मछली पालन में दिखने लगा सुनहरा भविष्य, फिशरीज कॉलेज में पढ़कर भविष्य संवार रहे छात्र
यह लेख छत्तीसगढ़ स्टोरी सीरीज़ का हिस्सा है...
छत्तीसगढ़ सरकार ने कवर्धा में प्रदेश के इकलौते फिशरीज कॉलेज की स्थापना की। अब यहां करोड़ों रुपए के सर्वसुविधायुक्त भवन भी बन चुका है। हाईटेक लाइब्रेरी व लैब हैं और रिसर्च कार्यक्रम तक शुरु किए जा चुके हैं।
फिशरीज कॉलेज का लाभ किसानों को यह मिला कि उन्हें प्रशिक्षण के साथ ही उन्नत बीजों के बारे में पता चला। उन्हें पहले इस तरह की जानकारी नहीं हुआ करती थी।
रागिनी चौधरी स्टूडेंट हैं और कबीरधाम में शुरु हुए छत्तीसगढ़ के इकलौते फिशरीज कॉलेज में बीएफएससी सेकंड ईयर में पढ़ाई करती हैं। रागिनी उद्यमी बनना चाहती हैं, मछली पालन और उससे जुड़े बिजनेस की दिशा में। इसलिए ही वह अपना सपना साकार करने इस इकलौते फिशरीज कॉलेज में पढ़ाई करने पहुंची हैं। रागिनी का मानना है कि इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। वह बताती हैं कि उन्होंने एक साल बेसिक सीखा, कि फिशरीज कैसे एक सामान्य किसान के लिए महत्वपूर्ण है और किस तरह इस दिशा में किसानों को आर्थिक तौर पर मजबूत करने के लिए मदद की जा सकती है।
यह छात्रा बताती है कि एक क्षेत्र का यदि मछली पालन की दिशा में संपूर्ण तौर पर इस्तेमाल हो, तो इसका दूसरे फसलों के मुकाबले 10 गुना फायदा होगा। रागिनी के मुताबिक उनके दादा किसान हैं। वह भी फिशरीज का कोर्स करके इतना कमा सकती है, जिससे उसे अच्छी खासी इनकम मिल सके। वह यह भी बताती हैं कि कॉलेज में सेमीनार करते हैं, तो आसपास व दूर-दूर से मछली पालन की दिशा में काम करने वाले किसान बाहर से आते हैं और यहां से सीख कर जाते हैं। यह इंस्टीट्यूट प्रदेश के साथ ही देश के बच्चों का भविष्य तो गढ़ ही रहा है, साथ ही इसने मछली पालन करने वाले किसानों को सीखकर अपने आय का जरिया बढ़ाने के रास्ते खोले हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने कवर्धा में प्रदेश के इकलौते फिशरीज कॉलेज की स्थापना की। अब यहां करोड़ों रुपए के सर्वसुविधायुक्त भवन भी बन चुका है। हाईटेक लाइब्रेरी व लैब हैं और रिसर्च कार्यक्रम तक शुरु किए जा चुके हैं। यहां 4 साल की डिग्री का कोर्स संचालित है, जिसे पढ़कर अब तक 5 बैच निकल चुकी है। यहीं से पढ़े हुए छात्र-छात्राएं प्रदेश में फिशरीज इंस्पेक्टर व फिशरीज विभाग में अलग-अलग पदों पर काम कर रहे हैं। साथ ही वोकेशनल ट्रेनिंग कोर्स व मास्टर डिग्री के कोर्स भी संचालित हो रहे हैं। चूंकि यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र फिशरीज कॉलेज है। यहां 35 ट्रेनिंग प्रोग्राम में अब तक प्रति ट्रेनिंग 40 किसानों को प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें बताया गया कि वे मछली पालन कैसे करें, बीज उत्पादन कैसे करें, प्रसंस्करण तकनीक व मार्केटिंग पर भी उन्हें जानकारी दी गई, ताकि ये मछुवारे अपने कार्य क्षेत्रों में सुदृढ़ता से काम करें और अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत करें।
फिशरीज कॉलेज का लाभ किसानों को यह मिला कि उन्हें प्रशिक्षण के साथ ही उन्नत बीजों के बारे में पता चला। उन्हें पहले इस तरह की जानकारी नहीं हुआ करती थी। उन्हें पता नहीं होता था कि बीज कहां मिलेंगे, बीज लाने पर वृद्धि नहीं होती थी। मछुआरे बीज लाकर तालाब में डाल देते थे, समझते थे काम हो गया। 6 से 8 महीने बाद जाकर जाल मार लेते थे, जितनी मछली बची, जिस साइज की बची, उसे लाकर बेच देते। अब प्रशिक्षण के बाद मछलियों को दाना खिला रहे हैं, रोगों की रोकथाम कर रहे हैं। इससे एक किलो तक या जो साइज मछली का मिलना चाहिए वह मिल रहा है।
छत्तीसगढ़ सरकार मछली उत्पादन को लगातार बढ़ावा दे रही है। इसे ऐसे समझने की जरूरत है कि साल 2003-04 में जहां 33 हैचरी व 27 मत्स्य प्रक्षेत्र थे, जिनसे 36.78 करोड़ फाई मत्स्य बीज उत्पादित होता था, वहीं 2016-17 तक यह बढ़कर 69 हैचरी व 60 प्रक्षेत्र हो गए और 478.35 हेक्टेयर संवर्धन क्षेत्र के माध्यम से कुल 197 करोड़ स्टैंडर्ड फ्राई उत्पादित कर राज्य देश में 6वें स्थान पर है।
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