गांवों और छोटे शहरों के व्यापारियों को सफलता की नई आवाज़ देती ‘ध्वनि’
इंस्टीट्यूट आॅफ रूरल मैनेजमेंट आनंद के दो छात्र स्वप्निल अग्रवाल और संनुदन मदन की मेहतन और लगन का है नतीजा...प्रारंभ में कुछ छोटी-मोटी परियोजनाओं पर काम किया लेकिन संतुष्टि नहीं मिलने के चलते करने लगे नौकरी....कुछ समय बाद नौरी छोड़कर दोनों मित्रों ने ‘ध्वनि रूरल इंफार्मेशन सिस्टम’ की स्थापना की और दूसरों को सामाजिक क्षेत्र के बारे में समझाया...डाटा कलेक्शन और रिपोर्टिंग से मुक्त कर कर्मचारियों को सकारात्मक कार्यों की तरफ लगाने में की मदद...
स्वप्निल अग्रवाल और संनुदन मदन ने इंस्टीट्यूट आॅफ रूरल मैनेजमेंट आनंद (आईआरएमए) में जमीनी स्तर पर संचालित हो रहे छोटे संस्थानों की विभिन्न संचालन प्रक्रियाओं को डिजिटाइज करने का काम प्रारंभ किया। अपने पाठ्यक्रम के आखिरी दौर में इन्होंने आगा खान ग्रामीण सहायता (एकेआरएसपी ) कार्यक्रम के संपर्क में आए और यहां यह जोड़ी दक्षिण गुजरात के 150 गांवों में संचालित होने वाली एक परियोजना का हिस्सा बनने में सफल रही। स्वप्निल कहते हैं, ‘‘फील्ड में काम करने वाले अधिकतर व्यक्तियों के जिम्मे ढेर सारा डाटा का काम दे दिया गया था जिसकी वजह से उन्हें उन लोगों और उस समाज के साथ वार्तालाप करने और उनसे जुड़ने का समय ही नहीं मिलता था जिनके लिये वे काम कर रहे थे।’’ ऐसे में एकेआरएसपी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए इस परियोजना से संबंधित गहन डाटा प्रक्रियाओं को आसान करने के लिये साॅफ्टवेयर सामाधान खोजते हुए एक आईसीटी को विकसित किया।
ग्रामीण प्रबंधन में स्वप्निल की रुचि तब जागी जब उन्होंने देखा कि सामाजिक उद्यमिता और गैर-लाभ वाले संस्थानों के क्षेत्र तकनीक को अपनाने के मामले में काफी पिछड़े हुए हैं। ‘‘कई बार तो उन्हें अपने काम के लायक प्रतिभा ही नहीं मिल पाती है या फिर अधिकांश मामलों में तो वे बहुत सीमित संसाधनों से लैय इलाकों में स्थित होते हैं लेकिन उनका कार्यक्षेत्र काफी विस्तृत होता है। शहरों में गूगल ड्राइव या ड्राॅपबाक्स जैसे संसाधनों के साथ काम कर रहे संस्थानों के साथ अगर तुलना करें तो ये लोग अपना अधिकतर काम या कहें सारा काम कागजों पर ही पूरा करते हैं।’’ हालांकि इसके बावजूद कई ऐसी तकनीकें हैं जो इन गैर लाभकरी उद्यमों के लिये इजाद हुई हैं। ‘‘अभी तक यह छोटे उद्यम और उद्यमी इन्हें अपनाने में सफल नहीं हो पाए हैं और ऐसे में हम इसी खाई को अपने लिये इस्तेमाल करना चाहते थे। हमारा ध्यान मुख्यतः कागज, डाटा एंट्री, डाटा क्लीनिंग इत्यादि की लागतों पर काबू पाते हुए स्थानीय और आसान साॅफ्टवेयर की सहायता से डाटा इकट्ठा करना था।’’
स्वप्निल कहते हैं, ‘‘और यही सबकुछ तो हम करते हैं।’’ हालांकि इन छोटी-मोटी परियोजनाओं से स्वप्निल और सुनंदन को इतना पैसा नहीं मिल पा रहा था कि वे लोग टिके रहने में कामयाब हो सकें। ‘‘ऐसे में हम दोनों ने इस काम को करते रहने के लिये नौकरी करने का फैसला किया और नौकरी करने लगे।’’ सुनंदन ने एक एनजीओ के साथ काम करना शुरू कर दिया और स्वप्निल को दुबई में एक अच्छी नौकरी मिल गई। ‘‘करीब तीन-चार महीने बीतने के बाद भी हम अपने काम से संतुष्ट नहीं थे।’’ इसके बाद इन दोनों मित्रों ने ‘ध्वनि रूरल इंफार्मेशन सिस्टम’ को अधिकारिक रूप से प्रारंभ करने का फैसला किया लेकिन वैकल्पिक रूप में। इन्हें लगता था कि खुद के समर्थन के लिये अभी इन्हें एक स्थाई नौकरी की आवश्यकता है। ‘‘लेकिन इस विचार ने काम नहीं किया। हर किसी ने हमें राय दी कि हमें बाकी सबकुछ भुलाकर अपना पूरा समय ध्वनि के विकास पर देना चाहिये।’’ आने वाले कुछ महीनों तक दुबई सै लौटे स्वप्निल और सुनंदन मिलकर विशेष रूप से सिर्फ एजनीओ, एनपीओ, सामाजिक प्रभाव वाले कारोबार और निवेशकों केसाथ मुलाकात करने और उन्हें भारत के ‘सामाजिक’ क्षेत्र के बारे में समझाने के काम में लगे रहे। ‘‘हम उन लोगों तक यह संदेश पहुंचाना चाहते थे कि हम जो कर रहे हैं उसका कुछ मतलब है और वह आज के समय की आवश्यकता है।’’
इस काम में एक वर्ष तक मेहनत करने के बाद ‘ध्वनि’ के हिस्से में 10 उपभोक्ता आये थे। स्वप्निल कहते हें, ‘‘हम एक पहिये का आविष्कार नहीं करना चाहते थे क्योंकि लेखापद्धति प्रणाली और डेटाबेस से संबंधित काम तो यहां पहले से ही होते आ रहे थे। हमें इस क्षेत्र में पहले से ही कार्यरत लोगों के साथ खुद को जोड़ते हुए उनसे इन संस्थानों के लिये ऐसे अनुप्रयोगों को तेयार करने के लिये प्रेरित करना था जो इनके लिये फायदेमंद हों। हमने इनकी आवश्यकताओं को समझने और जानने में अपना बहुत समय लगाया फिर चाहे वह ओडीके हो या क्लाउड टेलीफोनी।’’ अपने इस काम के दौरान ये अपने उपभोक्ताओं को बेहतर सेवाएं प्रदान करने के लिये दीर्घकालिक इंजीनियरों की सेवाएं भी लेते हैं। इस सबके बावजूद भी स्वप्निल को अपने कार्यक्षेत्र के वातावरण को लेकर कोई भ्रम नहीं है। ‘ध्वनि’ विशुद्ध रूप से सामाजिक प्रभाव वाले संगठनों के पैसों की बचत करने का उद्देश्य लेकर विशुद्ध रूप से टीम के जुनून से संचालित होता है। वे कहते हैं, ‘‘अधिकतर आईटी कंपनियां इन लोगों के बारे में सोचती भी नहीं हैं। हर कोई बड़े काम की तलाश में है। मुझे पता है कि हम जो भी कर रहे हैं वह बड़ा काम नहीं है। यह एक सेवा-उन्मुख दृष्टिकोण है।’’ फिर भी उनके लिये उममीद की किरण बाकी है क्योंकि ‘ध्वनि’ ने सामाजिक क्षेत्र में व्याप्त सामान्य समस्याओं को पहचानने में और समाने लाने में मदद की है। वे कहते हैं, ‘‘हम एक ऐसे मंच को तैयार करने की प्रक्रिया में हैं जिसकी मदद से हम डाटा कलेक्शन, डाटा विश्लेषण, बुद्धिमत्ता से भरे कार्यों और आईवीआर तकनीक जैसे साधारण मुद्दों को सुलझा सकते हैं।’’ इस प्रकार के कामों में समाने आने वाली एक और प्रमुख समस्या आधारभूत सर्वेक्षणों के आयोजन को लेकर आती है। यह अधिकतर संस्थानों की आवश्यकता होने के बावजूद ऐ कागजात प्रधान कार्य है जिसे ‘ध्वनि’ बदलना चाहती है। इसके अलावचा बाजार में आईसीटी समाधान भी मौजूद हैं जिन्हें ‘ध्वनि’ संगठन की आवश्यकता के आधार पर झटक लेती है।
स्वप्निल कहते हें कि वर्तमान समय में भारत के सामाजिक क्षेत्र में मानकीकरण का न के बराबर मौजूद होना सबसे बड़ी समस्या है। अधिकांश समय कार्यप्रदाता को रिपोर्ट देने के लिये डाटा के कार्यों में ही खर्च कर दिया जात है। न तो पैसा देने वाला और न ही एनजीओ वास्तव में जरूरतमंद के साथ बातजीत में संलग्न हो पाता है। वे कहते हैं, ‘‘ हमारा उद्देश्य अपने साथ काम कर रहे लोगों को डाटा रिपोर्टिंग के काम से मुक्त करना है ताकि वे फील्ड में और अधिक उपयोगी कार्यों में अपनी ऊर्जा लगा सकें।’’ इसके अलावा ‘ध्वनि’ द्वारा प्रदान किया जाने वाला तकनीकी समाधान भी यह सुनिश्चित करने का प्रयास होता है कि अंत उपयोगकर्ता भी उसका आसानी से उपयोग कर सके। ‘‘हमारे सिस्टम ऐसा होना चाहिये कि स्थानीय भाषा को जानने वाले भी उसे आसानी से समझ सकें। इस प्राकर के माध्यमिक शिक्षा प्राप्त कोई व्यक्ति भी हमारे साॅफ्टवेयर को आसानी से संचालित कर सकता है।’’
डाटा का यह डिजिटाईजेशन और स्वचालन पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। स्वप्निल कहते हैं, ‘‘हम सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के लिये संसाधनों को उपलब्ध करवाने के लिये अनुदाताओं को संयुक्त प्रसताव लिखने और भेजने तक ही सीमित रह जाते हैं। लेकिन यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें हम हमेशा संघर्ष करते हैं।’’स्वप्निल के अनुसार बड़े अनुदाता किसी भी एनजीओ से बहुत अधिक उम्मीदें रखते हैं लेकिन छोटों को भरोसा होता है कि उनके सभी कार्याें का लेखा-जोखा एक्सेल शीट पर ही तैयार किया जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ जब कभी भी सरकार शामिल होती है तो सबकुछ बिल्कुल ही जाता है। ‘‘सबसे पहले आती है नौकरशाही। इसके बाद आता है प्रबंधन का मुद्दा। जब हम जवाबदेही को बढ़ाने वाली सेवाओं को विकास कर रहे होते हैं तो कर्मचारियों को लगता है कि हम उनकी ‘निगरानी’ कर रहे हैं।’’ ’ध्वनि’ को इस समस्या से मध्य प्रदेश सरकार के मातृ और बाल ट्रेकिंग सिस्टम में सहायता करने के दौरान इस समस्या का सामना करना पड़ा। ‘‘उस समय एक आईपीएस अधिकारी ने इसपर जोर दिया। लेकिन जल्द ही उसकी जगह किसी दूसरे अधिकारी ने ले ली और उसकी दिलचस्पी इस काम में शायद थी ही नहीं।’’
‘ध्वनि’ के कामकाज में एक दूसरे की अत्याधिक सहायता की आवश्यकता होती है। ‘‘कई बार हम उनकी प्रक्रियाओं और संचालन को पुर्नपरिभाषित कर रहे होते हैं। ऐसे में हम अपना काफी समय और ऊर्जा उस काम में लगा देते हैं और हमें उस अनुपात में मेहनताना नहीं मिलता, लेकिन हम फिर भी अपने काम में लगे रहते हैं। अगर हम यह काम नहीं करेंगे तो और कोई इसे करने वाला भी नहीं है।’’
स्वप्निल अंत में कहते हैं, ‘‘हम स्वयं को विकासशील पेशेवर कहते हैं क्योंकि हम सिर्फ आईसीटी समाधान उपलब्ध करवाने वालों से कही अधिक हैं। अधिकांश मौजूदा आईटी समाधान ऐसे लोगों के द्वारा तैयार किये हुए नहीं है जो विकास को समझते हों और जिन्होंने वास्तविक ग्रामीण इलाके की चुनौतियों को देखा हो। हम सिर्फ समाधान को धकेलने में यकीन नहीं करते हैं। बल्कि हम लोगों की वास्तविक आवश्यकताओं को जानने और समझने के लिये उनके साथ समय बिताने में सकीन रखते हैं और ऐसा करते भी हैं।’’