इस 24-वर्षीय मैकेनिकल इंजीनियर ने ग्रामीण ओडिशा में प्रयोगशाला खोलने के लिए छोड़ दी नौकरी
समीर कुमार मिश्र, ग्राम विकास विद्या विहार में आदिवासी जनजाति के उन बच्चों को हट कर सोचना और कुछ नया बनाना सिखा रहे हैं, जिनमें से ज़्यादातर अपने परिवार की पहली शिक्षित पीढ़ी कहलायेंगे।
संस्कृत-उड़िया नाम, ‘नवोन्मेष प्रयोगशाला’ से जाने जानी वाली इस जगह का विकास छात्रों ने ही किया और अब ये छात्र नवोन्मेषों और वार्षिक परियोजना कार्य ‘परिकल्प’ का गढ़ बन चुकी है।
ग्राम विकास विद्या विहार, ग्राम विकास द्वारा चलाया जाने वाला आवासीय विद्यालय है। ये विद्यालय गाँव रुधपदर में है, जो पूर्वी घाट में उड़ीसा के गंजम ज़िले में स्थित है। यहाँ के ज़्यादातर छात्र आदिवासी जनजाति की शिक्षा पाने वाली पहली पीढ़ी से हैं, जो 2016 तक यही सोचते आये थे कि नयी खोज करना बस यूरोप और पश्चिमी देशों के लोगों के बस की बात है। उनकी सोच बदली समीर कुमार मिश्र ने, जिन्होंने वीकेंड में October Sky और Big Hero 6 जैसी फ़िल्में दिखा कर इन बच्चों में कुछ नया बनाने की ललक पैदा की। समीर मैकेनिकल इंजीनियर हैं, जिनकी नियुक्ति SBI यूथ फ़ॉर इंडिया फ़ेलोशिप के तहत ग्राम विकास में की गयी है।
24 वर्षीय समीर बताते हैं, “फ़िल्म Big Hero 6 में एक स्कूल जाने वाला बच्चा प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा देने वाला रोबोट बनाता है, इसे देखने के बाद कुछ छात्र मेरे पास आये और पूछने लगे कि क्या वो भी ऐसा कुछ बना सकते हैं या फिर ये सब सिर्फ़ फ़िल्मों में होता है? मैंने उनसे कहा कि वो भी अपने आस-पास उपलब्ध चीज़ों से ऐसी चीज़ें बना सकते हैं। ऐसे हुई थी हमारे वैज्ञानिक मॉडल बनाने के सिलसिले की शुरुआत।”
संस्कृत-उड़िया नाम, ‘नवोन्मेष प्रयोगशाला’ से जाने जानी वाली इस जगह का विकास छात्रों ने ही किया और अब ये छात्र नवोन्मेषों और वार्षिक परियोजना कार्य ‘परिकल्प’ का गढ़ बन चुकी है। यहाँ छात्र पांच के समूहों में वैज्ञानिक आविष्कार (जैसे केलिडोस्कोप) बनाते हैं। मक़सद था बच्चों को कुछ अलग सोचने के लिए प्रेरित करना, जिससे वो सीमित संसाधनों के साथ भी अपने आईडिया को विकसित करना सीख सकें। स्कूल ने एक Amazon विशलिस्ट भी बनायी जिससे मॉडल बनाने के लिए ज़रूरी सामान बच्चों को मिलता रहे।
ये स्कूल नवोन्मेष प्रयोगशाला बनाने की इच्छा रखने वाले अन्य सरकारी स्कूलों के लिए एक मिसाल बन चुका है। समीर ने सभी ग्राम विकास विद्या विहार स्कूलों में प्रयोगशाला बनवाने के लिए फंडिंग जुटाने को Atal Tinkering Labs programme के तहत नीति आयोग में भी आवेदन किया है।
शुरुआत
“Infosys के सह-संस्थापक, NR नारायण मूर्ति ने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कन्वोकेशन में भारत में शिक्षा की हालत पर चर्चा करते हुए बताया था कि बीते 60 सालों में भारत में एक भी बड़ा आविष्कार नहीं हुआ है। ये बात समीर के मन में रह गयी। उनका मानना है कि भारत में नयी खोजें तभी हो सकती हैं जब समस्याओं का हल निकालने की प्रक्रिया के ज़मीनी स्तर पर काम किया जाये। ये थी सामाजिक क्षेत्र में काम करने के उनके सफ़र की शुरुआत।
जयपुर में मणिपाल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद समीर ने प्री-प्लेसमेंट ऑफ़र के तहत जयपुर की मेटल रीसाइक्लिंग इंडस्ट्री, Gravita India Limited में काम किया। इस दौरान उनकी नज़र SBI ATM सेंटर में 13 महीने की SBI यूथ फ़ॉर इंडिया फ़ेलोशिप के लिए छपे विज्ञापन पर पड़ी। उन्होंने तुरंत इस फ़ेलोशिप के लिए आवेदन कर दिया। वो सबसे कम उम्र के कैंडिडेट थे, फिर भी ग्रामीण भारत के लिए काम करने की उनकी इच्छा ने उन्हें ये फ़ेलोशिप दिला दी और उनकी नियुक्ति ओडिशा के ग्राम विकास विद्यालय में हो गयी।
समीर बताते हैं, “स्पोर्ट लीग, ‘परिकल्प’, नामोंवेष प्रयोगशाला की स्थापना, मॉडल बनाने से लेकर मूवी क्लब खोलने तक, सबकुछ पहली बार किया गया था और अच्छी चीज़ों को आगे भी जारी रखा गया।”
नवोन्मेष प्रयोगशाला
‘GV सूपर लीग फ़ुटबॉल फ़ाइनल’ नाम की स्पोर्ट्स लीग के ज़रिये समीर बच्चों से घुले-मिले। धीरे-धीरे वीकेंड में होने वाली फ़िल्म स्क्रीनिंग के माध्यम से वो बच्चों को और जानने लगे। इन फ़िल्मों से बच्चों को साइंस फ़िक्शन के बारे में जानने का मौक़ा मिला। समीर बताते हैं, “ये सब होने लगा तो देखते ही देखते बच्चे ख़ुद ही नए आईडिया लेकर आने लगे और कुछ बनाने की कोशिश करने लगे।”
उनके पहले प्रोजेक्ट में एक anemometer मॉडल (हवा की गति नापने वाला यंत्र) भी था, जिसे कक्षा 7 के बच्चों ने बनाया था। इसे बच्चों ने आस-पास उपलब्ध सामान से एक हफ़्ते में बनाया था। इसके बाद बच्चे एक के बाद एक मॉडल बनाते गए जिनमें पेरिस्कोप, केलिडोस्कोप आदि शामिल थे। समीर बताते हैं, “बच्चों की दिलचस्पी कुछ ऐसी थी कि उन्होंने rotating Newton’s disc भी ख़ुद बना डाली, जिसे मटेरियल उपलब्ध न होने के कारण मैं ख़ुद नहीं बना पाया था। उन्होंने इसके लिए एक पुराने खिलौने की मोटर ली और बेस के तौर पर एक पुराना तेल का डब्बा इस्तेमाल किया।
इस आविष्कार का असर ये हुआ कि बेंगलुरु की Pratham Education Foundation ने स्कूल के साथ मिल कर के बच्चों के लिए जीवविज्ञान सम्बंधित कार्यशालाओं का आयोजन कराया। समीर ने बच्चों को वैज्ञानिकों और महान व्यक्तियों के बारे में पढ़ा कर गाँव वालों की समस्याओं का समाधान करने के लिए प्रेरित किया। आगे बढ़ने के लिए बच्चों को कम्प्यूटर और इंटरनेट से जोड़ना ज़रूरी था। समीर ने Google Voice का सहारा लेकर बच्चों को इंटरनेट का इस्तेमाल करना सिखाया, क्योंकि उन्हें अंग्रेज़ी में टाइप करने में मुश्किल होती थी।
सपनों को मिले पंख
• एक साल के अन्दर ही बच्चों के सपनों को पंख देने के लिए समीर ने और कई काम किये:
• Quantum Learning Methodology ने शिक्षकों और छात्रों को साथ काम करने का अवसर दिया और दोनों के बीच की दूरी को मिटाया।
• स्कूल की पहली पत्रिका Atthadipa Vihartha प्रकाशित हुई।
• Alphabet Wall के ज़रिये बच्चे जल्दी ABCD सीखने लगे।
• स्थायी Amazon विशलिस्ट के द्वारा बच्चों को लगातार ज़रूरत का सामान मिलने लगा।
समीर कहते हैं, “उनका मक़सद बच्चों के दिल में विज्ञान के लिए प्रेम जगाना था ताकि वो कुछ नया बना सकें। सबसे अच्छा पल वो था जब सातवीं कक्षा का एक छात्र, जसोबंता मेरे पास आया और वर्कशॉप का मॉडल मांगने लगा। मैंने उससे पूछा कि वो मॉडल का क्या करेगा, तो उसने कहा कि वो भी अपने गाँव के बच्चों को इस मॉडल के बारे में सिखाएगा।” अभी स्कूल में 3 से 7 तक कक्षाएं हैं, जिनमें कुल 152 छात्र पढ़ते हैं। ये विद्यालय एक मॉडल स्कूल बन चुका है जहां कई संस्थान शिक्षा का नया तरीक़ा सीखने आने लगे हैं।
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