पुराने सामान की करनी है अदला-बदली, जाइए Budli.in
पुराने सामानों की अल्टीमेट दुकान
आपको याद है... पिछली बार आप जब अपने नजदीकी दुकानदार के पास अपना पुराना फोन बेचने गए थे, तब उसने आपके फोन की जो कीमत लगाई थी, उसका मजाक उड़ाकर आप चले आए थे। लोकल डीलर अक्सर खरीदो-वापस करो का ऑफर तो देते हैं, लेकिन पुराने फोन की सही कीमत देने का सिर्फ दावा करते हैं।
आप Quikr और OLX की तरह ऑनलाइन वर्गीकृत वेबसाइटों में विज्ञापन लगाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यह एक जटिल प्रक्रिया है। अक्सर आपको ये मालूम नहीं होता कि अगर इस समय आपका सामान बेचा गया, तो इसकी कितनी कीमत हो सकती है। रोहित बगेरिया ने इस समस्या को समझा और जून 2013 में कोलकाता के बाहर स्थित अपने नए उद्यम Budli.in के साथ सामने आए। ये भारत के कुछ शुरुआती री-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स में से है जो उपयोगकर्ताओं को अपने पुराने सामान को उचित मूल्य पर बेचने की सुविधा देता है।
सरल शब्दों में, री-कॉमर्स ई-कॉमर्स का बिल्कुल उल्टा है। री-कॉमर्स में उपभोक्ता अपनी पुरानी चीजें कंपनी को उचित दाम पर बेचता है। ये एक क्लासिफाइड वेबसाइट नहीं है, जहां कोई विज्ञापन पोस्ट करता है और फिर खरीदार के लिए इंतजार करता है। विकीपीडिया के मुताबिक़, री-कॉमर्स इंटरनेट जैसे इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम या फिर भौतिक वितरण चैनलों के जरिए उत्पादों की पूरी कीमत वसूल करने का एक माध्यम है।
री-कॉमर्स को सबसे ज्यादा लोकप्रिय बनाता है इसका सीटूबी बिजनेस मॉडल। सीटूबी मॉडल में, उपभोक्ता अपनी पुरानी चीज़ें कंपनियों को बेचता है, इसके ठीक उल्टे ई-कामर्स मॉडल में कंपनियां अपने उत्पाद उपभोक्ताओं को बेचती है। ये बिजनेस मॉडल उन्हीं उपभोक्ताओं की ज़रुरतों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है, जो ऑनलाइन क्लासीफाइड सीटूसी बिजनेस मॉडल जैसे क्विकर और ओएलएक्स का इस्तेमाल करते हैं। जबकि, ओएलएक्स और क्विकर ऑनलाइन क्लासीफाइड्स हैं, जहां उपयोगकर्ता नए या पुराने सामान को बेचने के लिए विज्ञापन पोस्ट करता है, असल में ये कंपनियां लेन-देन की प्रक्रिया में जुड़ी नहीं होती हैं।
जब बाज़ार की प्रतिस्पर्धा और बदली.इन के प्रतिस्पर्धात्मक फायदे के बारे में पूछा गया तो रोहित कहते हैं कि लोगों को मौजूदा प्रचलित बाजार की तुलना में एक भरोसेमंद और आसान समाधान की ज़रुरत है। एक उपयोगकर्ता को बाजार में अपनी डिवाइस उतारने के बाद ये पता नहीं होता कि कब उसकी डिवाइस बेची जा सकेगी और उसे दूसरे ज़रूरी लॉजिस्टिक्स के इंतजाम भी करने होते हैं। रोहित इस असुविधा को एक मुश्किल के तौर पर देखते हैं और मानते हैं कि बदली.इन ऐसे उपयोगकर्ताओं को एक विकल्प मुहैया कराएगी।
U C Berkeley से अपना पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद बदली.इन शुरू करने से पहले रोहित ने सॉफ्टवेयर, मैन्युफैक्चरिंग और ई-कॉमर्स समेत कई सेक्टर्स में भारत और यूएस में काम किया। रोहित का कहना है कि पुराने गैजेट्स को बदली.इन पर सिर्फ कुछ क्लिक्स पर बेचना काफी आसान है। यूजर वेबसाइट पर लॉग ऑन करने के बाद, अपने पास मौजूद प्रोडक्ट्स को चुन सकता है और उसके बारे में अन्य जरूरी सूचनाएं भी डाल सकता है। सिस्टम खुद-ब-खुद उस प्रोडक्ट के लिए एक कीमत देता है, अगर यूजर उसे स्वीकार करता है तो फिर प्रोडक्ट पर शिपिंग चस्पा हो जाता है।
बदली.इन टीम उपभोक्ता के दरवाजे से उत्पाद इकट्ठा करती है और इसकी जांच के लिए लाने-ले जाने का सारा खर्च उठाती है। इन लोगों ने भरोसेमंद कुरियर सर्विसेज़ से देश के किसी भी हिस्से से उत्पाद उठाने-पहुंचाने का अनुबंध कर रखा है। इस्तेमाल हो चुके उत्पाद की हालत और बाजार में नए उत्पाद की कीमत, मुख्य रूप से इन दोनों बिंदुओं के आधार पर उत्पाद की कीमत तय की जाती है। पैसों का लेनदेन या तो ऑनलाइन या फिर चेक के जरिए होता है। कंपनी के पास खरीदे उत्पाद को बेचने के लिए उपयुक्त चैनल मौजूद है।
भारत में मौजूदा ई-कामर्स की लहर ने अप्रत्यक्ष रूप से री-कॉमर्स कंपनियों के लिए रास्ता तैयार किया है। भारत में तमाम ऑनलाइन और ऑफलाइन व्यापार के जरिए 10 करोड़ गैजेट हर साल बेचे जाते हैं, लेकिन इस्तेमाल हो चुके गैजेट्स की खपत के लिए कुछ ही विकल्प मौजूद हैं। ज्यादातर पुरानी चीज़ों का व्यापार वर्तमान में छोटे दुकानदारों और मिस्त्रियों के हाथों में है, लिहाजा इस क्षेत्र में बड़ा ऑनलाइन बाज़ार है। ये री-कॉमर्स स्टार्टअप बाजार की इसी अपूर्ण आवश्यकता को ध्यान में रख रहे हैं। हालांकि, ये उद्योग अभी अपने शुरुआती दिनों में है, लेकिन ये देखना दिलचस्प है कि ज्यादातर यूजर मेट्रो सिटीज़ के बाहर से हैं जो री-कॉमर्स के दूर-दूर तक फैलाव की पुष्टि करते हैं।
फिलहाल, Budli.in की टक्कर बाज़ार में reglobe.in, YNew और कुछ अन्य से है, लेकिन, फ्रांस की Re-commerce Solutions, US की Gazelle और जर्मनी की Rebuy जैसी दुनिया भर में कई कंपनियां हैं, जो री-कॉमर्स उद्योग में काम करती हैं।
बदलती जीवनशैली के साथ-साथ भारत में लोगों ने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस खरीदना और जल्द ही बदल देना शुरू कर दिया है। औसतन, लोग 13 से 18 महीने में अपने स्मार्टफोन्स बदल देते हैं, ये री-कॉमर्स कंपनियों को भारी स्टॉक और बड़ा मौका देता है।