम समय में अपना विस्तार कर सकें। इनकी टीम मिश्रित पृष्ठभूमियों (स्वीडन, जर्मनी, फ्रांस) से आती है जिसमें शामिल सदस्य व्यापार से ताल्लुक रखने के अलावा इंजीनियरिंग के स्नातक भी हैं।
इन्होंने 23 नवंबर 2015 को किकस्टार्टर पर पहला कदम रखा। वहां पर इन्हें बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली और मात्र 24 घंटों के भीतर ही ये ओवरफंडिड हो गए। इनके समर्थक यूरोप, अमरीका और एशिया के 30 से भी अधिक देशों में फैले हुए हैं। इनका यह अभियान अभी प्रारंभ है और यह 27 दिसंबर 2015 तक खुला है।
वर्तमान में बाजार में उपलब्ध तमाम फिल्टर एक सीमित जीवन काल के लिये होते हैं और चूंकि उनमें छोटे-छोटे कंण अटक आते हैं इसलिये एक निश्चित समय के बाद उनमें से सांस लेना काफी मुश्किल हो जाता है। इसी वजह से उच्च प्रर्दशन बनाए रखने और स्वच्छ रहने के लिये ये अपने उपभोक्ताओं को समय-समय पर फिल्टर बदलने की सलाह देते हैं।
यह टीम भविष्य के लिये कई विकल्पों की ओर देख रही है, विशेषकर मास्क को लेकर विभिन्न कार्यक्षेत्रों की तरफ। एक और दिशा में ये लोग काम कर रहे हैं और वह है हवा की बिगड़ती हुई गुणवत्ता के बारे में जागरुकता का निर्माण करना।
इनका इरादा कम से कम प्रदूषित वातावरण का निर्माण करने की प्रक्रिया में अपना सकारात्मक योगदान करने का है। इनका इरादा आने वाले समय में ऐसे उत्पादों को विकसित करने का है जो सीधे ही प्रदूषण को कम करने में मददगार हों। एलेक्जेंडर कहते हैं, ‘‘फिलहाल के लिये सबसे महत्वपूर्ण कदम वायु प्रदूषण जैसी गंभीर समस्या के प्रति लोगों को जागरुक करने के अलावा इसके फलस्वरूप सामने आने वाली स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याओं के प्रति भी उन्हें सचेत करना है।’’