शिक्षित गृहणियां दे रही हैं गरीब बच्चों को मुफ्त कोचिंग
पूर्वी दिल्ली के मयूरविहार इलाके में वंचित तबके के बच्चों को मुफ्त में पढ़ा रही हैं शिक्षित गृहणियां। अनीता और उनके सहयोगी ने प्लान बनाया और दिल्ली की अलग-अलग जगहों पर वंचित तबके के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया...
औरत अगर अपनी शिक्षा का सही इस्तेमाल करे तो पूरे समाज को बेहतर से भी ज्यादा बेहतर बना सकती हैं।
ये बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और बाकी के बच्चों की तरह उन्हें भी अलग से कोचिंग की जरूरत पड़ती है लेकिन उनके माता-पिता कोचिंग की फीस का भार नहीं उठा सकते।
कहते हैं कि एक शिक्षित महिला दो परिवारों को ज्ञान की रोशनी देती है। महिला अगर अपनी शिक्षा का सही इस्तेमाल करे तो पूरे समाज को बेहतर से भी ज्यादा बेहतर बना सकती हैं। आज भी एक बड़ा तबका ऐसा मानता है कि लड़की ज्यादा पढ़-लिखकर क्या करेगी, करना तो उसे बाद में चूल्हा चौका ही है। शिक्षा का महत्व बस इतना ही नहीं है कि आप किसी रोजगार के लायक बन जाएं। शिक्षा किसी भी इंसान को समझदार बनने में मदद करती है।
ये बातें तब मुझे ज्यादा वास्तविक मालूम हुईं जब पूर्वी दिल्ली के मयूरविहार इलाके में कॉलोनी के एक पार्क में मैंने कुछ महिलाओं को बच्चों को पढ़ाते देखा। ये बच्चे समाज के गरीब तबके से आते हैं और ये महिलाएं उन्हें मुफ्त में कोचिंग देती हैं। ये बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं और बाकी के बच्चों की तरह उन्हें भी अलग से कोचिंग की जरूरत पड़ती है लेकिन उनके माता-पिता कोचिंग की फीस का भार नहीं उठा सकते। बोर्ड की परीक्षा देने वाले बच्चों को तो अलग-अलग विषयों में कई सारी शंकाएं होती हैं। स्कूल की कक्षाओं में समयाभाव के कारण वो अपनी हर शंकाओं का समाधान नहीं कर पाते हैं।
घर में उनके मां-बाप खुद पढ़े लिखे नहीं है तो वो भी बच्चों की पढ़ाई में मदद नहीं कर पाते हैं। ऐसे में बच्चों के सिर पर परीक्षाओं में फेल हो जाने का डर मंडराता रहता है। उनको इसी भय और अनिश्चितिता के माहौल से दूर ले जाने की कवायद है ये पार्क वाली पाठशाला। ये विनीता नाम की एक महिला (जो पूर्व में शिक्षिका थीं और अब गृहिणी हैं) की पहल है। वो बच्चों को गणित और विज्ञान पढ़ाती हैं। उनका साथ दे रही हैं दो और गृहणियां, विभा और संगीता। विभा अंग्रेजी की दिक्कतें सुलझा देती हैं और संगीता संस्कृत का ज्ञान देती हैं।
योरस्टोरी से बातचीत में विनीता ने बताया कि मुझे पढ़ाना हमेशा से ही बड़ा अजीज रहा है। जब मैंने स्कूल में पढ़ाना छोड़ा तो कुछ अधूरा सा लगता था। एक दिन मैं अपने एक सहयोगी के साथ पार्क में बैठी थी तो सामने बैठकर पढ़ रहे बच्चों को परेशान देखकर ख्याल आया कि क्यों न बच्चों को इकट्ठा करके उनकी दिक्कतें सुलझाई जाए। विनीता और उनके सहयोगी ने प्लान बनाया और दिल्ली की अलग-अलग जगहों पर वंचित तबके के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। इसी क्रम में मयूर विहार में पार्क वाली पाठशाला भी गठित हुई।
अलग-अलग कक्षाओं और स्कूलों से कई सारे बच्चे इन महिलाओं के पास पढ़ने आते हैं और वो सारी दुविधाएं एक-एक करके सुलझाते हैं जो उनके पाठ्यक्रम में सामने आ रही हों। पाठशाला आने वाले गौरव बताते हैं कि टीचर जी बहुत अच्छे से हम लोगों को सब समझा देती हैं। वो बड़े ही प्यार से बात करती हैं और हम लोगों के हरेक सवाल का आराम से जवाब देती हैं। मुझे स्कूल में संस्कृत तो बिल्कुल भी नहीं समझ आती थी लेकिन अब धीरे-धीरे चीजें दिमाग में घुसने लगी हैं। एक और छात्रा दीपमाला कहती हैं कि मैम लोगों ने जब से हमलोगों को पढ़ाना शुरू किया है तब से हम लोगों का कॉन्फिडेंस और बढ़ गया है।
एक छोटे से ब्लैकबोर्ड और देश के भविष्य को शिक्षित करने की ललक ने इन गृहणियों को एक जरूरी पथ पर आगे बढ़ाया है। अपने खाली समय में घर बैठकर टीवी सीरियलों पर अपना वक्त बर्बाद करने की जगह ये महिलाएं देश के निर्माण में अपना योगदान दे रही हैं। शिक्षा एक अमूल्य निधि है, जरूरतमंद बच्चों तक ये पहुंचाना एक मिसाल है।
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