यूरोपियन यूनियन ने लगाया रूस से कच्चे तेल के आयात पर प्रतिबंध, क्या भारत को अब मिलेगा और सस्ता तेल ?
यूरोपियन यूनियन और रूस के बीच ठनी तकरार के बीच भारत के लिए यह कूटनीतिक अवसर है, जहां वह रूस के साथ कच्चे तेल की कीमतों को लेकर मोलभाव कर सकता है.
रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने सिर्फ उन दो देशों पर ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया पर असर डाला है. जैसाकि हमेशा होता है कि इंसानी जिंदगियों के बाद इस तरह की घटनाओं का सबसे पहला असर आर्थिक स्थितियों पर पड़ता है और उस असर की जद में सिर्फ संबंधित मुल्क ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया ही आ जाती है. आज के ग्लोइलाइज्ड समय में, जहां पूरी दुनिया एक गांव है और सभी अर्थव्यवस्थाएं किसी न किसी रूप में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं, यह प्रभाव सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है.
युद्ध के कारण रूस के प्रति यूरोपियन यूनियन (ईयू) की नाराजगी जगजाहिर है. ईयू ने युद्ध शुरू होने के बाद से रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाया है. ताजा फैसला ये है कि यूरोपियन यूनियन ने रूस से कच्चे तेल के आयात को रोकने का फैसला किया है. आने वाले छह महीने में रूस से यूरोपीय देशों में निर्यात होने वाला 90 फीसदी कच्चा तेल बंद हो जाएगा.
इसका असर पूरी दुनिया में पेट्रोल की कीमतों पर पड़ेगा. हालांकि अभी से यह असर दिखना शुरू हो गया है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों पर इजाफा हो रहा है. कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 122 डॉलर तक पहुंच चुकी है.
जो यूरोपीय देश अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए पूरी तरह रूस पर निर्भर थे, उनके लिए यह बहुत मुश्किल फैसला था. लेकिन यूरोपियन यूनियन के एकमत को देखते हुए उन्हें भी इस फैसले में शामिल होना पड़ा. फिनलैंड और लातविया अपनी 94 फीसदी से ज्यादा ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर हैं, जिसमें गैस और कच्चा तेल दोनों शामिल है.
हालांकि जर्मनी और इटली गैस के सबसे बड़े आयातक देश हैं, लेकिन वो अपनी ऊर्जा जरूरतों का क्रमश: 49 और 46 फीसदी ही रूस से आयात करते हैं. ऐसे ही कच्चे तेल को देखें तो जर्मनी, पोलैंड, बेल्जियम, फ्रांस और यूके रूसी कच्चे तेल के सबसे बड़े आयातक देश हैं, लेकिन अपनी कुल जरूरतों का तकरीबन 30 फीसदी ही ये देश रूस से आयात कर रहे होते हैं.
बोस्निया, नॉर्थ मेसेडोनिया और मोलदोवा जैसे यूरोपीय देश जो अपने 100 फीसदी आयात के लिए रूस पर निर्भर हैं, संयोग से वो अभी यूरोपियन यूनियन का हिस्सा नहीं हैं. हालांकि बोस्निया को ईयू के पोटेंशियल कैंडीडेट के रूप में देखता है.
फिलहाल रूस ईयू के इस फैसले पर ज्यादा विचलित नजर नहीं आ रहा है. मिखाइल उल्यानोव ने ट्वीट करके कहा है, ‘‘रूस को और दूसरे बहुत आयातक मिल जाएंगे.’’ उल्यानोव विएना स्थित अंतरराष्ट्रीय संगठनों में रूस के स्थायी प्रतिनिधि हैं.
भारत पिछले कुछ महीनों से रूस के लिए कच्चे तेल का प्रमुख आयातक देश बना हुआ है. 2021 में रूस से आयात होने वाला कच्चा तेल महज एक फीसदी था, जो इस अप्रैल में बढ़कर 5 फीसदी हो गया है. पिछले कुछ महीनों में भारत ने रूस से कुल 48 लाख बैरल कच्चा तेल आयात किया है.
अब सबसे बड़ा कूटनीतिक सवाल यह है कि यूरोप में सालों से मौजूद एक बड़े बाजार को खोने के बाद क्या रूस निर्यात की उस कमी को कैसे पूरा करेगा. और चूंकि रूस खुद भी संकट से गुजर रहा है तो क्या भारत को रूस से अब और सस्ता तेल मिलने की उम्मीद है.
रूस को अब अपने कच्चे तेल के लिए नया बाजार खोजना होगा और सवा अरब की आबादी वाला देश भारत रूस के लिए सबसे बड़ा बाजार है. भारत के लिए भी यह एक कूटनीतिक मौका है. वह रूस के साथ कच्चे तेल की कीमतों को लेकर और मोलभाव कर सकता है.
Edited by Manisha Pandey