प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए राजेश्वरी ने पैदल तय किया गुजरात से दिल्ली का सफर
प्लास्टिक से होने वाले प्रदूषण को रोकरने के लिए 32 वर्षीय राजेश्वरी ने तय किया इतना लंबा सफर...
इस वर्ष पर्यावरण दिवस की थीम थी 'प्लास्टिक प्रदूषण से निजात'। इसी को ध्यान में रखते हुए राजेश्वरी ने 22 अप्रैल को अपना सफर शुरू किया था। उन्होंने राजस्थान, हरियाणा होते हुए दिल्ली तक का सफर तय किया। इस दौरान रास्ते में पड़ने वाले गांव और कस्बों के लोगों से मिलकर उन्हें प्लास्टिक के उपयोग को कम करने की गुजारिश की।
रास्ते में राजस्थान के डूंगरपुर ने राजेश्वरी को काफी प्रभावित किया क्योंकि जिस मकसद के लिए वह पैदल चल रही थीं वहां पहले से ही प्लास्टिक के इस्तेमाल करने के बारे में लोग जागरूक थे। इस जगह के लोग सड़क पर प्लास्टिक नहीं फेंकते और इस वजह से सड़कें काफी साफ-सुथरी दिख रही थीं।
दिल्ली की तपती धूप और बेतहाशा गर्मी में भी 32 वर्षीय राजेश्वरी के चेहरे पर देखने लायक मुस्कान थी। राजेश्वरी ने प्लास्टिक इस्तेमाल करने के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए 45 दिनों में वड़ोदरा से दिल्ली तक का पैदल सफर किया था। उन्हें यूनाइटेड नेशन्स द्वारा दिल्ली में ही पुरस्कृत भी किया गया। इस वर्ष पर्यावरण दिवस की थीम थी 'प्लास्टिक प्रदूषण से निजात'। इसी को ध्यान में रखते हुए राजेश्वरी ने 22 अप्रैल को अपना सफर शुरू किया था। उन्होंने राजस्थान, हरियाणा होते हुए दिल्ली तक का सफर तय किया। इस दौरान रास्ते में पड़ने वाले गांव और कस्बों के लोगों से मिलकर उन्हें प्लास्टिक के उपयोग को कम करने की गुजारिश की।
राजेश्वरी ने कहा कि उनका मकसद पर्यावरण में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी लगवाना है। क्योंकि यह पर्यावरण पर बुरी तरह असर डाल रहा है। उन्होंने कहा, 'अब कई शहरों में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की पहल हो रही है। कई लोग जागरूक भी हो रहे हैं और वे अपने लाइफस्टाइल में बदलाव भी कर रहे हैं।' राजेश्वरी ने पर्यावरण दिवस के एक दिन पहले ही दिल्ली पहुंचीं। दिल्ली में उन्हें यूनाइटेड नेशन्स इनवायरमेंट प्रोग्राम की तरफ से एरिक सोलहेम ने पुरस्कृत किया।
राजेश्वरी बताती हैं कि इस लंबे सफर में उन्होंने अपने साथ पानी की बोतल तक नहीं रखा। उन्होंने कहा कि इससे उन्हें किसी प्रकार की दिक्कत नहीं आई। वह कहती हैं, 'आप सफर के लिए अपनी बोतल लेकर चल सकते हैं और जरूरत पड़ने पर इसे दोबारा भी भर सकते हैं। लेकिन मेरे पास पहले से ही एक भारी बैग था इसलिए मैं अपना वजन नहीं बढ़ाना चाहती थी। मैं पानी के लिए जगह-जगह पर रुकती थी और विश्राम करती थी।' राजेश्वरी का कहना है कि इन छोटी-छोटी आदतों से हम बड़ा बदलाव कर सकते हैं और प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करना तो सबसे जरूरी है।
इन 45 दिनों के सफर में राजेश्वरी ने हर रोज अपने पैरों से पैदल 20 से 25 किलोमीटर का सफर किया। वह रास्तों में पड़ने वाले कई छोटे-छोटे गांवों और कस्बों में रुकीं। उन्होंने लोगों से बात की और प्लास्टिक के खतरों से अवगत कराया। रास्ते में राजस्थान के डूंगरपुर ने राजेश्वरी को काफी प्रभावित किया क्योंकि जिस मकसद के लिए वह पैदल चल रही थीं वहां पहले से ही प्लास्टिक के इस्तेमाल करने के बारे में लोग जागरूक थे। इस जगह के लोग सड़क पर प्लास्टिक नहीं फेंकते और इस वजह से सड़कें काफी साफ-सुथरी दिख रही थीं। वह कहती हैं कि हमें बाजार जाने पर अपने साथ कोई झोला रखना चाहिए और सफर के दौरान खुद की पानी की बोतल रहे तो बेहतर रहेगा।
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