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[कोरोना के मसीहा] कोरोना मरीज़ों के शवों को श्मशान पहुँचा रहीं हैं लखनऊ की वर्षा वर्मा

कोविड-19 के कारण अपने सहेली को खोने और दाह संस्कार के लिए एक हार्स वैन पाने के लिए कई घंटों तक इंतजार करने के बाद, वर्षा ने उन लोगों की मदद करने का फैसला किया, जो इसी तरह की स्थिति में हैं।

देशभर में कोरोना महामारी की दूसरी घातक लहर के चलते उत्तर प्रदेश में भी कोविड-19 का संकट लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में कई लोग स्वेच्छा से मदद के लिए अपने-अपने तरीकों से आगे आ रहे हैं। राजधानी लखनऊ की रहने वाली वर्षा वर्मा ऐसे ही बहादुर मानवतावादी लोगों में शुमार हैं। वर्षा एक जूडो खिलाड़ी भी हैं।

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फोटो साभार: IndiaToday

42 वर्षीय वर्षा पीपीई सूट पहनकर राजधानी स्थित राम मनोहर लोहिया अस्पताल के बाहर खड़ी रहती है, ताकि कोविड-19 पीड़ितों के परिवारों की मदद ऐसे समय में की जा सके जब उनके अपने परिवार के सदस्य उन्हें छूने या उनका अंतिम संस्कार करने से परहेज करते हैं।


राम मनोहर लोहिया अस्पताल से शवों को श्मशान घाट ले जाने के लिए वह बीते अप्रैल माह से फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में काम कर रही हैं।

लाशों के लिए फ्री शव वाहन चला रही हैं। इतना ही नहीं, उन्हें अस्पताल से लेकर श्मशान घाट ले जाकर अंतिम संस्कार करने की जिम्मेदारी वर्षा बखूबी निभा रही हैं।


बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, "वर्षा ने पिछले दो सालों से लावारिस शवों के अंतिम संस्कार करने का काम शुरू किया था लेकिन पिछले साल से कोरोना संकट ने उनके काम का दायरा बढ़ा दिया है। हालांकि अभी वर्षा और उनकी दो सदस्यीय टीम के पास ज़्यादा संसाधन नहीं हैं। सिर्फ़ एक किराये की पुरानी वैन है जिसकी सीटें उखाड़ कर उन्होंने स्ट्रेचर रखने की जगह बनायी है।"


वर्षा का कहना है कि उनके काम के लिए लोग आर्थिक मदद तो देते हैं, लेकिन उन्हें इस काम को जारी रखने के लिए लोगों की सख़्त ज़रुरत है।


वर्षा ने बताया, "मुझे आर्थिक तौर पर लोगों की मदद आ रही हैं। कोई आकर हमारी टीम के साथ इस काम को नहीं करना चाहता है। हेल्पिंग हैंड नहीं मिल पा रहा है और कोरोना के चलते हमारा काम काफ़ी बढ़ गया है।"


कोविड-19 के कारण अपने सहेली को खोने और दाह संस्कार के लिए एक हार्स वैन पाने के लिए कई घंटों तक इंतजार करने के बाद, वर्षा ने उन लोगों की मदद करने का फैसला किया, जो इसी तरह की स्थिति में हैं।


वर्षा वर्मा प्रतिदिन लगभग 10-12 शवों को लखनऊ के बैकुंठ धाम या गुलाला घाट पहुंचाती हैं। उन्होंने कहा कि जरूरतमंद लोगों की मदद करने से उन्हें संतुष्टि मिलती है और वह जरूरतमंदों की सेवा करती रहेंगी।


इंडिया टुडे से बात करते हुए, उन्होंने कहा कि वह इस दिशा में एक कदम उठाने के लिए दृढ़ थी जब उनके परिवार और दोस्तों को इसी तरह की परिस्थितियों का सामना करना पड़ा।


आपको बता दें कि वर्षा 'एक कोशिश ऐसी भी' के नाम से एक एनजीओ भी चलाती हैं जहां उन्होंने शवों को लाने ले जाने के लिए एक अन्य कार किराए पर ले रखी है। इसे ड्राइवर चलाता है।