महिलाओं को कामयाब उद्यमी बनने का रास्ता दिखाने वाली नायिका हैं मीना कविया
खाली समय का भरपूर फायदा उठाने की प्रबल इच्छा और अपने हुनर से कुछ बड़ा करने के जुनून ने एक सामान्य गृहिणी को बनाया सफल उद्यमी ... मीना कविया चाहतीं तो आराम की ज़िंदगी जी सकती थीं, लेकिन उन्होंने अपने घर-परिवार की जिम्मेदारियां संभालने के साथ-साथ खुद के दम पर कारोबार करने का साहसी फैसला लिया ... कम पूंजी से कारोबार में उतरकर छोटी-सी शुरूआत की ... जैसे-जैसे विश्वास बढ़ा, वैसे-वैसे कारोबार को आगे बढ़ाया और अपने सपनों को हकीकत में बदला ... मीना कविया ने हिम्मत से काम किया - मेहनत की, बाधाओं को पार लगाया, नये रास्ते खोले, नियम बदले और अपनी कामयाबी से नयी मिसाल कायम की ... पुरुषों के परिधान बनवाते हुए मीना कविया ने साबित किया है कि महिलाओं में कारोबार करने की सूझ-बूझ के साथ-साथ नेतृत्व करने का माद्दा भी है ... मीना कविया की कामयाबी की कहानी गृहणियों को दसियानूसी और रूढ़िवादी विचारों को त्यागकर नयी सोच के साथ कामयाबी की राह पकड़ने की प्रेरणा भी देती है ... पुरुषों के वर्चस्व वाली कारोबारी दुनिया में अपनी ख़ास पहचान बनाने वालीं इस ताकतवर महिला ने नायिका का रूप भी इख्तियार कर लिया है और ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को उद्यमी बनाने की कोशिश में भी जुट गयी हैं ...
अहमदाबाद का घी काँटा इलाका भी मीना कविया की कामयाबी की कहानी का गवाह है। घी काँटा वही इलाका हैं जहाँ कपड़ा-सिलाई के लिए ज़रूरी सामान थोक कीमत पर मिलता है। अपने कारोबार के शुरूआती दिनों में मीना सुईं, धागा जैसे सामान खरीदने के लिए घी काँटा ही जाती थीं। इस इलाके के दूकानदार मीना को गंभीरता से नहीं लेते थे। मीना चाहती थीं कि दूकानदार उन्हें हर तरह के बटन, धागे और सुइयाँ दिखाए, लेकिन दुकानदारों को लगता था कि वे अपने घर की ज़रूरतों के लिए ये सब खरीद रही हैं और इसी वजह से वे उन्हें हर तरह के बटन, धागे आदि नहीं दिखाते थे। सभी तरह का सामान दिखाने का अनुरोध करने पर कुछ दूकानदार उनके सामने सामान रख देते थे और फिर वहाँ से अपनी नज़रें फेर लेते थे। उन दिनों किसी भी दूकानदार ने मीना को सभी तरह के सामान नहीं दिखाए और न ही सबसे बेहतर सामान चुनने में उनकी मदद की। कोई भी दूकानदार मीना को संजीदा कारोबारी मानने को तैयार ही नहीं था। दूकानदारों को लगता था कि एक महिला को सारी वैरायटी के सामान दिखाना समय की बर्बादी है। लेकिन, मीना अपने इरादे की पक्की थीं, उन्होंने दूकानदारों की बेअदबी और ढ़ोल-मोल रवैय्ये की परवाह नहीं की और अपने कारखाने के लिए सबसे सही सामान चुनकर ले गयीं। सटीक और सबसे गुणवत्ता वाले सामान के इस्तेमाल की वजह से मीना एक कामयाब कारोबारी बनीं। उनकी बनायी कंपनी आइमा क्रिएशन्स प्राइवेट लिमिटेड इन दिनों देश-विदेश की मशहूर ब्रांड्स के लिए शर्ट्स बनाकर दे रही हैं। उनकी कंपनी की ख्याति अब देश-भर में फ़ैल चुकी है। मीना कविया की गिनती देश के सबसे कामयाब महिला उद्यमियों में भी होने लगी है, उन्होंने अपनी कामयाबी के नये प्रतिमान खड़े किये और वे दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी बनीं। कई सारे कारीगर और दर्जी उनकी देख-रेख में काम कर रहे हैं। बड़ी बात ये है कि घी काँटा इलाके के जो दूकानदार एक समय मीना की अनदेखी करते थे, उनसे बेअदबी से पेश आते थे उन्हीं दूकानदारों को आज मीना कविया से मिलने के लिए कई घंटों तक इंतज़ार करना पड़ता है, कतार में खड़े रहना पड़ता है, अपॉइंटमेंट लेनी पड़ती है। जो दूकानदार ये कहते थे कि एक सुईं दूं या दो, वही दूकानदार आज एक सैंपल मांगने पर दस संपल लेकर आ खड़े होते हैं। मीना कविया के ज़हन में उन शुरूआती कारोबारी दिनों की यादें अब भी ताज़ा हैं। मीना कहती हैं, “कारोबार शुरू करने में मुझे कई सारी अड़चनों का सामना करना पड़ा था। ह्यूमिलीऐटिंग टाइम भी देखा। लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी और लगी रही।”
दिलचस्प बात ये है कि मीना के माता-पिता की तरफ से कोई भी कारोबार में नहीं था। किसी भी निकटवर्ती रिश्तेदार की पृष्टभूमि भी कारोबारी भी नहीं थी। मीना के ससुरालपक्ष में भी कुछ इसी तरह की स्थिति थी। परिवार में कई लोग डाक्टर हुए थे और इन्हीं डाक्टरों की वजह से परिवार लोकप्रिय था।
राजस्थानी परिवार में जन्मीं मीना की शादी अहमदाबाद के कारोबारी राहुल से करवा दी गयी थी। शादी के बाद मीना घर-परिवार की जिम्मेदारियां संभालने लगीं। उनके दो बच्चे भी हुए। बच्चों की वजह से जिम्मेदारियां बढ़ भी गयीं। लेकिन, जब बच्चे बड़े हुए और स्कूल जाने लगे तब मीना को काफी समय मिलने लगा। खाली समय में कुछ उपयोगी न कर पाना उन्हें खलने लगा। वे इस सोच में डूब गयीं कि खाली समय का सदुपयोग करने के लियर क्या कुछ किया जा सकता है। उनके मन में तरह-तरह के ख्याल आये। ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एप्पल इंस्टिट्यूट से कंप्यूटर का कोर्स भी किया था, इसी वजह से उनके मन में कंप्यूटर से जुड़ा कोई काम शुरू करने का भी ख्याल आया। किताबों से उनकी दोस्ती थी और शौक पढ़ने का था, इसी वजह से उन्होंने एक कैफ़े में लाइब्रेरी खोलने की भी सोची। लेकिन, काफी सोचने और अपने पति से सलाह-मशवरा करने के बाद मीना ने अपना खुद का कारोबार करने का फैसला लिया। फैसला इस मायने से भी साहसी था क्योंकि घर-परिवार में किसी भी महिला ने पहले कारोबार नहीं किया था। लेकिन, काफी सोच-विचार के बाद मीना ने अपना इरादा पक्का कर लिया।
मीना ने साल 2001 में खुद का कारोबार करने का फैसला लिया था । मीना ने बताया, “मुझे लगा कि कारोबार खुद का होगा तो अपने हिसाब से काम किया जा सकता है। किसे कितना समय देना है, क्या करना है , कैसे करना है ये सब अपने हाथों में होगा। उस समय बच्चे भी छोटे थे, मुझे लगा कि खुद का कारोबार ही सही होगा। मैं अपनी काबिलियत का भी सही इस्तेमाल कर पाऊँगी और साथ ही घर भी संभाल सकूंगी।”
मीना ने कहा, “समय हाथ में था, शिक्षा प्राप्त की थी, कुछ करने की क्षमता भी थी और फिर ऐसे में घर पर बैठे रहने से तो बेहतर था कि कुछ काम किया जाए। एक साल तक बाज़ार का सर्वे किया। विभिन्न परियोजनाओं पर विचार-विमर्श किया और अपना कारोबार शुरू किया, मेंस शर्ट बनाने का।”
मीना कविया ने किराए के मकान से अपने कारोबार की शुरुआत की। शुरूआत 15 सिलाई मशीनों से हुई थी। 10 कारीगर थे। मीना ने अपनी कंपनी का नाम रखा – आइमा क्रिएशन्स प्राइवेट लिमिटेड। महत्वपूर्ण बात ये है कि कपड़ों का कारोबार, वो भी पुरुषों की कमीज सिलने का कारोबार शुरू करने का फैसला लेने से पहले मीना ने बाज़ार का सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण से जो कुछ जाना-समझा उसी के आधार पर मीना ने ‘मेंस शर्ट’ का कारोबार चुना। मीना बताती हैं, “ मैंने देखा कि अहमदाबाद में मेंस शर्ट्स की कोई अच्छी यूनिट नहीं है। वैसे तो पूरे गुजरात में कपड़ों का बाज़ार बहुत बड़ा है लेकिन मेंस शर्ट्स पर कोई ख़ास काम नहीं हो रहा है। इसी लिए मैंने मेंस शर्ट्स की यूनिट शुरू करने का फैसला लिया।”
इस फैसले के पीछे एक बड़ी वजह ये भी थी कि मीना के पति राहुल खुद कपड़ों के कारोबार में थे। मीना को लगा कि मेंस शर्ट की यूनिट शुरू करने में ज्यादा पूंजी लगाने की आवश्यकता भी नहीं है। छोटी रकम से कारोबार शुरू कर किया जा सकता है। चूँकि कारोबार करने का अनुभव भी नहीं था इसलिए मीना कोई बड़ा जोखिम भी नहीं उठाना चाहती थीं। वे जानती थी कि अनुभवी होने के कारण पति की सलाह उन्हें मिलती रहेगी।
मीना को अपना खुद का कारोबार शुरू करने के लिए पूंजी जुटाने में भी कोई समस्या नहीं आयीं। हमेशा की तरह की पति ने मदद की, सारे परिवारवाले साथ खड़े हुए। परिवारवालों से ही जुटायी पूंजी से मीना ही ने अपनी पहली यूनिट शुरू की।
यूनिट खुली, काम शुरू हुआ, लेकिन रास्ता आसान नहीं था, कई सारी चुनौतियाँ थी, संघर्ष था। इसकी एक बड़ी वजह ये भी थी कि मीना के लिए ये ‘कार्य-क्षेत्र’ बिलकुल नया था। लेकिन, मीना के हौसले बुलंद थे, इरादे नेक थे। इरादे नेक थे इसी वजह से उन्होंने कारोबार शुरू करने से पहले ही दो बड़े फैसले लिए थे। मीना ने पहले से ही तय कर लिया था कि वे गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं करेंगी। उनका दूसरा बड़ा फैसला था कि वे तय समय पर सामान अपने ग्राहकों/क्लाइंट्स तक पहुंचाएंगी। इन्हीं दोनों फैसलों को ध्यान में रखते हुए मीना ने योजनाएँ-परियोजनाएं बनाई।
पुरुषों की कमीज की डिजाईन लेटेस्ट हो और क्वालिटी शानदार इसके लिए मीना ने नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी यानी निफ्ट जैसी बड़ी और राष्ट्रीय संस्था को अपना कंसलटेंट बनाया। शुरू में निफ्ट के लोगों को विश्वास नहीं था कि यह कारोबार लम्बा चल पाएगा, लेकिन कुछ दिनों बाद वे भी मीना की मेहनत, लगन और कार्यक्षमता के कायल हो गये। दरअसल, जब मीना ने काम शुरू किया था तब निफ्ट के सलाहकारों/लोगों को लगा था महिला ने शौकिया तौर ये कारोबार शुरू किया है, और जब इससे उनका मन भर जाएगा तब वे इसे बंद कर देंगी। निफ्ट से आये सहालकार को लगता था कि मीना का कारोबार तीन-चार महीने से ज्यादा नहीं चल पाएगा, लेकिन जब मीना ने अपने कारोबार को पूरे जोश और उत्साह के साथ आगे बढ़ाया तो निफ्ट के विशेषज्ञ को भी अपनी राय बदलनी पड़ी।
वाकई मीना कविया के कारोबार की दुनिया में आने का कारण शौक नहीं था। वे चाहतीं तो आराम की ज़िंदगी जी सकती थीं। उनके जीवन में चैन था, सुख था, शान्ति थी। पति का कारोबार अच्छा चल रहा था, परिवार में खुशहाली थी। वे भी टीवी पर सीरियल देखते हुए या फिर किट्टी पार्टी में हिस्सा लेकर अच्छे से अपना ‘टाइम पास’ कर सकती थीं। कुछ न कुछ तो करना ही है – कुछ अच्छा करना है, बड़ा करना है – इसी ज़ज्बे ने उन्हें कारोबार की दुनिया में लाया था। इरादा मज़बूत था, खुद की काबिलियत को साबित करने का जुनून था, इसी वजह से वे आगे बढीं। मीना बताती हैं, “शुरू में मैंने मुनाफ़े की नहीं सोची थी, लेकिन काम को केवल शौक के तौर पर भी शुरू नहीं किया था। शौक के लिए मूवीज, म्यूजिक जैसी चीज़ें थीं, लेकिन मैंने अपने इस काम को ज़िम्मेदारी और गंभीरता के साथ लिया था। कर पाऊँगी कि नहीं यह भी अपने आपसे पूछा था। और फैसला कर पायी थी कि मैं कर पाऊँगी। मैंने बहुत मेहनत की। सात-आठ साल तो मुझे याद भी नहीं है कि मैंने इसके अलावा भी कुछ किया हो। उसी मेहनत और लगन का ही नतीजा है कि आज अच्छा कारोबार चल रहा है।”
मीना कविया आज एक सफल उद्यमी हैं। दुनिया के कई सारे मशहूर ब्रांड उनके यहाँ से शर्ट बनवाकर बाज़ार में बेच रहे हैं। अब मीना के पास 100 सिलाई मशीने हैं, 150 से ज्यादा कारीगर/दर्जी हैं। परिवारवालों से जुताई पूंजी से शुरू की गयी आएमा क्रिएशन्स अब सालाना 12 करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है।
बड़ी बात ये भी है कि मीना ने भविष्य के लिए भी अपनी योजनाएँ बना ली हैं। अपने नए सपनों को सच करने और नए लक्ष्यों को हासिल करने में वे जी-जान लगाकर जुटी हुई हैं। उन्होंने फैसला किया है कि वे अपनी कंपनी की लिस्टिंग करवायेंगी और उसे पब्लिक लिमिटेड बनाएंगी। उनका सपना खुद की ब्रांड वाले पुरुषों के परिधान बाज़ार में लाने का भी है। वे अपने जीवन का सबसे बड़ा सपना/उद्देश्य भी हमसे साझा करने से भी पीछे नहीं हटीं। मीना कविया चाहती हैं कि खुद को महिलाओं के लिए एक उदाहरण बनाएँ। उन्हें देखकर महिलाएँ ये सोचें कि उन्हें भी कुछ बनना है। महिलाएं उन्हें देखकर ये समझे कि उनके लिए उनके जैसा करना मुश्किल नहीं है। एक सामान्य गृहिणी से कामयाब कारोबारी और उद्यमी बनी मीना कविया की कहानी देश-भर में सुनायी-सुनी जा रही है। वे महिला शक्ति का प्रतीक बनकर भी उभरी हैं। मीना ने साबित किया है महिलाओं के पास भी कारोबार करने की ताकत है, मुनाफा कमाने के लिए सूझ-बूझ है।
अपने खुशी और कामयाबी के लम्हों का जिक्र करते हुए मीना कविया कहती हैं कि जीवन में खुशी के मौके तो बहुत आये। कई अवार्ड्स मिले। कई समाचार पत्रों ने उनकी कहानी छापी, लेकिन जिंदगी में कामयाब होने की खुशी के दो ख़ास मौके हमेशा याद रहेंगे। मीना बताती हैं, “आईआईएम-अहमदाबाद ने अपने विद्यार्थियों के लिए मेरी कहानी को केस स्टडी बनाया। वह मेरे लिए बड़ी उपलब्धि थी। मैं आईआईएम को भारत में सबसे बड़ा बिज़नेस स्कूल मानती हूँ। दूसरी घटना ‘वाइब्रेंट गुजरात’ की है। 2013 में हम महिला उद्यमियों के लिए ‘वाइब्रेंट गुजरात’ में कुछ जगह चाहते थे। यह हमारे लिए मुश्किल समझा जा रहा था। हुआ यूँ था कि जब हम ‘वाइब्रेंट गुजरात’ में महिलाओं के लिए जगह पूछने गये तो कहा गया कि चार-पाँच महिलाओं के लिए हम जगह नहीं दे सकते। 12 के लिए भी नहीं। आपको लेना है तो पूरा पवेलियन लीजिए। फिर मैंने पूरा पवेलियन लिया और उसमें 50 महिलाएँ शामिल हुईं। नरेंद्र मोदी (उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री) उद्घाटन करने के लिए आये। कहा गया था कि मुख्यमंत्री महिला उद्यमियों के पवेलियन भी और रिबन काटकर दो-तीन मिनट में चले जाएँगे, लेकिन जब वो आये तो उन्होंने चालीस मिनट पवेलियन में गुज़ारे। स्टालों पर रुककर महिलाओं से बातचीत की। वह मेरी जिंदगी का टर्निंग पाइंट था, मुझे लगा कि जो मैं करना चाहती थी वह कर दिया।”
कामयाबी के इन पलों में कैसा महसूस करती हैं, इस सवाल के जवाब में मीना कहती हैं, “मुझे खुशी है कि मैंने जो सोचा था उसे करने में काफी हद तक कामयाब रही हूँ। कामयाबी तो और भी हासिल करनी है, अभी बहुत सारा काम करना बाक़ी है। मेरे बहुत सारे अरमान हैं, उन्हें पूरा करना है। मैं मानती हूँ कि जिस दिन अरमान खत्म हो जाते हैं उस दिन ज़िंदगी खत्म हो जाती है। मुझे खुशी इस बात की भी है कि यहाँ(कारोबार की दुनिया में) बहुत सारा सम्मान मिला है। मेल डामिनेटेड सोसाइटी में महिलाओं को बहुत सारी अड़चनें आती हैं। मेरे सामने भी थीं। जब शुरू किया था, सामान खरीदने जाती थी, तो दुकानदार सही से बताते नहीं थे। बटन पूछो तो एक बटन सामने रख देते थे। आज मेरे कार्यालय के सामने वही लोग अपने उत्पाद बेचने के लिए अपाइंटमेंट का इंतज़ार करते रहते हैं। मुझे खुशी तो निश्चित रूप से है कि जो बाधाओं की एक दीवार थी उसके पार मैं निकल आयी। उसके बाद बहुत सम्मान मिला। इससे आत्मविश्वास भी बढ़ा। सम्मान की इस सीढ़ी तक पहुँचना आसान भी नहीं था। हर कदम पर चुनौतियाँ थीं।”
कारोबारी ज़िंदगी में अब तक की सबसे बड़ी चुनौती वाले दौर के बारे में भी मीना कविया ने हमें बताया। उस चुनौती भी उस समय आयी थी जब उनका कारोबार काफी तेज़ी से आगे बढ़ रहा था और आमदनी भी अच्छी होने लगी थी। जिस कंपनी से माल की आपूर्ति होती थी, वह बंद हो गयी, लेकिन यही समय उनके लिए नयी मंज़िलों की ओर आगे बढ़ने का रास्ता बनाने वाला साबित हुआ। मीना बताती हैं, “ मुझे याद है कि हम लोग अरविंद मिल की मेगा मार्ट के लिए हम शर्ट बनाते थे। जब अरविंद मिल का डिपार्टमेंटल स्टोर बैंगलुर स्थानांतरित हो गया तो हमारे लिए मुश्किल हुई, लेकिन यह समय हमें कदम आगे बढ़ने की सीढ़ी साबित हुआ। उस समय तक हम जॉबवर्क किया करते थे, लेकिन आज हम बड़े-बड़े ब्रांड्स के लिए फैब्रिक से लेकर सिलाई तक सारा सारा काम करते हैं यहाँ तक की पैकिंग भी है। मुझे लगता है कि चुनौतियाँ इसी लिए आती हैं, ताकि आप जहाँ हैं, उससे आगे बढ़ें।”
मीना अपनी कामयाबी का पूरा श्रेय अपनी मेहनत,लगन और अपनी जिद को देती हैं। वे कहती हैं,“मैंने मोबाइल में लिख रखा है – I want hard-work to be my destiny । मैं मानती हूँ कि सही दिशा में मेहनत करना ज़रूरी है। कई बार हम मेहनत तो सही करते हैं, लेकिन दिशा ग़लत चुनते हैं, इसलिए कामयाब नहीं होते, ऐसे में कहीं नहीं पहुँच पाते। यही कामयाबी का राज़ भी है। बल्कि कामयाबी का राज़ इसके अलावा कुछ नहीं है। महिलाएँ आलसी न हों। बहाना न करें। अपने लिए जियें। मैं यही सोचती हूँ कि मैं कारोबार अपने लिए अपने व्यक्तित्व के लिए कर रही हूँ।”
देखा गया है कि महिलाएँ अपने स्तर पर कारोबार शुरू करती हैं, लेकिन एक समय ऐसा भी आता है, जब परिवार का समर्थन मिलने पर प्रश्न चिन्ह लगते हैं। कभी वहाँ से समर्थन मिलता है और कभी ऐसा नहीं हो पाता तो निराशा हाथ लगती है, लेकिन मीना कविया इस बारे में अपनी अलग राय रखती हैं। वे कहती हैं, “ मैं नहीं मानती की सपोर्ट नहीं मिलता है। फैमिली का सपोर्ट मिलना लाज़मी है। फैमिली हमेशा सपोर्ट करती है। 95 प्रतिशत मामलों में फैमली सपोर्ट करती ही है। मैं जब महिलाओं के सेशन्स लेती हूँ तो कहती हूँ कि महिलाओं का कहीं न कहीं काम न करने का बहाना होता है कि फैमिली सपोर्ट नहीं करती। आप अच्छे से प्लान करो। आप कितना समय काम को दे पाएँगे, कितना समय घर-परिवार को ये पहले तय करो। अच्छा प्रेज़ेन्टेशन फैमिली के लिए तैयार करो, उन्हें कन्विंस करो। ऐसा करने से फैमिली के सपोर्ट न करने का सवाल ही खड़ा नहीं होगा।'
उनके निवास-स्थान पर हुई एक विशेष भेंट-वार्ता में मीना कविया ने खुलकर अपनी राय ज़ाहिर की। उन्होंने ज्यादातर महिलाओं के कारोबार में दिलचस्पी न दिखाने के पीछे के कारणों को साझा करने में भी कोई हिचकिचाहट नहीं की। उन्होंने कहा, “पहले का माहौल अलग था। हम संयुक्त परिवार में रहते थे। महिलाओं को घर में बहुत काम होता था। मसालों से लेकर अचार तक महिलाएँ सब घर में ही बनाती थीं। आज की बात अलग है। आज काम करने वालों को समझाना तथा बाज़ार से सामान लाना यही काम रह गया है। अप्पर मिडल क्लास और मिडल क्लास की महिलाओं के पास बहुत समय है। वो किटी पार्टीज़ में जाती हैं, गपशप करती हैं। समय हर एक के पास है। लेकिन इस समय का इस्तेमाल महिलाएं सही तरह से नहीं कर रही हैं।”
अपने कारोबार का विस्तार करने के साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए अथक प्रयास कर रही मीना ने ये भी कहा, “महिलाओं में अपना खुद का कारोबार करने इच्छा तो है, लेकिन आत्मविश्वास की कमी है। लेकिन महिलाओं में अब आत्मविश्वास बढ़ रहा है। मैंने बहुत सुना है कि महिलाएं तो खाखरा, पापड़, अचार बनाती हैं, यह क्या बिज़नेस हुआ? समाज उसको बिज़नेस भी नहीं गिनता। जब पुरुष यही कारोबार करते हैं तो यह बड़ा बन जाता हैं। पुरुष खाना बेचता है तो वह बड़ा कारोबार हो जाता है और महिला बेचती है तो छोटा। आज रामदेव भी तो मसाले ही बना रहे हैं, निरमा पावडर की एक छोटी-सी थैली है। लिज्जत पापड़ ही उदाहरण लीजिए। यह काफी बड़े बिज़नेस हैं। मैं महिलाओं से कहूँगी कि चाहे जो भी बनाओ अच्छे से बनाओ, उसका बाज़ार बढ़ाने की सोचो। अगर आज आप 5 लोगों को बेच रही हैं तो कल 100 तक पहुँचने की योजना बनाओ। प्रोडक्ट कोई छोटा बड़ा नहीं होता, मार्केट छोटा या बड़ा होता है। अपने प्रोडक्ट में विश्वास है, और मार्केट है तो पूरे दमखम लगाकर आगे बढ़ो। यह मत सोचो कि कौन क्या बोल रहा है।” मीना कविया के अनुसार, महिलाओं को कोई भी निर्णय लेने से पहले सारे पहलुओं पर ग़ौर करना चाहिए, अध्ययन करना चाहिए। बाज़ार कितना बड़ा है, मांग कैसी है, कितना आगे बढ़ा जा सकता है, कुछ अलग और शानदार कैसे किया जा सकता है - इन सब पहलुओं को समझने के बाद फैसला लेना चाहिए।
मीना कविया ने महिलाओं की मदद के मकसद से गुजरात सेंटर में एक हेल्पडेस्क भी बनाया है। यहाँ विशेषकर 30 से 40 साल उम्र की महिलाओं को उद्यमी बनाने की कोशिश में उन्हें सुझाव दिये जाते हैं। मीना कहती हैं, “यह बहुत कठिन समय होता है। आत्मविश्वस कम होता है। बहुत सारे सवाल होते हैं, लेकिन किससे पूछे इसका कोई सही उत्तर कहीं से नहीं मिलता है। सरकार की जो हेल्पडेस्क है, वहाँ एक सवाल पूछे 100 सवाल आते हैं। आप और कंफ्युज़ हो जाते हैं। हमने महिलाओं का उत्साह बढ़ाने उन्हें उनकी भाषा में समझाने के लिए यह डेस्क चलाया।”
खुद को और भी मजबूत और अपनी बढ़ती मजबूती से दूसरी महिलाओं को भी मजबूत बनाने के लिए संकल्पबद्ध मीना कविया की एक और बड़ी खासियत है। ये खासियत है – समय प्रबंधन की। वे कारोबार संभालती हैं, महिलाओं को उद्यमी बनाने के लिए कार्यक्रम करती/करवाती हैं, बहु,बेटी, पत्नी, माँ होने की सारी जिम्मेदारियां बखूबी निभाती हैं, दोस्तों से मेल-मिलाप भी करती हैं और इतना सब कुछ करने के बाद भी उनके पास अपने सारे शौक पूरा करने के लिए भी समय होता है। अगर शौक की बात की जाय तो उनके कई शौक हैं। मीना को कविता लिखने का शौक है। वे कॉलेज के दिनों में मंच से कविता-पाठ कर चुकी हैं। उन्हें संगीत सुनने और फिल्में देखने का भी शौक है। नयी-नयी जगह जाना भी उन्हें बेहद पसंद है। यात्राओं के लिए भी मीना आसानी से समय निकाल लेती हैं। किताबें पढ़ने का समय आज भी उनके पास है। वे अपने बच्चों के साथ भी समय बिताती हैं। वे कहती हैं कि आज हमारे पास बच्चे हैं तो हम उनके साथ जिएँगे। बाद का बाद में देखेंगे। पूरी तरह आज में जीना ज़रूरी है।”
ये पूछे जाने पर कि नौकरी का विकल्प क्यों नहीं चुना, मीना ने कहा, “30 साल ऐसी उम्र नहीं होती, जब आप फ्रेशर की तरह नौकरी शुरू करें। नौकरी में कोई अनुभव तो था नहीं। इसलिए कारोबार ही सही विकल्प लगा।”
गौरतलब है कि 30 साल की उम्र में आमतौर जहाँ महिलाएँ कुछ करने का विचार कम ही रखती हैं, वहीं मीना कविया ने न केवल अपना कारोबार शुरू किया, बल्कि उसे बाधाओं और समस्याओं से निकालकर कामयाबियों की नयी बुलंदियाँ अता कीं। मीना कविया गुजरात चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की कार्यकारिणी समिति की एकलौती निर्वाचित महिला सदस्य हैं। इतना ही नहीं, साल 2005 में उन्हें गुजरात से सबसे ज्यादा निर्यात करने वाली महिला कारोबारी/उद्यमी बनने पर राज्य सरकार की ओर से सम्मानित किया गया, अवार्ड से नवाज़ा गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के हाथों मीना कविया ने ये अवार्ड लिया था।