दो बार असफल रहने के बाद भी संघर्ष करना जानती हैं 'अंशुल'
भारत में अगर आप किसी चीज में असफल हो जाते हैं तो लोगों की त्यौरियां चढ़ जाती हैं और अगर कोई महिला असफल हो जाये तो हालात और ज्यादा बुरे होते हैं। अंशुल खंडेलवाल भी सफलता का स्वाद चखने से पहले दो बार असफल रह चुकी हैं। ‘अपसाइड9’ ये नाम है अंशुल के स्टॉर्टअप का। ये एप्प डेवलपमेंट के लिए स्टूडियो मॉडल है। ‘अपसाइड9’ के बारे में बताने से पहले अंशुल ने बताया कि एक मजबूत उद्यमी बनने से पहले उन्होने अपनी जिंदगी में उतार भी देखा है और उस हालात में भी सीखने की कोशिश की है।
साल 2006 में इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो बेंगलुरू आ गई और उन्होने वहां एक बड़ी आईटी सर्विस कंपनी में काम करना शुरू कर दिया। लेकिन उद्यमशीलता के प्रति उनकी चाहत कभी खत्म नहीं हुई। जब वो नौकरी कर रही थी तब उनके दोस्त ने उनको बताया कि वो क्यों ना वो गणित ट्यूटोरियल के बारे में सोचे और इसके लिए वो इंटरनेट की मदद ले सकती हैं। साल 2009 में ‘अपसाइड9’ की स्थापना करने वाली अंशुल का कहना है कि “मैं गणित में काफी अच्छी थी इसलिए मैंने अपने दोस्त के साथ मिलकर बातचीत आधारित ट्यूटोरियल की शुरूआत की।” इसके लिए अंशुल ने एनसीईआरटी की गणित की किताबों को इकट्ठा करना शुरू किया जिसके बाद उन्होने अपनी साइट के जरिये छात्रों को पढ़ाने का काम शुरू किया। उन्होने सबसे पहले आठवीं क्लास से लेकर दसवीं क्लास के बच्चों पर ध्यान दिया इसके लिए उनके सामने जो भी प्रश्न आते वो उनका उत्तर देने का काम करती। इसके अलावा वो एक एक पाठ पढ़ाने का काम भी करती थी इसके लिए उन्होने हर चैप्टर के लिए ढाई सौ रुपये का शुल्क रखा था। उन्होने गणित के विभिन्न फॉर्मूलों के लिए एक ऑडियो फाइल भी बनाई जिसे किसी भी एमपी3 प्लेयर पर डाउनलोड कर सुना जा सकता था। अंशुल ने अपने इस काम की शुरूआत बेंगलुरू के चार स्कूलों के साथ मिलकर की और अपने इस आइडिये का धीरे धीरे विस्तार करती गई। अंशुल ने छात्रों की मदद के लिए गणित के सभी चैप्टर को अपनी आवाज में रिकॉर्ड किया ताकि किसी छात्र को अगर कोई समस्या हो तो वो उसको सुन कर सुलझा सके। बावजूद उनके सामने कई चुनौतियां थीं।
अंशुल का कहना है कि “हम लोग दिन में अपना काम करते और शाम 5 बजे बाद से छात्रों को ट्रेनिंग देते थे।” इस तरह दो साल तक वो अपने काम के साथ साथ स्टार्टअप चला तो रही थीं लेकिन तब उनको दो चीजें सीखने को मिलीं। पहली ये थी कि अगर बिजनेस मॉडल काम करना शुरू कर दे तो नौकरी तुरंत छोड़ देनी चाहिए और अपना सारा ध्यान अपने स्टार्टअप पर लगाना चाहिए और दूसरी चीज ये कि किसी भी काम को बुलंदी तक पहुंचाने के लिए मजबूत टीम होनी चाहिए। अंशुल ने बताया कि “मेरे पार्टनर ने बीच रास्ते में ही मेरा साथ छोड़ दिया था इसलिए मैं अकेले उसे नहीं संभाल सकती थी। इस कारण साल 2009 में इस काम को बंद करना पड़ा।” हालांकि अंशुल ने इस उद्यम को खड़ा करने में करीब डेढ़ लाख रुपये खर्च किये थे, इसलिये भले ही उनको ज्यादा आर्थिक नुकसान ना उठाना पड़ा हो लेकिन इस काम में उनका वक्त और ताकत दोनों खर्च हुई। इस तरह उन्होने मौका खो दिया अपने आइडिये के जरिये आगे बढ़ने का।
बावजूद इसके अंशुल ने हार नहीं मानी और अपने सपनों को नहीं मरने दिया। वो साल 2013 तक आईटी सर्विस से जुड़ी रहीं। तब उन्होने खाने से जुड़ा स्टार्टअप शुरू किया। इसके जरिये वो उन प्रोफेशनल लोगों के लिए खाना भेजती थी जो देर रात अपने घर पहुंचते थे। करीब दो महीने तक ये काम करने के बाद उनको लगने लगा कि इसके परिचालन में लागत काफी ज्यादा आ रही है और अपने आइडिये को सकार करने के लिए काफी पैसे की जरूरत है। तब उन्होने देखा कि उन्होने अपनी छह महिने की बचत का पैसा इसमें खर्च कर दिया है। तब उनको एहसास हुआ कि हर आइडिये को बुलंदी तक नहीं पहुंचाया जा सकता जबकि कुछ आइडिया को साकार करने के लिए और व्यवसाय की जटिलता को दूर करने के लिए काफी पैसे की जरूरत होती है। इसके अलावा नियमित ग्राहक का होना भी बहुत जरूरी है। एक अनुमान के मुताबिक ये कारोबार तभी फलफूल सकता है जब कोई ग्राहक महिने में कम से कम पांच बार खाने का ऑर्डर दे।
इस असफलता के बाद अंशुल ने राजस्थान की यात्रा की और आत्ममंथन किया। तब उन्होने महसूस किया कि उन्होने अपनी जिंदगी के आठ साल आईटी सर्विस में गुजारे जहां से उन्होने छलांग लगाकर पूरी तरह उद्यमी बनने का फैसला लिया और ‘अपसाइड9’ की स्थापना की। जो एक एप्प स्टूडियो है।
असफलताओं से सबक लेना भी अपने कौशल में सुधार लाने की तरह है। इस तरह साल, 2014 तक ये बात साफ हो गई थी कि पूरी दुनिया एप्प चाहती है और इसके लिए उनको ऐसे इंजीनियर चाहिए जो उनके लिए ऐसे एप्प बनाये। इसके लिए अंशुल ने जयपुर में एक दुकान खोली और अपने यहां एनरोइड और आईओएस से जुड़े इंजीनियरों को अपने साथ जोड़ा जो दुनिया भर में फैले ग्राहकों को सेवा देने का काम करने लगे। इस तरह ‘अपलोड9’ ग्राहकों के अनुरोध के मुताबिक ना सिर्फ भारत में बल्कि अमेरिका में रह रहे लोगों के लिए भी एप्प बनाने का काम करने लगा। अंशुल ने अपने इस कारोबार में 15 लाख रुपये का निवेश किया। जिससे उनको आमदनी भी होने लगी वो अपने ग्राहकों से एप्प तैयार करने से पहले शुल्क लेने लगी। धीरे धीरे अपने काम को विस्तार देने के लिए उन्होने अपनी टीम के साथ काफी विचार मंथन किया ताकि भारतीय ग्राहकों तक अपने तजुर्बे और सेवाएं पहुंचा सके। उन्होने पहला एप्प 'करोसेल' नाम से बनाया। ये एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां पर कोई भी व्यक्ति इस्तेमाल किये गये कोई भी समान को बेच सकता है।
प्रतियोगिता
देश में इस्तेमाल की हुई कार और इलेक्ट्रॉनिक आइटम का अपना बाजार है। इसके मुकाबले दूसरे क्षेत्रों में इतनी तेजी नहीं है। अंशुल का कहना है कि "करोसेल का ध्यान छोटी चीजों पर रहेगा जैसे किताबें या दूसरी चीजें।" उनका कहना है कि बाजार का ध्यान इस ओर नहीं गया है और ये आने वाले सालों में इसके बढ़ने की काफी गुंजाइश भी है। टेक्नोपेक के मुताबिक अकेले देश में फैशन के सामान का बाजार करीब 3.4 बिलियन डॉलर का है। ग्रीन डस्ट देश की ऐसी बड़ी कंपनी है जो इस्तेमाल किये हुए इलेक्ट्रॉनिक समान को बेचती है। कंपनी ने हाल ही में 40 मिलियन डॉलर का निवेश हासिल किया है। इसलिए इस क्षेत्र में निवेशक आ रहे हैं और 'अपसाइड9' भी निवेश हासिल कर सकता है अगर उसका ये बिजनेस मॉडल कामयाब हो जाये तो। 'अपसाइड9' अपने उत्पाद की क्वॉलिटी की गारंटी देता है इसके लिए उसने विभिन्न संगठनों से समझौता किया हुआ है जो उसके उत्पाद की क्वॉलिटी पर नजर रखते हैं। 'करोसेल' एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां पर खरीदार सामान बेचने वाले के साथ मोलभाव कर सकता है। इसके लिए एप्प में चेटिंग की व्यवस्था है। ये एप्प आईओएस के साथ साथ एनरोइड में भी मौजूद है। अली बाबा जो बिलियन डॉलर की चीन की कंपनी है जहां पर समान बेचने वाला खरीदार से सीधे सम्पर्क कर सकता है। वजीर एडवाइजर के संस्थापक हरमिंदर सहानी का कहना है कि 'इस तरह का कारोबार ना सिर्फ ग्राहक को अपनी सेवाएं देने में मददगार साबित होता है बल्कि गुणवत्ता भी बनी रहती है।'
बावजूद इसके अंशुल के सामने मुख्य चुनौती अपने कारोबार को बढ़ाना है। हालांकि एप्प सेवा के जरिये उनकी आय बढ़ रही है फिर भी 'अपसाइड9' के एप्प को मार्केटिंग के लिये पैसे की जरूरत है। करोसेल एप्प को जरूरत है कुछ ऐसा करने की ताकि लोगों का उस पर विश्वास बढ़े और वो उसे बेचे उत्पाद को खरीदें। कंपनी की साख को तब धक्का लगता है जब कोई समान या गलत वितरित हो जाता है या वो टूट जाता है। आरिन कैपिटल के एमडी मोहनदास पई का कहना है कि "इस तरह के कारोबार में काफी संभावनाए हैं बावजूद ये काफी रिस्क वाला कारोबार है, लेकिन ये निर्भर करता है उद्यमी की क्षमता पर कि वो किस तरह बाजार में अपनी जगह बनाता है।" अंशुल ने अपने पिछले स्टार्टअप से सीखा की उद्यमी में सीखने की भूख शांत नहीं होनी चाहिए। उसमें जोखिम लेने की भूख होनी चाहिए, नहीं तो शायद वो उद्यमी नहीं होती। 'करोसेल' को दिल्ली और जयपुर के अलावा दूसरे शहरों में भी टेस्ट करने की जरूरत है और अगर चार शहरों में इसने अपनी पकड़ बना ली तो कंपनी को आसानी होगी निवेश हासिल करने में।