कॉलेज की फीस के लिए पैसे नहीं थे और UPSC में कर दिया टॉप
आंध्र प्रदेश के गोपालकृष्ण रोनांकी पैसे के आभाव में कॉलेज नहीं जा सके, लेकिन UPSC में हासिल की तीसरी रैंक...
गोपालकृष्ण रोनांकी इस बार सिविल सर्विस-2016 की परीक्षा में सफल हुए ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनकी कहानी दिलचस्प और प्रेरणादायक है। आंध्र प्रदेश के काफी पिछड़े इलाके श्रीकाकुलम से ताल्लुक रखने वाले गोपाल ने अपनी जिंदगी में तमाम कठिनाइयों का सामना करते हुए यहां तक पहुंचे हैं। आंध्र प्रदेश के लिए ये गर्व की बात है कि गोपाल तेलुगु साहित्य को अपना वैकल्पिक विषय चुनते हुए सफल हुए हैं। मेंस की परीक्षा के लिए भी उन्होंने तेलुगू माध्यम ही चुना और टॉपर नंदिनी के. आर. की तरह ही UPSC में अंग्रेजी के वर्चस्व को तोड़ा है।
12वीं पास करने के बाद घरवालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे गोपाल को किसी अच्छे कॉलेज में पढ़ने के लिए भेज सकें, इसलिए गोपाल को मजबूरी में डिस्टेंस मोड से ग्रेजुएशन पूरा करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने टीचर ट्रेनिंग का भी कोर्स कर लिया था। जिसकी बदौलत उन्हें 2006 में सरकारी अध्यापक की नौकरी मिल गई।
तेलुगूभाषी होने की वजह से गोपाल के लिए लगभग सभी कोचिंग वालों ने अपने दरवाजे उनके लिए बंद कर दिए। उन्हें न तो अंग्रेजी में महारत हासिल थी और न ही हिंदी बहुत अच्छे से आती थी और सभी कोचिंग में सिर्फ इन्हीं दो भाषाओं के जरिए पढ़ाई होती थी। लेकिन गोपाल भी कहां हार मानने वाले थे और उन्होंने खुद से पढ़ाई करनी शुरू कर दी।
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आंध्र प्रदेश के UPSC टॉपर गोपालकृष्ण रोनांकी की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। उनके माता-पिता पढ़े लिखे नहीं हैं और खेत में मजदूरी करते थे। उनकी मां का सपना था कि उनका बेटा अच्छे स्कूल में पढ़े, लेकिन घर के हालात की वजह से गोपाल सरकारी स्कूल में ही पढ़ सके। 12वीं पास करने के बाद घरवालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे गोपाल को किसी अच्छे कॉलेज में पढ़ने के लिए भेज सकें, इसलिए गोपाल को मजबूरी में डिस्टेंस मोड से ग्रेजुएशन पूरा करना पड़ा। इस दौरान उन्होंने टीचर ट्रेनिंग का भी कोर्स कर लिया था। जिसकी बदौलत उन्हें 2006 में सरकारी अध्यापक की नौकरी मिल गई।
इसके कुछ दिनों बाद ही वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए हैदराबाद आ गए। यहां पर वह आईएएस की कोचिंग करना चाहते थे। उन्हें लगता था कि कोचिंग की मदद से वे आसानी से परीक्षा पास कर लेंगे। लेकिन यहां पर उनकी सारी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं। तेलुगूभाषी होने की वजह से लगभग सभी कोचिंग वालों ने अपने दरवाजे उनके लिए बंद कर दिए। गोपाल को न तो अंग्रेजी में महारत हासिल थी और न ही हिंदी बहुत अच्छे से आती थी और सभी कोचिंग में सिर्फ इन्हीं दो भाषाओं के जरिए पढ़ाई होती थी। लेकिन गोपाल भी कहां हार मानने वाले थे। उन्होंने खुद से पढ़ाई करनी शुरू कर दी।
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वह कभी कोचिंग के भरोसे नहीं रहे और हमेशा सेल्फ स्टडी करते रहे। हालांकि सही मार्गदर्शन न मिल पाने के कारण उन्हें नुकसान भी हुआ और पहले तीन प्रयासों में उन्हें सफलता नहीं मिली। लेकिन फिर भी वह अपने सपने को हकीकत में बदलने के लिए डटे रहे। गोपाल बताते हैं, कि उनके माता-पिता को तो ये भी नहीं पता था कि वह किस नौकरी की तैयारी कर रहे हैं। उन्हें लगता था कि गोपाल टीचर की नौकरी कर अपनी जिंदगी में खुश है। हालांकि उन्हें गोपाल पर पूरा भरोसा था।
गोपाल ने मेंस परीक्षा के लिए तेलुगू साहित्य को अपना वैकल्पिक विषय चुना था और इतना ही नहीं उन्होंने इंटरव्यू के लिए भी तेलुगू को चुना। यूपीएससी ने उन्हें तेलुगू में इंटरव्यू करने की इजाजत दी और एक तेलुगू दुभाषिये की बदौलत उन्हें निडरता से इंटरव्यू दिया। गोपाल अपने बीते दिनों को याद करते हुए बताते हैं, कि 12वीं तक उनके घर में बिजली तक नहीं थी।
कई तरह की कठिन परिस्थितियों का सामना कर यहां तक पहुंचे गोपालकृष्ण रोनांकी देश के उन तमाम युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो मुफिलिसी में जिंदगी जीते हैं और कुछ बड़ा करने का सपना देखते हैं।