अदालत ने किराएदार पर ही लगाया जुर्माना, अब लॉकडाउन के बावजूद देना होगा पूरा किराया
याचिकाकर्ता गौरव जैन ने लॉकडाउन के दौरान किरायेदारों द्वारा दिये जाने वाले किराये को माफ करने की मांग की थी।
नयी दिल्ली, दिल्ली उच्च ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान किरायेदारों द्वारा देय किराये को माफ करने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि यह मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच के अनुबंध शर्तों में धीरे से दखल देना होगा।
उच्च न्यायालय ने कहा कि अदालत किराये की माफी की मंजूरी नहीं दे सकती है क्योंकि किराये का भुगतान किरायेदार और मकान मालिक के बीच अनुबंध पर आधारित होता है और यह भी ध्यान में रखा जाना चाहिए कि मकान मालिक भी किराये पर आश्रित हो सकते हैं।
याचिका पर सुनवाई से इनकार करते हुए अदालत ने याचिकाकर्ता-वकील पर ‘न्यायिक समय बर्बाद’ करने को लेकर 10,000 रूपये का जुर्माना लगाया और कहा कि यह अर्जी ‘गलत धारणा पर आधारित है और इसका कोई आधार नहीं है।’
अदालत ने कहा कि यह याचिका जनहित याचिका नहीं बल्कि प्रचार पाने के लिये दायर याचिका है।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने 15 जून को यह आदेश सुनाया, जो बुधवार को उपलब्ध हुआ। पीठ ने कहा कि उसकी इस मामले पर विचार करने में रुचि नहीं है, क्योंकि उसे यह कानून की प्रक्रिया का दुरूपयोग लगता है।
याचिकाकर्ता गौरव जैन ने लॉकडाउन के दौरान किरायेदारों द्वारा दिये जाने वाले किराये को माफ करने की मांग की थी और यह भी कहा था कि किराये नहीं देने को लेकर किसी किरायेदार से मकान खाली नहीं कराया जाए।