विश्व स्तनपान सप्ताह: भारत में आधे से भी कम बच्चों को जन्म के बाद कराया जाता है स्तनपान
स्तनपान है जरूरी, न समझो मजबूरी
विश्व स्वास्थ्य संगठन सिफारिश करता है कि सभी शिशुओं को विशेष रूप से छह महीने की आयु तक स्तनपान कराना चाहिए और छह महीने के बाद पर्याप्त मात्रा में अनुपूरक आहार के साथ दो वर्ष का होने तक अथवा उससे भी अधिक समय तक स्तनपान जारी रखना चाहिए।
लेकिन भारत में स्तनपान न कराने की काफी गंभीर और बुरी प्रवृत्ति देखी गई है। सिर्फ 42 प्रतिशत महिलाएं ही ऐसी हैं जो प्रसव के एक घंटे के भीतर ही अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं। वहीं सिर्फ 55 प्रतिशत महिलाएं ही बच्चे को जन्म के 6 महीने तक स्तनपान कराती हैं।
हर साल 1 से 7 अगस्त तक स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है ताकि स्तनपान को बढ़ावा दिया जा सके और नवजात बच्चों का स्वास्थ्य सुधर सके। वर्ल्ड अलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग ऐक्शन (WABA) इसका आयोजन करता है। इस बार इस कार्यक्रम की थीम है 'स्तनपान: जीवन का आधार'। स्तनपान शिशु के लिए प्राकृतिक और सम्पूर्ण आहार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सिफारिश करता है कि सभी शिशुओं को विशेष रूप से छह महीने की आयु तक स्तनपान कराना चाहिए और छह महीने के बाद पर्याप्त मात्रा में अनुपूरक आहार के साथ दो वर्ष का होने तक अथवा उससे भी अधिक समय तक स्तनपान जारी रखना चाहिए। लेकिन भारत में स्तनपान न कराने की काफी गंभीर और बुरी प्रवृत्ति देखी गई है। सिर्फ 42 प्रतिशत महिलाएं ही ऐसी हैं जो प्रसव के एक घंटे के भीतर ही अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं। वहीं सिर्फ 55 प्रतिशत महिलाएं ही बच्चे को जन्म के 6 महीने तक स्तनपान कराती हैं।
इस मामले में उत्तर प्रदेश की हालत सबसे खराब है जहां सिर्फ 25.4 प्रतिशत महिलाएं ही बच्चों के सही से स्तनपान कराती हैं। राजस्थान, दिल्ली, पंजाब और उत्तराखंड का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है। ऐसे समय में जब शिशु के विकास की दर उच्चतम अवस्था में होती है, स्तनपान शिशु को प्राय: सभी पौष्टिक तत्वों की पर्याप्त और उचित मात्रा उपलब्ध कराता है।
हर उम्र में रुग्णता और मृत्यु दर फार्मूला दूध या ऊपर का दूध पिलाने से संबंधित है। हाल ही में बाल उत्तरजीविता संबंधी आंकड़ों से पता चला है कि पहले छह महीनों के दौरान विशेष रूप से स्तनपान तथा 6-11 महीनों तक निरंतर स्तनपान को प्रोत्साहन देना एकमात्र ऐसा उपाय है जो 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर को 13-15 प्रतिशत कम करता है। एक अन्य अध्ययन में, यह पता चला है कि यदि सभी शिशुओं को जन्म के पहले दिन से स्तनपान कराया जाए तो 16 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत को रोका जा सकता है। यदि जन्म के पहले घंटे से ही स्तनपान शुरू कर दिया जाए तो 22 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मौत को रोका जा सकता है।
स्तनपान अतिसार और श्वास संबंधी अनेक संक्रमणों से शिशु की सुरक्षा करता है। इसके अतिरिक्त यह उच्च रक्त चाप, मधुमेह, हृदय रोग जैसी अनेक दीर्घकालिक समस्याओं से भी शिशु को सुरक्षा प्रदान करता है। अनुराग, प्यार और दुलार बढ़ाते हुए यह मां और बच्चे के बीच भावनात्मक रिश्ते को मजबूत करता है! इस प्रकार यह महज आहार ही नहीं बल्कि उससे कहीं बढ़कर है। मां का दूध स्वच्छ और जीवाणुमुक्त होता है। इसमें संक्रमण रोधी कारक होते हैं तथा शिशु के लिए यह हर समय सही तापमान पर उपलब्ध रहता है। इन सब विशेषताओं के साथ यह किफायती और मिलावटरहित है।
मां के दूध में श्वेत रुधिर कणिकाएं (ल्यूकॅसाइट), मैक्रोफेज, और एपिथेलियल कोशिकाएं; लिपिड़ि्स मुक्त वसा अम्ल, फास्फोलाइपिड्स, स्टेरॉल्स, हाइड्रोकार्बन्स और वसा में घुलनशील विटामिन); कार्बोहाइड्रेट्स (दुग्ध शर्करा, गैलेक्टोस, ग्लूकोस, प्रोटीन जैसे SlgA, लाइसोज़ाइम्स, एन्ज़ाइम्स, हार्मोन्स और वृध्दिकारक) होते हैं जो शिशु के वर्धन और विकास को बढ़ावा देते हैं।
स्तनपान कराने से मां को भी स्वास्थ्य संबंधी अनेक फ़ायदे होते हैं। ऐसा करने से प्रसव के बाद रक्तस्राव में कमी होती है जिसके फ़लस्वरूप अरक्तता (अनीमिया) में कमी होती है। स्तनपान कराने वाली माताओं में मोटापा भी कम देखा जाता है क्योंकि स्तनपान से मां को फिर से अपना सामान्य आकार पाने में मदद मिलती है। यह छाती और अण्डाशयी कैंसर से भी संरक्षा प्रदान करता है। स्तनपान कराने के गर्भनिरोधक प्रभाव भी होते हैं। जहां तक शिशु के पालन-पोषण और उसके साथ व्यावहारिक तालमेल बिठाने की बात है, तो जो माताएं स्तनपान कराती हैं, वे अपने शिशुओं के साथ बेहतर तालमेल बिठा लेती हैं। स्तनपान समाज के लिए भी फ़ायदेमंद है क्योंकि यह बच्चों में बीमारी को कम करके स्वास्थ्य संबंधी देखेरेख की लागत में कमी करता है और इस प्रकार परिवार पर वित्तीय तनाव को कम करता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि मां के दूध का उत्पादन मांग और आपूर्ति पर आधारित होता है। मां जितना अधिक स्तनपान कराती है दूध उतना ही अधिक उतरता है, इसका मतलब है कि मां को निश्चित समय सारिणी के बजाय शिशु के मांगने पर ही स्तनपान कराना चाहिए। शिशु वृध्दिशील भी होते हैं। इसलिए जिस शिशु को हर तीन घंटे में स्तनपान कराया जाता है वह अचानक हर घंटे में दूध पीने की मांग कर सकता है। यह इसलिए नहीं कि दूध की आपूर्ति कम है, बल्कि इसका मतलब है कि शिशु की वृध्दि तेजी से हो रही है।
2016 के एक आंकड़े के मुताबिक देश में हर साल 6 बच्चों की जन्म के 28 दिन के भीतर ही मृत्यु हो जाती है। इसके पीछे स्तनपान न कराना भी एक वजह होती है। स्तनपान न कराने के पीछे गरीबी, रूढ़िवाद, महिलाओं का खराब स्वास्थ्य जैसी चीजें जिम्मेदार होती हैं। इस विश्व स्तनपान सप्ताह के दौरान सभी स्वास्थ्य संगठन ''आपातकाल से पहले और बाद में जीवन रक्षक उपाय के रूप में स्तनपान पर विचार करने की आवश्यकता'' पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। जिस अवधि में रोग (अर्थात महामारी या देशव्यापी बीमारी) फैलने की अधिक आशंका होती है, उसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपातकाल के रूप में वर्गीकृत किया है। इस साल स्वाइन फ्लू की घटनाओं के मद्देनज़र, स्तनपान का महत्त्व और अधिक बढ़ गया है। अत: मां के प्यार की तरह मां के दूध का भी कोई विकल्प नहीं है।
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