मर्डर के जुर्म में सजा काट चुके व्यक्ति ने 21 वर्षीय लड़की को किडनी दान कर दी नई जिंदगी
चाचा का मर्डर करने वाले इस शख़्स ने ज़रूरतमंद लड़की को अपनी किडनी दान कर बचाई ज़िंदगी...
जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। ऐसे ही सुकुमारन की जिंदगी में एक ऐसा काला दिन आया जब गुस्से में उन्होंने अपने चाचा की हत्या कर दी। उनके चाचा इलाके में मोबाइल का टावर लगवाना चाहते थे, लेकिन सुकुमारन को ये मंजूर नहीं था।
प्रिंसी काफी गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी इसलिए वह किडनी ट्रांसप्लांट का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं थी। सुकुमारन ने प्रिंसी को अपनी एक किडनी दान करने का फैसला किया। प्रिंसी ने कहा कि सुकुमारन उनके पिता के जैसे हैं। उसने कहा कि उन्होंने एक पिता के जैसे मेरी देखभाल की है।
अपनी जिंदगी का कीमती हिस्सा जेल की काली कोठरी में काट चुके सुकुमारन को उस वक्त सुकून मिला जब उन्होंने अपनी एक किडनी दान के लिए राजी होकर 21 साल की महिला की जान बचा ली। वे हमेशा से लोगों की मदद करना चाहते थे। अब जाकर उनका ये सपना पूरा हुआ। जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। ऐसे ही सुकुमारन की जिंदगी में एक ऐसा काला दिन आया जब गुस्से में उन्होंने अपने चाचा की हत्या कर दी। उनके चाचा इलाके में मोबाइल का टावर लगवाना चाहते थे, लेकिन सुकुमार को ये मंजूर नहीं था। उनके चाचा के साथ झगड़ा हुआ और गुस्से में आकर उन्होंने अपने चाचा पर हमला बोल दिया, जिसके बाद चाचा की जान चली गई।
2007 में एक फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुकुमारन को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। उन्हें पलक्कड़ जेल में रखा गया था जिसके बाद वे तिरुवनंतपुरम ले जाए गए। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सुकुमारन को जेल में जाकर अपनी गलती का अहसास हुआ। वह हमेशा आत्मग्लानि में जी रहे थे। वे यही सोचते थे कि मौका मिलने पर अपनी जिंदगी किसी को दान कर दें। 2015 में सुकुमार पैरोल पर जेल से छूटकर बाहर आए। उसी दौरान श्रीकुमार नाम के एक युवा व्यक्ति को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत थी। सुकुमारन अपनी किडनी उसे दान करने के लिए राजी हो गए। अस्पताल में उनका चेकअप हुआ और सबकुछ पॉजिटिव निकला, लेकिन ऐन मौके पर जेल प्रशासन के हस्तक्षेप से ऐसा नहीं हो सका।
जेल के अधिकारियों ने नियमों का हवाला देते हुए कहा कि कोई सजायाफ्ता कैदी अपने अंगों को दान नहीं कर सकता है। इसी दौरान श्रीकुमार की अस्पताल में ही मौत हो गई। इसके बाद सुकुमारन ने जेल प्रशासन और राज्य सरकार को पत्र लिखकर अंगदान करने की अनुमति मांगी। इसी वक्त जेल में अच्छे व्यवहार की वजह से केरल हाई कोर्ट ने सुकुमारन की सजा को घटाकर 7 साल कर दी और जुलाई 2017 में वह जेल से छूटकर वापस घर आ गए। एक दिन उन्हें अखबार में एक लेख पढ़ने को मिला जिसमें आर्य महर्षि नाम के व्यक्ति ने अपनी पत्नी के साथ मुफ्त में अपनी किडनी दान कर दी थी। ऐसा करने वाले वे पहले कपल थे इसलिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया।
सुकुमारन ने डायलिसिस के लिए फ्री चेकअप करने वाले शांति मेडिकल इन्फॉर्मेशन सेंटर की डॉक्टर उमा प्रीमन से संपर्क साधा और कहा कि अगर किसी जरूरतमंद को किडनी की जरूरत पड़े तो उन्हें जरूर बुलाएं। संयोगवश इसी दौरान 21 वर्षीय प्रिंसी को किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ी। प्रिंसी काफी गरीब परिवार से ताल्लुक रखती थी इसलिए वह किडनी ट्रांसप्लांट का खर्च वहन करने में सक्षम नहीं थी। सुकुमारन ने प्रिंसी को अपनी एक किडनी दान करने का फैसला किया। प्रिंसी ने कहा कि सुकुमारन उनके पिता के जैसे हैं। उसने कहा कि उन्होंने एक पिता के जैसे मेरी देखभाल की है। प्रिंसी के खानदान में जेनेटिक प्रॉब्लम की वजह से कई लोगों को किडनी की समस्या आई। वह अपनी मां और दो चाचा को किडनी फेल होने की वजह से खो चुकी है।
यह किडनी ट्रांसप्लांट इसी महीने कोच्चि ट्रस्ट अस्पताल में होगा। आमतौर पर सर्जरी में 15 लाख रूपये की जरूरत पड़ती है। प्रिंसी का परिवार यह खर्च वहन करने में सक्षम नहीं है इसलिए वे किसी तरह पैसे इकट्ठे करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। अभी हाल ही में केरल की कैबिनेट ने एक ऐतिहासिक कानून बनाकर कैदियों को उनके अपने परिजनों को अंगदान करने का अधिकार दे दिया है। इसके पहले कैदियों को सिर्फ रक्तदान करने की ही इजाजत थी। केरल सरकार के इस फैसले में सुकुमारन का भी हाथ है। सुकुमारन एर्णाकुलम जिले के रहने वाले हैं और उनकी बेटी की शादी हो चुकी है। सुकुमारन की तरह ही जेल के 18 कैदियों ने अपने अंगदान करने की इच्छा जताई है।
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