भारतीय दिलों पर पाकिस्तानी कॉमेडियन ईमान शेख का कब्जा
"मेरा झुकाव स्वाभाविक रूप से हास्यपरक लेखन की ओर है"
दिसंबर 2013 में ईमान शेख सिनेमाई प्रहसन से मानसिक रूप से इस कदर आहत थीं कि अपने ब्लाॅग पर उन्होंने ‘धूम 3’ पर एक व्यंग्यात्मक समीक्षा लिखी जिसके सारांशस्वरूप उदय चोपड़ा की उपस्थिति को ‘कूड़े का ढेर’और फिल्म को ‘बाइक और बकवास’करार दिया था। एक प्लाॅट में, जो दुनिया की सबसे बकवास लगने वाली कड़वी यात्रा जैसी लगती है, शेख लिखती हैं :
"कभी पूछते हैं आप कि ये लोग शिकागो में क्या ऊल-जुलूल कर रहे हैं? ठीक है कि अमेरिकी सिपाही संभावित भारतीय डाकू के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं। इसीलिए तो उनलोगों ने इन दोनो को बुलाया है जिनका पेशेवर रिकार्ड यही रहा है कि वे दिन बचाने के लिए सड़ियल रिक्शे का इस्तेमाल करते हैं।"
सारे इंटरनेट काॅमेडियन की तरह शेख भी कोसने के मामले में जबर्दस्त सृजनशील हैं और सही समय पर उनका इस्तेमाल करके अपनी समीक्षाओं को मजेदार बना देती हैं।
जिस समय पोस्ट को अंतिम बार देखा गया था, उस समय उस पर 352 टिप्पणियां थीं।
हालांकि व्यंग्य के मामले में वह नई नहीं हैं।
वह कहती हैं, "धूम 3 मेरी पहली हास्य रचना नहीं थी। इसलिए कि मैंने पहले भी समाचारपत्रों के लिए व्यंग्य लिखे हैं। मैंने ब्लाॅग की शुरुआत तो मुख्यतः लिखी गई चीजों के लिए लेखागार की तरह की थी। धूम 3 बाॅलीवुड पर लिखी गई मेरी पहली रचना थी। मुझे समय-समय पर कमेंटरी और विचार लिखना पसंद है; और चूंकि मैंने पहले पत्रकार के बतौर काम किया है इसलिए यह सब खबर के तत्काल बाद लिखना पसंद है।"
शेख ने करांची विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। ब्लाॅग पर उनके पुराने पोस्ट काफी अधिक फीके और सामाजिक रूप से सचेतन थे। लेकिन काॅमेडी ऐसी चीज है जो उनके लिए भी उतनी ही स्वाभाविक है जैसा कि वह कहती हैं, "मैंने हमेशा काॅमेडी रचनाएं (निश्चय ही व्यंग्य) पढ़ना-लिखना पसंद किया है। मैं सामान्यतः खुशमिजाज हूं और लोगों की संगति में हंसना-हंसाना पसंद करती हूं इसलिए मेरा झुकाव स्वाभाविक रूप से हास्यपरक लेखन की ओर है।"
शेख के भारतीय पाठक तो संयोग से प्राप्त हुए थे। भारतीय पाठक वर्ग की कभी भी ऐच्छिक रूप से तलाश नहीं करते हुए, वह महज खराब प्लाॅट, खराब अभिनय और खराब पटकथा के बेतुके मेल वाली फिल्मों पर अपने विचारों को शेयर करना चाहती थी।
"ईमानदारी से कहूं, तो यह बहुत सुखद आश्चर्य की बात थी," शेख स्वीकार करती हैं। "मैंने बाॅलीवुड को चुना क्योंकि पाकिस्तान में मैं अपने मित्रों के साथ भारतीय मूवी देखते बड़ी हुई थी। वे मेरे बचपन के जीवन के महत्वपूर्ण अंग थे और वयस्क जीवन के भी हैं। पाकिस्तान ने हाल में सचमुच अच्छी फिल्में बनानी शुरू की हैं लेकिन बीते दिनों बात इतनी अच्छी नहीं थी। अगर कुछ बात थी तो यही कि मैं पाकिस्तानी फिल्में विडंबना वश ही देखा करती थी।"
लेकिन कोई भी महिला काॅमेडियन यह कहेगी कि उनके काॅमेडी विषयक काम के लिए मिलने वाली शुभकामनाओं में उद्दंडता की प्रवृत्ति होती है। लगता है कि अप्रत्यक्ष शुभकामनाओं को संरक्षण मिलने का मामला काम के लिखित विवरण के साथ आने से जुुड़ा है। महिला काॅमेडियनों के लिए अपने कौशलों को पैना बनाना ऐतिहासिक रूप से कठिन रहा है, खास कर आॅनलाइन होने पर। सभी का एक जैसा सौभाग्य और समय नहीं होता है जैसा कि टीना फे और एमी पोहलर के मामले में है। क्रैक्ड की क्रिस्टीना एच या अभिनेता काॅमेडियन आयशा टाइलर (आर्चर में लाना की भूमिका निभाने वाली, जिसके द्वारा टिप्पणी कुफ्र है) से पूछकर तो देखिए। इंटरनेट पर यह प्रवृत्ति और भी जबर्दस्त हो जाती है जब वह चूतियों और भंड़वों से भरा पड़ा है।
शेख कहती हैं, "ओह गुड स्पेगेट्टी मांस्टर! मुझे कहा गया कि मैं हमेशा ‘‘एक लड़की के लिहाज से सचमुच फनी हूं"। इससे मुझे थोड़ी कोफ्त होती है लेकिन मुझे सचमुच मालूम नहीं है कि इनलोगों को कैसे जवाब देना है। अगर में सही याद कर पा रही हूं तो मुझे यह भी कहा गया है कि मैं 'एक पाकिस्तानी लड़की' के लिहाज से बहुत अधिक सपष्टवादी हूं, और यह मेरी प्रशंसा के बतौर कहा गया है। लिखते समय मैं थोड़ा मुंहफट हूं। मुझे महिलाओं से भी ई-मेल मिलते हैं जो मुझे कहती हैं कि मुझे अधिक औरताना (खास कर मुसलमान औरत जैसी) होने की जरूरत है। मैं सकारात्मक आलोचना पर ध्यान देती हूं और बाकी को दरकिनार कर देती हूं। मैंने बकवासों को छांटने के लिए खुद को प्रशिक्षित कर रखा है।"
पसंद आए या नहीं, लेकिन ‘फनी औरत’पर स्वाभाविक अविश्वास को प्रोत्साहन देने की बात हम सभी के दिमाग में भर दी गई है। अंशतः इसलिए कि हमलोगों को भी ऐसा सामाजिक मिजाज थमा दिया गया है कि हमारा हास्यपरक पक्ष लगभग असंभव हो गया है। महिलाओं प्रतिबंधपूर्ण शिष्टाचार का पालन करने के लिए बाध्य करना अपेक्षाकृत आसान होता है। लेकिन अधिक हास्य का मतलब लैंगिक यथास्थिति पर सवाल उठाना, लंपट होना, तर्कशील होना, मतविरोधी होना या सीधा-सीधा सनकी होना होता है। राजनीति, समाज और संस्कृति पर चर्चा में हमें शामिल नहीं करना एक प्रमुख कारक है जिसके चलते हमलोग पुरुषों जितना व्यंग्य नहीं लिख पाती हैं। और जब हम करती हैं, तो उसको बदनाम किया जाता है या उसे किसी काल्पनिक या असंभव उच्चस्तरीय छानबीन की प्रक्रिया से गुजारा जाता है।
हमलोगों को बचपन से ही चुप करा दिया जाता है और वश में रखा जाता है। इसी कारण जब कोई लड़का कोई अकालपक्व बात कहता है तो उसे होनहार करार दिया जाता है लेकिन जब कोई लड़की ऐसी बात कहती है, तो चूंकि उसका पालन-पोषण सही ढंग से नहीं हो रहा है इसलिए ‘‘संभवतः उसके चेहरे पर थप्पड़ जड़ देना वांछित होता है"।
ऐसे वातावरण में, जो महिला काॅमेडियनों के मामले में पहले से ही अधिकाधिक सनक भरा और आक्रामक है, अनेक लोग सचेत रूप से अच्छा प्रदर्शन करने का प्रयास करती हैं क्योंकि उनके काम के बारे में काॅमेडी की कसौटी और मूल्यों के आधार पर ही नहीं, काॅमेडियन से साथ जुड़े लिंग के आधार पर भी निर्णय लिया जाता है।
इस संदर्भ में शेख कहती हैं कि सदाशयता वाली लेकिन अस्पष्ट शुभकामनाएं प्राप्त होती रहने के बावजूद, उसने वास्तव में इस बारे में सोचा ही नहीं। पहली बार है कि यह मेरे दिमाग में घुसी। मैं व्यक्ति के बतौर हमेशा अपना सर्वोत्तम काम करने का प्रयास करती हूं, और मैं बहुत आभारी हूं कि मैं जो लिखती हूं, उसको पढ़ने के लिए लोग समय देते हैं। मेरे जीवन में औरतें इतनी हंसोड़ हैं कि मुझे सचमुच कभी लगा कि किसी से बेहतर या अधिक मजाकिया होने के लिए हमलोगों को संघर्ष करने की जरूरत है।
अगर कोई चुनौती है, तो वह है आसानी से ‘बासी और दुहराने वाला’हो जाना। वास्तविक संघर्ष तो ‘ताजा’बने रहने के लिए है।
शेख की एक सबसे बड़ी सफलता है बजफीड के लिए काम करना। चार महीने पहले शेख का बजफीड कौमार्य ‘कभी खुशी कभी गम’की वायरल हुई (और ठहाकेदार) उनकी समीक्षा से खुशी-खुशी भंग हो गया था (दूसरा कभी को महसूस करने में मुझे व्यक्तिगत रूप से 13 वर्ष लगे)। तो ज्यादा फनी होने के लिए क्या कोई नए किस्म का दबाव है?
शेख ऐसा नहीं सोचती हैं : "इसने मेरे सोचने का तरीका नहीं बदला है, लेकिन मैं निश्चित तौर पर भिन्न-भिन्न प्रकार के पाठकों के समूह से घिर गई हूं जिससे मुझे काफी कुछ सीखने को मिल रहा है।"
जो भी हो, वह ब्लाॅगर से बजफीड की लेखिका बनकर आह्लादित हैं।
"बहुत अच्छा लगता है। मैंने बजफीड के साथ जुलाई में काम करना शुरू किया और यह आश्चर्यजनक लगता है। इसके जैसे प्यारे काम में पहुंचकर मैं बहुत भाग्यशाली महसूस करती हूं। इसने मुझे लोगों के सामने लाने के लिए सचमुच बहुत कुछ किया है। लेकिन बहुत कम समय में मेरे बहुत सारे फौलोवर हो जाना महज वर्डप्रेस एकाउंट से पोस्ट करने वाली पाकिस्तान की एक ब्लाॅगर के रूप में मुझे जादू जैसा लगता है।"
शेख के लिए उससे भी बड़ी बात यह है कि उनके लिए मनोरंजन एक माध्यम है जिसमें निर्णायक रूप से पुल बनने की क्षमता है, खास कर दक्षिण एशिया की कष्टकर स्थिति में, जहां वास्तुकार की तत्काल आवश्यकता है। उस दायित्व में हिस्सा बंटा रही शेख कहती हैं, "निस्संदेह! अगर मैं ऐसा कुछ कर सकूं जो पुल बनाने के लिए उपयोगी हो, तो मैं इसके लिए तैयार हूं। मैं सोचती हूं कि मनोरंजन में बहुत ताकत है और खुलकर कहूं, तो हमारी सरकारों के बीच व्याप्त द्वेष से मैं परेशान हूं।"
पाकिस्तान ऐसी जगह है जो क्लासिक काॅमेडियन जोड़ी अनवर मक़सूद और मोईन अख्तर (जिनकी 2011 में मृत्यु हो गई) का घर रहा है। मक़सूद देश के सबसे महान (या कम से कम सबसे महानों में से एक) समकालीन व्यंग्यकार और काॅमेडियन रहे हैं। अतः शेख के पीछे एक मशहूर विरासत मौजूद है। 1980 के दशक में मक़सूद ने फिफ्टी-फिफ्टी लिखा और रचा था जो एशिया का संभवतः सबसे अच्छा काॅमेडी स्केच है। मक़सूद और अख्तर देर रात को दिखाए जाने वाले व्यंग्यात्मक शो लूज टाॅक के सितारे बने रहे थे जो 2000 के दशक के मध्य का एक अन्य महत्वपूर्ण शो था।
तो भी, पाकिस्तान के मौजूदा काॅमेडी उ़द्योग ने इनलोगों और मक़सूद जैसी क्षमता वाले अन्य काॅमेडियनों के सहयोग से उनसे आगे की उड़ान कभी नहीं भरी। यह देश विविध प्रकार के गुणवत्तापूर्ण नाटकों की प्रस्तुति के लिए मशहूर है। उनके टेलीविजन उद्योग में हमेशा ही प्रतिभासंपन्न लोगों की मौजूदगी रही है, फिर भी सोप ओपेरा की फूहड़ नकल की भरमार के साथ पिछले कुछ वर्षों में इसमें थोड़ी गिरावट आई है। चूंकि यह उद्योग धीरे-धीरे अपने पूर्व गौरव को प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है इसलिए पाकिस्तानी काॅमेडी से अधिक दुखद अवसान का सामना किसी अन्य ने नहीं किया है।
शेख कहती हैं, "काॅमेडी के मामले में पाकिस्तान की बड़ी हैसियत नहीं है जो दुख की बात है क्योंकि हमलोग कुछ हंस तो सकते ही थे। हमलोगों के पास ऐसा कोई काॅमेडियन नहीं है जो पाकिस्तान में रहता हो। कुछ हैं भी तो वे बहुत मजाकिया चीजें लिखते हैं। कुछ निम्नस्तरीय टेलीविजन शो हैं लेकिन बिल्कुल हमारे एकल काॅमेडी नाटकों की तरह। वे जरूरत से कुछ ज्यादा ही वास्तविक हैं, कुछ ज्यादा ही मजाकिया हैं। अब वे भारत में पाकिस्तानी टीवी शो प्रसारित कर रहे हैं इसलिए मुझे आशा है कि वे हमारे सबसे अच्छे काॅमेडी नाटक भी दिखाएंगे।"
तो शेख के लिए चांद के दूसरी ओर क्या मौजूद है?
"मैं भविष्य में एक किताब लिखना चाहती हूं," शेख कहती है, "लेकिन इस पर पिल नहीं पड़ना चाहती हूं क्योंकि इसका बुरा परिणाम होता है। जब मुझे लगेगा कि मेरे पास लिखने लायक कोई चीज है, मैं ऐसा करूंगी। मेरे द्वारा किए गए फिल्मों के सार-संक्षेप मेरे लिए एक तरह की शृंखला हैं। कभी-कभी मैं अपने पोस्ट हटा भी लेती हूं लेकिन अब काॅमिक्स नहीं करती (जैसा कि कुछ साल पहले किया करती थी)।
हालांकि जब वह उत्साही प्रशंसकों की पसंदीदा फिल्मों को ध्वस्त करती हैं तो उनके करीने से सजे पंख झड़ने और बर्बाद होने लगते हैं। शेख कहती हैं कि कभी-कभी मुझे "अपने इनबाॅक्स में अत्यंत मजाकिया संदेश प्राप्त होते हैं जहां लोग मुझे पाकिस्तानी होने के लिए शर्मिंदा करने का प्रयास करते हैं और महिलाओं को अपमानित करने वाले हर तरह के ‘फूल’जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। वे मुझे कहते हैं कि अगर आप ‘खुद को इतना स्मार्ट मानती हैं’तो आप भी कोई फिल्म बनाइए। और मैं खलास हो जाती हूं, ‘यहां मुश्किल से दाल-रोटी चल जा रही है भाई! फिल्म की कौन बात करे?'"
यही नहीं, उनके पास सीमा के दोनो पार से पुरुषों के सैंकड़ों विवाह प्रस्ताव आते हैं और कभी-कभार महिलाओं के भी।
भारत की सबसे ताजातरीन आॅनलाइन सनसनी और सर्वोच्च प्रतिभा ईमान शेख यहां से कहां जाएंगी?
"अभी मैं अपने नए काम में व्यस्त हूं और पूरा ध्यान नवोन्मेषी और प्रयोगशील होने पर है। भारत में मेरी टीम जबर्दस्त है। अगर कुछ है तो यही है कि मैं यथासंभव उनके पास जाना चाहती हूं।"
तो ऐसी हैं ईमान शेख आपके लिए। लिंग निरपेक्ष नाम वाली महिला ब्रो जोन से लाइव रिपोर्टिंग कर रही है।
आप ईमान शेख को कहीं भी तलाश सकते हैं। वह बजफीड, वर्डप्रेस, फेसबुक और ट्विटर पर - हर जगह हैं।