कामगारों का भविष्य संवारने की अनूठी पहल है "तोहफा-ए-पेंशन"
वृद्धावस्था में मिलेगा आज की बचत का फायदानियोक्ता और कामगार मिलकर करेंगे बचतसरकार की राष्ट्रीय पेंशन योजना का भी है योगदानदुःख की बात ये कि दिल्ली सहित एनसीआर के कई लोग है अब भी बचत से बेखबर
जिंदगी के लगभग 70 बसंत देख चुके देशराज पेशे से ड्राइवर हैं और पिछले करीब 20 वर्षों से एक ही परिवार के साथ काम कर रहे हैं। इतने लंबे समय तक काम करते रहने के कारण अब उन्हें परिवार के सदस्य का दर्जा प्राप्त है और कोई उन्हें नौकर नहीं समझता है।
उम्र के इस पड़ाव में जब उन्हें आराम से अपने घर पर होना चाहिये था तब भी उन्हें अपनी गुजर करने के लिये रोजाना नौकरी पर आना पड़ रहा है। आराम या सेवानिवृति जैसा शब्द उनके लिये एक सपना ही है। रिटायरमेंट के बारे में बात करने पर वे हंस देते हैं और उनका मानना है कि उन्हें ताउम्र काम करके अपना पेट पालना है। ज्यादा कुरेदने पर वे पूछते हैं कि अगर आराम करूंगा तो मुझे इस उम्र में खाना कौन देगा।
हम सबमें से लगभग प्रत्येक की रोजमर्रा की जिंदगी देशराज और उनके जैसे दूसरे लोगों पर निर्भर है और अगर वो एक भी दिन किसी कारण से गैरहाजिर हो जाए तो हमारी जिंदगी में भूचाल आ जाता है। हम उन्हें उनके काम की तनख्वाह दे रहे हें लेकिन क्या उनकी सेवाओं के बदले वह काफी है?
उनकी इन सेवाओं के बदले में उनके प्रति क्या हमारा कोई फर्ज नहीं है कि हम उनके लिये कुछ ऐसा करें जो उन्हें उस समय सहायता करे जब उनका शरीर उनका साथ न दे?
आजादी के 65 वर्ष के बाद भी हमारे देश में करीब 90 प्रतिशत कामगार गैर सरकारी या कहें कि निजी तौर पर अपने काम में लगे हुए हैं और जब तक उनका शरीर ठीक तरीके से काम कर रहा है तबतक वे मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चला रहे हैं। उम्र के ढलाव के पड़ाव पर पहुंचकर इनमें से अधिकतर का शरीर मेहनत-मजदूरी के लायक नहीं रहता और तब इन लोगों को महसूस होती है ‘‘बचत’’ की अहमियत।
वृद्धावस्था में आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होना हर कामगार का सपना होता है और भारत में अभी भी छोटे-मोटे काम करके अपनी गुजर चलाने वालों में पेंशन इत्यादि के बारे में सोचना दूर की कौड़ी है।
वर्तमान समय में हमारे यहां अधिकतर कामगार घरेलू नौकर, आया, रसोईया, माली, चैकीदार, ड्राईवर इत्यादि के रूप में काम में लगे हुए हैं। इसके अलावा एक बहुत बड़ा तबका मजदूरी करके, रद्दी बेचकर और अन्यत्र तरीकों से काम करके अपनी जिंदगी गुजर कर रहा है। इन लोगों के सामने सबसे बड़ा सवाल होता है बुढ़ापे में गुजर-बसर करने का जब इनका शरीर कामकाज करने की स्थिति में नहीं रहेगा।
इस तरह की जिंदगी बसर करने वाले घरेलू कामगारों को सामाजिक सुरक्षा देने का प्रयास करने के लिये बनाई गई माईक्रो पेंशन फाउंडेशन ने जब जमीनी स्तर पर काम करना शुरू किया तो उन्होंने पाया कि भारत में करीब 4 करोड़ ऐसे घरेलू कामगार हैं। इसके साथ ही इन लोगों ने पाया कि इनमें से अधिकतर आने वाले समय के लिये बचत करने की चाह तो रखते हैं लेकिन जानकारी के अभाव में ऐसा नहीं कर पाते हैं। इसके बाद ये लोग ऐसे कामगारों के लिये ‘‘तोहफा-ए-पेंशन’’ लेकर आये जिसे ‘‘गिफ्ट ए पेंशन’’ के नाम से जाना जाता है।
‘‘तोहफा-ए-पेंशन’’ एक इंटरनेट चलित मंच है जिसमें मालिक या नियोक्ता अपने घरेलू कामगार या नौकर का पंजीकरण वृद्धावस्था पेंशन के लिये करवाकर उसकी उस समय की सुखमय जिंदगी की गारंटी दे सकता है जब वह काम करने के लायक न रहे या जब उसका काम छोड़कर आराम की जिंदगी बसर करने का मन हो।
इस योजना में पंजीकरण करवाने के बाद कामगार को एक हजार रुपये प्रतिवर्ष (प्रारंभ के कुछ वर्षों तक) की रकम भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय पेंशन स्कीम के तहत सरकारी सहायता के रूप में दी जाती है। इसके अलावा इस योजना के तहत पंजीकरण करवाने के साथ ही व्यक्ति को एसबीआई लाईफ के द्वारा 30 हजार रुपये के बीमे की सुविधा भी दी जाती है, और साथ ही साथ कामगार को बचत के लिये प्रेरित करने के लिये लगातार उससे संपर्क भी साधा जाता है।
माईक्रो पेंशन फाउंडेशन की अधिकारी पारुल खन्ना ‘‘तोहफा-ए-पेंशन’’ के बारे में बताते हुए कहती हैं कि इस स्कीम के तहत पूरे देश से लोग अपने कामगारों का पंजीकरण करवाकर इस योजना का लाभ ले सकते हैं। उनका मानना है कि इस योजना के तहत पंजीकरण करवाकर प्रत्येक सप्ताह लगभग 10 लाख से अधिक लोग इसका लाभ उठा सकते हैं।
सितंबर 2014 में धरातल पर आने के बाद से सबने इस अनूठी योजना की तारीफ तो बहुत की है लेकिन अभी तक इस योजना को वह कामयाबी और कीर्ति नहीं मिली जिसकी वह हकदार है। इस योजना के द्वारा समाज के उस तबके को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर करने के प्रयास की प्रशंसा तो हर किसी ने की है जो तबका बचत शब्द के बारे में न सोचता हो, लेकिन इन लोगों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है इन कामगारों को ढूंढना और फिर पेंशन के लिये पंजीकरण करवाने के लिये उन्हें तैयार करना।
कामगारों को पंजीकरण के लिये प्रेरित करके उन्हें बचत की अहमियत के बारे में समझाना और इसके बाद उन्हें यह भरोसा दिलाना कि जो पैसा वह भविष्य के लिये जमा कर रहे हैं वह सुरक्षित हाथों में है अपने आप में एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हुआ है। यह काम कितना कठिन साबित हुआ है इसके बारे में उन 450 लोगों से पूछा जा सकता है जिन्होंने उपने घरेलू कामगारों को इस ‘‘तोहफा-ए-पेंशन’’ योजना के तहत पंजीकृत किया है।
इस योजना के तहत अपनी घरेलू कामगार का पंजीकरण करवाने वाले बेंगलुरू के बैंकर अतुल वैद्य कहते हैं कि जैसे ही उन्हें इस स्कीम के बारे में पता चला तो उन्होंने और उनकी पत्नी ने अपने घर पर पिछले तीन वर्षो से काम करने वाली नौकरानी का पंजीकरण करवाने का फैसला किया। हालांकि इस प्रयास को धरातल पर लाने में उन्हें ऐड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा और कई बार उन्हें उस नौकरानी के माता-पिता को अपने घर बुलाकर ‘‘बचत’’ और भविष्य में उसकी अहमियत के बारे में समझाना पड़ा। अतुल बताते हैं कि पहले तो उन्हें बचत के बारे में समझाया और फिर बाद में उन्हें पेंशन के बारे में समझाने में बहुत आसानी नहीं हुई।
‘‘हालांकि वे पेंशन के बारे में सुनकर बहुत रोमांचित थे और खासकर यह जानकर कि उम्र के एक खास पड़ाव पर जाकर जब उनकी बेटी काम छोड़ना चाहेगी तो भी उसे जिंदगी बसर करने के लिये किसी का मोहताज नहीं होना पड़ेगा लेकिन उन्हें थोड़ी मायूसी सिर्फ इस बात पर थी कि उन लोगों के समय में ऐसी कोई योजना नहीं थी जिसका लाभ वे लोग अब उठा सकें।’’
मूल रूप से बिहार के निवासी इस परिवार को समझाने के अलावा अतुल और उनकी पत्नी अपर्णा ने उन्हें इस योजना से संबंधित कुछ वीडियों भी दिखाए और साथ ही उनके मन में उठ रहें कई सवालों के जवाब भी दिये। इन लोगों को बताया गया कि भविष्य में चाहे वे लोग यहां से काम छोड़कर कहीं और भी चले जाए या किसी और के यहां काम करने लगें जो भी अपनी बचत पर उनका ही हक रहेगा और उन्हें यह पेंशन लगातार मिलती रहेगी। इसके अलावा वे लोग चाहें तो किसी जरूरत के समय में किसी महीने अगर चाहें तो पैसे न भी जमा करवाएं तो भी उनका हक खत्म नहीं होगा।
‘‘हमारी नौकरानी अपनी तनख्वाह में से प्रतिमाह 300 रुपये बचत करती है और मैं और अपर्णा खुशी-खुशी 200 रुपये उसकी बचत में डालते हैं। प्रतिमाह एक पिज़ा की कीमत से कम पैसे देकर हम उस बेचारी के बुढ़ापे को संवारने का काम कर रहे हैं।’’ अतुल आगे जोड़ते हुए कहते हैं।
20 साल की यह लड़की अगर इसी दर से बचत करती रही तो भविष्य में प्रतिमाह उसे करीब 7600 रुपये की पेंशन मिलेगी जो आज की तारीख में 6 हजार रुपये महीना कमाने वाले के लिये काफी होगी।
इस योजना में नियोक्ता या मालिक का काम सिर्फ कामगार का पंजीकरण करवाना है जिसके लिसे उनसे सिर्फ 300 रुपये लिये जाते हैं। पंजीकरण के बाद कामगार को एक माईक्रो पेंशन प्रीपेड कार्ड और एक वेलकम किट दी जाती है जिसके द्वारा अगर उसका बैंक एकाउंट है तो वह उस एकाउंट के द्वारा उपनी बचत लगातार कर सकता है।
पारुल आगे जोड़ती हैं कि जिस किसी ने आपकी सेवा की हो उसे आप इससे अच्छा तोहफा नहीं दे सकते और वह भी घर बैठे और सिर्फ चंद मिनटों की मेहनत से।
‘‘इस प्रक्रिया में शुरुआती पंजीकरण सिर्फ आॅनलाइन तरीके से किया जा सकता है। पंजीकरण के चार दिन बाद आपके द्वारा दर्शाये गए पते पर एक कोरियर के द्वारा दस्तावेज भेजे जाते हैं जिनपर नियोक्ता को कामगार के हस्ताक्षर करवाने होते हैं। इस प्रक्रिया में सबसे खास बात यह हे कि इसे और भी सरल बनाते हुए कुछ समय बाद आपके घर के दरवाजे से ही इस कोरियर के द्वारा हस्ताक्षरित कागज वापस मंगवा लिये जाते हैं और आपको कहीं नहीं जाना पड़ता।’’ पारुल आगे जोड़ते हुए कहती हैं।
अपनी शुरुआत से लेकर अबतक के प्रारंभिक 6 महीनों के अंदर ही इस योजना ने खासी लोकप्रियता हासिल कर ली है और इस ‘‘तोहफा-ए-पेंशन’’ वेबसाइट पर लगभग 500 से 1000 लोग रोजाना जानकारी के लिये संपर्क कर रहे हैं।
‘‘तोहफा-ए-पेंशन’’ की टीम के एक सदस्य बताते हैं कि हालांकि अभी अधिकतर लोग इस बारे में जागरुक नहीं हैं और जानकारी लेनी शुरू कर रहे हैं लेकिन अभी तक इस योजना में लगभग 1400 कामगारों ने पंजीकरण करवाया है जिनमें से 450 के पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। ‘‘अभी मुंबई और बंगलूरू जैसे शहरों के लोगों ने हमारी योजना में अधिक रुचि दिखाई है जो हमारे लिये काफी अच्छा है लेकिन अब भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्र के लोग अपने कामगारों को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं दिखे हैं और हम लोग इस इलाके का रिस्पांस देखकर थोड़े से निराश हैं।’’
अबतक इस योजना में पंजीकृत हुए कामगारों में 55 प्रतिशत महिला कामगारों की संख्या है।
दिल्ली में एक छोटे सी जगह पर ‘‘तोहफा-ए-पेंशन’’ की टीम अपनी प्रारंभिक कामयाबियों के बाद भविष्य की ओर देख रही है। ‘‘हमारा प्रारंभिक लक्ष्य अधिक से अधिक कामगारों तक पहुंचना और उन्हें भविष्य के लिये बचत की अहमियत को समझाना है जिसमें हम अबतक काफी हद तक कामयाब रहे हैं। भविष्य में हमारी योजना ऐसे कामगारों के लिये स्वास्थ्य बीमा की योजना शुरू करने की है।’’